Vishnu Aprajita Mantra is a very rare and influential mantra to release all the negative forces in life. In Vishnu Aparajita Mantra, all the ten Mahavidyas, Devis, and Shaktis have been invoked.
It is an invocation of Trishakti to attain perfection by arousing the power element of your body and mind for the removal of obstacles, destruction of enemies, prevention of untimely death and wealth-grains, opulence, and protection in life. This is not a mantra, it is a Mahamantra shloka, just by chanting, which energy circulates in every pore.
It is written in a book called 'Phalashruti' that when there was a battle between the deities and the asuras, on being persuaded by the deities, Vishnu said that if I get the boon of invincibility from Lord Shiva and get unbeatable weapons, then I am ready for the battle.
Then Lord Sadashiva gave a sadhana in the ear of Sri Hari Vishnu and this special sadhana became known as Vishnu 'Aparajita Sadhana'. By completing this sadhana by Sri Vishnu, he became worshipable in the world and worshiped as the God of the gods.
फलश्रुति' नामक ग्रंथ में लिखा है कि जब देवता और असुरों का संग्राम हुआ तो देवताओं द्वारा अनुनय विनय करने पर विष्णु ने कहा कि यदि मुझे भगवान शिव द्वारा अपराजेय का वरदान मिल जाये और अपराजेय अस्त्र शस्त्र प्राप्त हो जाएं तो मैं संग्राम के लिए तत्पर हूं, तब भगवान सदाशिव ने श्रीहरि विष्णु के कान में एक साधनात्मक उपदेश दिया |
और यह विशेष साधनात्मक ज्ञान विष्णु 'अपराजिता साधना' के नाम से विख्यात हुआ। श्रीविष्णु द्वारा इस साधना को सम्पन्न करने से वे जगत् में वन्दनीय हुए और देवताओं के देव के रूप में पूजनीय हुए।
विनियोग
ॐ अस्य श्रीविष्णु अपराजिता महाविद्या गले में मन्त्रस्य ईश्वर ऋषिः पंक्तिश्छन्दः । श्रीविष्णु अपराजिता महाविद्या देवता । ॐ हां ब्रां बीजं । ॐ ह्रीं ह्रीं शक्तिः | ॐ हूं हूं कीलकं । मम सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थं श्रीविष्णु अपराजिता महाविद्या माला मंत्र जपे विनियोगः ।।
न्यास
ॐ ह्रां ब्रां महाविद्यायै नमः अंगुष्ठाम् ।
ॐ ह्रीं श्रीं महामायायै नमः तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ हूं ब्रू महामेघायै नमः मध्यामाभ्यां ।
ॐ हैं हूँ महामन्त्रायै नमः अनामिकाभ्यां ।
ॐ ह्रीं ब्रों महासिद्धायै नमः कनिष्ठिकाभ्यां ।
ॐ हंः ब्रः महापराजितयै नमः करतल करपृष्ठाभ्यां ।
दिग्बन्ध
ॐ हां सर्व भूत निवारणाय सांगाय सशरायास्त्र राजाय सुदर्शनाय हुं फट् ह्रीं ॐ स्वाहा ।।
अपने हाथ में जल लेकर उपरोक्त दिग्बन्ध मंत्र का जप तीन बार करना है, और तीनों बार जल सामने स्थापित यंत्र के चारों ओर तथा अपने स्वयं के चारों ओर गोल घेरे में रूप में डालना है, इससे साधना काल के दौरान किसी प्रकार का विघ्न उत्पन्न नहीं होता तथा दुष्टात्माएं, भूत- प्रेत पिशाच साधना को खण्डित नहीं कर सकते ।
ध्यान
चतुर्भुजां पीतवस्त्रां शंखं चक्रं गदां धराम् ।
मुक्ताभरण भूषणां पद्म नेत्रां द्विलोचनाम् ।।
पीत गन्ध विलेपांगी पीताभरण भूषिताम् ।
पद्म हस्तां सुपद्मांगी गरुड़ासन संस्थिताम् ।।
दैत्य दानव संहारीं महाविष्णु वर प्रदाम् ।
ध्यायै महाविद्यामहं विष्णु साम्राज्य दायिनीम् ॥
इस प्रकार दोनों हाथ जोड़कर भगवान श्री विष्णु का ध्यान करना है और उनसे अभिष्ट वर प्राप्ति की प्रार्थना करनी है।
उपरोक्त ध्यान के पश्चात् 'विष्णु महाविद्या माला' को अपने गले में धारण कर लें और निम्न मंत्र का जप करें।
विष्णु अपराजिता मंत्र में सभी दस महाविद्याओं, देवियों, शक्तियों को आह्वान किया गया है । अपनी बाधा निवारण, विघ्ननाश, शत्रुबाधा निवारण, अकाल मृत्यु बाधा निवारण तथा जीवन में धन-धान्य, ऐश्वर्य, रक्षा हेतु अपने शरीर, मन के शक्ति तत्व को जाग्रत कर पूर्णता प्राप्ति हेतु त्रिशक्ति का आह्वान है। यह मंत्र नहीं महामंत्र श्लोक है, जिसके जप मात्र से रोम- रोम में ऊर्जा का संचार हो जाता है ।
