Get Victory with Sudarshan Chakra Mantra. This Sudarshan Chakra mantra is practiced for being victorious in any work and for happiness.
Sudarshan Chakra is a spinning disc weapon, having 108 serrated edges used by the Hindu god Vishnu or Krishna.
The Sudarshana Chakra is generally portrayed on the right rear hand of the four hands of Vishnu, who also holds a shankha, a Gada, and the Padma.
In the Mahabharata, Krishna, identified with Vishnu, uses it as a weapon. For example, he beheads Shishupala with the Sudarshana Chakra at the Rajasuya yagna of Emperor Yudhishthira.
He also uses it during the 14th day of the Mahabharata War to perplex Duryodhana by summoning Jayadratha in front of Arjuna by hiding the Sun with his chakra. In the end, the Kauravas get fooled and thus Arjuna avenges the death of his son.
This sadhna is for one night only and is particularly done on the eve of Krishna Janmashtami. Krishna Janamashtmi is the annual celebration of the birth of the Hindu deity Krishna who is the eighth incarnation of Lord Vishnu.
The festival is celebrated on the eighth day of Krishna Paksha of the month of Shravana in the Hindu Calendar.
How To Chant The Sudarshan Chakra Mantra
- Wear yellow clothes for this purpose.
- Lit an Agarbatti or lamp before the picture of Lord Vishnu.
- Chant 11 rosary of this mantra with devotion.
- Do this mantra chant for one night only.
- Afterward, chant 21 times of this mantra before starting any important work in life.
- This is a very effective & tested mantra.
Sudarshan Chakra Mantra
ॐ सुदर्शन चक्राय मम सर्व कार्य विजयं देहि देहि ॐ फट |
“Om Sudarshan Chakray Mam Sarv Karya Vijayam Dehi Dehi Om Phat”
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Another Sudarshan Chakra Mantra
सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का प्रमुख शस्त्र है, इस चक्र से माध्यम से भगवान ने बहुत से दुष्टों का विनाश किया है। इस चक्र की खास बात यह है कि यह चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुंचकर वापिस आ जाता है। यह चक्र कभी भी नष्ट नहीं होता है। इस शस्त्र में अपार ऊर्जा है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है।
इस दिव्य चक्र की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएँ सामने आती हैं, कुछ लोगों का मानना है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, बृहस्पति ने अपनी ऊर्जा एकत्रित कर के इसकी उत्पत्ति की है। यह भी माना जाता है कि यह चक्र भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना कर के प्राप्त किया है। लोग यह भी कहते हैं कि महाभारत काल में अग्निदेव ने श्री कृष्ण को यह चक्र दिया था जिससे अनेकों असुरों का संहार हुआ था।
साधना विधान
- यह साधना साधक की सुरक्षा से सम्बन्धित है। अतः आप इसे रक्षा-बन्धन (राखी) पर्व से आरम्भ करें। यदि यह सम्भव न हो तो इस साधना को किसी भी शुभ दिन से शुरू किया जा सकता है।
- रात्रिकाल में ११ बजे के बाद साधक स्नान कर के सफ़ेद वस्त्रों को धारण कर सफ़ेद आसन पर बैठे और सामान्य गुरुपूजन करके गुरुमन्त्र की चार माला जाप करें।
- फिर सद्गुरुदेवजी से सुदर्शन चक्र साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर उनसे साधना की सफलता के लिए निवेदन करें।
- इसके बाद भगवान गणपतिजी का स्मरण कर किसी भी गणपति मन्त्र का एक माला जाप करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता के लिए प्रार्थना करें।
- इस साधना में साधक को कुल ११,००० मन्त्र जाप करना है। साधक अपनी सामर्थ्य के अनुसार दिनों का चयन कर अपना मन्त्र जाप पूरा कर लें, लेकिन मन्त्र जाप की संख्या रोज़ एक समान और नियमित रहे। साधक चाहे तो एक दिन में भी मन्त्र जाप पूरा कर सकता है।
- तत्पश्चात साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि “मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से सुदर्शन चक्र साधना शुरू कर रहा हूँ। मैं नित्य ७ दिनों तक १५ माला मन्त्र जाप सम्पन्न करूँगा। मेरी यह साधना सफल हो, जिससे कि मुझे और मेरे परिवार को सम्पूर्ण रूप से सुरक्षा प्राप्त हो सके और जीवन पूरी तरह चिन्तामुक्त हो सके।”
- आप चाहे तो ११ माला प्रतिदिन के हिसाब से इस साधना को ११ दिनों में भी सम्पन्न कर सकते हैं। लेकिन संकल्प में फिर आप वैसा ही उच्चारित करें।
इसके बाद साधक हाथ जोड़कर भगवान सुदर्शन चक्र का निम्नानुसार ध्यान करे -----
ॐ सुदर्शनं महावेगं गोविन्दस्य प्रियायुधम्‚
ज्वलत्पावकसङ्काशं सर्वशत्रुविनाशनम्।
कृष्णप्राप्तिकरं शश्वद्भक्तानां भयभञ्जनम्‚
सङ्ग्रामे जयदं तस्माद्ध्यायेद्देवं सुदर्शनम्॥
फिर पीली हकीक माला से साधक निम्न मन्त्र का जाप करें | अपने समक्ष सुदर्शन चक्र यंत्र को रखें |
मन्त्र
।। ॐ सुदर्शन चक्राय शीघ्र आगच्छ मम् सर्वत्र रक्षय-रक्षय स्वाहा ।।
OM SUDARSHAN CHAKRAAY SHEEGHRA AAGACHCHH MAM SARVATRA RAKSHAY-RAKSHAY SWAAHA.
मन्त्र जाप के पश्चात एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दें। इस प्रकार यह साधना आप नित्य ७ अथवा ११ दिनों तक सम्पन्न करें। साधना समाप्ति के बाद साधक माला को धारण किए रखे तथा आगामी दिनों में ग्रहणकाल के समय इस मन्त्र की ११ माला जाप फिर से करे और शहद से अग्नि में १००८ आहुतियाँ इसी मन्त्र से अर्पित करे।
यह साधक का सौभाग्य होता है कि उसे साधना काल के दौरान सुदर्शन चक्र के दर्शन हो जाए। यदि ऐसा होता है तो साधक को चाहिए कि वह विनीत भाव से प्रणाम कर सुदर्शन चक्र से रक्षण के लिए प्रार्थना करे।
इसके बाद सुदर्शन चक्र साधक के आसपास अप्रत्यक्ष रूप में रहता है तथा सर्व रूप से शत्रु तथा अनेक बाधाओं से व्यक्ति का रक्षण करता ही रहता है। साधक का अहित करने का सामर्थ्य उसके शत्रुओं में रहता ही नहीं है।