Vishnu 68 Names | Meaning | विष्णु अष्टषष्टि नाम स्तोत्रं

Vishnu 68 Names - Meaning - विष्णु अष्टषष्टि नाम स्तोत्रं

📅 Jul 23rd, 2022

By Vishesh Narayan

Summary Vishnu 68 Names are the sacred sixty-eight names of Lord Vishnu. The names were announced by Lord Narayana himself to Lord Brahma. Vishnu is the god of preservation, meaning he protects the universe from being destroyed. It is believed that Vishnu holds the Earth and all living organisms.


Vishnu 68 Names are the sacred sixty-eight names of Lord Vishnu. The names were announced by Lord Narayana himself to Lord Brahma. Lord Brahma once requested Lord Vishnu about the holy places where He could visit and remember the Lord for divinity. These names were the reply to Lord Brahma.

Vishnu is the all-pervading spirit of all beings, the master of—and beyond—the past, present, and future. Vishnu is the creator and destroyer of all presences, one who supports, preserves, sustains, and rules the universe and initiates and generates all elements within.

In Hindu sacred texts, Vishnu is explained as having the divine blue color of water-filled clouds and as having four arms. He is portrayed as holding a Padma (lotus flower) in the lower left hand, a unique type of mace used in warfare known as a Kaumodki Gada in the lower right hand, a Panchajanya Shankha (conch) in the upper left hand, and a discus weapon Sudarshana Chakra in the upper right hand.

Vishnu is also explained in the Bhagavad Gita as having a 'Universal Form' which is beyond the ordinary limits of human perception or imagination.

Vishnu is the god of preservation, meaning he protects the universe from being destroyed. It is believed that Vishnu holds the Earth and all living organisms.

According to the Hindu religion, he has set foot or arrived at the Earth in nine forms called avatars, so far with one incarnation yet to come that is Kalki at the last to be Kali Yuga, to destroy evil.

The seeker should chant the stotra once a day placing Energized Vishnu Yantra at the site of worship.

 धनैश्वर्य, आरोग्यता और प्रज्ञावृद्धि हेतु तथा शत्रुओं से मुक्ति हेतु विधिवत् भगवान् की पूजा कर इन अमोघ नामों का पाठ अवश्य करना चाहिये ।

Vishnu 68 Names Meaning

श्री विष्णु अष्टषष्टि नामतीर्थ स्तोत्रं

भरद्वाज उवाच
त्वत्तो हि श्रोतुमिच्छामि गुह्यक्षेत्राणि वै हरेः ।
नामानि च सुगुह्यानि वद पापहराणि च ॥ १॥

bharadvaaja uvaacha
tvatto hi shrotumichchhaami guhyakshetraani vai hareh' .
naamaani cha suguhyaani vada paapaharaani cha .. 1..

सूत उवाच
मन्दरस्थं हरिं देवं ब्रह्मा पृच्छति केशवम् ।
भगवन्तं देवदेवं शङ्खचक्रगदाधरम् ॥ २॥

soota uvaacha
mandarastham harim devam brahmaa pri'chchhati keshavam .
bhagavantam devadevam shankhachakragadaadharam .. 2..

ब्रह्मोवाच
केषु केषु च क्षेत्रेषु द्रष्टव्योऽसि मया हरे ।
भक्तैरन्यैः सुरश्रेष्ठ मुक्तिकामैर्विशेषतः ॥ ३॥

brahmovaacha
keshu keshu cha kshetreshu drasht'avyo'si mayaa hare .
bhaktairanyaih' surashresht'ha muktikaamairvisheshatah' .. 3..

ब्रह्माजी बोले- हे नारायण ! मुझे तथा मुक्ति चाहने वाले अन्य भक्तों को किन-किन क्षेत्रों में जाकर आपके विशेष रूप से दर्शन करने चाहिये।

यानि ते गुह्यनामानि क्षेत्राणि च जगत्पते ।
तान्यहं श्रोतुमिच्छामि त्वत्तः पद्मायतेक्षण ॥ ४॥

yaani te guhyanaamaani kshetraani cha jagatpate .
taanyaham shrotumichchhaami tvattah' padmaayatekshana .. 4..

कमललोचन! आपके जो-जो गुप्ततीर्थ और नाम हैं, उन्हें मैं आपके ही मुख से सुनना चाहता हूं।

किं जपन् सुगतिं याति नरो नित्यमतन्द्रितः ।
त्वद्भक्तानां हितार्थाय तन्मे वद सुरेश्वर ॥ ५॥

kim japan sugatim yaati naro nityamatandritah' .
tvadbhaktaanaam hitaarthaaya tanme vada sureshvara .. 5..

