Kaam Kala Kali Kavach is used to seek divine protection from Goddess Kaam Kala Kali. Kamkala Kali is a wonderful form of Maa Mahakali. The worship and sadhana of Kali Kavach are regarded highest.
Reciting Kamkala Kali Kavach shields one from all worries, Tantra, agony, and the trials of incurable gods. The devotee stays under Maa Kali's special grace.
Benefits of Kaam Kala Kali Kavach
- To seek Protection from Goddess Kali.
- Sadhak remains protected from tantra-mantra and obstacles.
- To control and destroy the enemies in a shorter duration of time.
- Enemies become friends with Kali Kavach.
- To remove the negative energy.
- Positive house-family atmosphere and safety for all people.
If the sadhak wears Kamakala Kali Kavach, then he is protected from all the tantra-mantra obstacles. Evil eyes, witchcraft, vashikaran, exorcism, etc., do not work on that sadhak.
This is a very powerful armor, which can easily control all the enemies. By wearing this armor, even the enemies become friends.
If Kamakala Kali Kavach is recited in front of Mahakali Yantra, then all types of negative energy start going away from the devotee's house, the atmosphere of the house-family starts becoming positive, and all the people of the house become safe.
A seeker can read this text as worship only once a day. But first, take permission from Lord Shiva by reciting it once in an auspicious muhurat. Or if you have taken Guru Mantra from a Guru, then first chant one rosary of it and then recite it.
Take water in your right hand, recite the Viniyog, and leave the water on the ground.
कामकाला काली माँ महाकाली का ही एक अदभुत रूप हैं। काली कवच की पूजा, साधना को सर्वोपरी माना जाता है। कामकला काली कवच का पाठ करने से सभी, भय, तंत्र, पीड़ा और असाध्य देवताओं के संकट से रक्षा होती है। तथापि साधक पर माँ काली की विशेष कृपा बनी हुई है।
कामकला काली कवच का पाठ करते समय यदि साधक मां काली धारण करती है, तो सभी तंत्र-मंत्र बाधाओं से रक्षा की जाती है। बुरी नजर, टोना-टोटका, वशीकरण, उच्चाटन, जैसे बुरी नजर उस साधक पर काम नहीं करती ।
यह बहुत ही शक्तिशाली कवच है, इसकी मां काली कवच धारण कर सकती है, जिससे आसानी से सभी शत्रुओं पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। इस कवच को धारण करने से शत्रु भी मित्र बन गए हैं।
यदि महाकाली यंत्र के सामने कामकला काली कवच का पाठ किया जाए, तो साधक के घर से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा दूर होने लगती है, घर-परिवार का माहौल सकारात्मक बनने लगता है, घर के सभी लोग सुरक्षित हो जाते हैं।
यह पाठ सामान्य लोग पूजा के रूप में एक दिन में केवल एक बार पढ़ सकते हैं । लेकिन पहले शुभ मूहूर्त में भगवान शिव को एक पाठ सुनाकर आज्ञा ले। या अगर किसी गुरु से गुरु मंत्र लिया हो तो पहले उसकी एक माला जप कर पाठ करें ।लेकिन ज्यादा पाठ या अनुष्ठान साधना करना तो तंत्र साधक गुरु से दीक्षा और आज्ञा लेकर करें। गुरुद्वारा परामर्श कर पाठ करें।
