Tripur Bhairavi Kavach | त्रैलोक्यविजय भैरवी कवचम्

Tripur Bhairavi Kavach - त्रैलोक्यविजय भैरवी कवचम्

📅 Dec 9th, 2025

By Vishesh Narayan

Summary Tripur Bhairavi Kavach is a protective tantric hymn dedicated to Tripura Bhairavi, intended to provide divine protection. The Kavach simply removes obstacles, enhances spiritual practice, and bestows spiritual gifts and transformation.


Tripur Bhairavi Kavach provides heavenly protection from the Bhairavi. If one wears it around his neck or on his right hand, he becomes the conqueror of all three realms. Whatever weapons come into contact with his body are rendered as ineffectual as flowers.

Tripura Bhairavi Kavach is a protective tantric hymn (kavach) directed at Tripura Bhairavi, one of the ten Mahavidyas; it is chanted to request her protection, remove impediments, increase spiritual practice, and grant siddhis (spiritual gifts) and inner transformation.

Benefits of Tripur Bhairavi Kavach

  • According to practitioners and traditional sources, benefits include improved courage, eradication of harmful effects, spiritual prosperity, and energetic protection. Many writings also describe the kavach as a tool for stabilizing the subtle body and assisting with kundalini work when used properly.
  • The kavach enumerates the goddess' names, shapes, and powers, believed to protect the reciter from mental, ritual, and worldly threats.
  • When properly practiced, it deepens tantric sadhana, accelerates inner transformation, and cultivates siddhis or spiritual attainments.
  • In addition to physical protection, the kavach serves as a concentrated meditation—repeating its lines connects the mind with the goddess' energy, assisting in the dissolution of fear and ignorance.

Whoever obtains this armor, Lakshmi and Saraswati will live in his home indefinitely.

Reciting this Kavach can alleviate fear of enemies, war, wilderness, opponents, demons, ghosts, or dark powers.

Tripur Bhairavi Kavach Meaning 

त्रैलोक्यविजय भैरवी कवचम् रुद्रयामल तंत्रे  हिन्दी अर्थ सहित 

श्री गणेशाय नमः 
श्रीदेव्युवाच

भैरव्याः सकला विद्याः श्रुताश्चाधिगता मया ।
साम्प्रतं श्रोतुमिच्छामि कवचं यत्पुरोदितम् ॥ १॥

shreeganeshaaya namah' .
shreedevyuvaacha .
bhairavyaah' sakalaa vidyaah' shrutaashchaadhigataa mayaa .
saampratam' shrotumichchhaami kavacham' yatpuroditam .. 1..

अर्थ —
हे प्रभो! मैं भैरवी की समस्त विद्याओं को सुन चुकी और समझ चुकी हूँ।
अब मैं वह कवच सुनना चाहती हूँ, जिसका आप ने पूर्व में उपदेश किया था।

त्रैलोक्यविजयं नाम शस्त्रास्त्रविनिवारणम् ।
त्वत्तः परतरो नाथ कः कृपां कर्तुमर्हति ॥ २॥

trailokyavijayam' naama shastraastravinivaaranam .
tvattah' parataro naatha kah' kri'paam' kartumarhati .. 2..

अर्थ —
"त्रैलोक्यविजय" नामक यह कवच सभी प्रकार के शस्त्र और अस्त्रों को निष्फल करने वाला है।
हे नाथ! आपसे बढ़कर कृपा करने वाला इस जगत में कौन है?

ईश्वर उवाच
श्रुणु पार्वति वक्ष्यामि सुन्दरि प्राणवल्लभे ।
त्रैलोक्यविजयं नाम शस्त्रास्त्रविनिवारकम् ॥ ३॥

trailokyavijayam' naama shastraastravinivaaranam .
tvattah' parataro naatha kah' kri'paam' kartumarhati .. 2..

