The Brahma Mantra was revealed by Lord Mahadev to Goddess Parvati, as depicted in MahaNirwan Tantra. The seeker can attain a wonderful life with the help of this Brahm Dev mantra.
Brahma is the foremost god in the Hindu triumvirate or Trimurti. The triumvirate consists of three deities who are responsible for the creation, upkeep, and destruction of the world. The other two gods are Vishnu and Shiva.
He is associated with creation, knowledge, and the Vedas. Brahma is prominently cited in creation legends. In some Puranas, he constructed himself in a golden embryo known as the Hiranyagarbha.
Brahma is generally portrayed as a red or golden-complexioned, bearded man with four heads and hands. His four heads illustrate the four Vedas and are pointed to the four cardinal directions. He is established on a lotus and his vahana (mount) is a hamsa (swan, goose, or crane).
According to the scriptures, Brahma created his children from his mind and, thus, they are referred to as Manasaputra. Brahma is divinely wise, showing great insights to people, and knowledgeable when it comes to mythological things and events like the War in Heaven.
He is well admired for his compassion and merciful nature but can be a strict adherent towards the celestial laws, decreed by God. He values life in general, and being the Creator, he makes sure that his creations are not flawed. Being an elderly deity,
In the Mahanirvana Tantra, Shiva himself praised the Brahmadev mantra to Parvati and said that this mantra is the best of all mantras. Through this mantra, man can easily attain Dharma Artha Kama and Moksha. In this mantra, there is no consideration of the Siddhi-Asiddhi Chakra.
How To Attain The Siddhi of Brahma Mantra
- The seeker should install the Brahma Yantra in the worship place.
- The seeker must offer flowers, incense, and a lamp.
- The Purascharan of Brahma Mantra is of thirty-two thousand chants.
- The sadhaka can use energized Sphatik Mala for this mantra chant.
- After chanting ritualistically one-tenth havan, one-tenth tarpan of havan, one-tenth marjan of tarpan, and one-tenth of Marjan should be offered food to Brahmins.
Brahma Mantra-
'Om Sachchidekam Brahma.'
Parabrahma Gayatri Mantra
'Om Parameshvaraya Vidmahe Paratattvaya Dhimahi Tanno Brahma Prachodayat.'
ब्रह्माजी सृष्टि के रचियता कहे जाते हैं। सतयुग में ब्रह्मदेव की तपस्या के द्वारा तपस्वी अनेको वरदान एवं दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त करते थे। पुष्कर तीर्थ में ब्रह्मदेव की उपासना 'मुख्य रूप से की जाती है।
महानिर्वाणतंत्र में स्वयं शिव ने पार्वती से ब्रह्मदेव मंत्र की प्रशंसा करते हुए कहा है कि यह मंत्र सभी मंत्रों में सर्वश्रेष्ठ है। इस मंत्र के द्वारा मानव धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति सहजता से कर सकता है। इस मंत्र में सिद्धि - असिद्धि चक्र का विचार नही किया जाता है। अरि-मित्रादि दोषों से पूर्णता मुक्त है।
इस पावन मंत्र को ग्रहण करने के लिये तिथि, नक्षत्र, राशि, वार, कुलाकुल आदि का विचार भी नहीं किया जाता। इस मंत्र में दस प्रमुख सस्कारों के विधान की भी आवश्कता नहीं पड़ती। परमपिता ब्रह्मोपसना में न आवाहन की आवश्यकता है न विसर्जन की ।
