Garuda Dwadasha Naam Stotra is a stotra depicting twelve divine names of Garuda. Garuda is the mount or Vahana of Lord Vishnu. Garuda is shown as having the golden body of a strong man with a white face, red wings, an eagle’s beak, and a crown on his head.
Legends described this ancient deity as massive, with a size large enough to block out the sun.
गरुड़ भगवान विष्णु का वाहन है। गरुड़ को सफ़ेद चेहरे वाले, लाल पंखों वाले और बाज की चोंच के साथ मजबूत सिर वाले सुनहरे शरीर वाले और उनके सिर पर मुकुट के रूप में दर्शाया गया है।
इस प्राचीन देवता को आकार इतना बड़ा दर्शाया गया है, जो सूर्य को अवरुद्ध करने के लिए काफी बड़ा था।
The Garuda is the eternal enemy of snakes and protects the sadhak from poison and other negative influences. This Garuda Dwadash Naam Stotram is used to remove black magic, debts, and tantra surrounding the sadhak.
गरुड़ सांपों का शाश्वत दुश्मन है और जहर और अन्य नकारात्मक प्रभावों से बचाता है। इस गरुड़ द्वादश नाम स्तोत्रम प्रभाव से साधक के आस-पास के काले जादू, ऋण और तंत्र को दूर किया सकता है |
Shri Garudasia Dwadasanama Stotram is in Sanskrit. It is from Brihat-Tantrasara. If anybody reads/listens or recites this stotra at the time of bath or while going to sleep; he never gets any fear of poison, poisonous animals, creatures and he also becomes free if he is in somebody's custody.
Garuda asked so many questions to God Vishnu regarding the life of the person after death and hence we came to know about our pitras and Pitra Loka.
श्री गरुड़स्य द्वादशनाम स्तोत्रम् संस्कृत में है। यह बृहद्तन्त्रसार से है। यदि कोई स्नान के समय या सोते समय इस स्तोत्र को पढ़ता / सुनता या सुनता है; उसे कभी भी जहर, जहरीले जानवरों, जीवों से कोई डर नहीं लगता है और अगर वह किसी की हिरासत में है तो वह भी आजाद हो जाता है।
गरुड़ ने मृत्यु के बाद व्यक्ति के जीवन के बारे में भगवान विष्णु से कई सवाल पूछे और इसलिए हमें अपने पितरों और पितृ लोक के बारे में पता चला।
Garuda Dwadash Naam Stotram
गरुडस्य द्वादशनाम स्तोत्रम्
सुपर्णं वैनतेयं च नागारिं नागभीषणम् ।
जितान्तकं विषारिं च अजितं विश्वरूपिणम् ।
गरुत्मन्तं खगश्रेष्ठं तार्क्ष्यं कश्यपनन्दनम् ॥ १॥
suparnam vainateyam cha naagaarim naagabheeshanam .
yitaantakam vishaarim cha ajitam vishvaroopinam .
garutmantam khagashresht’ham taarkshyam kashyapanandanam
महात्मा गरुडजीके बारह नाम इसप्रकार हैं- १) सुपर्ण (सुंदर
पंखवाले) २) वैनतेय (विनताके पुत्र ) ३) नागारि ( नागोकें शत्रु
) ४) नागभीषण (नागोंकेलिये भयंकर ) ५) जितान्तक ( कालको भी
जीतनेवाले ) ६) विषारिं (विषके शत्रु ) ७) अजित ( अपराजेय ) ८)
विश्वरूपी ( सर्बस्वरूप ) ९) गरुत्मान् ( अतिशय पराक्रमसम्पन्न )
१०) खगश्रेष्ठ ( पक्षियोंमे सर्वश्रेष्ठ ) ११) तार्क्ष (गरुड )
१२) कश्यपनन्दन ( महर्षि कश्यपके पुत्र )
1. SUPARNA - with best wings
2. VAINETEY - son of Maa Vinta
3. NAGARI - enemies of snakes
4. NAGBHISHAN - terrible for snakes
5. JITANTAK - can defeat even Kaal or Death
6. VISHARI - anti-poisonous
7. AJIT - Invincible
8. VISHWAROOPI - like Lord Vishnu Himself
9. GARUTMAAN - most powerful
10. KHAGSHRESHTHA best amongst birds
11. TARKSHAY - one name for Garudji
12. KASHYAPNANDAN - son of sage kashyap like Vaman Bhagwan
द्वादशैतानि नामानि गरुडस्य महात्मनः ।
यः पठेत् प्रातरुत्थाय स्नाने वा शयनेऽपि वा ॥ २॥
dvaadashaitaani naamaani garuda asya mahaatmanah’
yah’ pat’het praatarutthaaya snaane vaa shayane’pi vaa
इन बारह नामोंका जो
नित्य प्रातःकाल उठकर स्नानके समय या सोते समय पाठ करता है,
विषं नाक्रामते तस्य न च हिंसन्ति हिंसकाः ।
सङ्ग्रामे व्यवहारे च विजयस्तस्य जायते ।
बन्धनान्मुक्तिमाप्नोति यात्रायां सिद्धिरेव च ॥ ३॥
visham naakraamate tasya na cha himsanti himsakaah’
sangram vyavahaare cha vijayastasya jaayate
bandhanaanmuktimaapnoti yatra ayaam siddhireva cha
उसपर किसी भी प्रकारके विषका प्रभाव नहीं पड़ता, उसे कोई हिंसक
प्राणी मार नहीं सकता, युद्धमें तथा व्यवहारमें उसे विजय प्राप्त
होती है, वह बन्धनसे मुक्ति प्राप्त कर लेता है और उसे यात्रामे
सिद्धि मिलती है ।
Whoever vocalizes these 12 celestial names of Bhagwan Garuda (vehicle of lord Vishnu) either in the morning while taking a bath or while sleeping, shall not be affected by any poison, no animal can slay them, they become victorious in warfare and behavior, attain salvation, and their voyage becomes triumphant.
॥ इति बृहद्तन्त्रसारे श्रीगरुडस्य द्वादशनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