Shri Rama Stotra is the heavenly praise of Lord Rama by Jataayu. Jataayu was a demi-god who has the form of a vulture. He was the younger son of Aruṇa and his wife Shyeni, the brother of Sampati, as well as the nephew of Garuda and an old friend of Dasharatha.
Jatayu was the first person who endeavored to retrieve Sita from the clutches of Ravana while he was taking her to Lanka. He battled valiantly with Ravana. However, Ravana shortened his wings and harshly wounded him. Even as Jatayu was combating life, he managed to report to Lord Rama about Sita's kidnapping.
Although Jatayu was a courageous bird, which is depicted as an enormous figure. The bird's profile is majestically rendered with his sharp beak, deadly talons, and a steady gaze focussed on his enemy.
After hearing His praise, Lord Rama told Jataayu that whosoever will read or write this Stotra, will get Moksha or Liberation. The seeker will be loved by Lord Vishnu always.
Jataayu Kritam Shri Rama Stotram Meaning
जटायुकृतं रामस्तोत्रम्
जटायुरुवाचget
अगणितगुणमप्रमेयमाद्यं सकलजगत्स्थितिसंयमादिहेतुम् ।
उपरमपरमं परात्मभूतं सततमहं प्रणतोऽस्मि रामचन्द्रम् ॥ १॥
jat'aayuruvaacha
aganitagunamaprameyamaadyam sakalajagatsthitisamyamaadihetum .
uparamaparamam paraatmabhootam satatamaham pranato'smi raamachandram .. 1..
जटायु बोला – जो अगणित गुणशाली हैं, अप्रमेय हैं, जगत्के आदि कारण हैं तथा उसकी स्थिति और लय आदिके हेतु हैं, उन परम शान्तस्वरूप परमात्मा श्रीरामचन्द्रजीकी मैं निरन्तर वन्दना करता हूँ ॥ १ ॥
निरवधिसुखमिन्दिराकटाक्षं क्षपितसुरेन्द्रचतुर्मुखादिदुःखम् ।
नरवरमनिशं नतोऽस्मि रामं वरदमहं वरचापबाणहस्तम् ॥ २॥
niravadhisukhamindiraakat'aaksham kshapitasurendrachaturmukhaadiduh'kham .
naravaramanisham nato'smi raamam varadamaham varachaapabaanahastam .. 2..
जो असीम आनन्दमय और श्रीकमलादेवीके कटाक्षके आश्रय हैं तथा जो ब्रह्मा और इन्द्र आदि देवगणोंका दुःख दूर करनेवाले हैं, उन धनुष-बाणधारी वरदायक नरश्रेष्ठ श्रीरामचन्द्रजीको मैं अहर्निश प्रणाम करता हूँ ॥ २ ॥
त्रिभुवनकमनीयरूपमीड्यं रविशतभासुरमीहितप्रदानम् ।
शरणदमनिशं सुरागमूले कृतनिलयं रघुनन्दनं प्रपद्ये ॥ ३॥
tribhuvanakamaneeyaroopameed'yam ravishatabhaasurameehitapradaanam .
sharanadamanisham suraagamoole kri'tanilayam raghunandanam prapadye .. 3..
जो त्रिलोकीमें सबसे अधिक रूपवान् हैं, सबके स्तुत्य हैं, सैकड़ों सूर्योंके समान तेजस्वी हैं तथा वाञ्छित फल देनेवाले हैं, उन शरणप्रद और रागाश्रित हृदयमें रहनेवाले श्रीरघुनाथजीको मैं अहर्निश प्रणाम करता हूँ ॥ ३ ॥
भवविपिनदवाग्निनामधेयं भवमुखदैवतदैवतं दयालुम् ।
दनुजपतिसहस्रकोटिनाशं रवितनयासदृशं हरिं प्रपद्ये ॥ ४॥
bhavavipinadavaagninaamadheyam bhavamukhadaivatadaivatam dayaalum .
danujapatisahasrakot'inaasham ravitanayaasadri'sham harim prapadye .. 4..
