Surya 108 Names is a fantastic Stotra illustrating the religious hundred names of the planet Sun. God Surya is regarded as an aspect of Shiva and Vishnu by Shaivites and Vaishnavas respectively. Surya is also known as Surya Narayana.
Surya, the Sun God is also acknowledged as one of the eight forms of Lord Shiva (Astamurti). Surya is the lord of excellence and wisdom.
Surya is the leader of all the Grahas or planets. Surya is the source of power and provides energy to all the living beings on earth.
Surya has a major role and influence in the birth chart as it determines health, career growth, and success in life.
As per the Hindu Religion, Surya symbolizes the Sun God. Surya is considered the only visible form of God that can be seen every day.
Surya 108 Names is a powerful Stotra that could be accompanied by Surya Ashtakam, Aditya Hrudyam, Surya Kavacham, and Chakshu Upanishad mantra.
पुराणानुसार प्रजापति की 'संज्ञा' नामक पुत्री का विवाह सूर्य भगवान् के साथ हुआ था। विवाह के कुछ समय पश्चात् सूर्य भगवान् का प्रचण्ड ताप सहन न करने के कारण 'संज्ञा' देवी उन्हें छोड़कर चली गयी थी।
अतः विश्वकर्माजी ने 'संज्ञादेवी' के आदित्यलोक में पुनः आगमन हेतु इन विविध नामों द्वारा सूर्य भगवान् का स्तवन कर उन्हें शांत किया था। इससे प्रसन्न होकर सूर्य भगवान् विश्वकर्मा से बोले- आपकी बुद्धि में जो बात है, आप जिस उद्देश्य को लेकर यहां आये हैं, वह मुझे ज्ञात है। अतः आप मुझे शाणचक्रपर चढ़ाकर मेरे मण्डल को छांट दें; इससे मेरी उष्णता कुछ कम हो जायेगी।
सूर्यदेव के ऐसा कहने पर विश्वकर्मा जी ने ऐसा ही किया। उस के ऐसा कहने पर विश्वकर्मा जी ने ऐसा ही किया। उस दिन से प्रकाशस्वरुप सूर्यदेव 'संज्ञादेवी' के लिये कुछ शान्त हो गये तथा उनके अक्षुण्ण तेज का केवल अष्टम अंश ही कम हुआ। जिसके बाद 'संज्ञादेवी' ने पुनः सूर्य भगवान् के साथ आदित्यलोक में वास किया।
सूर्य के जिस जाज्वल्यमान वैष्णव तेज को विश्वकर्मा ने छांटा था वह पृथिवी पर गिरा। उस पृथिवी पर गिरे हुए तेज से ही विश्वकर्मा ने विष्णुभगवान् का चक्र, शंकर का त्रिशूल, कुबेर का विमान, कार्तिकेय की शक्ति बनायी तथा अन्य देवताओं के भी जो-जो शस्त्र थे, उन्हें उससे पुष्ट किया।
इस प्रकार विश्वकर्मा जी ने सूर्यदेव की अनुमति से ही उनके श्रीअंगों की प्रचण्डाग्नि को कुछ अंश तक कमान्ड किया था तथा सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर विश्वकर्माजी से कहा- जो मनुष्य प्रतिदिन इन नामों के द्वारा मेरी स्तुति करेगा उसके सर्व पापों का नाश होगा।
नित्य सूर्योदय के समय जो मनुष्य इन पवित्र नामों द्वारा सूर्यदेव को प्रसन्न करता है, उसके जीवन के पाप-शाप एवं दुःखरूपी ज्वाला भी शनै- शनै शान्त हो जाती है। ऐसा उत्तम साधक आरोग्य, तेज, कान्ति, विद्या, धन एवं यश का निश्चय ही भागी होता है।
जिनकी कुण्डली में सूर्य महाराज अशुभ फल दे रहें हो, उन्हें नित्य इन नामों द्वारा सूर्यदेव का स्तवन अवश्य करना चाहिये ।
सूर्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं विश्वकर्मकृत
भरद्वाज उवाच --
यैः स्तुतो नामभिस्तेन सविता विश्वकर्मणा ।
तान्यहं श्रोतुमिच्छामि वद सूत विवस्वतः ॥ १॥
bharadvaaja uvaacha --
yaih' stuto naamabhistena savitaa vishvakarmanaa .
taanyaham shrotumichchhaami vada soota vivasvatah' .. 1..
