Sudarshan Chakra Raksha Mantra is a godly tool for protection and destruction. The mantra sadhana ensures the safety of the family as well as triumph over adversaries.
The Sudarshan Chakra is a celestial weapon associated with Lord Vishnu, one of the principal deities in Hinduism, revered as the preserver and protector of the universe. The term "Sudarshan" means "auspicious vision" or "good sight," and "Chakra" translates to "disk" or "wheel."
The Sudarshan Chakra, often depicted as a spinning, circular disc with sharp edges, symbolizes justice's swift and decisive nature. Vishnu typically displays it in his right hand, prepared to use against evil and wrongdoers.
The Chakra represents the cycle of time and the eternal nature of the universe. It symbolizes the idea that righteousness (Dharma) always triumphs over Adharma (unrighteousness), and it is a reminder of the moral and ethical duties humans must uphold.
The Sudarshan Chakra has a significant role in various Hindu scriptures and epics. Some key elements include:
People say that the deities combined their energies to create it, infusing it with the power to destroy evil forces.
In the epic Mahabharata, Lord Krishna famously uses it to defeat powerful foes and protect his devotees.
Tales of Protection: The Chakra is also involved in stories where it is used to protect the righteous and fulfill the divine will. Lord Krishna, for example, wields it during battles to defend the innocent.
The Sudarshan Chakra embodies the principles of righteousness, protection, and the cosmic cycle of creation and destruction. As a powerful weapon of Lord Vishnu, it serves as a reminder of the perpetual battle between good and evil, emphasizing the importance of moral duty and the divine support available to those who seek to uphold justice.
How To Chant the Sudarshan Chakra Raksha Mantra
- The mantra sadhana can be started on any auspicious day. Some seekers commence this ritual on the occasion of Raksha Bandhan.
- The seeker must start this ritual after 11 pm after taking a bath and wearing a white outfit. The sadhak should do 4 malas of the Guru mantra and worship the Guru and Lord Ganesha.
- Chant 11 rosaries of this mantra daily for 11 days.
- The sadhak should say the "Sankalp" before starting the ritual.
- Install energized Sudarshan Chakra yantra and use energized Rudraksha mala for this purpose.
- After completion of the ritual, the seeker should perform a Yagya of 1008 aahutis or fire ceremony.
- The seeker can chant a mala of this mantra after that for safety and to ensure the destruction of enemies.
Sudarshan Chakra Raksha Mantra
OM SUDARSHAN CHAKRAAY SHEEGHRA AAGACHCHH MAM SARVATRA RAKSHAY-RAKSHAY SWAAHA.
It is acknowledged that Lord Vishnu and his Sudarshan Chakra once summoned, forever remain around the aura of the seeker to shield him.
सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का प्रमुख शस्त्र है, इस चक्र से माध्यम से भगवान ने बहुत से दुष्टों का विनाश किया है। इस चक्र की खास बात यह है कि यह चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुंचकर वापिस आ जाता है। यह चक्र कभी भी नष्ट नहीं होता है। इस शस्त्र में अपार ऊर्जा है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है।
