Pratyangira Mala Mantra is a very effective mantra of the violent goddess Pratyangira. The mantra encloses the command to punish the enemies and the wrong-doers. The mantra extinguishes the enemy and avenges the enemy by transmitting the evil deeds done by the enemy back to the enemy's side. The mantra also reverses the Tantra.
Pratyangira Devi is the bold form of Bhadrakali. In the Shaiva tradition, devotees specifically feast on the Goddess Pratyangira as a Krutyas and also glorify her as Kali or Adarvana Bhadrakali.
'Prati' means to boomerang and 'Angiras' means attacking. Thus, the goddess Pratyangira reverses any black magic attacks. People portray her as the female energy and consort of Narasimha.
Some images portray her as dark-complexioned, terrible in aspect, with a lion's face, and reddened eyes, and riding a lion or wearing black garments. She also wears a garland of human skulls.
By cherishing Pratyangira Devi properly, a person obtains freedom from all sorrows and attains good fortune. The place where people honor Pratyangira Devi remains free from the fear of enemies.
Complete protection shields the place and the seeker. The seeker remains free from tantra, ghost, crematorium-bone-marrow, etc.
A suitable guru should be present while patiently doing the spiritual practice of Pratyangira since she is a cruel and fierce goddess. The seeker can also recite the 108 names of Pratyangira to get divine bliss.
Pratyangira Mala Mantra Benefits
प्रत्यंगिरा देवी महाशक्ति काली का महाघातक एवं विध्वंसकारी स्वरूप है। देवी प्रत्यंगिरा शत्रुदल का संहार करती हैं तथा शत्रुपक्ष द्वारा किये गये दुष्कृत्यों को वापिस शत्रुपक्ष की ओर भेजकर शत्रु को दण्डित करती हैं।
भगवती प्रत्यंगिरा के महानुष्ठान से शत्रु के पक्ष में गया हुआ धन या अधिकार पुनः प्राप्त होता है। शत्रुप्रहार, अग्निभय, ग्रहबाधा, भंयकर प्रेतबन्धन तथा अकाल मृत्यु जैसी विकट परिस्थितियों में यह विद्या सदैव अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। इनकी नियमित साधना से प्रबल दुर्भाग्य एवं दरिद्रता का विनाश एवं परम सौभाग्यागमन होता है।
बगलामुखी से तीव्र एवं घातक प्रयोग इस विद्या के हैं। इसलिये इनकी साधना में विशेष सावधानी एवं गुरुमार्गदर्शन अत्यावश्यक है। अगर प्रेतबाधा अथवा परप्रयोग अधिक बलवान है तो प्रारम्भ में ही इनके प्रयोग न करें। उग्र मंत्रप्रहार से कई बार प्रेतबाधा साधक के समक्ष कई संकट एवं व्याधियां उत्पन्न कर देती है।
ऐसे कई उत्पातों का मैं स्वयं साक्षी हूं। ऐसी विकट परिस्थिति में प्रेतबाधा की शक्ति का अनुमान लगाकर तत्पश्चात् साधनारम्भ करें। कृत्यापक्ष अत्यन्त प्रभावी होने की स्थिति में प्रारम्भ में शान्त एवं सौम्य मंत्रों का जप करें।
ऐसा करने से समस्या के निवारण में थोड़ा समय तो अधिक लग सकता है, परन्तु कोई अतिरिक्त हानि नहीं होती। परिस्थिति एवं कार्यानुसार ही उग्र मंत्रों का प्रयोग करना चाहिये ।
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीप्रत्यंगिरामंत्रस्य वामदेवऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमत्प्रत्यंगिरादेवता, ह्रीं बीजं, हूं शक्तिः, क्लीं कीलकं भगवती प्रत्यंगिरा प्रीत्यर्थ जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यास-
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं वामदेवऋषये नमः शिरसि।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रॅ हूं श्रीमत्प्रत्यंगिरादेवतायै नमः हृदि ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रॅ हूं ह्रीं बीजाय नमः गुह्येये ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं हूं शक्तये नमः पादयोः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं क्लीं कीलकाय नमः नाभौ ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
