Das Mahavidya Shabar Mantra | दश महाविद्या शाबर मन्त्र

Das Mahavidya Shabar Mantra - दश महाविद्या शाबर मन्त्र

📅 Jul 4th, 2022

By Vishesh Narayan

Summary This is the Das Mahavidya Shabar Mantra of the ten Mahavidhyas, which have the ability to defeat all sins and bad karmas. By lighting a lamp of ghee or sesame oil in front of ten Mahavidya Yantras, the seeker will definitely solve his problems by doing at least 5 repetitions in Navratri for 9 days every day.


Das Mahavidya Shabar Mantra is derived from Nath Sampraday. Das Mahavidyas are a group of ten divine aspects of Shakti. Each Mahavidya has a different aspect and power related to it. Mahavidya simply means wisdom, revelation, or manifestation.

The Mahavidyas are considered Tantrik in nature and are usually identified as Kali, Tara, Tripura Sundari, Bhairavi, Bhuvaneshwari, Chhinnamasta, Bagalamukhi, Dhumavati, Matangi, and Kamla.

The ten Mahavidyas as a group are powerful. But, individually only a few can assert themselves of their own might. The characteristics of certain individual Mahavidya do not coordinate well with the group characteristics though the Mahavidyas are said to be emanations from Kali. The Mahavidya texts, however, hasten to explain that Mahavidyas are indeed a group; and, they all are emanations of the Devi.

It is said; that each of her Vidyas is great in its own right. The notions of superiority and inferiority among them should never be allowed to step in. All are to be respected alike. The differences among them are only in their appearances and dispositions. And yet they all reflect various aspects of the Devi.

The Procedure: Das Mahavidya Shabar Mantra

The Dash Mahavidya Shabar Mantras are derived from the Nath Sampraday. Sadhak after taking bath, after completing the process of asana purification, sits on a pure seat. Apply Bhasma, sandalwood as per your choice on the forehead, tie the crest, then face east and do Aachman four times for the purification of the element. At this time recite the following mantras-

साधना विधि

साधक स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें, शिखा बाँध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्त्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करें। इस समय निम्न मंत्रों को बोलें-

ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥

Om Aing Atmatattvam Shodhayami Namah Swaha.
Om Hreem Vidyatattvam Shodhayami Namah Swaha
Om Kleem Shivtattvam Shodhayami Namah Swaha.
Om Aing Hreem Kleem Sarvatattvam Shodhayami Namah Swaha

After that, by doing Pranayama, pay obeisance to the deities and gurus like Ganesha. Chant one rosary of Shapoddhar Mantra-

तत्पश्चात प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें। शापोद्धार मंत्र का एक माला जाप करे-

।। ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशागुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा ।।

। ॐ Hriṁ Klīṁ Śrīṁ Krāṁ Krīṁ Chaṇḍikadevīyai Shapnashagugraham Kuru Kuru Kuru Svaha.

Now chant a rosary of the Utkeelan Mantra-

अब उत्कीलन मंत्र का एक माला जाप करे-

।। ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं मंत्र चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा ।।

।। Oṁ Śrīm Klīm Hrīm Mantra Chaṇḍike utkeelanam kuru kuru Svaha.

Dhyan Mantra

ध्यान मंत्र:-

खड्गमं चक्रगदेशुषुचापपरिघात्र्छुलं भूशुण्डीम शिर: शड्ख संदधतीं करैस्त्रीनयना सर्वाड्ग भूषावृताम ।

नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवे महाकालीकां यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ॥

Das Mahavidya Sayujya Navarna Mantra

दसमहाविद्या सायुज्य नवार्ण मंत्र-

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं दसगुणात्मिकायै चामुंडायै प्रसीद प्रसीद दुर्गादेव्यै नमः॥

Om Aing Hreem Kleem Dasgunatmikayai Chamundayai Prasid Prasid Durgadevaya Namah.

जब ध्यान हो जाये तब दस महाविद्या सायुज्य नवार्ण मंत्र का नित्य 11 माला जाप 9 दिन रात्रिकालीन समय मे उत्तर मुखी बैठकर करे,आसन वस्त्र लाल रंग के हो। दस महाविद्या यंत्र को स्थापित करे और मंत्र जाप रुद्राक्ष माला से कर सकते हैं। इससे साधना के बाद नवार्ण मंत्र और दस महाविद्या मंत्रो मे पुर्ण सफलता प्राप्त होता है।

When meditation is done, chant the ten Mahavidya Sayujya Navarna Mantra daily,11 rounds of 9 days in the nighttime facing north.Prefer red color dress. Install Das Mahavidya Yantras and chant the mantra with Rudraksha Rosary. With this, complete success is achieved in the Navarna mantra and ten Mahavidya mantras after sadhana.