सुरेश्वर! मनुष्य आलस्य त्यागकर प्रतिदिन किसका जप करने से सद्गति को प्राप्त हो सकता है ? अपने भक्तों का हित साधन करने के लिये यह बात हमें बताइये।

श्रीभगवानुवाच
श‍ृणुष्वावहितो ब्रह्मन् गुह्यनामानि मेऽधुना ।
क्षेत्राणि चैव गुह्यानि तव वक्ष्यामि तत्त्वतः ॥ ६॥

कोकामुखे तु वाराहं मन्दरे मधुसूदनम् ।
अनन्तं कपिलद्वीपे प्रभासे रविनन्दनम् ॥ ७॥

shreebhagavaanuvaacha
shri'nushvaavahito brahman guhyanaamaani me'dhunaa .
kshetraani chaiva guhyaani tava vakshyaami tattvatah' .. 6..

kokaamukhe tu vaaraaham mandare madhusoodanam .
anantam kapiladveepe prabhaase ravinandanam .. 7..

श्रीनारायण बोले- कोकामुख क्षेत्र में मेरे वाराहस्वरुप का, मन्दराचल पर मधुसूदन का, कपिलद्वीप में अनन्त का, प्रभासक्षेत्र में सूर्यनन्दन का,

माल्योदपाने वैकुण्ठं महेन्द्रे तु नृपात्मजम् ।
ऋषभे तु महाविष्णुं द्वारकायां तु भूपतिम् ॥ ८॥

maalyodapaane vaikunt'ham mahendre tu nri'paatmajam .
ri'shabhe tu mahaavishnum dvaarakaayaam tu bhoopatim .. 8..

माल्योदपानतीर्थ में भगवान् वैकुण्ठ का, महेन्द्रपर्वत पर राजकुमार का, ऋषभतीर्थ में महाविष्णु का, द्वारका में भूपाल श्रीकृष्ण का,

पाण्डुसह्ये तु देवेशं वसुरूढे जगत्पतिम् ।
वल्लीवटे महायोगं चित्रकूटे नराधिपम् ॥ ९॥

paand'usahye tu devesham vasurood'he jagatpatim .
valleevat'e mahaayogam chitrakoot'e naraadhipam .. 9..

पाण्डुसहय पर्वत पर देवेश का, वसुरुढ़तीर्थ में जगत्पति का, वल्लीवट में महायोग का, चित्रकूट में राजाराम का,

निमिषे पीतवासं च गवां निष्क्रमणे हरिम् ।
शालग्रामे तपोवासमचिन्त्यं गन्धमादने ॥ १०॥

nimishe peetavaasam cha gavaam nishkramane harim .
shaalagraame tapovaasamachintyam gandhamaadane .. 10..

नैमिषारण्य में पीताम्बर का, गौओं के विचरने के स्थान में हरि का, शालग्रामतीर्थ में तपोवास का, गन्धमादन पर्वत पर अचिन्त्य परमेश्वर का,

कुब्जागारे हृषीकेशं गन्धद्वारे पयोधरम् ।
गरुडध्वजं तु सकले गोविन्दं नाम सायके ॥ ११॥

kubjaagaare hri'sheekesham gandhadvaare payodharam .
garud'adhvajam tu sakale govindam naama saayake .. 11..

कुब्जागार में हृषीकेश का, गन्धद्वार में पयोधर का, सकलतीर्थ में गरुडध्वज का, सायक में गोविन्द का,

वृन्दावने तु गोपालं मथुरायां स्वयम्भुवम् ।
केदारे माधवं विन्द्याद्वाराणस्यां तु केशवम् ॥ १२॥

vri'ndaavane tu gopaalam mathuraayaam svayambhuvam .
kedaare maadhavam vindyaadvaaraanasyaam tu keshavam .. 12..

वृन्दावन में गोपाल का, मथुरा में स्वयम्भू भगवान् का, केदारतीर्थ में माधव का, कांशी में केशव का,

पुष्करे पुष्कराक्षं तु धृष्टद्युम्ने जयध्वजम् ।
तृणबिन्दुवने वीरमशोकं सिन्धुसागरे ॥ १३॥

pushkare pushkaraaksham tu dhri'sht'adyumne jayadhvajam .
tri'nabinduvane veeramashokam sindhusaagare .. 13..

पुष्करतीर्थ में पुष्कराक्ष का, धृष्टद्युम्न क्षेत्र में जयध्वज का, तृणबिन्दु वन में वीर का, सिंधुसागर में अशोक का,

कसेरटे महाबाहुममृतं तैजसे वने ।
विश्वासयूपे विश्वेशं नरसिंहं महावने ॥ १४॥

kaserat'e mahaabaahumamri'tam taijase vane .
vishvaasayoope vishvesham narasimham mahaavane .. 14..

