Vasudev Vishnu Mantra

Vasudev Vishnu Mantra

📅 Jan 11th, 2024

By Vishesh Narayan

Summary Vasudev Vishnu Mantra is a wonderful mantra that can provide utmost joy and salvation. By performing this mantra sadhana the karmic obligations of past births and present birth are expelled. The seeker gets the assurance of Sudarshan Chakra. The custom gives peace to the entire family.


Vasudev Vishnu Mantra is a wonderful mantra that can provide utmost joy and salvation. By performing this mantra sadhana the karmic obligations of past births and present birth are expelled. The mantra simply brings brightness to personality and gives leadership ability in life.

Vishnu Mantra Sadhana is a karma-oriented Sadhana, the seeker becomes hard-working, and dutiful and works to move ahead on his strength.

Vasudev Vishnu sadhana is the sadhana of Shakti. The seeker gets the assurance of Sudarshan Chakra. The custom gives peace to the entire family. The Sadhana guarantees peace, family advancement, the birth of children and grandchildren, participation, and bliss.

The beginning of creation is considered to be from Lord Vishnu and this world is the form of Maya (Leela) of Vishnu. Lord Vishnu has Saguna form as well as Nirguna form, in the form of Maya he along with Lakshmi provides the desired results to his devotees.

How To Perform Vasudev Vishnu Mantra

The Purashcharan of Vishnu Mantra is done by chanting 12 Lakh mantras and after the Purashcharan, there's moreover a havan custom of twelve thousand mantras. Vishnu Mantra is considered as Chaitanya Mantra, which is why the mantra gives victory in any endeavor.

Vasudev Vishnu Sadhana can be commenced at any favorable time but Shraddha Paksha. This puja can be begun on any Sunday. The searcher ought to wear a yellow dress and sit on a yellow Asan confronting the North direction.

Vishnu Yantra ought to be introduced on a wooden board (post) by spreading a yellow cloth and letting it stay introduced within the same frame all through the custom. Apart from this, Abeer, Gulal, Kumkum, Saffron, Sandalwood, Molly, Betel nut, and Prasad are necessary for the offering. The seeker can use Divya Mala for this divine mantra chant.

In this sadhana sequence, all the forms of Vishnu are worshipped. While performing this puja, Twelve lotus seeds are to be soaked in sandalwood and offered to Lord Vishnu during this puja.

There are specific provisions for Viniyoga, Sadhana, and Panchavarana worship in the worship of Shri Vishnu. Since Vishnu forms are worshipped in all directions, this form must be cherished. The right hand must be used to touch bodily parts, and only the right hand should be used when making offerings. This requires extra caution.

Vasudev Vishnu Mantra

OM NAMO BHAGVATE VAASUDEVAY

विष्णु साधना आधार शक्ति की साधना है, जिससे पूर्व जन्मकृत दोष और वर्तमान जन्म के दोष दूर होते हैं।  विष्णु साधना से व्यक्तित्व में तेजस्विता आती है, जीवन में नेतृत्व की क्षमता प्राप्त होती है। विष्णु साधना कर्म प्रधान साधना है, साधक कर्मशील, कर्त्तव्यशील बनता है और अपने बलबूते पर आगे बढ़ने हेतु कार्यशील होता है। 

विष्णु साधना शक्ति की साधना है। साधक को सुदर्शन चक्र शक्ति प्राप्त होती है, क्योंकि जहाँ विष्णु है, वहाँ लक्ष्मी का वास होता ही है।विष्णु साधना पूरे परिवार की साधना है और ग्रह शान्ति, पारिवारिक उन्नति, पुत्र-पौत्र प्राप्ति, सहयोग तथा सुख की साधना है।

सृष्टि का आरम्भ भगवान विष्णु से माना गया है और यह संसार विष्णु की ही माया (लीला) का स्वरूप है। भगवान विष्णु का सगुण स्वरूप भी है और निर्गुण स्वरूप भी, माया रूपी स्वरूप में वे लक्ष्मी के साथ अपने भक्तों को अभीष्ट फल प्रदान करते हैं।

विष्णु साधना का पुरश्चरण बारह लाख मन्त्रों का जाप है और पुरश्चरण के पश्चात इसके शतांश बारह हजार मन्त्रों का हवन विधान भी है। विष्णु मन्त्र को चैतन्य मन्त्र माना गया है, इसी कारण विष्णु साधना में सफलता प्राप्त होती ही है।

साधना का मार्ग संक्षिप्त नहीं है और जब भी साधना करें तो पूर्ण विधि-विधान सहित सम्पन्न करें। उसी रूप में साधना करने पर पूर्ण सफलता प्राप्त होती है। आगे जो साधना विधान दिया जा रहा है, उसमें विनियोग है,  न्यास भी है, ध्यान व पूजन भी है, उन्हें उसी रूप में सम्पन्न करना है।

विष्णु साधना केवल श्राद्धपक्ष को छोड़कर किसी भी शुभ मुहूर्त में, किसी भी रविवार या गुरुवार को आरम्भ की जा सकती है। साधना काल में हर रविवार को यह पूजा विधान अवश्य सम्पन्न करना चाहिए। इस साधना में साधक के आसन व वस्त्र पीले रहेंगे और दिशा उत्तर होगी।

