The Mrit Sanjeevani Stotra is a powerful hymn from the Hindu scriptures that is believed to be able to revive life and provide healing. It is highly effective in curing illnesses, protecting from harm, and providing strength and vitality.
The name “Mritasanjeevani” translates to “the armor of raising from death.” By chanting this powerful stotra, one can prevent untimely death and invoke protection against life-threatening situations.
The Mrit Sanjeevani Stotra holds great significance in Hindu religious practices and traditions. Many consider the recitation of the Mrit Sanjeevani Stotra an important part of rituals performed for healing and well-being.
Devotees believe that the stotra has the power to restore life force and heal ailments when chanted with faith and devotion.
The Mritasanjeevani Stotra is a dedication to Lord Shiva. It is a divine armor that provides protection and wards off calamities. Chanting it invokes the grace of Lord Shiva and shields the devotee from various dangers.
Major Benefits of Reciting Mrit Sanjeevani Stotra
- Protection from untimely death and accidents.
- Victory over adversaries.
- Mental peace and well-being.
- Freedom from diseases and fears.
Mrit Sanjeevani Stotra Meaning in Hindi
श्रीवशिष्ठकृत_मृतसञ्जीवनस्तोत्रम् सानुवाद!!
एवमारध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयमेश्वरं।
मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा॥१॥
evamaaraadhya gaureesham' devam' mri'tyunjayeshvaram .
mri'tasanjeevanam' naamnaa kavacham' prajapetsadaa .. 1..
गौरीपति मृत्युञ्जयेश्र्वर भगवान् शंकर की विधि पूर्वक आराधना करनेके पश्र्चात भक्तको सदा मृतसञ्जीवन नामक कवचका सुस्पष्ट पाठ करना चाहिये॥१॥
सारात् सारतरं पुण्यं गुह्याद्गुह्य तरं शुभं।
महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकं॥ २॥
saaraatsaarataram' punyam' guhyaadguhyataram' shubham .
mahaadevasya kavacham' mri'tasanjeevannaamakam. 2..
महादेव भगवान् शङ्करका यह मृतसञ्जीवन नामक कवचका तत्त्वका भी तत्त्व है, पुण्यप्रद है गुह्य और मङ्गल प्रदान करने वाला है॥२॥
समाहितमना भूत्वा शृणुष्व कवचं शुभं।
शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा॥३॥
samaahitamanaa bhootvaa shri'nushva kavacham' shubham .
shri'tvaitaddivya kavacham' rahasyam' kuru sarvadaa .. 3..
[आचार्य शिष्यको उपदेश करते हैं कि – हे वत्स! ] अपने मनको एकाग्र करके इस मृतसञ्जीवन कवचको सुनो। यह परम कल्याणकारी दिव्य कवच है । इसकी गोपनीयता सदा बनाये रखना॥३॥
वराभयकरो यज्वा सर्वदेव निषेवितः।
मृत्युञ्जयो महादेवः प्राच्यां मां पातु सर्वदा॥४॥
varaabhayakaro yajvaa sarvadevanishevitah' .
mri'tyunjayo mahaadevah' praachyaam' maam' paatu sarvadaa .. 4..
जरासे अभय करनेवाले, निरन्तर यज्ञ करनेवाले, सभी देवतओंसे आराधित हे मृत्युञ्जय महादेव !आप पूर्व-दिशामें मेरी सदा रक्षा करें॥४॥
दधाअनः शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुजः प्रभुः।
सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा॥५॥
dadhaanah' shaktimabhayaam' trimukham' shad'bhujah' prabhuh' .
sadaashivo'gniroopee maamaagneyyaam' paatu sarvadaa .. 5..
अभय प्रदान करनेवाली शक्ति को धारण करनेवाले, तीन मुखों वाले तथा छ: भुजओंवाले, अग्निरूपी प्रभु सदाशिव अग्नि कोंण में मेरी सदा रक्षा करें ॥५॥
अष्टदसभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभुः।
यमरूपि महादेवो दक्षिणस्यां सदावतु॥६॥
asht'aadashabhujopeto dand'aabhayakaro vibhuh' .
yamaroopee mahaadevo dakshinasyaam' sadaa'vatu .. 6..