किसी भी समय किसी भी स्थान में इनकी उपासना की जा सकती है। स्नान किये या बिना स्नान किये, कुछ खाये या बना खाये, किसी भी अवस्था में चित्तशुद्ध करके इनकी पूजा की जा सकती है।
ब्रह्मोपासक के समक्ष आते ही ग्रह, वेताल, चेटक, पिशाच, भूत, डाकिनी, शाकिनी, मातृकादि पलायन कर जाते हैं। ब्रह्ममंत्र से रक्षित मानव संसार के सभी भयों से मुक्त होकर राजा की तरह विचरण करता हुआ चिरकाल तक समस्त सुखों का भोग करता है।
सकाम साधना करने वाले मनुष्य प्रणव के स्थान पर ऐं, ह्रीं श्रीं क्लीं या अन्य बीज लगाकर अपनी समस्त कामनाओं की शीघ्र ही पूर्ति कर सकते हैं। शाक्त हो या शैव, वैष्णव हो या गाणपत्य, किसी भी देवी-देवता का उपासक, ब्राह्मण हो या किसी अन्य जाति का हो, सभी प्रकार के मनुष्य ब्रह्ममंत्र के अधिकारी होते हैं।
विनियोग-
ॐ अस्य श्री परब्रह्ममंत्र, सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छंदः, निर्गुण सर्वान्तर्यामी परम्ब्रह्मदेवता, चतुर्वर्गफल सिद्धयर्थे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यास-
सदाशिवाय ऋषये नमः शिरसि।
अनुष्टुप् छंदसे नमः मुखे ।
सर्वान्तर्यामी निर्गुण परमब्रह्मणे देवतायै नमः हृदि ।
धर्मार्थकाममोक्षावाप्तये विनियोगः सर्वांगे ।
करन्यास-
ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
सत् तर्जनीभ्यां स्वाहा ।
चित् मध्यमाभ्यां वषट्।
एकं अनामिकाभ्यां हुं ।
ब्रह्म कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् ।
ॐ सच्चिदेकं ब्रह्म करतलकरपृष्ठाभ्यां फट्।
हृदयादिन्यास-
ॐ हृदयाय नमः ।
सत् शिर से स्वाहा ।
चित् शिखायै वषट्।
एकं कवचाय हुं।
ब्रह्म नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ सच्चिदेकं ब्रह्म अस्त्राय फट् ।
ध्यानम्-
हृदयकमलमध्ये निर्विशेषं निरीहं,
हरिहर विधिवेद्यं योगिभिर्ध्यानगम्यम् ।
जननमरणभीति भ्रंशि सच्चित्स्वरूपं,
सकलभुवनबीजं ब्रह्म चैतन्यमीडे ।।
ब्रह्म मंत्र-
'ॐ सच्चिदेकं ब्रह्म ।'
परब्रह्म गायत्री मंत्र-
'ॐ परमेश्वराय विद्महे परतत्त्वाय धीमहि तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्।'
विधि - ब्रह्ममंत्र का पुरश्चरण बत्तीस हजार जप का है। साधक प्राण प्रतिष्ठित श्री ब्रह्म यन्त्र को सामने रख कर प्राण प्रतिष्ठि स्फटिक माला से इस मंत्र का जप करे |
जपोपरान्त् विधिपूर्वक दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन तथा मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिये। ब्रह्ममंत्र का पुरश्चरण करते समय भक्ष्याभक्ष्य का विचार नही किया जाता है।
काल शुद्धि तथा स्थान परिवर्तन का कोई नियम नहीं है। मुद्रा प्रदर्शित करना या ना करना, उपवास करके या बिना उपवास के, स्नान करके या बिना नहाये, स्वेच्छानुसार इस अमोघ मंत्र की साधना करें।
इस महामंत्र की साधना में चौरगणेशादि के मंत्र के जप की तथा कुल्लुका विन्यास की भी आवश्यकता नहीं होती । भक्तिपूर्वक जप करने से अल्पकाल में निश्चय ही परब्रह्म का साक्षात्कार लाभ होता है ।
गायत्री मंत्र उत्तम है, जो पूर्णिमा में I उपवास करके गायत्री के अक्षरतत्त्वों द्वारा ब्रह्माजी की पूजा करता है, वह परम पद को प्राप्त होता है।
जो कार्तिक की अमावस्या को ब्रह्माजी के मन्दिर में दीप जलाता है, वह परम पद को प्राप्त करता है। जितेन्द्रिय होकर गंगातट, शिवालय, पुष्कर तीर्थ, पर्वत, गुफा या निर्जन वन में गुरु से दीक्षा प्राप्त कर ब्रह्मदेव की उपासना आरम्भ करें।