Chanting the Vishnu Bhujangaprayata Stotra promotes mental tranquility, liberation from worldly miseries, and spiritual progress. By reciting this stotra, devotees can obtain Lord Vishnu's limitless blessings and achieve spiritual bliss.
The devotee who recites this Bhujangprayat Stotra with devotion and keeps only You in his mind becomes free from the bondage of attachment by Your grace and attains You, the Achyuta Prabhu, through Yoga.
Vishnu Bhujangaprayata Stotra has tremendous benefits.
- This stotra relaxes the mind and calms wandering thoughts, resulting in deep serenity and inner equilibrium.
- This stotra helps break the bonds of the world and facilitates spiritual progress.
- Regular recitation of the stotra allows the devotee to surrender to Lord Vishnu and achieve spiritual enlightenment.
- By chanting this stotra with devotion, the devotee receives Lord Vishnu's blessings, resulting in success and happiness in life.
Vishnu Bhujangaprayata Stotra
श्रीविष्णुभुजंगप्रयातस्तोत्रम्!! (श्रीआदिशंकराचार्य विरचितम्)
ॐ नारायणाय विद्महेवासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
ध्यान (१)
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिनां ध्यनगम्यम्,
वन्दे विष्णुं जगत्पतिं श्रीदेवीभूदेवीसंयुक्तम् ॥१।।
shantaakaram bhujagashayanam padmanabham suresham,
vishvaadharam gaganasadrsham meghavarnam shubhangam .
lakshmikantam kamalanayanam yoginam dhyanagamyam,
vande vishnum jagatpatim shridevibhudevisanyuktam .1..
भावार्थ मैं उस परम विष्णु को प्रणाम करता हूँ- जिनका रूप शान्त और चित्त को स्थिर करने वाला है,जो शेषनाग पर क्षीरसागर में विश्राम करते हैं, जिनकी नाभि से ब्रह्मा का सृजन होता है, जो सृष्टि के आधार हैं और आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त हैं।
वे नीलमणि के समान वर्ण वाले, अत्यंत मंगलमय,
कमलनयन, लक्ष्मी और भूदेवी से संयुक्त,योगियों के ध्यान में प्रकाशित होने वालेऔर सम्पूर्ण जगत के पालनकर्ता प्रभु हैं —ऐसे जगत्पति श्रीविष्णु को मैं नमन करता हूँ।
ध्यान (२)
शेषे शायितमिन्दिरावमधुरं भूमावधिष्ठं हरिं,
पीताम्बरं पद्मनिभं प्रसन्नं पुण्यैकमूर्तिं विभुम् ।
शङ्खं चक्रगदापद्मलाञ्छितकरं सौम्यं सुवर्णप्रभं,
ध्यायेद्वामनितम्बिनीं तदनु ह भूमेत्तरं श्रीपतिम् ॥
sheshe shayitamindiravamadhuram bhumavadhishtham harim,
pitambaram padmanibham prasannam punyaikamurtim vibhum .
shankham chakragadapadmalanchhitakaram saumyam suvarnaprabham,
dhyayedvaamanitambinim tadanu ha bhumettaram shripatim ॥
भावार्थ:- ध्यान करें —भगवान श्रीहरि शेषनाग पर शयन कर रहे हैं।उनके वाम भाग में कमलनयनी श्रीदेवी (लक्ष्मीजी) और दक्षिण भाग में हरितवर्णा भूदेवी (पृथ्वी माता) सुशोभित हैं।भगवान पीताम्बरधारी हैं, जिनका वर्ण कमल समान आभायुक्त है, चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए हैं। उनका मुख प्रसन्न है, शरीर सुवर्ण प्रभा से दैदीप्यमान है, और वे परम कल्याण स्वरूप हैं।
चिदंशं विभुं निर्मलं निर्विकल्पम्
निरीहं निराकारमोङ्कारवेद्यम् ।
गुणातीतमव्यक्तमेकं तुरीयम्
परं ब्रह्म यं वेद तस्मै नमस्ते ॥१॥
chidam'sham' vibhum' nirmalam' nirvikalpam'
nireeham' niraakaaramonkaaragamyam .
gunaateetamavyaktamekam' tureeyam'
param' brahma yam' veda tasmai namaste .. 1..
