The Kalika Ganpati Mantra is said to invoke divine benefits from Lord Ganesha and Goddess Mahakali. The mantra is utilized to overcome challenges in life. The ritual helps you achieve accomplishments in a shorter amount of time.
Kali symbolizes the destructive power of time, the cycles of creation and destruction, and the need for destruction before new beginnings.
Kali's scary and beneficent qualities are inextricably linked. She is a terrible warrior who destroys evil, yet she is also the caring Divine Mother who protects and liberates her believers.
Ganesha is the remover of barriers, patron of arts and sciences, and god of intellect and wisdom. As the deity of beginnings, he is celebrated at the start of festivities.
Ganesha is Shiva and Parvati's son, and his form, especially his chariot in the shape of a rat, has profound symbolic implications relating to his intelligence, strength, and ability to control the mind and overcome obstacles.
This mantra calls upon Lord Ganesha's energy to eliminate barriers and bring clarity, success, and fulfillment. It's more than just asking; it's about matching your intentions with the divine flow.
Kalika Ganpati Mantra
Om Hreem Kreem Glaum Gleem Gaum Kalika Ganpatye Mam Sarvarth Sadhya Phat
श्री कालिकागणपति मन्त्र
"ॐ ह्रीं क्रीं ह्रीं ग्लौं ग्लीं गौं कालिकागणपतये मम् सर्वार्थ साधय फट्"।
Kalika Ganpati Stotra
श्रीकालिकागणपति स्तोत्रम्!!
~ध्यानम्~
सिन्दूराभं चतुर्भुजं त्रिनयनं रक्तोत्कटं भीषणम्।
पाशाङ्कुशधरं वराभयकरं रक्तप्रभं कालिकासङ्गिनम्॥
मुण्डमालाविभूषितं खट्वाङ्गकपालधरम्।
भजामि कालिकासार्धदेहं गजाननं गणेश्वरम्॥
मैं उस गजानन गणपति का ध्यान करता हूँ जो सिंदूरवर्ण हैं, चार भुजाएँ, तीन नेत्र वाले, रक्त के समान उग्र हैं, पाश और अंकुश धारण करते हैं, वर व अभयमुद्रा प्रदर्शित करते हैं, रक्तवर्ण प्रभा से युक्त हैं, कालिका के साथ स्थित हैं, मुण्डमाला धारण करते हैं, खट्वाङ्ग व कपाल धारण करते हैं, तथा कालिका देवी की शक्ति से संयुक्त हैं।
प्रथमं वन्दे गणनाथं सर्वसिद्धिप्रदायकम्।
क्लींकारं सर्वदेवानां वन्दे कालिकागणपतिम्॥१
मैं सर्वप्रथम गणनाथ को प्रणाम करता हूँ, जो सभी सिद्धियाँ देने वाले हैं, "क्लीं" बीजस्वरूप हैं और सभी देवताओं द्वारा वंदित हैं।
मुण्डासनस्थं महाकायं महाभूतनिवारकम्।
महाकालं महाशक्तं वन्दे कालिकागणपतिम्॥२
जो मुण्डासन पर विराजमान हैं, विशालकाय हैं, महाभूतों को नष्ट करने वाले हैं और महाकाल व महाशक्ति से युक्त हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
रक्तवर्णं महाकायं सर्वरक्तप्रियां प्रभुम्।
रक्तगलं रक्तनयनं वन्दे कालिकागणपतिम्॥३
जिनका वर्ण रक्तवत् है, शरीर विशाल है, जिन्हें रक्त प्रिय है, जिनका गला और नेत्र रक्त के समान लाल हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
नृत्यरतं महाकण्ठं महाशक्तिसमन्वितम्।
नृत्यनन्दिसहायं च वन्दे कालिकागणपतिम्॥४
जो नृत्यरत हैं, महाकण्ठ हैं, महाशक्ति से संयुक्त हैं और नृत्यनन्दिकेश्वर के सहचर हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
