Vartali Mantra is a powerful mantra to stagnate the negative impacts of enemies. The mantra not only immobilizes the activities but also the minds and emotions of the opponents. The Varahi mantra also assures that the rivals of sadhak surrender to him for no reason.
Goddess Vartali is the goddess of communication and the different modes she intercommunicates with her worshipper or the sadhaka. She intercommunicates with sadhaka in many diverse forms and different manners. She communicates through nature, through notional entities like ideas, sentiments, and instincts.
Vartali is also learned as Varahi. She is the deity of ‘mind and emotions’. She first initiates different opinions and sentiments inside the worshipper and then she pushes her worshipper capable of participating fully. This in turn helps the tantric worshipper and Yogis to expand their consciousness and hone their senses and psyche.
Vartali Mantra Benefits
The Purashcharan of the mantra is seventeen thousand chants. After concluding the chants, the mantric should conduct the one-tenth of Yagya with honey, sesame seeds, and safflowers. Offer a tenth of Tarpan, Marjan, and food to Brahmins. By accomplishing this ritual, the mantra is ascertained. After the mantra is proved, the seeker should acquire his other goals.
The seeker can utilize Energized Rudraksha or Haldi Mala to complete the chants. For actualization of wishes, gladden Varahi Devi comprehensively with liquor, flowers of Bandhuk (Gulduparia), and sesame seeds.
Sadhaka should present 400 times of fire ceremonies with tamal flowers to smash the enemy or group of adversaries. By accomplishing this, the yoginis swallow a group of enemies.
Vartali Shatru Maran Mantra
om aing glaun aing namo bhagavati vaartaali vaaraahi vaaraahamukhi aing glaum aing andhe andhini namah rundhe rundhinee namah jambhe jambhini namah mohe mohini namah stambhe stambhini namah aing glaum aing sarv dusht pradushtaanaan sarveshaan sarv vaakyapadachitt chakshurmukhagati jihva stambhm kuru kuru sheeghram vasham kuru kuru aing glaum aing thah thah thah hum phat svaahaah.
वार्ताली मंत्र साधना
ॐ ऐं ग्लौं ऐं नमो भगवति वार्तालि वाराहि वाराहमुखि ऐ ग्लौं ऐं अन्धे अन्धिनि नमो रुन्धे रुन्धिनी नमो जम्भे जम्भिनि नमो मोहे मोहिनि नमः स्तम्भे स्तम्भिनि नमः ऐं ग्लौं ऐं सर्वदुष्टप्रदुष्टानां सर्वेषां सर्ववाक्यपदचित्तचक्षुर्मुखगतिजिह्वास्तम्भं कुरु कुरु शीघ्रं वशं कुरु कुरु ऐं ग्लौं ऐं ठः ठः ठः हुं फट् स्वाहाः।
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विनियोग
अस्य श्रीवार्तालीमन्त्रस्थ शिव ऋषिः जगतीच्छन्दः वार्ताली देवता ( मतान्तरे) ग्लौं बीजं स्वाहा शक्तिः ममाखिलावांप्तये जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यास
ॐ शिवऋषये नमः शिरसि ।
जगतीच्छन्दसे नमो मुखे।
वार्तालीदेवतायै नमो हृदि ।
ग्लौं बीजाय नमो लिगे।
स्वाहा शक्तये नमः पादयो॥
विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
करन्यास
ॐ वार्तालि अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ वाराहि तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ वाराहमुखि मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ अन्ये अन्धिनि अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ रुन्धे रुन्धिनी कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ जम्भे जम्भिनि करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादिषडंगन्यास
ॐ वार्तालि हृदयाय नमः ।