अर्थ —
हे पार्वती! सुनो, मैं तुम्हें बताता हूँ —
यह "त्रैलोक्यविजय" नामक कवच शस्त्र-अस्त्र की समस्त हानि को रोकने वाला है।

पठित्वा धारयित्वेदं त्रैलोक्यविजयी भवेत् ।
जघान सकलान्दैत्यान् यधृत्वा मधुसूदनः ॥ ४॥

pat'hitvaa dhaarayitvedam' trailokyavijayee bhavet .
jaghaana sakalaandaityaan yadhri'tvaa madhusoodanah' .. 4..

अर्थ —
जो इसका पाठ करता और इसे धारण करता है, वह तीनों लोकों में विजयी होता है।
भगवान विष्णु ने इसी शक्ति को धारण कर समस्त दैत्यों का वध किया था।

ब्रह्मा सृष्टिं वितनुते यधृत्वाभीष्टदायकम् ।
धनाधिपः कुबेरोऽपि वासवस्त्रिदशेश्वरः ॥ ५॥

brahmaa sri'sht'im' vitanute yadhri'tvaabheesht'adaayakam .
dhanaadhipah' kubero'pi vaasavastridasheshvarah' .. 5..

अर्थ —
ब्रह्मा इसी शक्ति से सृष्टि का विस्तार करते हैं,
कुबेर इसी के प्रभाव से धनाध्यक्ष बने और
इन्द्र भी इसके प्रभाव से देवताओं के स्वामी बने।

यस्य प्रसादादीशोऽहं त्रैलोक्यविजयी विभुः ।
न देयं परशिष्येभ्योऽसाधकेभ्यः कदाचन ॥ ६॥

in prasaadaadeesho'ham' trailokyavijayee vibhuh' .
na deyam' parashishyebhyo'saadhakebhyah' kadaachana .. 6..

अर्थ —
जिसके प्रसाद से मैं स्वयं त्रैलोक्य विजेता कहलाया —
यह कवच कभी भी गैर-शिष्य, दुष्ट अथवा असाधक लोगों को नहीं दिया जाना चाहिए।

पुत्रेभ्यः किमथान्येभ्यो दद्याच्चेन्मृत्युमाप्नुयात् ।
ऋषिस्तु कवचस्यास्य दक्षिणामूर्तिरेव च ॥ ७॥

putrebhyah' kimathaanyebhyo dadyaachchenmri'tyumaapnuyaat .
ri'shistu kavachasyaasya dakshinaamoortireva cha .. 7..

अर्थ —
यदि इसे अपने पुत्रों से भी बढ़कर किसी अन्य को दे दिया जाए तो देने वाला मृत्यु को प्राप्त होता है।
इस कवच के ऋषि दक्षिणामूर्ति ही हैं।

विराट् छन्दो जगद्धात्री देवता बालभैरवी ।
धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः ॥ ८॥

viraat' chhando jagaddhaatree devataa baalabhairavee .
dharmaarthakaamamoksheshu viniyogah' prakeertitah' .. 8..

अर्थ —
इसका छन्द "विराट्" है, देवता "जगद्धात्री बाल भैरवी" हैं।
और इसका उपयोग — धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — चारों पुरुषार्थ की सिद्धि हेतु कहा गया है।

अधरो बिन्दुमानाद्यः कामः शक्तिशशीयुतः ।
भृगुर्मनुस्वरयुतः सर्गो बीजत्रयात्मकः ॥ ९॥

adharo bindumaanaadyah' kaamah' shaktishasheeyutah' .
bhri'gurmanusvarayutah' sargo beejatrayaatmakah' .. 9..

अर्थ —
(यह पौराणिक बीज-विज्ञान का श्लोक है)
काम, शक्ति, बिन्दु, नाद, सर्ग आदि तीन बीजों के योग से यह रचना बनी मानी जाती है।

मे शिरः पातु बिन्दुनादयुतापि सा ।
भालं पातु कुमारीशा सर्गहीना कुमारिका ॥ १०॥

baalaishaa me shirah' paatu bindunaadayutaapi saa .
bhaalam' paatu kumaareeshaa sargaheenaa kumaarikaa .. 10..