जिनका नाम संसाररूप वनके लिये दावानलके समान है, जो महादेव आदि देवताओंके भी पूज्य देव हैं तथा जो सहस्रों करोड़ दानवेन्द्रोंका दलन करनेवाले और श्रीयमुनाजीके समान श्यामवर्ण हैं, उन दयामय श्रीहरिको मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ४ ॥
अविरतभवभावनातिदूरं भवविमुखैर्मुनिभिः सदैव दृश्यम् ।
भवजलधिसुतारणाङ्घ्रिपोतं शरणमहं रघुनन्दनं प्रपद्ये ॥ ५॥
aviratabhavabhaavanaatidooram bhavavimukhairmunibhih' sadaiva dri'shyam .
bhavajaladhisutaaranaanghripotam sharanamaham raghunandanam prapadye .. 5..
जो संसारमें निरन्तर वासना रखनेवालोंसे अत्यन्त दूर हैं और संसारसे उपराम मुनिजनोंके सदेव दृष्टिगोचर रहते हैं तथा जिनके चरणरूप पोत (जहाज) संसारसागरसे पार करनेवाले हैं, उन रघुनाथजीकी मैं शरण लेता हूँ॥ ५ ॥
गिरिशगिरिसुतामनोनिवासं गिरिवरधारिणमीहिताभिरामम् ।
सुरवरदनुजेन्द्रसेविताङ्घ्रिं सुरवरदं रघुनायकं प्रपद्ये ॥ ६॥
girishagirisutaamanonivaasam girivaradhaarinameehitaabhiraamam .
suravaradanujendrasevitaanghrim suravaradam raghunaayakam prapadye .. 6..
जो श्रीमहादेव और पार्वतीजीके मन-मन्दिरमें निवास करते हैं, जिनकी लीलाएँ अति मनोहारिणी हैं तथा देव और असुरपतिगण जिनके चरणकमलोंकी सेवा करते हैं, उन गिरिवरधारी सुखदायक रघुनायककी मैं शरण लेता हूँ॥ ६॥
परधनपरदारवर्जितानां परगुणभूतिषु तुष्टमानसानाम् ।
परहितनिरतात्मनां सुसेव्यं रघुवरमम्बुजलोचनं प्रपद्ये ॥ ७॥
paradhanaparadaaravarjitaanaam paragunabhootishu tusht'amaanasaanaam .
parahitanirataatmanaam susevyam raghuvaramambujalochanam prapadye .. 7..
जो परधन और परस्त्रीसे सदा दूर रहते हैं तथा पराये गुण और परायी विभूतिको देखकर प्रसन्न होते हैं, उन निरन्तर परोपकारपरायण महात्माओंसे सुसेवित कमलनयन श्रीरघुनाथजीकी मैं शरण लेता हूँ ॥ ७ ॥
स्मितरुचिरविकासिताननाब्जमतिसुलभं सुरराजनीलनीलम् ।
सितजलरुहचारुनेत्रशोभं रघुपतिमीशगुरोर्गुरुं प्रपद्ये ॥ ८॥
smitaruchiravikaasitaananaabjamatisulabham suraraajaneelaneelam .
sitajalaruhachaarunetrashobham raghupatimeeshagurorgurum prapadye .. 8..
जिनका मुखकमल मनोहर मुसकानसे विकसित हो रहा है, जो भक्तोंके लिये अति सुलभ हैं, जिनके शरीरकी कान्ति इन्द्रनीलमणिके समान सुन्दर नीलवर्ण है तथा जिनके मनोहर नेत्र श्वेत कमलकी-सी शोभावाले हैं, उन श्रीगुरु महादेवजीके परम गुरु श्रीरघुनाथजीकी मैं शरण लेता हूँ ॥ ८ ॥
हरिकमलजशम्भुरूपभेदात्त्वमिह विभासि गुणत्रयानुवृत्तः ।
रविरिव जलपूरितोदपात्रेष्वमरपतिस्तुतिपात्रमीशमीडे ॥ ९॥
harikamalajashambhuroopabhedaattvamiha vibhaasi gunatrayaanuvri'ttah' .
raviriva jalapooritodapaatreshvamarapatistutipaatrameeshameed'e .. 9..