साथ मे काली तंत्र का एक विधान दे रहा हु जिसे आप इस साधना को करने के बाद करे तो महाकाली जी का आशिर्वाद विषेश रुप से प्राप्त होता है।

बाईस अक्षर का श्री दक्षिण काली मंत्र -

।। ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं स्वाहा ।।

विनियोग-
 

अस्य श्री दक्षिण मंत्रस्य भैरव ऋषी: |उस्णिक छंद : |
दक्षिण कलिका देवता |क्रीं बीजं |ह्रुं शक्ति : |क्रीं कीलकम |ममाभिस्ट सिध्यथर्ये जपे विनियोग : |

ऋषयादी न्यास -
 

ॐ भैरव ऋषये नमः शिरसी ||१ ||

उष्णिक छंद्से नमः मुखे ||२||

दक्षिण कलिका देवताये नमः ह्रदि ||३||

क्रीं बीजाय नमः गृहे ||४||

ह्रूं शक्तये नमः पादयो ||५||

क्रीं किलकाय नमः नाभौ ||६||

विनियोगाय नमः सर्वांगे ||७||

करन्यास -
 

ॐ क्राम आन्गुष्ठाभ्याम नमः ||१||

ॐ क्रीं तर्जनिभ्याम नमः ||२||

ॐ क्रूं मध्यमाभ्याम नमः ||३||

ॐ क्रें अनामिकभ्याम नमः ||४||

ॐ क्रों कनिष्ठकाभ्याम नमः ||५||

ॐ क्र: करतल कर्पुश्थाभ्याम नमः ||६||

ह्रद्यादी षडंग न्यास -
 

ॐ क्राम ह्रदयाय नमः ||१||

ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा ||२||

ॐ क्रुम शिखाये वष्ट ||३||

ॐ क्रेह कवचाय ह्रुं ||४||

ॐ क्रों नेत्रत्रयाय वौष्ट ||५||

ॐ क्र: अस्त्राय फट ||६||

वर्णमाला न्यास -
 

ॐ अं अँ ईं ऊं ऊं त्र लृम लृम नामोह्रदी ||१||

ॐ अं अई ओ औ अं अ: कं खं गे धं दक्षभुजे ||२||

ॐ दं चं छं जं झं गं थं ठं ड ढ नमो वामभूजे ||३||

ॐ ण तं थं दं धं नं पं फं लं भं नमो दक्ष पादे ||४||

ॐ मं यं रं लं वं शं षम सं हं क्षम नमो वामपादे ||५||

इस न्यास के बाद निचे दिए गए न्यास करे-
 

ॐ क्रीं नमः भ्रमरन्ध्रे ||१||

ॐ क्रीं नमः भ्रूमध्ये ||२||

ॐ क्रीं नमः ललाटे ||३||

ॐ ह्रीं नमः नाभो ||४||

ॐ ह्रीं नमः गृह्ये ||५||

ॐ ह्रुं नमः वक्ते ||६||

ॐ ह्रुं नमः गुवर्गे ||७||

ध्यान मंत्र -

।। ॐ स्धशीचछन्नसिर: कृपणंभयं हस्तेवरम बिभ्रती धोरास्याम सिर्शाम स्त्रजा सुरुचिरामुन्मुक्त केशावलिम || स्रुकास्रुक प्रव्हाम स्मशान निल्याम श्रुतयो: रावालंकृति श्रुतयो: सवालंकृतिम श्यामांगी कृतमेख्लाम शवकरेदेवीभजे कालिकाम ।।

इस तरह से ध्यान करके नीचे कर्म से दिये 10 महाविद्याओं के किसी एक मंत्र सिद्धि के लिए 9 दिन रात्रि काल मे नियमित 11 माला जाप करे।

After meditating in this way, for the accomplishment of any one mantra of the 10 Mahavidyas given below, chant 11 rosaries regularly during 9 days at the night time.