अर्थ —
भैरवी का बालरूप मेरे सिर की रक्षा करे,
जो बिन्दु और नाद से युक्त है।
और कुमारी रूप वाली भैरवी मेरे मस्तक (ललाट) की रक्षा करे,
जो सृष्टि से रहित, निराकार कुमारिका के रूप में जानी जाती है।


दृशौ पातु च वाग्बीजं कर्णयुग्मं सदावतु ।
कामबीजं सदा पातु घ्राणयुग्मं परावतु ॥ ११॥

dri'shau paatu cha vaagbeejam' karnayugmam' sadaavatu .
kaamabeejam' sadaa paatu ghraanayugmam' paraavatu .. 11..

अर्थ —
वाणी का बीजमन्त्र मेरी दोनों आँखों की रक्षा करे,
और “शब्द” का नित्य बीज मेरी दोनों कानों की रक्षा करे।
कामबीज ‘क्लीं’ मेरे नासिका द्वार (घ्राणेंद्रिय) की रक्षा करे —
जो परम इच्छा शक्ति है, वह उसे सदैव सुरक्षित रखे।

बाला जिह्वां पातु शुचिप्रभा ।
हस्रैं कण्ठं हसकलरी स्कन्धौ पातु हस्रौ भुजौ ॥ १२॥

sarasvateepradaa baalaa jihvaam' paatu shuchiprabhaa .
hasraim' kant'ham' hasakalaree skandhau paatu hasrau bhujau .. 12..

अर्थ —
ज्ञान देने वाली बालासरस्वती सदृश भैरवी मेरी जिह्वा (वाणी) की रक्षा करे।
पवित्र प्रकाश रूपा देवी मेरे कंठ की रक्षा करे।

‘हस्‍रैं’ बीजवाली भैरवी मेरे दोनों कंधों को सुरक्षित रखे।
‘हसकलरी’ बीज से युक्त भैरवी मेरे दोनों भुजाओं की रक्षा करती रहे।

पञ्चमी भैरवी पातु करौ हसैं सदावतु ।
हृदयं हसकलीं वक्षः पातु हसौ स्तनौ मम ॥ १३॥

panchamee bhairavee paatu karau hasaim' sadaavatu .
hri'dayam' hasakaleem' vakshah' paatu hasau stanau mama .. 13..

अर्थ —
पञ्चमी स्वरूपिणी भैरवी “हसैं” रूप से मेरे हाथों की रक्षा करे।
हृदय की रक्षा “हसकलीं” बीजमन्त्र से हो।
और “हसौ” बीज से मेरे वक्षस्थल (छाती) की रक्षा हो।

सा भैरवी देवी चैतन्यरूपिणी मम ।
हस्रैं पातु सदा पार्श्वयुग्मं हसकलरीं सदा ॥ १४॥

paatu saa bhairavee devee chaitanyaroopinee mama .
hasraim' paatu sadaa paarshvayugmam' hasakalareem' sadaa .. 14..

अर्थ —
चैतन्यस्वरूपा भैरवी देवी समग्रता से मेरी रक्षा करें।
“हस्रैं” रूपवाली भैरवी मेरे दोनों पार्श्व (बगल, पृष्ठ-पार्श्व) की रक्षा करे।
और “हसकलरी” रूपवाली भैरवी लगातार उनकी सुरक्षा करती रहे।

पातु हसौर्मध्ये भैरवी भुवि दुर्लभा ।
ऐंईंओंवं मध्यदेशं बीजविद्या सदावतु ॥ १५॥

kukshim' paatu hasaurmadhye bhairavee bhuvi durlabhaa .
aim'eem'om'vam' madhyadesham' beejavidyaa sadaavatu .. 15..