सूत उवाच --
तानि मे शृणु नामानि यैः स्तुतो विश्वकर्मणा ।
सविता तानि वक्ष्यामि सर्वपापहराणि ते ॥ २॥
soota uvaacha --
taani me shri'nu naamaani yaih' stuto vishvakarmanaa .
savitaa taani vakshyaami sarvapaapaharaani te .. 2..
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्ड आशुगः ॥ ३॥
aadityah' savitaa sooryah' khagah' pooshaa gabhastimaan .
timironmathanah' shambhustvasht'aa maartand'a aashugah' .. 3..
1- आदित्यः- अदिति के पुत्र । 2- सविता - जगत् के उत्पादक। 3 - सूर्य:- सम्पत्ति एवं प्रकाश के स्रष्टा । 4- खगः - आकाश में विचरने वाले । 5- पूषा- सबका पोषण करने वाले । 6- गभस्तिमान् - सहस्र किरणों से युक्त । 7- तिमिरोन्मथनः- अंधकारनाशक । 8- शम्भु :- कल्याणकारी। 9- त्वष्टा - विश्वकर्मा अथवा विश्वरुपी शिल्प के निर्माता। 10- मार्तण्डः- मृत अण्ड से प्रकट । 11- आशुगः- शीघ्रगामी।
हिरण्यगर्भः कपिलस्तपनो भास्करो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शम्भुस्तिमिरनाशनः ॥ ४॥
hiranyagarbhah' kapilastapano bhaaskaro ravih' .
agnigarbho'diteh' putrah' shambhustimiranaashanah' .. 4..
12- हिरण्यगर्भः - ब्रह्मा । 13- कपिलः- कपिलवर्ण वाले। 14 - तपनः- तपने या ताप देने वाले । 15- भास्करः- प्रकाशक । 16- रविः- रव वेदत्रयी ध्वनि से युक्त । 17- अग्निगर्भः- अपने भीतर अग्निमय तेज को धारण करने वाले। 18- अदितेः पुत्रः- अदिति देवी के पुत्र । 19- तिमिरनाशन:- अंधकार का नाश करने वाले ।
अंशुमानंशुमाली च तमोघ्नस्तेजसां निधिः ।
आतपी मण्डली मृत्युः कपिलः सर्वतापनः ॥ ५॥
amshumaanamshumaalee cha tamoghnastejasaam nidhih' .
aatapee mand'alee mri'tyuh' kapilah' sarvataapanah' .. 5..
20- अंशुमान्- अनन्त किरणों से प्रकाशमान । 21- अंशुमाली - किरणमालामण्डित। 22- तमोघ्नः - अंधकारनाशक । 23- तेजसां निधिः- तेज अथवा प्रकाश के भण्डार । 24- आतपी- आतप या घाम प्रकट करने वाले । 25 - मण्डली- अपने मण्डल या विम्ब से युक्त । 26- मृत्युः- मृत्युस्वरुप अथवा मृत्यु के अधिष्ठाता य को जन्म देने वाले । 27- कपिलः सर्वतापन:- भूरी या सुनहरी किरणों युक्त होकर सबको संताप देने वाले।
हरिर्विश्वो महातेजाः सर्वरत्नप्रभाकरः ।
अंशुमाली तिमिरहा ऋग्यजुस्सामभावितः ॥ ६॥
harirvishvo mahaatejaah' sarvaratnaprabhaakarah' .
amshumaalee timirahaa ri'gyajussaamabhaavitah' .. 6..