अट्टहासं प्रहसन्तं सर्वदिग्भेदनं प्रभुम्।
महाभीमं महोत्साहं वन्दे कालिकागणपतिम्॥५
जो अट्टहास करते हैं, जिनकी गर्जना से दिशाएँ विदीर्ण हो जाती हैं, जो भीषण और महोत्साही हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
गजवक्त्रं चण्डरूपं मुण्डमालाविभूषणम्।
सर्वलोकैकनाथं च वन्दे कालिकागणपतिम्॥६
जिनका मुख गज के समान है, रूप चण्ड है, मुण्डमाला से विभूषित हैं और समस्त लोकों के नाथ हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
सर्वविद्याप्रदं देवं सर्वसंपत्प्रदायकम्।
सर्वसौख्यकरं नित्यं वन्दे कालिकागणपतिम्॥७
जो सभी विद्याएँ प्रदान करते हैं, सभी संपत्तियाँ देते हैं और सदा सुख देने वाले हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
मायाविनाशनं नित्यं सर्वसत्यप्रकाशकम्।
सर्वशास्त्रमयं देवं वन्दे कालिकागणपतिम्॥८
जो माया का नाश करने वाले हैं, सत्य का प्रकाश करने वाले हैं और समस्त शास्त्रस्वरूप हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
सर्वलोकाधिपं नित्यं सर्वलोकप्रपूजितम्।
भुक्तिमुक्तिप्रदं देवं वन्दे कालिकागणपतिम्॥९
जो सभी लोकों के अधिपति हैं, सबके द्वारा पूजित हैं और भुक्ति-मुक्ति देने वाले हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
सर्वतन्त्रस्वरूपं च सर्वमन्त्रस्वरूपिणम्।
सर्वयन्त्रस्वरूपं च वन्दे कालिकागणपतिम्॥१०
जो सभी तन्त्र, मन्त्र और यन्त्र के स्वरूप हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
सर्वसिद्धिप्रदं नित्यं भक्तानुग्रहकारकम्।
सर्वरोगहरं देवं वन्दे कालिकागणपतिम्॥११
जो नित्य ही सभी सिद्धियाँ देने वाले हैं, भक्तों पर कृपा करने वाले हैं और रोगों का नाश करने वाले हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
भूतनाथं पिशाचनाशं दानवान्तकं रक्षकम्।
भक्तप्रियं कृपालुं च वन्दे कालिकागणपतिम्॥१२
जो भूतों के नाथ हैं, पिशाचों का नाश करते हैं, दानवों का अंत करते हैं, भक्तप्रिय व कृपालु हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
रक्तनेत्रं रक्तदंष्ट्रं करालवदनं प्रभुम्।
भक्ताभीष्टप्रदं नित्यं वन्दे कालिकागणपतिम्॥१३
जिनके नेत्र रक्तवत् हैं, दाँत लाल हैं, मुख कराल है और भक्तों की अभिलाषा पूरी करने वाले हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
सिंहवक्त्रं भैरवरूपं सर्वदेवप्रपूजितम्।
सर्वशत्रुनिवारकं वन्दे कालिकागणपतिम्॥१४
जिनका मुख सिंहवत् है, रूप भैरवरूप है, सभी देवता जिनकी पूजा करतेहैं, और जो शत्रुओं को नष्ट करते हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
शूलपाणिं खड्गहस्तं मुण्डमालाविभूषणम्।
खट्वाङ्गधरमित्येव वन्दे कालिकागणपतिम्॥१५
जिनके हाथ में शूल और खड्ग है, जो मुण्डमाला से विभूषित हैं और खट्वाङ्ग धारण किए हुए हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
रक्तपानप्रियां नित्यं भक्तसौख्यकरं प्रभुम्।
रक्तपात्रधरं शान्तं वन्दे कालिकागणपतिम्॥१६
जो रक्तपान में प्रिय हैं, भक्तों को सुख देने वाले हैं, रक्तपात्र धारण करने वाले और शान्त हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
चतुर्भुजं गजाननं रक्तवर्णं महोन्नतम्।
महाशक्तिसमन्वितं वन्दे कालिकागणपतिम्॥१७
चार भुजाओं वाले गजानन, रक्तवर्ण, ऊँचे स्वरूप वाले, महाशक्ति से युक्त।