अट्ठारह भुजाओंसे युक्त, हाथमें दण्ड और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, सर्वत्र व्याप्त यमरुपी महादेव शिव दक्षिण-दिशामें मेरी सदा रक्षा करें ॥६॥
खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवितः।
रक्षोरूपी महेशो मां नैरृत्यां सर्वदावतु॥७॥
khad'gaabhayakaro dheero rakshogananishevitah' .
rakshoroopee mahesho maam' nairri'tyaam' sarvadaa'vatu .. 7..
हाथमें खड्ग और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, धैर्यशाली, दैत्यगणोंसे आराधित रक्षोरुपी महेश नैर्ऋत्यकोंणमें मेरी सदा रक्षा करें॥७॥
पाशाभयभुजः सर्वरत्नाकर निषेवितः।
वरुणात्मा महादेवः पश्चिमे मां सदावतु॥८॥
paashaabhayabhujah' sarvaratnaakaranishevitah' .
varoonaatmaa mahaadevah' pashchime maam' sadaa'vatu .. 8..
हाथमें अभयमुद्रा और पाश धाराण करनेवाले, शभी रत्नाकरोंसे सेवित, वरुणस्वरूप महादेव भगवान् शंकर पश्चिम- दिशामें मेरी सदा रक्षा करें ॥८॥
गदाभयकरः प्राणनायकः सर्वदागतिः।
वायव्यां मारुतात्मा मां शङ्करः पातु सर्वदा॥९॥
gadaabhayakarah' praananaayakah' sarvadaagatih' .
vaayavyaam' maarutaatmaa maam' shankarah' paatu sarvadaa .. 9..
हाथोंमें गदा और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, प्राणोमके रक्षाक, सर्वदा गतिशील वायुस्वरूप शंकरजी वायव्य कोण में मेरी सदा रक्षा करें ॥९॥
शङ्खाभयकरस्थो मां नायकः परमेश्वरः।
सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्करः प्रभुः॥१०॥
shankhaabhayakarastho maam' naayakah' parameshvarah' .
sarvaatmaantaradigbhaage paatu maam' shankarah' prabhuh' .. 10..
हाथोंमें शंख और अभयमुद्रा धारण करनेवाले नायक (सर्वमार्गद्रष्टा) सर्वात्मा सर्वव्यापक परमेश्वर भगवान् शिव समस्त दिशाओंके मध्यमें मेरी रक्षा करें॥१०॥
शूलाभयकरः सर्वविद्यानमधि नायकः।
ईशानात्मा तथैशान्यां पातुमां परमेश्वरः॥११॥
shoolaabhayakarah' sarvavidyaanamadhinaayakah' .
eeshaanaatmaa tathaishaanyaam' paatu maam' parameshvarah' .. 11..
हाथोंमें शंख और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, सभी विद्याओंके स्वामी, ईशानस्वरूप भगवान् परमेश्व शिव ईशान कोंण में मेरी रक्षा करें॥११॥
ऊर्ध्वभागे ब्रःमरूपी विश्वात्माऽधः सदावतु।
शिरो मे शङ्करः पातु ललाटं चन्द्रशेखरः॥१२॥
oordhvabhaage brahmaroopee vishvaatmaa'dhah' sadaa'vatu .
shiro me shankarah' paatu lalaat'am' chandrashekharah' .. 12..
ब्रह्मरूपी शिव मेरी ऊर्ध्वभागमें तथा विश्वात्मस्वरूप शिव अधोभागमें मेरी सदा रक्षा करें। शंकर मेरे सिरकी और चन्द्रशेखर मेरे ललाटकी रक्षा करें॥१२॥
भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु।
भ्रूयुग्मं गिरिशः पातु कर्णौ पातु महेश्वरः॥१३॥
bhroomadhyam' sarvalokeshastrinetro lochane'vatu .
bhrooyugmam' girishah' paatu karnau paatu maheshvarah' .. 13..
मेरे भौंहोंके मध्यमें सर्वलोकेश और दोनों नेत्रोंकी त्रिनेत्र भगवान् शंकर रक्षा करें, दोनों भौंहोंकी रक्षा गिरिश एवं दोनों कानोंको रक्षा भगवान् महेश्वर करें ॥१३॥
नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वजः।
जिह्वां मे दक्षिणामूर्ति र्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु॥१४॥
naasikaam' me mahaadeva osht'hau paatu vri'shadhvajah' .
jihvaam' me dakshinaamoortirdantaanme girisho'vatu .. 14..