करन्यास -
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रॅ हूं प्रत्यंगिरे अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं मम शत्रून् तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं स्फारय-स्फारय मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं मारय मारय अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं फट् कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादिन्यास-
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं प्रत्यंगिरे हृदयाय नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं मम शत्रून् शिरसे स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं स्फारय-स्फारय शिखायै वषट्।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रॅ हूं स्फारय-स्फारय शिखायै वषट्।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं मारय मारय कवचाय हुम्।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रॅ हूं फट् नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं स्वाहा अस्त्राय फट् ।
Pratyangira Dhyan
ध्यानम्-
खड्गंकपालंडमरुंत्रिशूलं सम्बिभ्रति चन्द्रकलावतंसा।
पिंगोर्ध्व-केशासित-भीमद्रंष्ट्रा भूयाद्विभूत्या मम भद्रकाली ।।
मानसोपचारपूजनम्-
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रॅ हूं लं पृथिव्यात्कं गन्धं परिकल्पयामि ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं हं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं रं वह्न्यात्मकं दीपं दर्शयामि ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सदं तं समनात्मक नैबेटां निवेदयामि ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं सौ सर्वात्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि।
Pratyangira Mool Mantra
मूलमंत्र -
"ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रें हूं प्रत्यंगिरे मम शत्रून् स्फारय-स्फारय मारय मारय हूं फट् स्वाहा ।
" यह मंत्र सर्व शत्रुओं और परप्रयोगों का विनाश करने वाला है। परिस्थितिनुसार जप कर दशांश होम करें।
Viprit Pratyangira Mantra
विपरित - प्रत्यंगिरामंत्र-
"ॐ ऐं ह्रीं श्रीं प्रत्यंगिरे मम रक्ष रक्ष मम शत्रून् भंजय-भंजय फे हुं फट् स्वाहा |
यह मंत्र शत्रुदल का नाश करता है तथा शत्रु द्वारा भेजे गये कुप्रयोगों को वापिस के पास भेजकर उसे दण्डित करता है। अति आवश्यकता में इसका प्रयोग करें।
Pratyangira Gayatri Mantra
श्रीप्रत्यंगिरा गायत्री-
“ॐ प्रत्यंगिरायै विद्महे शत्रुनिषूदिन्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्।'
Pratyangira Mala Mantra
श्रीप्रत्यंगिरा मंत्रात्मकमाला महामंत्रस्तोत्रम् -
इस मालामंत्र के ऋषि भैरव, छन्द अनुष्टुप् और देवता कौशिकी (दुर्गा) हैं। इन्हें ही प्रत्यंगिरा कहा जाता है।
"ॐ नमः शिवाय सहस्रसूर्येक्षणाय ॐ ॐ अनादिरूपाय अनादिपुरुहूताय महामायाय महाव्यापिने महेश्वराय ॐ जगत् साक्षिणे संतापभूतव्यापिने महाघोराऽतिघोराय ॐ ॐ महाप्रभावं दर्शय-दर्शय ॐ हिलि-हिलि ॐ हन हन ॐ गिलि-गिलि ॐ मिलि-मिलि ॐ भूरि-भूरि विद्युज्जिहवे ज्वल-ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल धम-धम बन्ध-बन्ध मथ-मथ प्रमथ-प्रमथ विध्वंसय-विध्वंसय सर्वान् दुष्टान् ग्रस-ग्रस पिब- पिब नाशय-नाशय त्रासय-त्रासय भ्रामय-भ्रामय दारय-दारय द्रावय - द्रावय दर-दर विदुर - विदुर विदारय-विदारय रं रं रं रं रं रक्ष रक्ष त्वं मां रक्ष रक्ष हूं फट् " स्वाहा ।
ॐ ऐं ऐं हूं हूं रक्ष-रक्ष सर्वभूतभयोपद्रवेभ्यो महामेघौघ सर्वतोऽग्नि विद्युदर्क संवर्त कपर्दिनी दिव्यकणिकाम्भोरुह विकटपद्ममालाधारिणि सितिकण्ठाभ खट्वां कपालधृक् व्याघ्राजिनधृक् परमेश्वर प्रिये! मम शत्रून् छिन्धि-छिन्धि भिन्धि-भिन्धि विद्रावय-विद्रावय देवतापितृपिशाचचोरनागाऽसुरगण गन्धर्वकिन्नरविद्याधरयक्षराक्षसान् ग्रहांच स्तम्भय-स्तम्भय सपरिवारस्य मम शत्रवस्तान् सर्वान् निकृन्तय- निकृन्तय ये सर्वे ममोपरि अविद्यां कर्म कुर्वन्ति कारयन्ति तेषां बुद्धिर्घातयघातय तेषां रोमं कीलय - कीलय सर्वान् शत्रून् स्वाहा ।