कसेरट में महाबाहु का, तैजसवन में भगवान् अमृत का, विश्वासयूप क्षेत्र में विश्वेश का, महावन में नरसिंह का,

हलाङ्गरे रिपुहरं देवशालां त्रिविक्रमम् ।
पुरुषोत्तमं दशपुरे कुब्जके वामनं विदुः ॥ १५॥

halaangare ripuharam devashaalaam trivikramam .
purushottamam dashapure kubjake vaamanam viduh' .. 15..

हलांगर में रिपुहर का, देवशाला में भगवान् त्रिविक्रम का, दशपुर में पुरुषोत्तम का, कुब्जतीर्थ में वामन का,

विद्याधरं वितस्तायां वाराहे धरणीधरम् ।
देवदारुवने गुह्यं कावेर्यां नागशायिनम् ॥ १६॥

vidyaadharam vitastaayaam vaaraahe dharaneedharam .
devadaaruvane guhyam kaaveryaam naagashaayinam .. 16..

वितस्ता में विद्याधर का, वाराहतीर्थ में धरणीधर का, देवदारुवन में गुहय का, कावेरीतट पर नागशायी का,

प्रयागे योगमूर्तिं च पयोष्ण्यां च सुदर्शनम् ।
कुमारतीर्थे कौमारं लोहिते हयशीर्षकम् ॥ १७॥

prayaage yogamoortim cha payoshnyaam cha sudarshanam .
kumaarateerthe kaumaaram lohite hayasheershakam .. 17..

प्रयाग में योगमूर्ति का पयोष्णीतट पर सुदर्शन का, कुमारतीर्थ में कौमार का, लोहित में हयग्रीव का,

उज्जयिन्यां त्रिविक्रमं लिङ्गकूटे चतुर्भुजम् ।
हरिहरं तु भद्रायां दृष्ट्वा पापात् प्रमुच्यते ॥ १८॥

ujjayinyaam trivikramam lingakoot'e chaturbhujam .
hariharam tu bhadraayaam dri'sht'vaa paapaat pramuchyate .. 18..

उज्जयिनी में त्रिविक्रम का, लिंगकूट पर चतुर्भुज का और भद्रा के तट पर भगवान् हरि का दर्शन करके मनुष्य सर्व पापों से मुक्त हो जाता है।

विश्वरूपं कुरुक्षेत्रे मणिकुण्डे हलायुधम् ।
लोकनाथमयोध्यायां कुण्डिने कुण्डिनेश्वरम् ॥ १९॥

vishvaroopam kurukshetre manikund'e halaayudham .
lokanaathamayodhyaayaam kund'ine kund'ineshvaram .. 19..

इसी प्रकार कुरुक्षेत्र में विश्वरुप का, मणिकुण्ड में हलायुध का, अयोध्या में लोकनाथ का, कुण्डिनपुर में कुण्डिनेश्वर का,

भाण्डारे वासुदेवं तु चक्रतीर्थे सुदर्शनम् ।
आढ्ये विष्णुपदं विद्याच्छूकरे शूकरं विदुः ॥ २०॥

bhaand'aare vaasudevam tu chakrateerthe sudarshanam .
aad'hye vishnupadam vidyaachchhookare shookaram viduh' .. 20..

भाण्डार में वासुदेव का, चक्रतीर्थ में सुदर्शन का, आढ्यतीर्थ में विष्णुपद का, शूकरक्षेत्र में भगवान् शूकर का,

ब्रह्मेशं मानसे तीर्थे दण्डके श्यामलं विदुः ।
त्रिकूटे नागमोक्षं च मेरुपृष्ठे च भास्करम् ॥ २१॥

brahmesham maanase teerthe dand'ake shyaamalam viduh' .
trikoot'e naagamoksham cha merupri'sht'he cha bhaaskaram .. 21..

मानसतीर्थ में ब्रहमेश का, में दण्डकतीर्थ  कादण्डकतीर्थ में श्यामल का, त्रिकूटपर्वत पर नागमोक्ष का, मेरु के शिखर पर भास्कर का,

विरजं पुष्पभद्रायां बालं केरलके विदुः ।
यशस्करं विपाशायां माहिष्मत्यां हुताशनम् ॥ २२॥

virajam pushpabhadraayaam baalam keralake viduh' .
yashaskaram vipaashaayaam maahishmatyaam hutaashanam .. 22..