महादेव मेरी नासीकाकी तथा वृषभध्वज मेरे दोनों ओठोंकी सदा रक्षा करें । दक्षिणामूर्ति मेरी जिह्वाकी तथा गिरिश मेरे दाँतोंकी रक्षा करें ॥१४॥
मृतुय्ञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषणः।
पिनाकि मत्करौ पातु त्रिशूलि हृदयं मम॥१५॥
mri'tuynjayo mukham' paatu kant'ham' me naagabhooshanah' .
pinaakee matkarau paatu trishoolee hri'dayam' mama .. 15..
मृत्युञ्जय मेरे मुखकी एवं नागभूषण भगवान् शिव मेरे कण्ठकी रक्षा करें । पिनाकी मेरे दोनों हाथोंकी तथा त्रिशूली मेरे हृदयकी रक्षा करें ॥१५॥
पञ्चवक्त्रः स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वरः।
नाभिं पातु विरूपाक्षः पार्श्वौ मे पार्वतीपतिः ॥१६॥
panchavaktrah' stanau paatu udaram' jagadeeshvarah' .
naabhim' paatu viroopaakshah' paarshvau me paarvateepatih' .. 16..
पञ्चवक्त्र मेरे दोनों स्तनोकी और जगदीश्वर मेरे उदरकी रक्षा करें। विरूपाक्ष नाभिकी और पार्वतीपति पार्श्वभागकी रक्षा करें ॥१६॥
कटद्वयं गिरीशौ मे पृष्ठं मे प्रमथा धिपः।
गुह्यं महेश्वरः पातु ममोरू पातु भैरवः॥१७॥
kat'idvayam' gireesho me pri'sht'ham' me pramathaadhipah' .
guhyam' maheshvarah' paatu mamoroo paatu bhairavah' .. 17..
गिरीश मेरे दोनों कटिभागकी तथा प्रमथाधिप पृष्टभागकी रक्षा करें । महेश्वर मेरे गुह्यभागकी और भैरव मेरे दोनों ऊरुओंकी रक्षा करें ॥१७॥
जानुनी मे जगद्दर्ता जङ्घे मे जगदम्बिका।
पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्यः सदाशिवः॥१८॥
jaanunee me jagaddhartaa janghe me jagadambikaa .
paadau me satatam' paatu lokavandyah' sadaashivah' .. 18..
जगद्धर्ता मेरे दोनों घुटनोंकी, जगदम्बिका मेरे दोनों जंघोकी तथा लोकवन्दनीय सदाशिव निरन्तर मेरे दोनों पैरोंकी रक्षा करें ॥१८॥
गिरिशः पातु मे भार्यां भवः पातु सुतान्मम।
मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायकः॥१९॥
girishah' paatu me bhaaryaam' bhavah' paatu sutaanmama .
mri'tyunjayo mamaayushyam' chittam' me gananaayakah' .. 19..
गिरीश मेरी भार्याकी रक्षा करें तथा भव मेरे पुत्रोंकी रक्षा करें । मृत्युञ्जय मेरे आयुकी गण नायक मेरे चित्तकी रक्षा करें ॥१९॥
सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकालः सदाशिवः।
एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानां च दुर्लभम्॥२०॥
sarvaangam' me sadaa paatu kaalakaalah' sadaashivah' .
etatte kavacham' punyam' devataanaam' cha durlabham .. 20..
कालोंके काल सदाशिव मेरे सभी अंगोकी रक्षा करें। [हे वत्स!] देवताओंके लिये भी दुर्लभ इस पवित्र कवचका वर्णन मैंने तुमसे किया है॥२०॥
मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम्।
सह्स्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम्॥२१॥
mri'tasanjeevanam' naamnaa mahaadevena keertitam .
sahasraavartanam' chaasya purashcharanameeritam .. 21..
महादेवजीने मृतसञ्जीवन नामक इस कवचको कहा है । इस कवचकी सहस्त्र आवृत्तिको पुरश्चरण कहा गया है॥२१॥
यः पठेच्छृणुयान्नित्यं श्रावयेत्सु समाहितः।
सकालमृत्युं निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते॥२२॥
yah' pat'hechchhri'nuyaannityam' shraavayetsusamaahitah' .
sa kaalamri'tyum' nirjitya sadaayushyam' samashnute .. 22..
