Sage Vyasa disclosed the Krishna Kavach, which emanates from Brahmand Purana and is extremely influential. Sage Vyasa disclosed the Kavach. The name Brahmand Pavan Krishna Kavach is also associated with the Kavach.
Lord Krishna receives reverence as the eighth avatar of the god Vishnu and also as the supreme God in his own right.
Lord Krishna is the god of compassion, tenderness, and love in Hinduism and is one of the most popular and widely revered among Indian divinities.
Lord Krishna is a complete God with all the Shodash Kalas or Degrees. Lord Krishna has played all the ‘Leelas’, which entertains all of His devotees.
The Brahmand pavan Mantra is also a powerful mantra. However, a competent guru should be the one to give the mantra.
Brahmand Pavan Krishna Mantra
'ॐ नमो भगवते रासमण्डलेशाय स्वाहा'
यह पोशाक्षर मन्त्र उपासकों के लिये कल्पवृक्ष-स्वरूप है। इसी का उपदेश वसिष्ठजीने दिया था । पूर्वकालमें श्रीहरि के पुष्कर धाम में ब्रह्माजी ने कुमार को यह मन्त्र दिया था तथा श्रीकृष्ण ने गोलोक में भगवान् शंकरको इसका ज्ञान प्रदान किया था।
यहाँ भगवान् विष्णुके वेदवर्णित स्वरूपका ध्यान किया जाता है, जो सनातन एवं सबके लिये परम दुर्लभ है । पूर्वोक्त मूल मन्त्रसे उत्तम नैवेद्य आदि सभी उपचार समर्पित करने चाहिये ।
भगवान्का जो कवच है, वह अत्यन्त गुप्त है। उसे मैंने अपने पिताजीके मुखसे सुना था । विप्रवर ! पूर्वकाल में त्रिशूलधारी भगवान् शंकरने ही पिताजीको गङ्गाके तटपर इसका उपदेश दिया था। भगवान् शंकरको ब्रह्माजीको तथा धर्मको गोलोकके रासमण्डलमें गोपीवल्लभ श्रीकृष्णने कृपापूर्वक यह परम अद्भुत कवच प्रदान किया था ।
Brahmand Pavan Krishna Kavach Meaning
ब्रह्माण्डपावन श्रीकृष्ण कवच
ब्रह्मोवाच
नाम राधाकान्त महाभाग कवचं यत् प्रकाशितम् ।
ब्रह्माण्डपावनं कृपया कथय प्रभो ॥
मां महेशं च धर्मं च भक्तं च भक्तवत्सल ।
स्वव्प्रसादेन पुत्रेभ्यो दास्यामि भक्तिसंयुतः ॥
ब्रह्मोवाच
ब्रह्माजी बोले- महाभाग ! राधावल्लभ ! प्रभो ! ब्रह्माण्डपावन नामक जो कवच आपने प्रकाशित किया है, उसका उपदेश कृपापूर्वक मुझको, महादेवजीको तथा धर्मको दीजिये । भक्तवत्सल ! हम तीनों आपके भक्त हैं। आपकी कृपासे मैं अपने पुत्रोंको भक्तिपूर्वक इसका उपदेश दूँगा ॥
श्रीकृष्ण उवाच
शृणु वक्ष्यामि ब्रह्मेश धर्मेंदं कवचं परम् । अहं दास्यामि युष्मभ्यं गोपनीयं सुदुर्लभम् ॥ १९ ॥
यस्मै कस्मै न दातव्यं प्राणतुल्यं ममैव हि । यत्तेजो मम देहेऽस्ति तत्तेजः कवचेऽपि च ॥ २० ॥
श्रीकृष्णने कहा— ब्रह्मन् ! महेश्वर ! और धर्म ! तुमलोग सुनो ! मैं इस उत्तम कवचका वर्णन कर रहा हूँ। यद्यपि यह परम दुर्लभ और गोपनीय है तथापि तुम्हें इसका उपदेश दूँगा । परंतु ध्यान रहे, जिस किसीको भी इसका उपदेश नहीं देना चाहिये; क्योंकि यह मेरे लिये प्राणोंके समान है। जो तेज मेरे शरीरमें है, वही इस कवचमें भी है ॥