ॐ ॐ विश्वमूर्ते महातेजसे ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां विद्यां स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा । ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां शिरमुखं स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां नेत्रं स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा। ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां हस्तौ स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा ।
ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां दन्तान् स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा। ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां जिह्वां स्तम्भय-स्तम्भय Page 1 कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा। ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां नाभिं स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा। ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां गुह्यं स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा ।
ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां पादौ स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा। ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां सर्वेन्द्रियाणि स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा । ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां कुटुम्बानि स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा । ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां स्थानं स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा । ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां ग्रामं स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा।
ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां मण्डलं स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां देशं स्तम्भय-स्तम्भय कीलय - कीलय हूं फट् स्वाहा। ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः मम शत्रूणां प्राणान् स्तम्भय-स्तम्भय कीलय कीलय हूं फट् स्वाहा । ॐ सर्वसिद्धि महाभागे ममात्मनः सपरिवास्य शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा।
ॐ ॐ हूं हूं फट् स्वाहा । ॐ हूं हूं हूं हूं हूं फट् स्वाहा । ॐ ॐ यं यं यं यं यं रं रं रं रं रं लं लं लं लं लं वं वं वं वं शं शं शं शं षं षं षं षं सं सं सं सं सं हं हं हं हं हं लं लं लं लं लं क्षं क्षं क्षं क्षं क्षं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं हूं हूं हूं हूं हूं फट् स्वाहा । ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः ॐ हूं हूं फट् स्वाहा । ॐ जूं सः फट् स्वाहा। ॐ नमो प्रत्यंगिरे ममात्मानः सपरिवारस्य शान्तिं रक्षां कुरु कुरु स्वाहा।
ॐ जः ॐ जः ॐ ठः ठः ॐ हूं हूं हूं हूं हूं ॐ हूं हूं फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवती दुष्टचाण्डालिनि त्रिशूलवज्रांकुशशक्तिधारिणी रुधिरमांसवसाभक्षिणी कपालखट्वांग धारिणी मम शत्रून् छेदय - छेदय दह- दह हन - हन पच-पच धम-धम मथ - मथ सर्वान् दुष्टान् ग्रस-ग्रस ॐ ॐ हूं हूं फट् स्वाहा । ॐ हूं हूं हूं हूं हूं फट् स्वाहा । ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं दंष्ट्राकरालिनी मम शत्रूणां कृत मंत्रतंत्रयंत्रप्रयोग विषचूर्ण शस्त्राद्यविचार सर्वोपद्रवादिकं येन कृतं कारितं कुरुते कारयन्ति करिष्यन्ति कारयिष्यन्ति तान् सर्वान् हन हन प्रत्यंगिरे ! त्वं ममात्मनः सपरिवारस्य रक्ष रक्ष ॐ हूं हूं हूं हूं हूं फट् स्वाहा । ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रॅ स्फ्रॅ हूं हूं फट् स्वाहा।