इस साधना में मूल रूप स विष्णु यन्त्र आवश्यक है, जिसे लकड़ी के एक पट्टे (चौकी) पर पीला वस्त्र बिछाकर स्थापित करें और पूरे अनुष्ठान में उसी रूप में स्थापित रहने दें। इसे हटाना नहीं है। इसके अतिरिक्त अबीर, गुलाल, कुमकुम, केसर, चन्दन, मौलि, सुपारी तथा अर्पण हेतु प्रसाद आवश्यक है।

इस साधना क्रम में विष्णु के सभी स्वरूपों का पूजन किया जाता है। यह पूजन करते हुए द्वादश कमल बीज चन्दन में डुबोकर भगवान विष्णु को अर्पित करना है। इसके लिए काफी मात्रा में चन्दन घिसकर पहले से ही रख लेना चाहिए।

श्रीविष्णु की साधना में विनियोग, साधना तथा पंचावरण पूजा का विशेष विधान है। सभी दिशाओं में स्थित विष्णु स्वरूपों का पूजन किया जाता है, अतः इसे इसी रूप में सम्पन्न करना है। दाहिने हाथ से शरीर के अंगों को स्पर्श करना है, अर्पण भी दाहिने हाथ से ही किया जाता है, इस बात का विशेष ध्यान रहे।

विनियोग 

दाहिने हाथ में जल लेकर विनियोग मन्त्र का उच्चारण करें ------

ॐ अस्य श्री द्वादशाक्षरमन्त्रस्य प्रजापतिः ऋषिः गायत्री छन्दः वासुदेव परमात्मा देवता सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः।

और फिर जल को भूमि पर छोड़ दें।

ऋषयादि न्यास 

ॐ प्रजापति ऋषये नमः शिरसि।       (सिर को स्पर्श करें)
गायत्री छन्दसे नमः मुखे।                 (मुख को स्पर्श करें)
वासुदेव परमात्मा देवतायै नमः हृदि।  (हृदय को स्पर्श करें)
विनियोगाय नमः सर्वांगे।                  (सभी अंगों को स्पर्श करें)

कर न्यास 

ॐ अँगुष्ठाभ्याम् नमः।         (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठों को स्पर्श करें)
नमो तर्जनीभ्याम् नमः।          (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
भगवते मध्यमाभ्याम् नमः।      (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
वासुदेवाय अनामिकाभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय कनिष्ठिकाभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)

हृदयादि न्यास 

ॐ हृदयाय नमः।           (हृदय को स्पर्श करें)
नमो शिरसे स्वाहा।         (सिर को स्पर्श करें)
भगवते शिखायै वषट्।         (शिखा को स्पर्श करें)
वासुदेवाय कवचाय हुम्।       (भुजाओं को स्पर्श करें)
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय अस्त्राय फट्। (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)

ध्यान

हाथ जोड़कर वासुदेव स्वरूप भगवान विष्णु का ध्यान करें ------

ॐ विष्णुं शारद चन्द्रकोटि सदृश शंखं रथांगं गदाम्,
अम्भोजं दधतं सिताब्जनिलयं कान्त्या जगन्मोहनम्।
आबद्धांगदहारकुण्डल महामौलिं स्फुरत्कंकणम्,
श्रीवत्सांकमुदार कौस्तुभधरं वन्दे मुनिन्द्रैः स्तुतम्।।

तदुपरान्त हाथ जोड़कर भगवान विष्णु को निम्न मन्त्रोच्चारण से नमस्कार करें -----

ॐ शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं, वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।

इस प्रकार प्रणाम करने के बाद शान्त भाव में बैठकर वैजयन्ती माला से निम्न मन्त्र का जाप करना चाहिए -----

मन्त्र 

।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।।

OM NAMO BHAGVATE VAASUDEVAAYA.

मन्त्र जाप के बाद एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप भगवान वासुदेव विष्णु को ही समर्पित कर दें।

इस साधना में मन्त्र जाप की संख्या साधक की इच्छा पर निर्भर करती है और यह क्रम निरन्तर चलते रहना चाहिए। शास्त्रोक्त विधान है कि बारह अक्षर के इस मन्त्र का सम संख्या लक्ष अर्थात् बारह लाख मन्त्रों का जाप करने से साधक को पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है तथा भगवान विष्णु की अभीष्ट कृपा सिद्धि से साधक मनोवांछित फल प्राप्त करता है। सब प्रकार के पाप दोष दूर होकर साधक श्रीविष्णु का तेज ग्रहण करने में समर्थ रहता है। यह साधना तो निश्चय ही सर्वोत्तम साधना है।

 वर्तमान समय में सामान्य साधक के लिए इतने अधिक मन्त्र जाप सम्भव नहीं है। इसलिए साधक सवा लाख मन्त्र जाप का संकल्प लें और ११, २१ अथवा २४ दिनों में मन्त्र जाप सम्पन्न कर लें।


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