28- हरिः - पापहारी । 29- विश्वः- सर्वरुप । 30- महातेजाः- महातेजस्वी 31- सर्वरत्न प्रभाकरः- सम्पूर्ण रत्नों तथा प्रभापुंज को प्रकट करने वाले 32- अंशुमाली तिमिरहा- किरणों की माला धारण करके अंधकार को दूर करने वाले। 33- ऋग्यजुस्सामभावितः- ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद इन तीनों के द्वारा भावित या प्रतिमादित।
प्राणाविष्करणो मित्रः सुप्रदीपो मनोजवः ।
यज्ञेशो गोपतिः श्रीमान् भूतज्ञः क्लेशनाशनः ॥ ७॥
praanaavishkarano mitrah' supradeepo manojavah' .
yajnyesho gopatih' shreemaan bhootajnyah' kleshanaashanah' .. 7..
34- प्राणाविष्करणः- प्राणों के आधारभूत अन्न आदि की उत्पत्ति और जल की वृष्टि करने वाले | 35- मित्रः- ‘मित्र' नामक सूर्य अथवा सबके सुहृद् । 36- सुप्रदीपः - भली भांति प्रकाशित होने वाले अथवा सर्वत्र उत्तम प्रकाश बिखेरने वाले | 37- मनोजवः- मन के समान या उससे भी अधिक तीव्र वेग वाले। 38- यज्ञेशः- यज्ञों के स्वामी नारायणस्वरुप | 39- गोपतिः- किरणों के स्वामी अथवा भमि एवं गौओं
40 - श्रीमान् - कान्तिमान् | 41- भूतज्ञः- सम्पूर्ण भूतों के ज्ञाता अथवा अभूतकाल बातों को भी जानने वाले । 42- क्लेशनाशन:- सब प्रकार के क्लेशों का नाश करने वाले।
अमित्रहा शिवो हंसो नायकः प्रियदर्शनः ।
शुद्धो विरोचनः केशी सहस्रांशुः प्रतर्दनः ॥ ८॥
amitrahaa shivo hamso naayakah' priyadarshanah' .
shuddho virochanah' keshee sahasraamshuh' pratardanah' .. 8..
43- अमित्रहा - शत्रुनाशक | 44 - शिवः - कल्याणस्वरुप | 45- हंसः - आकाशरूपी सरोवर में विचरण करने वाले एक मात्र राजहंस । 46- नायकः- नेता अथवा नियन्ता । 47 - प्रियदर्शन:- सबका प्रिय देखने या चाहने वाले अथवा जिनका दर्शन प्राणिमात्र को प्रिय है। 48- शुद्ध- मलिनता से रहित । 49- विरोचनः- अत्यन्त प्रकाशमान। 50- केशी- किरणरूपी केशों से युक्त । 51- सहस्रांशुः - असंख्य किरणों से पुंज । 52- प्रतर्दनः- अंधकार आदिका विशेषरूप से संहार करने वाले।
धर्मरश्मिः पतंगश्च विशालो विश्वसंस्तुतः ।
दुर्विज्ञेयगतिः शूरस्तेजोराशिर्महायशाः ॥ ९॥
dharmarashmih' patangashcha vishaalo vishvasamstutah' .
durvijnyeyagatih' shoorastejoraashirmahaayashaah' .. 9..
53- धर्मरश्मिः- धर्ममयी किरणों से युक्त अथवा धर्म के प्रकाशक । 54- पतंगः - किरणरूपी पंखों से उड़ने वाले आकाशचारी पक्षिस्वरूप। 55- विशाल:- महान् आकार वाले | 56- विश्वसंस्तुत:- समस्त जगत् जिनकी स्तुति करता है। 57 - दुर्विज्ञेयगतिः- जिनके स्वरुप को जानना या समझना अत्यन्त कठिन है। 58- शूरः- शौर्यशाली। 59- तेजोराशिः- तेज के समूह | 60 - महायशाः - महान् यश से सम्पन्न ।
भ्राजिष्णुर्ज्योतिषामीशो विजिष्णुर्विश्वभावनः ।
प्रभविष्णुः प्रकाशात्मा ज्ञानराशिः प्रभाकरः ॥ १०॥
bhraajishnurjyotishaameesho vijishnurvishvabhaavanah' .
prabhavishnuh' prakaashaatmaa jnyaanaraashih' prabhaakarah' .. 10..
