Annapurna Ashtakam is a Stotra consisting of eight verses of Goddess Annapurna. Devi Annapurna is regarded as the goddess of plenty, food, and harvest. Annapurna is the Hindu Goddess of nourishment.
Anna means “food” or “grains''. Purna means “full, complete, and perfect”. She is an avatar (form) of Parvati, the wife of Lord Shiva.
Devi Annapurna gives nourishment, is the strength of Shiva, is Adi Sakthi, is the cause of creation & dissolution, is beyond Maya, manifests truth & efficiency, is the Supreme welfare, takes away all fear, and is the grantor of knowledge.
Annapurna Ashtakam is the wonderful creation of sage Shankaracharya. In Annapurna Ashtakam, the seeker seeks the blessings of Devi Annapurna to provide him with nourishment in every area of life.
It is believed that one who recites this Annapurna Ashtakam gets the blessings and power of Devi Annapurna in no time.
Annapurna Ashtakam Meaning
माता अन्नपूर्णा की आराधना करने से मनुष्य को कभी अन्न का दु:ख नहीं होता है; क्योंकि वे नित्य अन्न-दान करती हैं। यदि माता अन्नपूर्णा अपनी कृपादृष्टि हटा लें तो मनुष्य दर-दर अन्न-जल के लिए भटकता फिरे; लेकिन उसे चार दाने चने के भी प्राप्त नहीं होते हैं।
भगवान आदि शंकराचार्य ने मां अन्नपूर्णा की प्रसन्नता के लिए एक बहुत सुन्दर स्तोत्र की रचना की है।
श्री अन्नपूर्णाष्टकम् ॥
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी ।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥
nityaanandakaree varaabhayakaree saundaryaratnaakaree
nirdhootaakhilaghorapaavanakaree pratyakshamaaheshvaree .
praaleyaachalavamshapaavanakaree kaasheepuraadheeshvaree
bhikshaam dehi kri'paavalambanakaree maataa'nnapoorneshvaree .. 1..
अर्थात्
देवि अन्नपूर्णा! तुम सदैव सबका आनन्द बढ़ाया करती हो, तुमने अपने हाथ में वर तथा अभय मुद्रा धारण की हैं, तुम्हीं सौंदर्यरूप रत्नों की खान हो, तुम्हीं भक्तगणों के समस्त पाप विनाश करके उनको पवित्र करती हो, तुम्हीं साक्षात् माहेश्वरी हो और तुमने ही हिमालय का वंश पवित्र किया है, तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी हो, तुम्हीं अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमान विलसत् वक्षोजकुम्भान्तरी ।
काश्मीरागरुवासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥
naanaaratnavichitrabhooshanakaree hemaambaraad'ambaree
muktaahaaravilambamaana vilasat vakshojakumbhaantaree .
kaashmeeraagaruvaasitaa ruchikaree kaasheepuraadheeshvaree
bhikshaam dehi kri'paavalambanakaree maataa'nnapoorneshvaree .. 2..
अर्थात्
देवि अन्नपूर्णा! तुम्हीं अनेक प्रकार के विचित्र रत्नों से जड़े हुए आभूषण धारण करती हो, तुम्हीं ने स्वर्ण-रचित वस्त्र पहन करके मुक्तामय हार द्वारा वक्षस्थल सुशोभित किया है, सारे शरीर पर कुंकुम और अगर का लेपन करके अपनी शोभा बढ़ाई है, तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी हो, तुम्हीं अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥
yogaanandakaree ripukshayakaree dharmaarthanisht'haakaree
chandraarkaanalabhaasamaanalaharee trailokyarakshaakaree .
sarvaishvaryasamastavaanchhitakaree kaasheepuraadheeshvaree
bhikshaam dehi kri'paavalambanakaree maataa'nnapoorneshvaree .. 3..
अर्थात्
हे देवि! तुम्हीं योगीजनों को आनन्द प्रदान करती हो, तुम्ही भक्तगणों के शत्रुओं का विनाश करती हो, तुम्हीं धर्मार्थ साधन में प्रीति बढ़ाती हो, तुमने ही चन्द्र, सूर्य और अग्नि की आभा धारण कर रखी है, तुम्हीं तीनों भुवनों की रक्षा करती हो, तुम्हारे भक्तगण जो इच्छा करते हैं, तुम उनको वही सब ऐश्वर्य प्रदान करती हो, हे माता! तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी ।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥
kailaasaachalakandaraalayakaree gauree umaa shankaree
kaumaaree nigamaarthagocharakaree onkaarabeejaaksharee .
mokshadvaarakapaat'apaat'anakaree kaasheepuraadheeshvaree
bhikshaam dehi kri'paavalambanakaree maataa'nnapoorneshvaree .. 4..