हे प्रभो ! जलसे भरे हुए पात्रोंमें जैसे एक ही सूर्य प्रतिबिम्बित होता है वैसे ही सत्त्व, रज -इन तीनों गुणोंकी वृत्तिके कारण आप ही विष्णु, और ब्रह्मा, महादेव रूपसे भासित होते हैं। हे ईश ! आप देवराज इन्द्रकी भी स्तुतिक पात्र हैं, मैं आपकी स्तुति करता हूँ ॥ ९ ॥
रतिपतिशतकोटिसुन्दराङ्गं शतपथगोचरभावनाविदूरम् ।
यतिपतिहृदये सदा विभातं रघुपतिमार्तिहरं प्रभुं प्रपद्ये ॥ १०॥
ratipatishatakot'isundaraangam shatapathagocharabhaavanaavidooram .
yatipatihri'daye sadaa vibhaatam raghupatimaartiharam prabhum prapadye .. 10..
आपका दिव्य शरीर सैकड़ों करोड़ कामदेवोंसे भी सुन्दर है, सैकड़ों मार्गोंमें फँसे हुए लोगोंसे आप अत्यन्त दूर हैं और यतीश्वरोंके हृदयमें आप सदा ही भासमान हैं। ऐसे आप आत्तिहर प्रभु रघुपतिकी मैं शरण लेता हूँ ॥ १० ॥
इत्येवं स्तुवतस्तस्य प्रसन्नोऽभूद्रघूत्तमः ।
उवाच गच्छ भद्रं ते मम विष्णोः परं पदम् ॥ ११॥
ityevam stuvatastasya prasanno'bhoodraghoottamah' .
uvaacha gachchha bhadram te mama vishnoh' param padam .. 11..
जटायुके इस प्रकार स्तुति करनेपर श्रीरघुनाथजी उसपर प्रसन्न होकर बोले— 'जटायो ! तुम्हारा कल्याण हो, तुम मेरे परमधाम विष्णुलोकको जाओ' ॥ ११ ॥
शृणोति य इदं स्तोत्रं लिखेद्वा नियतः पठेत् ।
स याति मम सारूप्यं मरणे मत्स्मृतिं लभेत् ॥ १२॥
shri'noti ya idam stotram likhedvaa niyatah' pat'het .
sa yaati mama saaroopyam marane matsmri'tim labhet .. 12..
जो पुरुष मेरे इस स्तोत्रको एकाग्रचित्तसे सुने, लिखे अथवा पढ़े, वह मेरा सारूप्य-पद प्राप्त करता है और मरते समय उसे मेरा स्मरण होगा ॥ १२ ॥
इति राघवभाषितं तदा श्रुतवान् हर्षसमाकुलो द्विजः ॥
रघुनन्दनसाम्यमास्थितः प्रययौ ब्रह्मसुपूजितं पदम् ॥ १३॥
iti raaghavabhaashitam tadaa shrutavaan harshasamaakulo dvijah' ..
raghunandanasaamyamaasthitah' prayayau brahmasupoojitam padam .. 13..
पक्षिराज जटायुने रघुनाथजीका यह कथन बड़े हर्षसे सुना और उन्हींके समान रूप धारणकर ब्रह्मा आदि लोकपालोंसे पूजित परमधामको चला गया ॥ १३ ॥
॥ इति श्रीमदध्यात्मरामायणे अरण्यकाण्डेऽष्टमे
सर्गे जटायुकृतं श्रीरामस्तोत्र ॥