सोरठा

ॐ सोऽहं सिद्ध की काया, तीसरा नेत्र त्रिकुटी ठहराया । गगण मण्डल में अनहद बाजा।
वहाँ देखा शिवजी बैठा, गुरु हुकम से भितरी बैठा, शुन्य में ध्यान गोरख दिठा।
यही ध्यान तपे महेशा, यही ध्यान ब्रह्माजी लाग्या, यही ध्यान विष्णु की माया।
ॐ कैलाश गिरि से आई पार्वती देवी, जाकै सन्मुख बैठे गोरक्ष योगी
देवी ने जब किया आदेश । नहीं लिया आदेश, नहीं दिया उपदेश ।
सती मन में क्रोध समाई, देखु गोरख अपने माही,
नौ दरवाजे खुले कपाट, दशवे द्वारे अग्नि प्रजाले, जलने लगी तो पार पछताई।
राखी राखी गोरख राखी, मैं हूँ तेरी चेली, संसार सृष्टि की हूँ मैं माई ।
कहो शिव-शंकर स्वामीजी, गोरख योगी कौन है दिठा ।
यह तो योगी सबमें विरला, तिसका कौन विचार ।
हम नहीं जानत, अपनी करणी आप ही जानी । गोरख देखे सत्य की दृष्टि ।
दृष्टि देख कर मन भया उनमन, तब गोरख कली बिच कहाया ।
हम तो योगी गुरुमुख बोली, सिद्धों का मर्म न जाने कोई ।
कहो पार्वती देवीजी अपनी शक्ति कौन-कौन समाई।
तब सती ने शक्ति की खेल दिखाई, दश महाविध्या की प्रगटली ज्योति।

Mahavidya Mahakali Shabar Mantra

प्रथम ज्योति महाकाली प्रगटली

ॐ निरंजन निराकार अवगत पुरुष तत-सार, तत-सार मध्ये ज्योत, ज्योत मध्ये परम-ज्योत, परम-ज्योत मध्ये उत्पन्न भई माता शम्भु शिवानी काली ॐ काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वाहिनी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडग धारी, गले मुण्डमाला हंस मुखी । जिह्वा ज्वाला दन्त काली । मद्यमांस कारी श्मशान की राणी । मांस खाये रक्त पीवे । भस्मन्ती माई जहां पाई तहां लगाई। सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगन, नागों की नागन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली चार वीर अष्ट भैरों, घोर काली अघोर काली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, ॐ काली तुम बाला ना वृद्धा, देव ना दानव, नर ना नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली ।

मंत्र: क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।

Mahavidya Tara Shabar Mantra

द्वितीय ज्योति तारा त्रिकुटा तोतला प्रगटली

ॐ आदि योग अनादि माया जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया । ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कापलि, जहाँ पर ब्रह्मा-विष्णु-महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खड्ग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा । नीली काया पीली जटा, काली दन्त में जिह्वा दबाया । घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा । पंच मुख करे हां हां ऽऽकारा, डाकिनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया । चण्डी तारा फिरे ब्रह्माण्डी तुम तो हों तीन लोक की जननी ।

मंत्र : ॐ ह्रीं स्त्रीं फट्, ॐ ऐं ह्रीं स्त्रीं हूँ फट्।

Mahavidya Tripur Sundari Shabar Mantra

तृतीय ज्योति त्रिपुर सुन्दरी प्रगटली

ॐ निरञ्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्याः उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवधर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद । तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश । हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश । त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी । इडा पिंगला सुषम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी । उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला । योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता ।
मंत्र  श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः ॐ ह्रीं श्रीं कएईल ह्रीं हसकहल ह्रीं सकल ह्रीं सोः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं ।

Mahavidya Bhuvaneshwari Shabar Mantra

चतुर्थ ज्योति भुवनेश्वरी प्रगटली

ॐ आदि ज्योति अनादि ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत परम ज्योति मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, ॐ प्रातः समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी । बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्नपूर्णी दूध पूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे जोगी को अमर काया । चौदह भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार । योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता ।

मंत्र : ह्रीं

Mahavidya Chhinnamasta Shabar Mantra

पञ्चम ज्योति छिन्नमस्ता प्रगटली

सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया । काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द सूर में उपजी सुष्मनी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लिन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या । पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी । देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी । चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ट जती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने भाखी । छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्टन्ते आपो आप, जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे । काल ना खाये ।

मंत्र  श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्रवैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा।

Mahavidya Bhairavi Shabar Mantra

षष्टम ज्योति भैरवी प्रगटली

ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटा, गले में माला मुण्डन की । अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खंजर कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवें पाताल, सातवें पाताल मध्ये परम-तत्त्व परम-तत्त्व में जोत, जोत में परम जोत, परम जोत में भई उत्पन्न काल-भैरवी, त्रिपुर- भैरवी, समपत-प्रदा-भैरवी, कौलेश- भैरवी, सिद्धा-भैरवी, विध्वंशिनी-भैरवी, चैतन्य-भैरवी, कमेश्वरी-भैरवी, षटकुटा-भैरवी, नित्या-भैरवी, जपा-अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मन्त्र मत्स्येन्द्रनाथजी को सदा शिव ने कहायी । ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी अनन्त कोट सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हटे काल जंजाल भैरवी मन्त्र बैकुण्ठ वासा । अमर लोक में हुवा निवासा ।