अर्थात्
हे अन्नपूर्णे! तुम्हीं ने कैलाश पर्वत की कंदरा में अपना निवास स्थापित किया है। हे माता! तुम्हीं गौरी, तुम्हीं उमा और तुम्हीं शंकरी हो, तुम्हीं कौमारी हो, वेद के गूढ़ अर्थ को बताने वाली हो, तुम्हीं बीज मंत्र ओंकार की देवी हो और तुम्हीं मोक्ष-द्वार के दरवाजे खोलती हो, तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, हे जननि! कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
दृश्यादृश्य विभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी ।
श्रीविश्वेशमनः प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥
dri'shyaadri'shya vibhootivaahanakaree brahmaand'abhaand'odaree
leelaanaat'akasootrabhedanakaree vijnyaanadeepaankuree .
shreevishveshamanah' prasaadanakaree kaasheepuraadheeshvaree
bhikshaam dehi kri'paavalambanakaree maataa'nnapoorneshvaree .. 5..
अर्थात्
हे देवि! तुम्हीं स्थूल और सूक्ष्म-समस्त जीवों को पवित्रता प्रदान करती हो, यह ब्रह्माण्ड तुम्हारे ही उदर में स्थित है, तुम्हारी लीला में सम्पूर्ण जीव अपना-अपना कार्य करते हैं, तुम्हीं ज्ञानरूप प्रदीप का स्वरूप हो, तुन्हीं श्रीविश्वनाथ का संतोषवर्द्धन करती हो। हे माता अन्नपूर्णेश्वरी! तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
उर्वी सर्वजनेश्वरी भगवती माताऽन्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलधरी नित्यान्नदानेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी सदाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥
urvee sarvajaneshvaree bhagavatee maataa'nnapoorneshvaree
veneeneelasamaanakuntaladharee nityaannadaaneshvaree .
sarvaanandakaree sadaashubhakaree kaasheepuraadheeshvaree
bhikshaam dehi kri'paavalambanakaree maataa'nnapoorneshvaree .. 6..
अर्थात्
हे अन्नपूर्णे! तुम्हीं पृथ्वीमण्डल स्थित जनसमूह की ईश्वरी हो, तुम षडेश्वर्यशालिनी हो, तुम्हीं जगत् की माता हो, तुम्हीं सबको अन्न प्रदान करती हो। तुम्हारे नीलवर्ण केशवेणी रूप से शोभा पाते हैं, तुम्हीं प्राणीगण को नित्य अन्न प्रदान करती हो और तुम्हीं लोकों को अवस्था की उन्नति प्रदान करती हो। हे माता! तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरा त्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी ।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥
aadikshaantasamastavarnanakaree shambhostribhaavaakaree
kaashmeeraa trijaleshvaree trilaharee nityaankuraa sharvaree .
kaamaakaankshakaree janodayakaree kaasheepuraadheeshvaree
bhikshaam dehi kri'paavalambanakaree maataa'nnapoorneshvaree .. 7..
अर्थात्
हे देवि! लोग तन्त्रविद्या में दीक्षित होकर जो कुछ शिक्षा करते हैं, वह तुम्हीं ने वर्णन करके उपदेश प्रदान किया है। तुम्हीं ने हर (शंकरजी) के तीनों भाव (सत्, रज, तम) का विधान किया है, तुम्हीं काश्मीर वासिनी शारदा, अम्बा, भगवती हो, तुम्हीं स्वर्ग, मर्त्य और पाताल इन तीनों लोकों में ईश्वरीरूप से विद्यमान रहती हो। तुम्ही गंगा, यमुना और सरस्वती - इन तीन रूपों से पृथ्वी में प्रवाहित रहती हो, नित्य वस्तु भी सब तुम्हीं से अंकुरित होती है, तुम्हीं शर्वरी (रात्रि) के समान चित्त के सभी व्यापारों को शांत करने वाली हो, तुम्हीं सकाम भक्तों को इच्छानुसार फल प्रदान करती हो और तुम्हीं सभी जनों का उन्नति साधन करती हो। हे जननि! केवल तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो। हे माता अन्नपूर्णेश्वरी! तुम्हीं कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामे स्वादुपयोधरा प्रियकरी सौभाग्य माहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥
devee sarvavichitraratnarachitaa daakshaayanee sundaree
vaame svaadupayodharaa priyakaree saubhaagya maaheshvaree .
bhaktaabheesht'akaree sadaashubhakaree kaasheepuraadheeshvaree
bhikshaam dehi kri'paavalambanakaree maataa'nnapoorneshvaree .. 8..