पुष्पभद्रा के तट पर विरजका, केरलतीर्थ में बालरूप भगवान् का, विपाशा के तट पर भगवान् यशस्कर का, माहिष्मतीपुरी में हुताशन का,

क्षीराब्धौ पद्मनाभं तु विमले तु सनातनम् ।
शिवनद्यां शिवकरं गयायां च गदाधरम् ॥ २३॥

ksheeraabdhau padmanaabham tu vimale tu sanaatanam .
shivanadyaam shivakaram gayaayaam cha gadaadharam .. 23..

क्षीरसागर में भगवान् पद्मनाभ का, विमलतीर्थ में सनातन का, शिवनदी के तट पर भगवान् शिव का, गया में गदाधर का

सर्वत्र परमात्मानं यः पश्यति स मुच्यते ।
अष्टषष्टिश्च नामानि कथितानि मया तव ॥ २४॥

sarvatra paramaatmaanam yah' pashyati sa muchyate .
asht'ashasht'ishcha naamaani kathitaani mayaa tava .. 24..

और सर्वत्र ही जो परमात्मा का दर्शन करता है, वह इस संसार के चक्र से मुक्त हो जाता है।

क्षेत्राणि चैव गुह्यानि कथितानि विशेषतः ।
एतानि मम नामानि रहस्यानि प्रजापते ॥ २५॥

kshetraani chaiva guhyaani kathitaani visheshatah' .
etaani mama naamaani rahasyaani prajaapate .. 25..

ब्रह्माजी! ये अड़सठ नाम हमने तुम्हे बताये तथा विशेषतः गुप्ततीर्थो का भी वर्णन किया।

यः पठेत् प्रातरुत्थाय श‍ृणुयाद्वापि नित्यशः ।
गवां शतसहस्रस्य दत्तस्य फलमाप्नुयात् ॥ २६॥

yah' pat'het praatarutthaaya shri'nuyaadvaapi nityashah' .
gavaam shatasahasrasya dattasya phalamaapnuyaat .. 26..

जो पुरुष प्रतिदिन त्रिकालसंध्या में मेरे इन गुहयनामों का पाठ या श्रवण करेगा, वह नित्य एक लाख गोदान का फल पायेगा ।

दिने दिने शुचिर्भूत्वा नामान्येतानि यः पठेत् ।
दुःस्वप्नं न भवेत् तस्य मत्प्रसादान्न संशयः ॥ २७॥

dine dine shuchirbhootvaa naamaanyetaani yah' pat'het .
duh'svapnam na bhavet tasya matprasaadaanna samshayah' .. 27..

उसको मेरी कृपा से कभी दुःस्वप्न का दर्शन नहीं होता। वह उत्तम साधक सब पापों से मुक्त होकर मेरे लोक में आनन्द भोगता है।

अष्टषष्टिस्तु नामानि त्रिकालं यः पठेन्नरः ।
विमुक्तः सर्वपापेभ्यो मम लोके स मोदते ॥ २८॥

द्रष्टव्यानि यथाशक्त्या क्षेत्राण्येतानि मानवैः ।
वैष्णवैस्तु विशेषेण तेषां मुक्तिं ददाम्यहम् ॥ २९॥

asht'ashasht'istu naamaani trikaalam yah' pat'hennarah' .
vimuktah' sarvapaapebhyo mama loke sa modate .. 28..

drasht'avyaani yathaashaktyaa kshetraanyetaani maanavaih' .
vaishnavaistu visheshena teshaam muktim dadaamyaham .. 29.
.

सभी मनुष्यों विशेषतः वैष्णवों को चाहिये कि यथाशक्ति पूर्वोक्त पावन तीर्थो के दर्शन करें। जो लोग ऐसा करते हैं, उन्हें मैं परम स्थान प्रदान करता हूं।

सूत उवाच
हरिं समभ्यर्च्य तदग्रसंस्थितो हरिं स्मरन् विष्णुदिने विशेषतः ।
इमं स्तवं यः पठते स मानवः प्राप्नोति विष्णोरमृतात्मकं पदम् ॥ ३०॥

soota uvaacha
harim samabhyarchya tadagrasamsthito harim smaran vishnudine visheshatah' .
imam stavam yah' pat'hate sa maanavah' praapnoti vishnoramri'taatmakam padam ..

वैष्णव साधक को एकादशी, द्वादशी और पूर्णिमा तिथि पर विशेषतः भगवान् विष्णु की पूजा करके उनके सामने खड़े होकर भगवत्स्मरणपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये।

इति श्रीनरसिंहपुराणे आद्ये धर्मार्थमोक्षदयिनि विष्णुवल्लभे
पञ्चष्टितमोऽध्यायः ॥ ६५॥


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