कुरु सृष्टिमिमं धृत्वा धाता त्रिजगतां भव । संहर्त्ता भव हे शम्भो मम तुल्यो भवे भव ॥
हे धर्म त्वमिमं धृत्वा भव साक्षी च कर्मणाम् । तपसां फलदाता च यूयं भवत मद्वरात् ॥
ब्रह्मन् ! तुम इस कवचको धारण करके सृष्टि करो और तीनों लोकोंके विधाताके पदपर प्रतिष्ठित रहो । शम्भो ! तुम भी इस कवचको ग्रहण करके संहारका कार्य सम्पन्न करो और संसारमें मेरे समान शक्तिशाली हो जाओ । धर्म ! तुम इस कवचको धारण करके कर्मोंके साक्षी बने रहो । तुम सब लोग मेरे वरसे तपस्याके फलदाता हो जाओ ॥ २१-२२॥
कवचस्य हरिः स्वयम् । ब्रह्माण्डपावनस्यास्य ऋषिश्छन्दश्च गायत्री देवोऽहं जगदीश्वरः ॥ २३ ॥
धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः ।
त्रिलक्षवारपठनात् सिद्धिदं कवचं
इस ब्रह्माण्डपावन कवचके स्वयं श्रीहरि ऋषि हैं, गायत्री छन्द हैं, मैं जगदीश्वर श्रीकृष्ण ही देवता हूँ तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्षकी सिद्धिके लिये इसका विनियोग* कहा गया है। विधे ! तीन लाख बार पाठ करनेपर यह कवच सिद्धिदायक होता है ।।
इस कवचका विनियोगवाक्य संस्कृत में इस प्रकार है
ॐ अस्य श्रीब्रह्माण्डपावनकवचस्य साक्षात् श्रीहरिः ऋषिः, गायत्री
छन्दः स एव जगदीश्वरः श्रीकृष्णो देवता धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः ।
यो भवेत् सिद्धकवचो मम तुल्यो भवेत्तु सः । तेजसा सिद्धियोगेन ज्ञानेन विक्रमेण च ॥
जो इस कवचको सिद्ध कर लेता है, वह तेज, सिद्धियोंके योग, ज्ञान और बल-पराक्रममें मेरे समान हो जाता है।
प्रणवो मे शिरः पातु नमो रासेश्वराय च । भालं पायानेत्रयुग्मं नमो राधेश्वराय च ॥
प्रणव (ओंकार ) मेरे मस्तककी रक्षा करे, 'नमो रासेश्वराय' ( रासेश्वरको नमस्कार है ) । यह मन्त्र मेरे ललाटका पालन करे । 'नमो राधेश्वराय' (राधापतिको नमस्कार है ) । यह मन्त्र दोनों नेत्रोंकी रक्षा करे ।
कृष्णः पायात् श्रोत्रयुग्मं हे हरे घ्राणमेव च । जिह्विकां वह्निजाया तु कृष्णायेति च सर्वतः ॥
'कृष्ण' दोनों कानोंका पालन करें । 'हे हरे' यह नासिकाकी रक्षा करे । 'स्वाहा' मन्त्र जिह्वाको कष्टसे बचावे ।
श्रीकृष्णाय स्वाहेति च कण्ठं पातु षडक्षरः ।
ह्रीं कृष्णाय नमो वक्त्रं क्लीं पूर्वंश्च भुजद्वयम् ॥
'कृष्णाय स्वाहा' यह मन्त्र सत्र ओरसे हमारी रक्षा करे । 'श्रीकृष्णाय स्वाहा' यह षडक्षर मन्त्र कण्ठको कष्टसे बचावे । 'ह्रीं कृष्णाय नमः' यह मन्त्र मुखकी तथा 'क्लीं कृष्णाय नमः ? यह मन्त्र दोनों भुजाओंकी रक्षा करे ।
नमो गोपाङ्गनेशाय स्कन्धावष्टाक्षरोऽवतु ।
दन्तपंक्तिमोष्ठयुग्मं नमो गोपीश्वराय च ॥
'नमो गोपाङ्गनेशाय ' ( गोपाङ्गनावल्लभ श्रीकृष्णको नमस्कार है ) यह अष्टाक्षर मन्त्र दोनों कंधोंका पालन करे । 'नमो गोपीश्वराय' ( गोपीश्वरको नमस्कार है) यह मन्त्र दन्तपंक्ति तथा ओ४ युगलकी रक्षा करे ।
नमो भगवते रासमण्डलेशाय स्वाहा ।
स्वयं वक्षःस्थलं पातु मन्त्रोऽयं षोडशाक्षरः ॥
'ॐ नमो भगवते रासमण्डलेशाय स्वाहा' ( रासमण्डलके स्वामी सच्चिदानन्दस्वरूप भगवान् श्रीकृष्णो.