61 - भ्राजिष्णुः- दीप्तिमान्। 62- ज्योतिषामीशः- तेजोमय ग्रहनक्षत्रों के स्वामी । 63- विजिष्णुः- विजयशील। 64- विश्वभावनः- जगत् के उत्पादक। 65- प्रभविष्णुः- प्रभावशाली अथवा जगत् की उत्पत्ति के कारण । 66- प्रकाशात्मा- प्रकाशस्वरुप | 67- ज्ञानराशि:- ज्ञाननिधि।
68- प्रभाकरः- उत्कृष्ट प्रकाश फैलाने वाले ।
आदित्यो विश्वदृग् यज्ञकर्ता नेता यशस्करः ।
विमलो वीर्यवानीशो योगज्ञो योगभावनः ॥ ११॥
aadityo vishvadri'g yajnyakartaa netaa yashaskarah' .
vimalo veeryavaaneesho yogajnyo yogabhaavanah' .. 11..
69- आदित्यो विश्वदृक्- आदित्यरुप से जगत् के द्रष्टा या साक्षी अथवा सम्पूर्ण संसार के नेत्ररुप | 70- यज्ञकर्ता - जगत् को जल एवं जीवन प्रदान करके दान यज्ञ सम्पन्न करने वाले। 71- नेता- अंधकार का नयन अपसारण कर देने वाले | 72- यशस्करः- यशका विस्तार करने वाले। 73- विमलः- निर्मलस्वरुप | 74- वीर्यवान्- शक्तिशाली। 75 - ईश: - ईश्वर । 76 - योगजः- भगवान् श्रीहरि से कर्मयोग का ज्ञान प्राप्त करके उसका मनु को उपदेश करने वाले। 77 योगभावनः- योग का प्रकट करने वाले ।
अमृतात्मा शिवो नित्यो वरेण्यो वरदः प्रभुः ।
धनदः प्राणदः श्रेष्ठः कामदः कामरूपधृक् ॥ १२॥
amri'taatmaa shivo nityo varenyo varadah' prabhuh' .
dhanadah' praanadah' shresht'hah' kaamadah' kaamaroopadhri'k .. 12..
78- अमृतात्मा शिवः- अमृतस्वरुप शिव । 79 - नित्यः- सनातन । 80- वरेण्यः- वरणीय आश्रय लेने योग्य | 81- वरद:- उपासक को मनोवांछित वर देने वाले । 82- प्रभुः- सब कुछ करने में समर्थ । 83- धनदः - धनदान करने वाले । 84- प्राणदः प्राणदाता । 85- श्रेष्ठः- सबसे उत्कृष्ट । 86- कामदः - मनोवांछित वस्तु देने वाले । 87- कामरूपधृक्- इच्छानुसार रूप धारण करने वाले ।
तरणिः शाश्वतः शास्ता शास्त्रज्ञस्तपनः शयः ।
वेदगर्भो विभुर्वीरः शान्तः सावित्रिवल्लभः ॥ १३॥
taranih' shaashvatah' shaastaa shaastrajnyastapanah' shayah' .
vedagarbho vibhurveerah' shaantah' saavitrivallabhah' .. 13..
88 - तरणि:- संसार सागर से तारने वाले | 89- शाश्वतः - सनातन पुरुष | 90- शास्ता- शासक या उपदेशक । 91- शास्त्रज्ञः- समस्त शास्त्रों के ज्ञाता । 92- शयः- सबके अधिष्ठान या आश्रय । 93 - वेदगर्भः - शुक्लयजुर्वेद को प्रकट करने वाले । 94- विभुः- सर्वत्र व्यापक| 95 - वीरः- शूरवीर | 96- शान्त:- शमयुक्त। 97- सावित्रिवल्लभः- गायत्रीमंत्र के अधिदेवता।
ध्येयो विश्वेश्वरो भर्ता लोकनाथो महेश्वरः ।
महेन्द्रो वरुणो धाता विष्णुरग्निर्दिवाकरः ॥ १४॥
dhyeyo vishveshvaro bhartaa lokanaatho maheshvarah' .
mahendro varuno dhaataa vishnuragnirdivaakarah' .. 14..