अर्थ:मैं उस परम ब्रह्म को प्रणाम करता हूँ — जो चैतन्य का अंश है, सर्वव्यापक है, निर्मल और निष्काम है,जो निराकार है और ओंकार से जाना जाता है;जो गुणों से परे, अव्यक्त और चतुर्थ (तुरीय) अवस्था में स्थित है, वही परमात्मा है।
विशुद्धं शिवं शान्तमाद्यन्तशून्यम्
जगज्जीवनं ज्योतिरानन्दरूपम् ।
अदिग्देशकालव्यवच्छेदनीयम्
त्रयी वक्ति यं वेद तस्मै नमस्ते ॥२॥
vishuddham' shivam' shaantamaadyantashoonyam'
jagajjeevanam' jyotiraanandaroopam .
adigdeshakaalavyavachchhedaneeyam'
trayee vakti yam' veda tasmai namaste .. 2..
अर्थ:वह परमात्मा शुद्ध, कल्याणमय, और शान्त है;
जिसका न आदि है, न अन्त — वही समस्त जगत का जीवन और आनन्दमय प्रकाश है।जो देश, काल और दिशा से परे है — वेद की त्रयी उसी की महिमा गाती है। उसे नमस्कार।
महायोगपीठे परिभ्राजमाने
धरण्यादितत्वात्मके शक्तियुक्ते ।
गुणाहस्करे वह्निबिम्बार्कमध्ये
समासीनमोकर्णिकेऽष्टाक्षराब्जे ॥३॥
mahaayogapeet'he paribhraajamaane
dharanyaaditattvaatmake shaktiyukte .
gunaahaskare vahnibimbaardhamadhye
samaaseenamonkarnike'sht'aaksharaabje .. 3..
अर्थ:धरणी (पृथ्वी) से लेकर आकाश तक के तत्वों से युक्त, शक्तियुक्त, महायोगपीठ में प्रकाशित परमेश्वर, वह जो अग्नि-सूर्य के तेज में मध्यस्थित है —और ‘ॐ नमो नारायणाय’ इस अष्टाक्षर कमल के मध्य विराजमान है — उस विष्णु को प्रणाम।
समानोदितानेकसूर्येन्दुकोटि-
प्रभापूरतुल्यद्युतिं दुर्निरीक्ष्यम् ।
न शीतं न चोष्णं सुवर्णावभातम्
प्रसन्नं सदानन्दसंवित्स्वरूपम् ॥४॥
samaanoditaanekasooryendukot'i-
prabhaapooratulyadyutim' durnireeksham .
na sheetam' na choshnam' suvarnaavadaata-
prasannam' sadaanandasam'vitsvaroopam .. 4..
अर्थ:जो सहस्रों सूर्य-चन्द्र के समान तेजोमय है, जिसकी ज्योति को देख पाना कठिन है, जो न ठण्डा है, न गरम, परंतु सुवर्ण के समान दीप्त है — वह सदैव प्रसन्न और आनन्दस्वरूप चेतना है।
सुनासापुटं सुन्दरभ्रूललाटम्
किरीटोचिताकुञ्चितस्निग्धकेशम् ।
स्फुरत्पुण्डरीकाभिरामायताक्षम्
समुत्फुल्लरत्नप्रसूनावतंसम् ॥५॥
sunaasaaput'am' sundarabhroolalaat'am'
kireet'ochitaakunchitasnigdhakesham .
sphuratpund'areekaabhiraamaayataaksham'
samutphullaratnaprasoonaavatam'sam .. 5..
अर्थ:- जिनकी नासिका सुंदर है, भ्रूमध्य तेजोमय है,
जिनके केश किरीट से अलंकृत, स्निग्ध और लहराते हैं,जिनकी आँखें खिले हुए कमलों के समान सुंदर हैं, जिनके कर्णों में रत्न-प्रसून झूम रहे हैं — ऐसे विष्णु को नमस्कार।
स्फुरत्कुण्डलामृष्टगण्डस्थलान्तम्
जपारागचोराधरं चारुहासम् ।
कलिव्याकुलामोदिमन्दारमालम्
महोरस्फुरत्कौस्तुभोदारहारम् ॥६॥
lasatkund'alaamri'sht'agand'asthalaantam'
japaaraagachoraadharam' chaaruhaasam .
alivyaakulaamolimandaaramaalam'
mahorasphuratkaustubhodaarahaaram .. 6..