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दे।
अस्य श्री त्रैलोकयमोहन रहस्य कवचस्य। त्रिपुरारि ऋषिः विराट् छन्दः भगवति कामकला काली देवता । फ्रेंबीजं - योगिनी शक्तिः क्लीं कीलकं डाकिनि तत्त्वंभ्गावती श्री कामकला काली अनुग्रह प्रसाद सिध्यर्ते जपे विनियोगः ।
Kaam Kala Kali Kavach
॥ कवच पाठ ॥
ॐ ऐं श्रीं क्लीं शिरः पातु फ्रें ह्रीं ड्रीं मदनातुरा ।
स्त्रीं हूं क्षौं ह्रीं लं ललाटं पातु ख्फ्रें क्रौं करालिनी ॥ 1॥
आं हौं फ्रों धूं मुखं पातु क्लूं ड्रं श्रौं चन्ण्डनायिका ।
हूं त्रै च्लूं मौः पातु दृशौ प्रीं श्रीं श्रीं जगदाम्बिका ॥ 2 ॥
कूं खूं घ्रीं चलीं पातु कर्णों ग्रं प्लें रुः सौं सुरेश्वरी ।
गं प्रां ध्रीं श्रीं हनू पातु अं आं इं ईं श्मशानिनी ॥ ३॥
जूं डुं ऐं औं भ्रुवौ पातु कं खं गं घं प्रमाथिनी ।
चं छं जं झं पातु नासां टं ठं डं ठं भगाकुला ॥ 4 ॥
जूं डुं ऐं औं भ्रुवौ पातु कं खं गं घं प्रमाथिनी ।
चं छं जं झं पातु नासां टं ठं डं ठं भगाकुला ॥ 4 ॥
तं थं दं धं पात्वधरमोष्ठं पं फं रतिप्रिया ।
बं भं यं रं पातु दन्तान् लं वं शं सं चं कालिका ॥ 5॥
हं क्षं क्षं हं पातु जिह्वां सं शं वं लं रताकुला ।
वं यं भं वं चं चिबुकं पातु फं पं महेश्वरी ॥ 6 ॥
धं दं थं तं पातु कण्थं ठं डं ठं टं भगप्रिया ।
झं जं छं चं पातु कुक्षौ घं गं खं के महाजटा ॥ 7॥
ह्सौः हस्ख्फ्रें पातु भुजौ क्ष्यूं मैं मदनमालिनी ।
ङां जीं गूं रक्षताज्ञत्रू नैं मौं रक्तासवोन्मदा ॥ 8॥
हां हीं हूं पातु कक्षौ में हैं हौं निधुवनप्रिया ।
क्लां क्लीं क्लूं पातु हृदयं क्लै क्लौं मुण्डावतंसिका ॥9।।
श्रां श्रीं श्रृं रक्षतु करौ श्रं श्रौं फेत्कारराविणी ।
क्लां क्लीं क्लूं अङ्गुलीः पातु क्लै क्लौं च नारवाहिनी॥10II
चां त्रीं चूं पातु जठरं चैं ब्रौं संहाररूपिणी ।
ड्रां ड्रीं हूं रक्षतान्नाभिं ट्रें ड्रौं सिद्धकरालिनी ॥ 11 ॥
स्त्रां स्त्रीं स्त्रं रक्षतात् पार्श्वों स्त्रै स्त्रौं निर्वाणदायिनी ।
फ्रां फ्रीं फूं रक्षतात् पृष्ठं फ्रैं फ्रौं ज्ञानप्रकाशिनी॥12॥
क्षां क्षीं क्षं रक्षतु कटिं क्षै क्षौं नृमुण्डमालिनी ।
ग्लां ग्लीं ग्लूं रक्षतादूरु ग्लैं ग्लौं विजयदायिनी॥13॥
ब्लां ब्लीं ब्लूं जानुनी पातु ब्लें ब्लौं महिषमर्दिनी ।
प्रां प्रीं पूं रक्षताज्जङ्घ मैं प्रौं मृत्युविनाशिनी ॥14॥
थ्रां श्रीं यूं चरणौ पातु थ्रै थ्रौं संसारतारिणी ।
ॐ फ्रें सिद्धिद्धकरालि ह्रीं ड्रीं हं स्त्रीं फ्रें नमः ॥15॥
सर्वसन्धिषु सर्वाङ्ग गुह्यकाली सदावतु ।
ॐ फ्रें सिद्धिवं हस्खफ्रें सफ्रें ख्फ्रें करालि ख्फ्रें हस्वफ्रें ह्स्फ्रें फ्रें ॐ स्वाहा ॥16॥
रक्षताद् घोरचामुण्डा तु कलेवरं वहक्षमलवरयूं ।
अव्यात् सदा भद्रकाली प्राणानेकादशेन्द्रियान् ।। 17॥
ह्रीं श्रीं ॐ ख्फ्रें हस्खफ्रें हक्षम्लब्रयूं न्ध्रीं नज्ज्रीं स्त्रीं ड्रीं ख्फ्रें ड्रीं ध्रीं नमः ।
यत्रानुक्तस्थलं देहे यावत्तत्र च तिष्ठति ॥18।।
उक्तं वाऽप्यथवानुक्तं करालदशनावतु ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं हूं स्त्रीं ध्रीं फ्रें क्षं क्शौं क्रौं ग्लूं ख्फ्रें प्रीं ड्रीं श्रीं ट्रें ब्लौं फट् नमः स्वाहा ॥ 19॥
सर्वमापादकेशाग्रं काली कामकलावतु ॥ 20।।
॥ इति कामकला काली कवच संपूर्ण ॥