अर्थ —
दुर्लभ स्वरूप वाली भैरवी “हसौं” बीज से मेरे उदर (पेट) की रक्षा करे।
और “ऐं ईं ओं वं” — ये बीजमंत्र मेरे नाभि से हृदय मध्य प्रदेश तक की रक्षा करें।
ये बीजमंत्र विद्या, बल और तत्वों के संतुलन के सूचक हैं।

हस्रैं पृष्ठं सदा पातु नाभिं हसकलह्रीं सदा ।
पातु हसौं करौ पातु षट्कूटा भैरवी मम ॥ १६॥

hasraim' pri'sht'ham' sadaa paatu naabhim' hasakalahreem' sadaa .
paatu hasaum' karau paatu shat'koot'aa bhairavee mama .. 16..

अर्थ —
“हस्रैं” मंत्र मेरे पृष्ठभाग (पीठ) की रक्षा करे।
और “हसकलह्रीं” मंत्र सदैव मेरी नाभि की रक्षा करे।
“हसौं” रूप से हाथों की सुरक्षा हो तथा षट्कूटा भैरवी संपूर्ण कर्मशक्ति की रक्षा करे।

सहस्रैं सक्थिनी पातु सहसकलरीं सदावतु ।
गुह्यदेशं हस्रौ पातु जनुनी भैरवी मम ॥ १७॥

sahasraim' sakthinee paatu sahasakalareem' sadaavatu .
guhyadesham' hasrau paatu janunee bhairavee mama .. 17..

अर्थ —
“सहस्रैं” मंत्र मेरे जाँघों की रक्षा करे।
“सहसकलरी” मंत्र निरंतर मेरी जाँघों की शक्ति सुरक्षित रखे।
गुप्तांगों की रक्षा “हस्रौ” बीज से हो।
भैरवी माँ मेरे जन्मन्द्रिय क्षेत्र की रक्षा करें।

सम्पत्प्रदा सदा पातु हैं जङ्घे हसक्लीं पदौ ।
पातु हंसौः सर्वदेहं भैरवी सर्वदावतु ॥ १८॥

sampatpradaa sadaa paatu haim' janghe hasakleem' padau .
paatu ham'sauh' sarvadeham' bhairavee sarvadaavatu .. 18..

अर्थ —
सम्पत्ति (धन-वैभव) देने वाली भैरवी “हैं” मंत्र से मेरी पिंडलियों की रक्षा करे।
"हसक्लीं" मंत्र मेरे पैरों (पद) की रक्षा करे।
“हंसौः” बीजमंत्र द्वारा भैरवी सम्पूर्ण शरीर की सर्व ओर से रक्षा करती रहें।

हसैं मामवतु प्राच्यां हरक्लीं पावकेऽवतु ।
हसौं मे दक्षिणे पातु भैरवी चक्रसंस्थिता ॥ १९॥

hasaim' maamavatu praachyaam' harakleem' paavake'vatu .
hasaum' me dakshine paatu bhairavee chakrasam'sthitaa .. 19..

अर्थ —
पूर्व दिशा में “हसैं” मंत्र मुझे सुरक्षित रखे।
अग्निकोण (दक्षिण-पूर्व) में “हरक्लीं” मंत्र रक्षा करे।
दक्षिण दिशा में “हसौं” भैरवी चक्रधारिणी संरक्षक बने।

ह्रीं क्लीं ल्वें मां सदा पातु निऋत्यां चक्रभैरवी ।
क्रीं क्रीं क्रीं पातु वायव्ये हूँ हूँ पातु सदोत्तरे ॥ २०॥

hreem' kleem' lvem' maam' sadaa paatu niri'tyaam' chakrabhairavee .
kreem' kreem' kreem' paatu vaayavye hoom' hoom' paatu sadottare .. 20..