अर्थ:जिनके गालों पर दमकते कुण्डल झिलमिलाते हैं,जिनके अधर जपा पुष्प के समान लाल हैं, जिनकी मुस्कान मोहक है,जिनके गले में मंदार-पुष्प की माला सुशोभित है,और जिनके वक्षस्थल पर कौस्तुभ मणि चमक रही है — उन श्रीहरि को नमस्कार।
सुरत्नाङ्गदैरन्वितं बाहुदण्डैः
चतुर्भिश्चलत्कङ्कणालंकृताग्रैः ।
उदारोदरालंकृतं पीतवस्त्रम्
पदद्वन्द्वनिर्धूतपद्माभिरामम् ॥७॥
suratnaangadairanvitam' baahudand'ai-
shchaturbhishchalatkankanaalankri'taagraih' .
udaarodaraalankri'tam' peetavastram'
padadvandvanirdhootapadmaabhiraamam .. 7..
अर्थ:जिनके चार भुजाएँ रत्नों से जड़े कंगनों से शोभित हैं, जिनका विशाल उदर पीताम्बर से अलंकृत है, और जिनके चरण कमल को भी लज्जित करने वाले हैं — उन परम विष्णु को नमस्कार।
स्वभक्तेषु सन्दर्शिताकारमेवम्
सदा भावयन् सन्निरुद्धेन्द्रियाश्वः ।
दुरापं नरो याति संसारपारम्
परस्मै तमोभ्योऽपि तस्मै नमस्ते ॥८॥
svabhakteshu sandarshitaakaaramevam'
sadaa bhaavayansam'niruddhendriyaashvah' .
duraapam' naro yaati sam'saarapaaram'
parasmai parebhyo'pi tasmai namaste .. 8..
अर्थ:जो भक्त इस रूप का ध्यान करता है,
अपने इन्द्रियों को वश में रखकर भगवद्भाव में स्थिर रहता है —वह जन्म-मरण के पार चला जाता है।
उस परम ज्योतिर्मय विष्णु को नमस्कार।
श्रिया शातकुंभद्युतिस्निग्धकान्त्या
धरण्या च दूर्वादलश्यामलाङ्ग्या ।
कलत्रद्वयेनामुना तोषिताय
त्रिलॊकीगृहस्थाय विष्णो नमस्ते ॥९॥
shriyaa shaatakumbhadyutisnigdhakaantyaa
dharanyaa cha doorvaadalashyaamalaangyaa .
kalatradvayenaamunaa toshitaaya
trilokeegri'hasthaaya vishno namaste .. 9..
अर्थ:जो श्रीलक्ष्मी के स्वर्णमयी आभा से और धरती के हरित वर्ण से अलंकृत हैं,जो दोनों कलत्रों (लक्ष्मी और भूमिदेवी) के साथ सुखपूर्वक विराजते हैं,
त्रिलोक के गृहस्थ भगवान विष्णु को नमस्कार।
शरीरं कलत्रं सुतं बन्धुवर्गम्
वयस्यं धनं सद्म भृत्यं भुवं च ।
समस्तं परित्यज्य हा कष्टमेको
गमिष्यामि दुःखेन दूरं किलाहम् ॥१०॥
shareeram' kalatram' sutam' bandhuvargam'
vayasyam' dhanam' sadma bhri'tyam' bhuvam' cha .
samastam' parityajya haa kasht'ameko
gamishyaami duh'khena dooram' kilaaham .. 10..
अर्थ:हे प्रभु! यह शरीर, पत्नी, संतान, बंधु, मित्र, धन, घर और भूमि —सबको छोड़कर अंत में अकेला ही जाना पड़ता है।इस दुःख से भयभीत मैं आपकी शरण में हूँ।
जरेयं पिशाचीव हा जीवितो मे
मृजामस्थिरक्तं च मांसं बलं च ।
अहो देव सीदामि दीनानुकम्पिन्
किमद्धापि हन्त त्वयोद्भासितव्यम् ॥११॥
jareyam' pishaacheeva haa jeevato me
vasaamakti raktam' cha maam'sam' balam' cha .
aho deva seedaami deenaanukampi-
nkimadyaapi hanta tvayodaasitavyam .. 11..
अर्थ:- बुढ़ापा मुझे भूत के समान खा रहा है, शरीर में रक्त, मांस, बल सब क्षीण हो गया है।
हे दीनानुकम्पी देव! मैं गिर पड़ा हूँ — अब आपकी ही कृपा से जीवन में प्रकाश हो सकता है।
कफव्याहतोष्णोल्बणश्वासवेग-
व्यथाविस्फुरत्सर्वमर्मास्थिबन्धाम् ।
विचिन्त्याहमन्त्यामसह्यामवस्थाम्
बिभेमि प्रबो किं करोमि प्रसीद ॥१२॥
kaphavyaahatoshnolbanashvaasavega-
vyathaavisphuratsarvamarmaasthibandhaam .
vichintyaahamantyaamasankhyaamavasthaam'
bibhemi prabho kim' karomi praseeda .. 12..