अर्थात्
हे देवि! तुम सर्व प्रकार के विचित्र रत्नों से विभूषित हुई हो, तुम्हीं दक्षराज के गृह में पुत्री रूप से प्रकट हुई थीं, तुम्हीं केवल जगत की सुन्दरी हो, तुम्हीं अपने सुस्वादु पयोधर प्रदान करके जगत् का प्रिय कार्य करती हो, तुम्हीं सबको सौभाग्य प्रदान करके महेश्वरी रूप में विदित हुई हो, तुम्हीं भक्तगणों को वांछित फल प्रदान करती हो और उनकी बुरी अवस्था को शुभ रूप मे बदल देती हो। हे माता! केवल तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी हो, तुम्हीं अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुण्डलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी ।
मालापुस्तकपाशसाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥
chandraarkaanalakot'ikot'isadri'shaa chandraamshubimbaadharee
chandraarkaagnisamaanakund'aladharee chandraarkavarneshvaree .
maalaapustakapaashasaankushadharee kaasheepuraadheeshvaree
bhikshaam dehi kri'paavalambanakaree maataa'nnapoorneshvaree .. 9..
अर्थात्
हे देवि! तुम्हीं कोटि-कोटि चन्द्र, सूर्य और अग्नि के समान उज्ज्वल प्रभाशालिनी हो, तुम चन्द्र किरणों के तथा बिम्ब फल के समान अधरों से युक्त हो, तुम्हीं चन्द्र, सूर्य और अग्नि के समान उज्ज्वल कुण्डलधारिणी हो, तुमने ही चन्द्र, सूर्य के समान वर्ण धारण किया है, हे माता! तुम्हीं चतुर्भुजा हो, तुमने चारों हाथों में माला, पुस्तक, पाश और अंकुश धारण किया है। हे अन्नपूर्णे! तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी ।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥
kshatratraanakaree mahaa'bhayakaree maataa kri'paasaagaree
saakshaanmokshakaree sadaa shivakaree vishveshvaree shreedharee .
dakshaakrandakaree niraamayakaree kaasheepuraadheeshvaree
bhikshaam dehi kri'paavalambanakaree maataa'nnapoorneshvaree .. 10..
अर्थात्
हे माता! तुम्हीं क्षत्रियकुल की रक्षा करती हो, तुम्हीं सबको अभय प्रदान करती हो, प्राणियों की माता हो तुम्हीं कृपा का सागर हो, तुम्हीं भक्तगणों को मोक्ष प्रदान करती हो, और सर्वदा सभी का कल्याण करती हो, हे माता तुम्हीं विश्वेश्वरी हो, तुम्हीं संपूर्ण श्री को धारण करती हो, तुम्हीं ने दक्ष का नाश किया है और तुम्हीं भक्तों का रोग नाश करती हो। हे अन्नपूर्णे! तुम्हीं काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥
annapoorne sadaapoorne shankarapraanavallabhe .
jnyaanavairaagyasiddhyartham bhikshaam dehi cha paarvati .. 11..
अर्थात्
हे अन्नपूर्णे! तुम्हीं सर्वदा पूर्ण रूप से हो, तुम्हीं महादेव की प्राणों के समान प्रियपत्नी हो। हे पार्वति! तुम्हीं ज्ञान और वैराग्य की सिद्धि के निमित्त भिक्षा प्रदान करो, जिसके द्वारा मैं संसार से प्रीति त्याग कर मुक्ति प्राप्त कर सकूं, मुझको यही भिक्षा प्रदान करो ।
माता मे पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः ।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥
maataa me paarvatee devee pitaa devo maheshvarah' .
baandhavaah' shivabhaktaashcha svadesho bhuvanatrayam .. 12..
अर्थात्
हे जननी! पार्वती देवी मेरी माता, देवाधिदेव महेश्वर मेरे पिता शिवभक्त गण मेरे बांधव और तीनों भुवन मेरा स्वदेश हैं। इस प्रकार का ज्ञान सदा मेरे मन में विद्यमान रहे, यही प्रार्थना है।
॥ इति श्रीशङ्करभगवतः कृतौ अन्नपूर्णास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