Tara Mahavidya Dhyan and Mantra is an article depicting the resemblance and mantra of Mahavidya Tara. Tara means rescuer is the second of Dasa Mahavidyas.
Mainly Tara is a form of Durga or Parvati. Tara is the Sakti who ferries her devotees across the worldly ocean. She protects her devotees from Daihika (relating to body), Daivika (relating to destiny), and Bhautika (relating to worldly affairs).
She is the most benevolent mother who constantly liberates the distressed souls, wandering in many Yonis or life forms. Tara is described as a giver of siddhis (supernatural powers), a rescuer from all troubles.
Tara is a granter of all desires and rewards, including ultimate knowledge and moksha (salvation).
The Tantra regards Tara as potent as Kali. Tara also figures in Jainism.
In Vaishnava lore, Tara was one of the goddesses who fought along with Durga to defeat the thousand-headed Ravana.
She is Tarini, deliverer or savior, one who saves guides, and transports to salvation. Tara is the deity of accomplishments and is often propitiated by business persons for success.
Her worship is also prescribed for those who wish to defeat their foes & acquire abundance. Her worship is also prescribed for those who wish to gain gold & money in life.
Tara Mahavidya Dhyan and Mantra
"Pratyaaleedd Padaaarpitaam-ghrishavhrid Ghoraattahaasaa Paraaa.
Khadagendeevarkartri Kharparbhujaa Hoonkaarbeejodbhavaa.
Kharvaaneel Vishaalapingal Jataajooteikanaageiryutaa.
Jaadayam Nyasya Kapaalike Trijagataam Hantyugrataaraa Swayam".
Tara is described as seated in the pratyalidha asana, on the heart of a corpse, supreme, laughing, holding clever, blue lotus, dagger, and bowl, uttering the mantra Hum, colored blue, her hair braided with serpents, the Ugratara. She bestows all supernatural powers.
तारा मंत्र
ऐं ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्
Aing Om Hreem Streem Hum Phat
Mahavidya TARA Shatnaam Stotra -108 Names of Mahavidya Tara
गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए | देवी अज्ञान रुपी शव पर विराजती हैं और ज्ञान की खडग से अज्ञान रुपी शत्रुओं का नाश करती हैं | लाल व नीले फूल और नारियल चौमुखा दीपक चढाने से देवी होतीं हैं प्रसन्न देवी के भक्त को ज्ञान व बुद्धि विवेक में तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पता!
माँ तारा की कृपा से साधक प्राण ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त करता है | देवी की मूर्ती पर रुद्राक्ष चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है | महाविद्या तारा के मन्त्र से होता है बड़े से बड़े दुखों का नाश देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र है |
1. बिल्व पत्र, भोज पत्र और घी से हवन करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है
2.मधु. शर्करा और खीर से होम करने पर वशीकरण होता है |
3.घृत तथा शर्करा युक्त हवन सामग्री से होम करने पर आकर्षण होता है।
4. काले तिल व खीर से हवन करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है।
विशेष पूजा सामग्रियां-पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है
सफेद या नीला कमल का फूल चढ़ाना
रुद्राक्ष से बने कानों के कुंडल चढ़ाना
अनार के दाने प्रसाद रूप में चढ़ाना
शंख को देवी पूजा में रखना
भोजपत्र पर ह्रीं लिख करा चढ़ाना
दूर्वा,अक्षत,रक्तचंदन,पंचगव्य,पञ्चमेवा व पंचामृत चढ़ाएं
यह विद्या साधकों को बुद्धि, ज्ञान, शक्ति, जय एवं श्री देने वाली तथा भय, मोह एवं अपमृत्यु का निवारण करने वाली मानी गयी हैं।
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्ववस्थां गतोऽपि वा | य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि: ||
इस पानी को अपने उपर छिड्क ले | अचमन, स्थान शुद्धि, आदि करने के बाद गणपति और गुरु की पुजा शुरु करे।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः ॥
प्रत्यालीढ पदार्पितांगघ्रिशवहृद घोराट्टहासा परा,खडगेन्दीवरकर्तृं खर्परभुजा हूंकार-बीजोद-भवा खर्वानील
विशालपिंगल जटा जूटैकनागैर्युता,जाड्य न्यस्य कपालिके त्रिजगतां हन्त्युग्रतारास्वयम
सीधे हाथ मे जल लेकर कहे -
‘ॐ अस्य श्रीतारांमन्त्रस्य अक्षोभ्यऋषिः बृहतीछन्दः तारादेवता ह्रीं बीजं हुं शक्तिः आत्मनोऽभीष्टसिद्धयर्थ तारामन्त्रजपे विनियोगः ।
जल छोड दे
फिर करन्यास और अन्य न्यास को करने के बाद मे नीचे लिखा प्रक्रिया करे।
ऋष्यादिन्यास -
‘ॐ अक्षोभ्यऋषये नमः शिरसि
ॐ बृहतीछन्दसे नमः मुखे,
ॐ तारादेवतायै नमः हृदि,
ॐ ह्रीं (हूँ) बीजाय नमः गुह्ये,
ॐ हूँ (फट्) शक्तये नमः पादयोः
ॐ स्त्रीं कीलकाय नमः सर्वाङ्गे
कराङ्गन्यास -
ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः,
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्या नमः,
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः,
ॐ ह्रैं अनकामिकाभ्यां नमः,
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः,
मुल मंत्र
“ॐ ह्रीं स्त्री हुं फट”
की 39 माला रोज करें। घी के दीपक से आरती करें जो भी कर सकते हैं चाहे अम्बे की करें फिर नमस्कार करें और कहे।
ॐ गुह्यातिगुह्या गोप्ती त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम,सिद्धिर्भवतु मे महादेवी त्वत प्रसादान्देवी
मंत्र जप समाप्ति पर साधक साधना कक्ष में ही सोयें।
सभी सामन को पुजा वाले कपडे मे लपेट कर कलवा से बांध कर नदी में प्रवाहित कर दें। । कुछ सिक्के भी पानी मे डाल दे। हाथ जोडकर घर आये किसी से बात ना करें और पीछे मुडकर ना देखे तो ज्यादा अच्छा हैं।
वरना प्रभाव कम हो जाता हैं। घर पहुँचते ही साधना सिद्धि हो चुकी होगी। धन पाने के नये मार्ग स्वयं माँ खोलती जायेगी इसके अलावा आपके स्वास्थ, बुद्धि, वाणी का ध्यान रखेगी |
साधना के दौरान थोड़ी भयावह स्थिति बन सकती है, पदचाप सुनाई दे सकती है, साधना से उच्चाटन हो सकता है, तीव्र ज्वर और तीव्र दर्द का अनुभव हो सकता है परन्तु साधक यदि इन् स्थितियों को पार कर लेता है तो उसे स्वयं ही धीरे धीरे उपरोक्त लाभ प्राप्त होने लगते हैं |
साधना काल के दौरान आपको कुछ आश्चर्य जनक अनुभव हो सकते हैं, पर इनसे न परेशान या बिचलित न हो , ये तो साधना सफलता के लक्षण हैं |