अर्थ:कफ, श्वास, ताप और पीड़ा से मेरा शरीर व्यथित है,अंतकाल की असह्य अवस्था की कल्पना मात्र से भय होता है। हे प्रभो! मैं क्या करूँ? मुझ पर दया कीजिए।
लपन्नच्युतानन्त गोविन्द विष्णो
मुरारे हरे नाथ नारायणेति ।
यथाऽनुस्मरिष्यामि भक्त्या भवन्तम्
तथा मे दयाशील देव प्रसीद ॥१३॥
lapannachyutaananta govinda vishno
muraare hare naatha naaraayaneti .
yathaanusmarishyaami bhaktyaa bhavantam'
tathaa me dayaasheela deva praseeda .. 13..
अर्थ:हे अच्युत, अनन्त, गोविन्द, विष्णु, मुरारि, हरि, नाथ, नारायण! जैसे मैं आपको अन्तिम समय में श्रद्धापूर्वक स्मरण कर सकूँ —वैसा सामर्थ्य दें, हे दयामय देव! मुझ पर प्रसन्न होइए।
नमो विष्णवे वासुदेवाय तुभ्यम्
नमो नारसिंहस्वरूपाय तुभ्यम् ।
नमः कालरूपाय संहारकर्त्र्यै
नमस्ते वराहाय भूयॊ नमस्ते ॥१४॥
bhujangaprayaatam' pat'hedyastu bhaktyaa
samaadhaaya chitte bhavantam' muraare .
sa moham' vihaayaashu yushmatprasaadaa-
tsamaashritya yogam' vrajatyachyutam' tvaam .. 14..
अर्थ:- हे विष्णु, वासुदेव! आपको नमस्कार। हे नृसिंह रूपधारी, आपको नमस्कार। हे कालस्वरूप संहारकर्ता! हे वराह रूपधारी, फिर से नमस्कार।
नमस्ते जगन्नाथ विष्णो नमस्ते
नमस्ते गदाचक्रपाणे नमस्ते ।
नमस्ते प्रपन्नार्तिहारिन् नमस्ते
समस्तापराधं क्षमस्वाखिलेश ॥१५॥
namaste jagannath vishno namaste
namaste gadachakrapane namaste .
namaste prapannartiharin namaste
samastaparadham kshamasvaakhilesh .15.
अर्थ:हे जगन्नाथ विष्णु! आपको नमस्कार। हे गदा-चक्रधारी! नमस्कार। हे शरणागतों के दुःखहर्ता! नमस्कार। हे अखिलेश्वर! मेरे सभी अपराध क्षमा करें।
मुखे मन्दहासं नखे चन्द्रभासम्
करे चारुचक्रं सुरेशादिवन्द्यम् ।
भुजङ्गे शयानं भजे पद्मनाभम्
हरेरन्यदैवं न मन्ये न मन्ये ॥१६॥
mukhe mandahasam nakhe chandrabhasam
kare charuchakram sureshaadivandyam .
bhujange shayanam bhaje padmanabham
hareranyadaivam na manye na manye .16.
अर्थ:जिनके मुख पर मधुर मुस्कान है, जिनके नखों में चन्द्र जैसी ज्योति है, जिनके कर में सुन्दर चक्र है, जिनकी देह पर देवता नमस्कार करते हैं,जो शेषनाग पर शयन करते हैं — उस पद्मनाभ विष्णु को ही मैं पूजता हूँ। उनके सिवा मैं किसी अन्य देव को नहीं मानता।
भुजन्ङ्गप्रयातं पठॆद्यस्तु भक्त्या
समाधाय चित्ते भवन्तं मुरारे ।
स मोहं विहायाशु युष्मत्प्रसादात्
समाश्रित्य यॊगं व्रजत्यच्युतं त्वाम् ॥१७॥
bhujaningaprayatam paṭhedyastu bhaktya
samadhay chitte bhavantam murare .
sa moham vihayaashu yushmatprasadat
samaashritya yogam vrajatyachyutam tvaam .17.
अर्थ:जो भक्त इस भुजंगप्रयात स्तोत्र का श्रद्धा से पाठ करता है,और मन में केवल आपको धारण करता है —वह आपके प्रसाद से मोह रूपी बंधन से मुक्त होकर, योग द्वारा आप अच्युत प्रभु को प्राप्त होता है।
!!इति श्रीशंकराचार्य विरचितं विष्णुभुजंगप्रयात स्तोत्रम् समाप्तम्!!