मंत्र ॐ ह्सैं ह्स्क्ल्रीं ह्स्त्रौः

Mahavidya Dhumavati Shabar Mantra

सप्तम ज्योति धूमावती प्रगटली

ॐ पाताल निरंजन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आये, कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावन्ती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार आई थरै आकाश, विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश कलह कालरात्रि । डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी । जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाजा जीया आकाश तेरा होये । धूमावन्तीपुरी में वास, न होती देवी न देव तहा न होती पूजा न पाती तहा न होती जात न जाती तब आये श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथ आप भयी अतीत ।

मंत्र ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा ।

Mahavidya Baglamukhi Shabar Mantra

अष्टम ज्योति बगलामुखी प्रगटली

ॐ सौ सौ दुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पीला । संहासन पीले ऊपर कौन बसे । सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बसे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी । कच्ची-बच्ची-काक-कूतिया-स्वान-चिड़िया, ॐ बगला बाला हाथ मुद्-गर मार, शत्रु हृदय पर सवार तिसकी जिह्वा खिच्चै बाला । बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटण धरणी, अनन्त कोट सिद्धों ने मानी ॐ बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्दसुर फिरे खण्डे खण्डे । बाला बगलामुखी नमो नमस्कार ।

मंत्रॐ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन-बाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात् ।

Mahavidya Matangi Shabar Mantra

नवम ज्योति मातंगी प्रगटली

ॐ शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ओंकार, ओंकार मे शक्ति, शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर शशि अमीरस प्याला हाथ खड्ग नीली काया। बल्ला पर अस्वारी उग्र उन्मत्त मुद्राधारी, उद गुग्गल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य मांसे घृत कुण्डे सर्वांगधारी। बूँद मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते तृप्यन्ते। ॐ मातंगी, सुंदरी, रूपवन्ती, धनवन्ती, धनदाती, अन्नपूर्णी, अन्नदाती, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये । तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे ।

मंत्र ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा ।

Mahavidya Kamla Shabar Mantra

दसवीं ज्योति कमला प्रगटली

ॐ अयोनि शंकर ॐकार रूप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप । हाथ में सोने का कलश, मुख से अभय मुद्रा । श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा । देवी देवत्या ने किया जय ॐकार। कमला देवी पूजो केशर, पान, सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्र कमलों का किया हवन । कहे गोरख, मन्त्र जपो जाप जपो ऋद्धि-सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान । जिसकी तीन लोक में भया मान । कमला देवी के चरण कमल को आदेश ।

मंत्र : ॐ ह्रीं क्लीं कमला देवी फट् स्वाहा ।

सुनो पार्वती हम मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ नाती, हम शिव स्वरुप उलटी थापना थापी योगी का योग, दस विद्या शक्ति जानो, जिसका भेद शिव शंकर ही पायो । सिद्ध योग मर्म जो जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका । योगी योग नित्य करे प्रातः उसे वरद भुवनेश्वरी माता । सिद्धासन सिद्ध, भया श्मशानी तिसके संग बैठी बगलामुखी । जोगी खड दर्शन को
कर जानी, खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी । नाभी स्थाने उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में बैठी, छिन्नमस्ता रानी । ॐकार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी तारा बाला सुन्दरी । पाताल जोगन (कुंडलिनी) गगन को चढ़ी, जहां पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी । आलस मोड़े, निद्रा तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावन्ती करें । हंसा जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे । जो कमला देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे । जो दसविद्या का सुमिरण करे । पाप पुण्य से न्यारा रहे । योग अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन निवरते । मन्त्र पढ़े सो नर अमर लोक में जाये । इतना दस महाविद्या मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया । अनन्त कोट सिद्धों में, गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला, अचलगढ़ पर्वत पर बैठ श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने पढ़ कर सुनाया।

ये दसों महाविध्याओं के शाबर मंत्र है, जो सर्व पाप-ताप को हरने की क्षमता रखते है । दस महाविद्या यंत्र के सामने घी या तिल के तेल का दीपक जला कर आप इसका कम से कम 5 पाठ नवरात्र में  रोज 9 दिन तक करने से अवश्य आपकी समस्याओं का समाधान होगा ।

This is the Shabar Mantra of the ten Mahavidhyas, which have the ability to defeat all sins and bad karmas. By lighting a lamp of ghee or sesame oil in front of ten Mahavidya Yantras, the seeker will definitely solve his problems by doing at least 5 repetitions in Navratri for 9 days every day.

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