इस दिव्य चक्र की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएँ सामने आती हैं, कुछ लोगों का मानना है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, बृहस्पति ने अपनी ऊर्जा एकत्रित कर के इसकी उत्पत्ति की है। यह भी माना जाता है कि यह चक्र भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना कर के प्राप्त किया है। लोग यह भी कहते हैं कि महाभारत काल में अग्निदेव ने श्री कृष्ण को यह चक्र दिया था जिससे अनेकों असुरों का संहार हुआ था।
सुदर्शन चक्र की सनातन हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है, जैसे वक़्त, सूर्य और ज़िन्दगी कभी रुकती नहीं हैं, वैसे ही इसका भी कोई अन्त नहीं कर सकता। यह परमसत्य का प्रतीक है। शिव पुराण के अनुसार साक्षात आदि शक्ति सुदर्शन चक्र में वास करती हैं।
साधना विधान :-----------
चूँकि यह साधना साधक की सुरक्षा से सम्बन्धित है। अतः आप इसे रक्षा-बन्धन (राखी) पर्व से आरम्भ करें। यदि यह सम्भव न हो तो इस साधना को किसी भी शुभ दिन से शुरू किया जा सकता है।
रात्रिकाल में ११ बजे के बाद साधक स्नान कर के सफ़ेद वस्त्रों को धारण कर सफ़ेद आसन पर बैठे और सामान्य गुरुपूजन करके गुरुमन्त्र की चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से सुदर्शन चक्र साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर उनसे साधना की सफलता के लिए निवेदन करें।
इसके बाद भगवान गणपतिजी का स्मरण कर किसी भी गणपति मन्त्र का एक माला जाप करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता के लिए प्रार्थना करें।
इस साधना में साधक को कुल ११,००० मन्त्र जाप करना है। साधक अपनी सामर्थ्य के अनुसार दिनों का चयन कर अपना मन्त्र जाप पूरा कर लें, लेकिन मन्त्र जाप की संख्या रोज़ एक समान और नियमित रहे। साधक चाहे तो एक दिन में भी मन्त्र जाप पूरा कर सकता है।
तत्पश्चात साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि “मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से सुदर्शन चक्र साधना शुरू कर रहा हूँ। मैं नित्य ७ दिनों तक १५ माला मन्त्र जाप सम्पन्न करूँगा। आपकी कृपा से मेरी यह साधना सफल हो, जिससे कि मुझे और मेरे परिवार को सम्पूर्ण रूप से सुरक्षा प्राप्त हो सके और जीवन पूरी तरह चिन्तामुक्त हो सके।”
आप चाहे तो ११ माला प्रतिदिन के हिसाब से इस साधना को ११ दिनों में भी सम्पन्न कर सकते हैं। लेकिन संकल्प में फिर आप वैसा ही उच्चारित करें।
इसके बाद साधक हाथ जोड़कर भगवान सुदर्शन चक्र का निम्नानुसार ध्यान करे -----
ॐ सुदर्शनं महावेगं गोविन्दस्य प्रियायुधम्‚
ज्वलत्पावकसङ्काशं सर्वशत्रुविनाशनम्।
कृष्णप्राप्तिकरं शश्वद्भक्तानां भयभञ्जनम्‚
सङ्ग्रामे जयदं तस्माद्ध्यायेद्देवं सुदर्शनम्॥
फिर रुद्राक्ष माला से साधक निम्न मन्त्र का जाप करें -----
मन्त्र :-----------
।। ॐ सुदर्शन चक्राय शीघ्र आगच्छ मम् सर्वत्र रक्षय-रक्षय स्वाहा ।।
OM SUDARSHAN CHAKRAAY SHEEGHRA AAGACHCHH MAM SARVATRA RAKSHAY-RAKSHAY SWAAHA.
मन्त्र जाप के पश्चात एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दें। इस प्रकार यह साधना आप नित्य ७ अथवा ११ दिनों तक सम्पन्न करें। साधना समाप्ति के बाद साधक माला को धारण किए रखे तथा आगामी दिनों में ग्रहणकाल के समय इस मन्त्र की ११ माला जाप फिर से करे और शहद से अग्नि में १००८ आहुतियाँ इसी मन्त्र से अर्पित करे।
यह साधक का सौभाग्य होता है कि उसे साधना काल के दौरान सुदर्शन चक्र के दर्शन हो जाए। यदि ऐसा होता है तो साधक को चाहिए कि वह विनीत भाव से प्रणाम कर सुदर्शन चक्र से रक्षण के लिए प्रार्थना करे।
इसके बाद सुदर्शन चक्र साधक के आसपास अप्रत्यक्ष रूप में रहता है तथा सर्व रूप से शत्रु तथा अनेक बाधाओं से व्यक्ति का रक्षण करता ही रहता है। साधक का अहित करने का सामर्थ्य उसके शत्रुओं में रहता ही नहीं है।