ॐ वाराहि शिरसे स्वाहा ।
ॐ वाराहमुखि शिखायै वषट् ।
ॐ अन्धे अंधिनि कवचाय हुं ।
ॐ रुन्धे रुन्धिनि नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ जम्भे जम्भिनि अस्त्राय फट् ।
ध्यान
ॐ रक्ताम्भोरुहकर्णिकोपरिगते शावासने संस्थितां मुण्डस्रपरिराजमानहृदयां नीलाश्मसद्रोचिषम्।
हस्ताब्जैर्मुशलं हलाभयवरान् संबिभ्रत सत्कुचां वार्तालीमरुणाम्बरां त्रिनयनां वन्दे वराहाननाम् ।।
वार्ताली देवी का वो मंत्र जो सभी शत्रुओं का स्तम्भन कर सकता है | मंत्र का पुरश्चरण सत्रह हजार जप है। जप का दशांश शहदयुत तिल तथा बन्धूक कुसुमों से होम करें। होम से दशांश तर्पण, तर्पण से दशांश मार्जन और मार्जन से दशांश ब्राह्मण भोजन कराएं। ऐसा करने से मंत्र सिद्ध होता है। मंत्र सिद्ध होने पर साधक प्रयोगों को सिद्ध करे।
स्तंभन कर्म में हल्दी की माला से, शुभ कार्यों हेतु कमल बीज, रुद्राक्ष व स्फटिक की माला से जप करना चाहिए। मनोकामनापूर्ति हेतु स्वर्णादि पत्रों, मदिरा, बंधूक (गुलदुपरिया) के पुष्पों व तिलों से वाराही देवी को भलीभांति तृप्त करें।
विधि:-
यह मंत्र का 21000 जाप से सिद्ध होता है।फिर इसके निरंतर अभ्यास से त्रिकाल ज्ञान प्राप्त होता है।देवी उसे सभी प्रश्नों का उत्तर कान में बताती है।
साधक स्तंभन कर्म हेतु तमाल पत्रों से 400 बार आहुतियां दे। ऐसा करने पर योगिनियां शत्रुओं समूह का भक्षण कर लेती हैं। साधक देवी के मंत्र को कुम्हार के नूतन खर्पर (ठीकरे) पर अंकित कर वज्र के मध्य साध्य का नाम अंकित करे तथा काले पुष्पों से पूजन कर शत्रु के घर में प्रक्षेपित करे। ऐसा करने से शत्रु का शीघ्र ही उच्चाटन हो जाता है। भले ही वह उस घर में सौ साल से क्यों न रह रहा हो।
वार्ताळि वाराही शाबरमंत्र
ओंम नमो आदेश गुरू को । वाराही माता। भैसी का वाहन । हाथ में काल दंड दृष्टो पे शासन। तारे धरती माता मनभावन। वराह वाराही दंड धारे। राखे पिंड काया प्राण । वराह बली चलते साथ। मैली विद्या मैला मेल । बंधी महवारी । बंधी कोक । असर कसर । भूत चुडेल टोना टूमण तंत्र मंत्र निवारो । राखो लाज । सत शब्द सत की शक्ती । दुहाई जगदंबे की। माई कामाख्या की । शब्द साच्या पिंड काच्या फुरो मंत्र ईश्वरी वाच्या।।
विधि :-
- रात्रि काल में 21 दिन तक रोज एक माला जप करें।मंगलवार या शनिवार से। साधना से पहले भगवान लक्ष्मी नारायण या शिव दुर्गा कै मंदिर जाकर पूजा करे प्रसाद चढ़ाकर यह वाराही साधना के लिए अनुमति मांगे और मंदिर में 21 बार मंत्र जपे। फिर घर में रात्रि में साधना करें ।
- पीतल के दीपक में घी का दीपक जलाएं। साधना करते समय रोज थोड़े से कच्चे आलू या शकरकंद रखें,और दूध और केले का प्रसाद रखें । दूसरे दिन सुबह आलू या शकरकंद किसी सूअर को खिला दें। दूध और केले का प्रसाद स्वयं ले और घर के लोगों को दे।
- माला रूद्राक्ष रक्तचंदन या कमलगट्टे की ले। इस तरह 21 दिन की साधना से यह मंत्र सिद्ध होता है।
- किस कार्य में उपयोग किया जाता है | जैसे नजर उतारना,झाड़ा लगाने और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करने में सक्षम है। जल या बताशे को मंत्र से अभिमंत्रित कर खिलाने से मैली विद्या का प्रभाव दूर होता है।
Other Versions of Shri Varahi Vartali Mantras
3.ॐ ह्रीं श्रीं नमो भगवती वाराही वैष्णवी सर्व तंत्रानुतंत्रम् छिन्द छिन्द भिंद भिंद सुआरोग्यम सुऐश्वर्यम सुबुद्धिम् देहि देहि परमेश्वरी चक्रधारिणीये श्रीं ह्रीं स्वाहा ।
4.ॐ व्हीं र्थीं वाराही देव्यै नमः
5.ॐ नमो भगवत्यै वाराहरूपिण्यै चतुर्दशभुवनाधिपायै वाराहियै भूपतित्वं में देही दापय स्वाहा।
6.ॐ ह्रीं नमो वाराही शत्रु स्तंभय ठः ठः फट्।।
7.ओम ह्रीं नमो वाराहि अघौरे स्वप्न दर्शय दर्शय ठ: ठ: स्वाहा ll
8.ॐ वाराहमुख्यै विदमहे दण्डनाथायै धीमहि तन्नौ वाराही देवी प्रचोदयात।
9.ॐ वाराहमुखी विदमहे आन्त्रासनी च धीमहि तन्नौ देवी प्रचोदयात
10.ॐ महिषध्वजायै विदमहे दंडनाथाय धीमहि तन्नौ वाराही देवी प्रचोदयात।