Karn Matangi Mantra | कर्ण मातंगी मन्त्र

Karn Matangi Mantra - कर्ण मातंगी मन्त्र

📅 Apr 18th, 2025

By Vishesh Narayan

Summary The Karn Matangi Mantra is a divine mantra that aids in reading someone's mind. This ritual is suitable for those who wish to hear the thoughts of other persons and those with hearing issues.


Karn Matangi Mantra is a divine mantra that helps to read anyone's mind. The mantra belongs to Bhagwati Karna Matangi Mantra. The mantra is also known as "Mentalism Mantra". 

This ritual is for those who want such a power that whoever is in front of them can hear their thoughts. This ritual of Karna Matangi is also for those who are unable to hear or have a problem with their ears.

This is a simple ritual, through which one does not gain the knowledge of past, present, and future or guidance, but Bhagwati Mother herself becomes the ears of the devotee by residing in his ears, and even the subtlest sound can be heard by the person in the voice of Bhagwati Mother.

Not only this, Goddess Karna Matangi also tells the devotee what is going on in the mind of the other person.

Benefits of Karn Matangi Mantra

• Bhagwati Karna Matangi Mantra is a divine mantra for mind reading.
• Ideal for those unable to hear or have hearing issues.
• Bhagwati Mother becomes the devotee's ears, allowing even subtle sounds to be heard.
• Goddess Karna Matangi also reveals the thoughts of the other person.

How To Perform The Karn Matangi Mantra

  • During the auspicious night, in the meditation room, install the Prana Pratishtha Yantra of Bhagwati and the Gutika in the middle of the Yantra.
  • After taking a bath, complete purification, Aachman, general worship of Guru Ganesh, Kul Devi Devta, etc., and general Panchopchar worship of the Yantra idol of Bhagwati, take the resolution or Sankalp.
  • After this, chant 11 rounds of Karna Matangi mantra using Pran Pratishtha Divya Mala.
  • And do this for 11 days.

 Karn Matangi Mantra

"aing namah shree maatangee amoghe satyavaadinee mam karne avataar satyam kathya kathya ehayehi shreeng maatangyai namah."

Link For The Audio of The Mantra

In the end, recite Kshama Apraadh Stotra, etc. On completion of the chanting, do Dashansh yagya or havan.

After that, by chanting this mantra daily, the practitioner starts knowing the thoughts of any person on their own. And the person who has hearing problems can also hear all the sounds clearly.

Seek the help of your Guru for detailed guidance regarding the complete procedure.

किसी के भी मन की बात को पढ़ लेने का मन्त्र। भगवती कर्ण मातंगी मन्त्र।  

यह प्रयोग उनके लिए है जो ऐसी सिद्धि चाहते है की जो भी व्यक्ति उनके समक्ष हो वह उसके मन की बाते सुन सके। कर्ण मातंगी का यह विधान उनके लिए भी है जो सुनने में असमर्थ है किसी कारण वश कर्ण में खराबी आ गई हो।

यह सौम्या विधान है इससे त्रिकाल ज्ञान अथवा मार्गदर्शन प्राप्त नही होता अपितु भगवती मां स्वतः सुनने में असमर्थ साधक के कर्ण में वास करके उसके कर्ण बन जाती है और सूक्ष्म से सूक्ष्म ध्वनि भी व्यक्ति को भगवती मां की आवाज में सुनाई देती है। इतना ही नहीं  भगवती कर्ण मातंगी उस साधक को दुसरे व्यक्ति के मन में क्या चल रहा है , वह भी बता देती है। 

शुभ रात्रि काल में साधना कक्ष में भगवती के प्राण प्रतिष्ठित यंत्र और यंत्र के मध्य गुटिका की स्थापना करे। स्नान आदि से निवृत्त, पूर्ण पवित्रीकरण, आचमन, गुरु गणेश, कुल देवी देवता, आदि सामान्य पूजन और भगवती के यंत्र विग्रह की सामान्य पंचोपचार पूजन के बाद संकल्प ले।

इसके बाद प्राण प्रतिष्ठित दिव्य माला से कर्ण मातंगी मन्त्र की ११ माला मन्त्र जप करें। और ऐसा 11 दिन तक करें।  

और भगवती कर्ण मातंगी का यह मन्त्र है।  

"ऐंग  नमः श्री मातङ्गि अमोघे सत्यवादिनी मम  कर्णे अवतर अवतर सत्यं कथय कथय एहयेहि श्रीन्ग मातङ्गयै नमः।"
   
 अंत में क्षमा अपराध स्तोत्र आदि का पाठ करे। जप पूर्ण होने पर दशांश हवन भोग आदि करे। 

उसके पश्चात एक माला नित्य इस मन्त्र का जप करते रहने से साधक किसी भी व्यक्ति के मन की बात को स्वयं जानना शुरू हो जाता है। और जिस व्यक्ति को सुनने में कठिनाई आती हो उस को भी सभी ध्वनियाँ स्पष्ट सुनाई देने लगती हैं. 