Vishnu Aprajita Mantra Text
श्री विष्णु अपराजिता महाविद्या माला मन्त्र
ॐ नमो भगवती ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं श्रीं भगवती वज्र प्रस्तारिणी प्रत्यंगिरे बगले तारे वज्र वैरोचनीये धूमावती छिन्नमस्तके भग मालिनी मां रक्ष रक्ष पालय पालय स्व-सुतानिव महदानन्द कुरु कुरु सर्व मंगलाभीष्टं देहि देहि एहि एहि मम हृदयं निवासय सर्व दुःख दारिद्र्यं निर्मूलय सर्व शत्रून निवृत्तय निवृत्तय सर्व विघ्न त्रिताप सन्ताप महा पापादि सर्व दुष्टोपद्रव भंजय भंजय हन हन कालेश्वरी गौरी धर्मिणी विद्ये आले ताले माले गन्धं बन्धे पच पच विध्वान्नाशय विघ्नान्नाशय विघ्नान्नाशय संहारय संहारय दुःस्वप्न् विनाशय विनाशय रजनी संध्ये साधक संजीवनी कालमृत्यु महामृत्यु अपमृत्यु विनाशिनी विश्वेश्वरी द्रविड़ी द्राविड़ी केशव दनिते पशुपति सहिते विरचि वनिते दुन्दुभिशमे शबरी किराती मातंगी ॐ ह्रीं ह्रीं हूं जां जां जां क्रां क्रां क्रां तुरु तुरु मुरु मुरु तुद् तुट् ये मां द्विषन्ति निन्दन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा सर्वान् तान् दम् दम् मर्द मर्द तापय तापय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय कालरात्रि महारात्रि महामाये रेणुके दक्षिण काली षोडशी श्रीचक्र कृति धारिणी श्री विद्या परमेश्वरी जय जय जगदीश्वरी सर्व काम वर प्रद सर्व भूतेषु मां प्रियं कुरु कुरु धन धान्यादि महदेश्वर्य मम प्रद प्रद भग भाग्यादि सर्व मंगल देहि देहि पुत्र पौत्रादि सुफलं फलय फलय गजाश्व शिविकादि सकल राज चिन्ह दापय दापय प्रतिष्ठय प्रतिष्ठय प्रतिष्ठय सर्वानन्दायुर्विद्यारोग्यं प्रद प्रद वरद वरद मम रक्ष मम रक्ष पालय पालय पोषय पोषय तोषय तोषय संजीवय संजीवय आनन्दय आनन्दय सन्तोषय सन्तोषय हर्षय हर्षय ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सर्व जन मनोरंजिनी सर्व दुष्ट निर्दलिनी ।
ॐ भूः स्वाहा ॐ भुवः स्वाहा ॐ स्वः स्वाहा ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा ॐ महः स्वाहा ॐ जनः स्वाहा ॐ तपः स्वाहा । ॐ सत्य स्वाहा ॐ अतल वितल सुतल स्वाहा ॐ । ॐ ब्रह्मा विष्णु महेश्वरार्क गणेश दुर्गेन्द्रादि सुरासुराय नमः स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती चामुण्डा योगिनी कात्यायन्यादि सर्व शक्त्यै नमः स्वाहा । यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छतु स्वाहा । ॐ ह्रीं बलाकिनी बले महाबले अतिबले सर्व असाध्य स्वाहा । ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं नमः स्वाहा ||
इस पूरे मंत्र का शांत रूप से धीरे-धीरे जप करना है, शास्त्रोक्त कथन है कि इसका पाठ विष्णु अपराजिता महायंत्र के आगे करने से ही साधक को सिद्धि प्राप्त हो जाती है |
इस मंत्र का एक सौ बार जप करने से छोटे-मोटे मनोरथ पूर्ण होते हैं।
एक हजार मंत्र जप आवृत्ति करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
दस हजार मंत्र जप आवृत्ति करने से सब प्रकार का मंगल प्राप्त होता है |
और एक लाख मंत्र जप करने से तो साक्षात् भगवान विष्णु साधक के भीतर स्थित हो जाते हैं।
इस साधना में विशेष नियम है उनका पालन करना अत्यन्त आवश्यक है। सर्वप्रथम तो जिस कार्य के लिए साधना की जानी है वह कार्य निश्चित कर लें और एक साथ सभी कार्यों के लिए साधना नहीं करें, इस साधना के कुछ महत्वपूर्ण नियम हैं, जिनका पालन अवश्य करें |
1. यह साधना रात्रि में सम्पन्न की जाती है तो. विशेष फलदायी रहती है।
2. साधक द्वारा पीला आसन और पीले ही वस्त्र धारण करने चाहिए।
3. पीले रंग के पुष्प तथा पीले रंग की गंध अर्थात् अबीर का ही पूजन में प्रयोग करें।
4. पूरे साधना काल के दौरान नित्य शिव मन्दिर में जाकर गुग्गुल का धूप अवश्य जलाना चाहिए।
5. साधना काल के दौरान घी का दीपक जलते रहना चाहिए।