हम उनकी वंदना करते हैं।
भूतप्रेतपिशाचनां नाशकं भयहारकम्।
भक्तानामभयं नित्यं वन्दे कालिकागणपतिम्॥१८
जो भूत-प्रेत-पिशाचों का नाश करने वाले हैं, भय को हरने वाले हैं और भक्तों को सदा अभय देने वाले हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
गजाननं महावीर्यं सर्वशत्रुनिवारकम्।
रक्तपुष्पमालाविभूषं च वन्दे कालिकागणपतिम्॥१९
गजानन, महावीर्यस्वरूप, शत्रुनाशक और रक्तपुषपमाला से विभूषित।हम उनकी वंदना करते हैं।
रक्तकण्ठं महादंष्ट्रं करालवदनं प्रभुम्।
सर्वलोकैकनाथं च वन्दे कालिकागणपतिम्॥२०
जिनका कण्ठ रक्तवत् है, दंष्ट्राएँ विशाल हैं, मुख कराल है और जो समस्त लोकों के नाथ हैं।हम उनकी वंदना करते हैं।
मुण्डमालाविभूषं च खट्वाङ्गधरमव्ययम्।
भक्तानामभयं नित्यं वन्दे कालिकागणपतिम्॥२१
जो मुण्डमाला से विभूषित हैं, खट्वाङ्ग धारण करते हैं और भक्तों को सदैव अभय देते हैं।हम उनकी वंदना करते हैं।
गजाननं महाशक्तिं सिद्धिविनायकं प्रभुम्।
कालिकासहितं नित्यं वन्दे कालिकागणपतिम्॥२२
गजानन, महाशक्ति-युक्त, सिद्धिविनायक और सदैव कालिका के साथ रहते हैं।हम उनकी वंदना करते हैं।
सर्वशास्त्रमयं देवं सर्वतत्त्वप्रकाशकम्।
भक्तानुग्रहकर्तारं वन्दे कालिकागणपतिम्॥
जो सभी शास्त्रों के सार हैं, सभी तत्त्वों का प्रकाश करते हैं और भक्तों पर कृपा करते हैं।
सर्वबन्धनविनाशकं च सर्वपापप्रणाशनम्।
सर्वसिद्धिप्रदं नित्यं वन्दे कालिकागणपतिम्॥२४
जो सब-बन्धन का विनाश करते हैं, पापों को नष्ट करते हैं और सभी सिद्धियाँ प्रदान करते हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
रक्तनेत्रं महाकण्ठं रक्तदंष्ट्रं भयङ्करम्।
रक्तपात्रधरं नित्यं वन्दे कालिकागणपतिम्॥२५
जिनके नेत्र रक्तवत् हैं, कण्ठ विशाल है, दंष्ट्राएँ भयंकर हैं और जो रक्तपात्र धारण करते हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
सर्वलोकैकनाथं च सर्वसौख्यप्रदायकम्।
भक्ताभीष्टप्रदं नित्यं वन्दे कालिकागणपतिम्॥२६
जो समस्त लोकों के नाथ हैं, सबको सुख देने वाले हैं और भक्तों की इच्छाएँ पूरी करते हैं।
हम उनकी वंदना करते हैं।
सर्वविद्याप्रदं नित्यं सर्वसिद्धिप्रदायकम्।
भक्तानामभयं शाश्वतं वन्दे कालिकागणपतिम्॥२७
जो सभी विद्याएँ और सिद्धियाँ देने वाले हैं और भक्तों को शाश्वत अभय देते हैं।हम उनकी वंदना करते हैं।
भूतप्रेतपिशाचनां नाशकं सर्वसाक्षिणम्।
सर्वतन्त्रस्वरूपं च वन्दे कालिकागणपतिम्॥२८
जो भूत-प्रेत-पिशाचों का नाश करने वाले, सर्वसाक्षी और सर्वतन्त्रस्वरूप हैं।हम उनकी वंदना करते हैं।
सर्वशास्त्रमयं देवं सर्वतन्त्रप्रकाशकम्।
भक्तानुग्रहकर्तारं वन्दे कालिकागणपतिम्॥२९
जो शास्त्रमय हैं, तन्त्रों के प्रकाशक हैं और भक्तों पर अनुग्रह करने वाले हैं।हम उनकी वंदना करते हैं।
कालिकासहितं नित्यं गजाननं गणेश्वरम्।
सर्वसौख्यकरं देवं वन्दे कालिकागणपतिम्॥३०
जो सदा कालिका के साथ स्थित गजानन गणेश्वर हैं और सबको सुख देने वाले देव हैं।हम उनकी वंदना करते हैं।
यः पठति श्रद्धया नित्यं भक्त्या संपूज्य विनायकम्।
तस्य सिद्धिर्भवेद्देवि कालिकासहितस्य हि॥
इस प्रकार यह कालिकागणपति स्तोत्र संपूर्ण हुआ। जो श्रद्धा और भक्ति से विनायक की पूजा करके इसे नित्य पाठ करता है, उसे देवी कालिका सहित गणपति की कृपा से सिद्धि प्राप्त होती है।
इति कालिकागणपतिस्तोत्रं संपूर्णम्।