जो अपने मनको एकाग्र करके नित्य इसका पाठ करता है, सुनता अथावा दूसरोंको सुनाता है, वह अकाल मृत्युको जीतकर पूर्ण आयुका उपयोग करता है॥ २२॥
हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ।
आधयोव्याध्यस्तस्य न भवन्ति कदाचन॥२३॥
hastena vaa yadaa spri'sht'vaa mri'tam' sanjeevayatyasau .
aadhayo vyaadhayastasya na bhavanti kadaachana .. 23..
जो व्यक्ति अपने हाथसे मरणासन्न व्यक्तिके शरीसका स्पर्श करते हुए इस मृतसञ्जीवन कवचका पाठ करता है, उस आसन्नमृत्यु प्राणीके भीतर चेतनता आ जाती है । फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं ॥२३॥
कालमृयुमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा।
अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तमः॥२४॥
kaalamri'tyumapi praaptamasau jayati sarvadaa .
animaadigunaishvaryam' labhate maanavottamah' .. 24..
यह मृतसञ्जीवन कवच कालके गालमें गये हुए व्यक्तिको भी जीवन प्रदान कर देता है और वह मानवोत्तम अणिमा आदि गुणोंसे युक्त ऐश्वर्यको प्राप्त करता है ॥२४॥
युद्दारम्भे पठित्वेदमष्टाविशति वारकं।
युद्दमध्ये स्थितः शत्रुः सद्यः सर्वैर्न दृश्यते॥२५॥
yuddhaarambhe pat'hitvedamasht'aavim'shativaarakam .
yuddhamadhye sthitah' shatruh' sadyah' sarvairna dri'shyate .. 25..
युद्ध आरम्भ होनेके पूर्व जो इस मृतसञ्जीवन कवचका २८ बार पाठ करके रणभूमिमें उपस्थित होता है, वह उस समय सभी शत्रुऔंसे अदृश्य रहता है ॥२५॥
न ब्रह्मादीनि चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै।
विजयं लभते देवयुद्दमध्येऽपि सर्वदा॥२६॥
na brahmaadeeni chaastraani kshayam' kurvanti tasya vai .
vijayam' labhate devayuddhamadhye'pi sarvadaa .. 26..
यदि देवताओं के भी साथ युद्ध छिड़ जाय तो उसमें उसका विनाश ब्रह्मास्त्र भी नहीं कर सकते, वह विजय प्राप्त करता है ॥२६॥
प्रातरूत्थाय सततं यः पठेत्कवचं शुभं।
अक्षय्यं लभते सौख्यमिह लोके परत्र च॥२७॥
praatarutthaaya satatam' yah' pat'hetkavacham' shubham .
akshayyam' labhate saukhyamiha loke paratra cha .. 27..
जो प्रात:काल उठकर इस कल्याणकारी कवच सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोकमें भी अक्षय्य सुख प्राप्त होता है ॥२७॥
र्वव्याधिविनिर्मृक्तः सर्वरोगविवर्जितः।
अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिकः॥२८॥
sarvavyaadhivinirmri'ktah' sarvarogavivarjitah' .
ajaraamarano bhootvaa sadaa shod'ashavaarshikah' .. 28..
वह सम्पूर्ण व्याधियोंसे मुक्त हो जाता है, सब प्रकारके रोग उसके शरीरसे भाग जाते हैं । वह अजर-अमर होकर सदाके लिये सोलह वर्षवाला व्यक्ति बन जाता है ॥२८॥
विचरव्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान् ।
तस्मादिदं महागोप्यं कवचम् समुदाहृतम् ॥२९॥
vicharatyakhilaam'lokaanpraapya bhogaam'shcha durlabhaan .
tasmaadidam' mahaagopyam' kavacham' samudaahri'tam .. 29..
इस लोकमें दुर्लभ भोगोंको प्राप्त कर सम्पूर्ण लोकोंमें विचरण करता रहता है। इसलिये इस महागोपनीय कवचको मृत सञ्जीवन नामसे कहा है ॥२९॥
मृतसञ्जीवनं नाम्ना देवतैरपि दुर्लभम् ॥३०॥
mri'tasanjeevanam' naamnaa devatairapi durlabham .. 30..
यह देवतओंके लिय भी दुर्लभ है ॥३०॥
॥ इति वसिष्ठ कृत मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् ॥