98- ध्येयः- ध्यान करने योग्य | 99 - विश्वेश्वरः- सम्पूर्ण विश्व के ईश्वर | 100- भर्ता- सबका भरण पोषण करने वाले। 101- लोकनाथः- संसार के रक्षक । 102 - महेश्वरः- परमेश्वर । 103 - महेन्द्रः- देवराज इन्द्रस्वरुप | 104- वरुणः- पश्चिम दिशा के स्वामी वरुण नामक आदित्य । 105- धाता- ‘धाता' नामक आदित्य । 106- विष्णुः- व्यापक अथवा 'विष्णु' नामक आदित्य । 107 - अग्निः- अग्निस्वरुप | 108- दिवाकरः- रात्रि का अंधकार दूर करके प्रकाशपूर्ण108- दिवाकरः- रात्रि का अंधकार दूर करके प्रकाशपूर्ण दिन को प्रकट करने वाले ।
एतैस्तु नामभिः सूर्यः स्तुतस्तेन महात्मना ।
उवाच विश्वकर्माणं प्रसन्नो भगवान् रविः ॥ १५॥
etaistu naamabhih' sooryah' stutastena mahaatmanaa .
uvaacha vishvakarmaanam prasanno bhagavaan ravih' .. 15..
भ्रमिमारोप्य मामत्र मण्डलं मम शातय ।
त्वत्बुद्धिस्थं मया ज्ञातमेवमौष्ण्यं शमं व्रजेत् ॥ १६॥
bhramimaaropya maamatra mand'alam mama shaataya .
tvatbuddhistham mayaa jnyaatamevamaushnyam shamam vrajet .. 16..
इत्युक्तो विश्वकर्मा च तथा स कृतवान् द्विज ।
शान्तोष्णः सविता तस्य दुहितुर्विश्वकर्मणः ॥ १७॥
ityukto vishvakarmaa cha tathaa sa kri'tavaan dvija .
shaantoshnah' savitaa tasya duhiturvishvakarmanah' .. 17..
संज्ञायाश्चाभवद्विप्र भानुस्त्वष्टारमब्रवीत् ।
त्वया यस्मात् स्तुतोऽहं वै नाम्नामष्टशतेन च ॥ १८॥
sanjnyaayaashchaabhavadvipra bhaanustvasht'aaramabraveet .
tvayaa yasmaat stuto'ham vai naamnaamasht'ashatena cha .. 18..
वरं वृणीष्व तस्मात् त्वं वरदोऽहं तवानघ ।
इत्युक्तो भानुना सोऽथ विश्वकर्माब्रवीदिदम् ॥ १९॥
varam vri'neeshva tasmaat tvam varado'ham tavaanagha .
ityukto bhaanunaa so'tha vishvakarmaabraveedidam .. 19..
वरदो यदि मे देव वरमेतं प्रयच्छ मे ।
एतैस्तु नामभिर्यस्त्वां नरः स्तोष्यति नित्यशः ॥ २०॥
varado yadi me deva varametam prayachchha me .
etaistu naamabhiryastvaam narah' stoshyati nityashah' .. 20..
तस्य पापक्षयं देव कुरु भक्तस्य भास्कर ॥ २१॥
tasya paapakshayam deva kuru bhaktasya bhaaskara .. 21..
तेनैवमुक्तो दिनकृत् तथेति
त्वष्टारमुक्त्वा विरराम भास्करः ।
संज्ञां विशङ्कां रविमण्डलस्थितां
कृत्वा जगामाथ रविं प्रसाद्य ॥ २२॥
tenaivamukto dinakri't tatheti
tvasht'aaramuktvaa viraraama bhaaskarah' .
sanjnyaam vishankaam ravimand'alasthitaam
kri'tvaa jagaamaatha ravim prasaadya .. 22..
इति श्रीनरसिंहपुराणे एकोनविंशोऽध्यायः ॥ १९॥