गोपाङ्गनावल्लभ श्रीकृष्णको नमस्कार है ) यह अष्टाक्षर | मन्त्र दोनों कंधोंका करे । 'नमो गोपीश्वराय ( गोपीश्वरको नमस्कार है ) यह मन्त्र दन्तपंक्ति तथा ओष्ठ युगलकी रक्षा करे । ‘ॐ नमो भगवते रासमण्डलेशाय स्वाहा' ( रासमण्डलके स्वामी सच्चिदानन्दस्वरूप भगवान् श्रीकृष्णको नमस्कार है । उनकी प्रसन्नताके लिये मैं अपने सर्वस्वकी आहुति देता हूँ — त्याग करता हूँ ) यह षोडशाक्षर मन्त्र मेरे वक्षःस्थलकी रक्षा करे ।
ऐं कृष्णाय स्वाहेति च कर्णयुग्मं सदाऽवतु ।
ॐ विष्णवे स्वाहेति च कङ्कालं सर्वतोऽवतु ॥
'ऐं कृष्णाय स्वाहा' यह मन्त्र सदा मेरे दोनों कानोंको कष्टसे बचावे। 'ॐ विष्णवे स्वाहा' यह मन्त्र मेरे कङ्काल ( अस्थिपञ्जर ) की सब ओरसे रक्षा करे |
ॐ हरये नम इति पृष्ठं पादं सदाऽवतु ।
गोवर्द्धनधारिणे स्वाहा सर्वशरीरकम् ॥
'ॐ हरये नमः' यह मन्त्र सदा मेरे पृष्ठभाग और पैरोंका पालन करे । 'ॐ गोवर्द्धनधारिणे स्वाहा' यह मन्त्र मेरे सम्पूर्ण शरीरकी रक्षा करे।
प्राच्यां मां पातु श्रीकृष्ण आग्नेय्यां पातु माधवः ।
दक्षिणे पातु गोपीशो नैऋत्यां नन्दनन्दनः ॥
पूर्व दिशामें श्रीकृष्ण, अग्निकोणमें माधव, दक्षिण दिशामें गोपीश्वर तथा नैर्ऋत्यकोणमें नन्दनन्दन मेरी रक्षा करें ।
वारुण्यां पातु गोविन्दो वायव्यां राधिकेश्वरः ।
उत्तरे पातु रासेश ऐशान्यामच्युतः स्वयम् ॥
पश्चिम दिशामें गोविन्द, वायव्यकोणमें राधिकेश्वर, उत्तर दिशामें रासेश्वर और ईशानकोणमें स्वयं अच्युत मेरा संरक्षण करें
सन्ततं सर्वतः पातु परो नारायणः स्वयम् ।
तथा परमपुरुष साक्षात् नारायण सदा सब ओरसे मेरा पालन करें।
इति ते कथितं परमाद्भुतम् ॥
मम जीवनतुल्यं च युष्मभ्यं दत्तमेव च । ॥
ब्रह्मन् ! इस प्रकार इस परम अद्भुत कवचका मैंने तुम्हारे सामने वर्णन किया । यह मेरे जीवनके तुल्य है । यह मैंने तुमलोगोंको अर्पित किया ॥
गुरुमभ्यर्च्य कवचस्य स्नात्वा तं च नमस्कृत्य कवचं धारयेत् सुधीः ॥
प्रसादेन जीवन्मुक्तो भवेन्नरः । यदि स्यात् सिद्धकवचो विष्णुरेव भवेद् द्विज ॥
वाजपेयशतानिकलां नार्हन्ति तान्येव कवचस्यैव धारणात् ॥ विधिवद्वस्त्रालङ्कारचन्दनैः
इस कवचको धारण करनेसे जो पुण्य होता है, सहस्रों अश्वमेध और सैकड़ों वाजपेय यज्ञ उसकी सोलहवीं कलाके भी बराबर नहीं हो सकते । विद्वान् पुरुषको चाहिये कि स्नान करके वस्त्र-अलङ्कार और चन्दनद्वारा विधिवत् गुरुकी पूजा और वन्दना करनेके पश्चात् कवच धारण करे । इस कवचके प्रसादसे मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है । शौनकजी ! यदि किसीने इस कवचको सिद्ध कर लिया तो वह विष्णुरूप ही हो जाता है ।।
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे ब्रह्मखण्डे महापुरुषब्रह्माण्ड पावनं नाम श्रीकृष्णकवचं सम्पूर्णम् ।
Best Way to Brahmand Pavan Krishna Kavach
The best time to recite this pious Stotra is Ekadsh tithi of the Hindu Calendar. The seeker should place the energized Krishna Idol or Krishna Yantra at the place of worship, usually on a wooden desk.
Offer simple prayers to Lord Krishna. Recite the Kavach 108 times a day. Repeat this process for a year to manifest all desires in your life and remove all the sins from your life.