श्रीं स्स्फ्रॅ हूं हूं ब्रह्मी मम शरीरं रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रें स्फ्रें हूं हूं वैष्ण्वी मम शरीरं रक्ष-रक्ष हूं फट् स्वाहा। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रेंस्फ्रें हूं हूं माहेश्वरी मम शरीरं रक्ष-रक्ष हूं फट् स्वाहा। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रें स्फ्रॅ हूं हूं कौमारी मम शरीरं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा । ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रें स्फ्रें हूं हूं अपराजिता मम शरीरं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा । ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रें स्फ्रॅ हूं हूं वाराही मम शरीरं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा । ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्स्फ्रें हूं हूं नारसिंहि मम शरीरं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रॅ स्फ्रॅ हूं हूं चामुण्डा मम शरीरं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रें स्फ्रें हूं हूं प्रत्यंगिरे मम शरीरं सर्वतो सर्वांगं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रॅ स्फ्रें हूं हूं स्तम्भिनी मम शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय हुं फट् स्वाहा । ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रेंस्फ्रें हूं हूं मोहिनी मम शत्रून् मोहय मोहय हुं फट् स्वाहा । ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्स्फ्रॅहूं हूं क्षोभिणी मम शत्रून् क्षोभय-क्षोभय हुं फट् स्वाहा। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रॅ स्फ्रॅ हूं हूं द्राविणी मम शत्रून् द्रावय-द्रावय हुं फट् स्वाहा । ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रेंस्फ्रें हूं हूं जृम्भिणी मम शत्रून् जृम्भय-जृम्भय हुं फट् स्वाहा । ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रें स्फ्रें हूं हूं भ्रामिणी मम शत्रून् भ्रामय-भ्रामय हुं फट् स्वाहा । ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रेंस्फ्रें हूं हूं रौद्री मम शत्रून् रौद्रय-रौद्रय हुं फट् स्वाहा। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्फ्रेंस्फ्रें हूं हूं संहारिणी मम शत्रून् संहारय-संहारय हुं फट् स्वाहा।
Pratyangira Mala Mantra Vidhi
इस दुर्लभ विद्या को धारण करके तीनों कालों में जो एकाग्रचित्त होकर पाठ करता है, वह अपने अतिदुष्ट शत्रुओं को समाप्त कर देता है। महाभय उपस्थित होने पर, महाविपत्तिकाल में, घोरतम भय होने पर इस विद्या से रक्षा करनी चाहिये, त्रिकाल समय पाठ करने वाले साधक को कोई भय नहीं रहता ।
भक्त इस मृत्युलोक में समस्त कामनाओं की पूर्ति कर लेता है, इस विद्या का अष्टोत्तर जप करने से सिद्धि होती है, महासिद्धि के लिये 11 हजार पाठ करें। वह साधक सिद्धिश्वर हो जाता है। शरद् काल के नवरात्र में, अष्टमी की महानिशा के समय उपासना करने से भगवती प्रत्यंगिरा अवश्य सिद्धि प्रदान करती है ।
मूलमंत्र से रात्रिकाल में हवन करना चाहिये, ऐसा करने से भगवती काली एक वर्ष में सुसिद्ध हो जाती है। कालीमरीच, धान का लावा, नमक तथा सरसों मिलाकर होम करने सेमारण प्रयोग किया जाता है तथा महासंकट तथा अर्नेको रोगों का विनाश होता है।
पुष्पार्चन में भुक्ति, मुक्ति और शान्ति के लिये श्वेत पुष्प, आकर्षण - वशीकरण में रक्तपुष्प, स्तम्भनादि के लिये पीतपुष्प और उच्चाटन तथा मारण कर्म में काले पुष्पों का प्रयोग करना चाहिये ।
पाठ समर्पणम्- हाथ में जल लेकर भगवती के बायें हाथ में जप समर्पण करें:-
अनेन पाठाख्येन श्रीप्रत्यंगिरादेवता प्रीतयां नमम् ।
प्रार्थना एवं क्षमायाचना दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करें
यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्। तत्सर्वं क्षम्यतां देवी प्रसीद परमेश्वरी ।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं विधिहीनं च यद्भवेत्। तत्सर्वं क्षम्यतां देवी प्रसीद परमेश्वरी ।।
पापोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसंभवः त्राहि मां प्रत्यांगिरादेवि ! सर्वपापहरा भव ।।
भगवती काली के मन्दिर या श्मशान में विधिवत् जप तथा होम करने से त्वरित लाभ होता है। श्मशान साधना केवल उच्चकोटि के साधकों के लिये कही गयी है ।