अर्थ —
नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) दिशा में “ह्रीं क्लीं ल्वें” मंत्र मेरी रक्षा करे।
वायव्य (उत्तर-पश्चिम) दिशा में “क्रीं क्रीं क्रीं” सुरक्षा दे।
उत्तरी दिशा में “हूं हूँ” मंत्र सदैव भयरहित, निरस्त्र, सुरक्षित रखे।

ह्रीं ह्रीं पातु सदैशान्ये दक्षिणे कालिकावतु ।
ऊर्ध्वं प्रागुक्तबीजानि रक्षन्तु मामधःस्थले ॥ २१॥

hreem' hreem' paatu sadaishaanye dakshine kaalikaavatu .
oordhvam' praaguktabeejaani rakshantu maamadhah'sthale .. 21..

अर्थ —
पूर्वोक्त “ह्रीं ह्रीं” बीज मंत्र मेरी ईशान कोण (ईशान दिशा — उत्तर-पूर्व) में सुरक्षा करे।
और दक्षिण दिशा में कालिका मेरी रक्षा करें।
ऊपर की ओर पहले बताए बीज मंत्र रक्षा करें,
और नीचे की भूमि की तरफ की रक्षा भी वही मंत्र करें।

दिग्विदिक्षु स्वाहा पातु कालिका खड्गधारिणी ।
ॐ ह्रीं स्त्रीं हूँ फट् सा तारा सर्वत्र मां सदावतु ॥ २२॥

digvidikshu svaahaa paatu kaalikaa khad'gadhaarinee .
om hreem' streem' hoom' phat' saa taaraa sarvatra maam' sadaavatu .. 22..

अर्थ —
दिशाओं और उपदिशाओं — सभी ओर “स्वाहा” रूप से कालिका, खड्गधारिणी, रक्षा करें।
ॐ ह्रीं स्त्रीं हूँ फट् — यह तारा (तारादेवी) का मंत्र —
सर्वत्र, सभी स्थलों, सभी परिस्थितियों में,
हमेशा मेरी रक्षा करता रहे।

सङ्ग्रामे कानने दुर्गे तोये तरङ्गदुस्तरे ।
खड्गकर्त्रिधरा सोग्रा सदा मां परिरक्षतु ॥ २३॥

sangraame kaanane durge toye tarangadustare .
khad'gakartridharaa sograa sadaa ma'am parirakshatu .. 23..

अर्थ —
युद्ध में, वन में, कठिन दुर्ग में,
जल में, प्रचण्ड तरंगों वाले समुद्र में,
खड्ग और कर्तरी (कैंची जैसे अस्त्र) धारण करने वाली उग्र भैरवी

ते कथितं देवि सारात्सारतरं महत् ।
त्रैलोक्यविजयं नाम कवचं परमाद्भुतम् ॥ २४॥

iti te kathitam' devi saaraatsaarataram' mahat .
trailokyavijayam' naama kavacham' paramaadbhutam .. 24..

अर्थ —
हे देवी! तुम्हें यह अत्यंत सारपूर्ण और श्रेष्ठ
त्रैलोक्यविजय नामक अद्भुत कवच बताया गया।

यः पठेत्प्रयतो भूत्वा पूजायाः फलमाप्नुयात् ।
स्पर्धामूद्धूय भवने लक्ष्मीर्वाणी वसेत्ततः ॥ २५॥

yah' pat'hetprayato bhootvaa poojaayaah' phalamaapnuyaat .
spardhaamooddhooya bhavane lakshmeervaanee vasettatah' .. 25..

अर्थ —
जो शुद्ध भावना से इसे पढ़ता है,
वह बिना पूजा किए भी पूजा का फल प्राप्त कर लेता है।
घर में किसी की स्पर्धा (डाह, जलन) समाप्त हो जाती है।
और लक्ष्मी तथा वाणी (समृद्धि और वाणी की सिद्धि) उसके घर निवास करती हैं।

यः शत्रुभीतो रणकातरो वा भीतो वने वा सलिलालये वा ।
वादे सभायां प्रतिवादिनो वा रक्षःप्रकोपाद् ग्रहसकुलाद्वा ॥ २६॥

yah' shatrubheeto ranakaataro vaa bheeto vane vaa salilaalaye vaa .
vaade sabhaayaam' prativaadino vaa rakshah'prakopaad grahasakulaadvaa .. 26..