 भगवती मां की कृपा से प्रारंभ में वह सूक्ष्मतम आवाज भी भगवती मां के मुख से सुनने लगेगा लोग जो भी बोल रहे होगे भगवती मां ही की आवाज में उसे सुनाई देगा यहां तक के समक्ष खड़े व्यक्ति के मन की बात भी सुनेगा । 

सम्पूर्ण विधि विधान के सूक्ष्म मार्गदर्शन के लिये अपने गुरु की सहायता लें।

भगवती मां मातंगी कवच पाठ करे। 

ध्यान 
शवोपरि समासीनां रक्तांबर परिच्छदां, 
रक्तालंकार संयुक्तां गुञ्जहार विभूषिताम्। 
षोडशाब्द च युवतीं पीनोन्नत पयोधरां,
कपाल कर्त्रिका हस्तां परज्योतिः स्वरूपिणीम् ।।

विनियोग- अस्य श्रीमातङ्गीकवचस्य दक्षिणामूर्ति ऋषिर्विराट्छन्दो मातङ्गी देवता चतुर्वर्गसिद्धये पाठे विनियोगः ।

ॐ शिरो मातङ्गिनी पातु भुवनेशी तु चक्षुषी । 
तोडला कर्णयुगलं त्रिपुरा वदनं मम ॥3 ॥ 
पातु कण्ठे महामाया हृदि माहेश्वरी तथा। 
त्रिपुष्पा पार्श्वयोः पातु गुदे कामेश्वरी मम ॥4॥ 
ऊरुद्वये तथा चण्डी जंघयोश्च हरप्रिया। 
महामाया पादयुग्मे सर्वाङ्गेषु कुलेश्वरी ॥5॥ 
अङ्ग प्रत्यंगकं चैव सदा रक्षतु वैष्णवी। 
ब्रह्मरन्धे सदा रक्षेन्मातङ्गीनाम संस्थिता ॥ 6 ॥ 
रक्षेन्नित्यं ललाटे सा महापिशाचिनीति च । 
नेत्रयोः सुमुखी रक्षेद्देवी रक्षतु नासिकाम् ॥ 7 ॥ 
महापिशाचिनीं पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा। 
लज्जा रक्षतु मां दन्ताञ्चोष्ठौ संमार्जनीकरा ॥8 ॥ 
चिबुके कण्ठदेशे च ठकारत्रितयं पुनः । 
सविसर्गं महादेवि हृदयं पातु सर्वदा ॥9 ॥ 
नाभिं रक्षतु मां लोला कालिकावतु लोचने। 
उदरे पातु चामुण्डा लिंगे कात्यायनी तथा॥10 ॥ 
उग्र तारा गुदे पातु पादौ रक्षतु चाम्बिका। 
भुजौ रक्षतु शर्वाणीं हृदयं चण्डभूषणा ॥ 11 ॥ 
जिह्वायां मातृका रक्षेत्पूर्वे रक्षतु पुष्टिका। 
विजया दक्षिणे पातु मेधा रक्षतु वारुणे ॥ 12 ॥ 
नैर्ऋत्यां सुदया रक्षेद्वायव्यां पातु लक्ष्मणा। 
ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी मातङ्गी शुभकारिणी ॥ 13 ॥ 
रक्षेत्सुरेशी चाग्नेये बगला पातु चोत्तरे । 
ऊर्ध्वं पातु महादेवि देवानां हितकारिणी ॥14॥ 
पाताले पातु मां नित्यं वशिनी विश्वरूपिणी। 
प्रणवं च तमोमाया कामवीजं च कूर्चकम् ॥15॥ 
मातङ्गिनी ङेयुतास्त्रं वह्निजाया वधिर्मनुः । साद्वैकादशवर्णा सा सर्वत्र पातु मां सदा ॥16॥
इति ते कथितं देवि गुह्याद्‌गुह्यतरं परम् । 
त्रैलोक्यमङ्गलं नाम कवचं देवदुर्लभम् ॥17॥ 
य इदं प्रपठेन्नित्यं जायते सम्पदालयम् । परमैश्वर्यमतुलं प्राप्नुयान्नात्र संशयः ।। 18 ॥ 
गुरुमभ्यर्च्य विधिवत् कवचं प्रपठेद्यदि ऐश्वर्यं 
सुकवित्वं च वाक्सिद्धिं लभते ध्रुवम् ॥19॥ 
नित्यं तस्यं तु मातङ्गी महिला मङ्गलं चरेत्। 
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च ये देवाः सुरसत्तमाः ॥20॥ 
ब्रह्मराक्षसवेताला ग्रहाद्यां भूतजातयः । 
तं दृष्टवा साधकं देवि लज्जायुक्ता भवन्ति ते॥21॥ 
कवचं धारयेद्यस्तु सर्वासिद्धिं लभेदध्रुवम् । 
राजानोऽपि च दासत्वं षट्‌कर्माणि च साधयेत्॥22॥ 
सिद्धो भवति सर्वत्र किमन्यैर्बहुभाषितैः । 
इदं कवचमज्ञात्वा मातङ्गीं यो भजेन्नरः ॥23॥ 
अल्पायुर्निर्द्धनो मूर्खी भवत्येव न संशयः । 
गुरौ भक्तिः सदा कार्या कवचे च दृढा मतिः ।। 24 ॥ 
तस्मै मातङ्गिनी देवी सर्वसिद्धिं प्रयच्छति ।। 25 ॥


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