अर्थ —
जो शत्रु से डरता हो,
युद्ध से भयभीत हो,
जंगल में या जल में फँसा हो,
वाद-विवाद, अदालत या सभा में विपक्षी से परेशान हो,
राक्षस बाधा, भूत-प्रेत, ग्रहदोष या काली शक्तियों से परेशान हो —

प्रचण्डदण्डाक्षमनाच्च भीतो गुरोः प्रकोपादपि कृच्छ्रसाध्यात् ।
अभ्यर्च्य देवीं प्रपठेत्रिसन्ध्यं स स्यान्महेशप्रतिमो जयी च ॥ २७॥

prachand'adand'aakshamanaachcha bheeto guroh' prakopaadapi kri'chchhrasaadhyaat .
abhyarchya deveem' prapat'hetrisandhyam' sa syaanmaheshapratimo jayee cha .. 27..

अर्थ —
राजदंड, अधिकारियों की कड़ी सजा,
गुरु या वरिष्ठ के क्रोध से भयभीत हो,
या किसी कठिन, अनसाध्य संकट में पड़ा हो —
तो देवी की पूजा कर तीनों संधियों में यह कवच पढ़े,
वह महेश्वर (शिव) के समान तेजस्वी और विजयी बन जाता है।

त्रैलोक्यविजयं नाम कवचं मन्मुखोदितम् ।
विलिख्य भूर्जगुटिकां स्वर्णस्थां धारयेद्यदि ॥ २८॥

trailokyavijayam' naama kavacham' manmukhoditam .
vilikhya bhoorjagut'ikaam' svarnasthaam' dhaarayedyadi .. 28..

अर्थ —
यह “त्रैलोक्य विजय कवच”,
मेरे मुख से (ईश्वर के द्वारा) कहा गया है।
यदि इसे भोजपत्र पर लिखकर
स्वर्णमंडल में स्थापित कर धारण करे —

कण्ठे वा दक्षिणे बाहौ त्रैलोक्यविजयी भवेत् ।
तद्गात्रं प्राप्य शस्त्राणि भवन्ति कुसुमानि च ॥ २९॥

kant'he vaa dakshine baahau trailokyavijayee bhavet .
tadgaatram' praapya shastraani bhavanti kusumaani cha .. 29..

अर्थ —
गले में या दाहिने हाथ में धारण करे,
तो वह तीनों लोकों का विजयी हो जाता है।
जो भी अस्त्र-शस्त्र उसके शरीर को छूते हैं,
वे मात्र फूल समान प्रभावहीन हो जाते हैं।

लक्ष्मीः सरस्वती तस्य निवसेद्भवने मुखे ।
एतत्कवचमज्ञात्वा यो जपेद्भैरवीं पराम् ।
बालां वा प्रजपेद्विद्वान्दरिद्रो मृत्युमाप्नुयात् ॥ ३०॥

lakshmeeh' sarasvatee tasya nivasedbhavane mukhe .
etatkavachamajnyaatvaa yo japedbhairaveem' paraam .
baalaam' vaa prajapedvidvaandaridro mri'tyumaapnuyaat .. 30..

अर्थ —
जिसके पास यह कवच हो,
उसके घर में लक्ष्मी और सरस्वती का नित्य निवास होता है।
परंतु —
जो इस कवच को जाने बिना भैरवी मंत्र का जप करता है,
या केवल बालाभैरवी का जप करता है —
वह विद्वान होने पर भी
दरिद्रता और मृत्यु के संकट में पड़ सकता है।

(संकेत — बिना कवच संरक्षण के भैरवी उपासना अत्यंत उग्र मानी गई है।)

॥ इति श्रीरुद्रयामले देवीश्वरसंवादे त्रैलोक्यविजयं नाम भैरवी कवचं समाप्तम् ॥
 


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