Saraswati Kavacham is an armor of protection for the sadhak. Saraswati is the Goddess of knowledge, music, arts, and science. She is part of the Trinity of Saraswati, Lakshmi, and Parvati.
She is the Goddess of learning, memory, and mind power. Saraswati is the Goddess of Knowledge. She represents the union of power and intelligence from which organized creation arises.
Saraswati possesses all the teachings of the Vedas, scriptures, dancing, musical power, and poetry. She revealed language and writing to men. Her origin is the lost Vedic river Saraswati.
This is the source of her profound connection to fluidity in any aspect (water, speech, thought, etc.). She is wisdom, fortune, intelligence, nourishment, brilliance, contentment, splendor, and devotion.
This Kavacham was told by Lord Brahma and is a very powerful Kavach.
Those who practice this Saraswati Kavach are believed to become 'Brihaspati', the deva of wisdom, and have all their desires fulfilled and gain all knowledge.
Saraswati Kavacham Text
श्रीसरस्वतीकवचं ब्रह्मवैवर्तान्तर्गतम्
ब्रह्मोवाच ।
शृणु वत्स प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वकामदम् ।
श्रुतिसारं श्रुतिसुखं श्रुत्युक्तं श्रुतिपूजितम् ॥
brahmovaacha .
shri'nu vatsa pravakshyaami kavacham sarvakaamadam .
shrutisaaram shrutisukham shrutyuktam shrutipoojitam
वृहस्पति जी बोले- हे शिष्य ! सुनो! सम्पूर्ण कार्य पूरा करने वाले कवच को कहता हूँ । इस शुभ कवच को धारण करके सभी को पाठ करना चाहिए।
उक्तं कृष्णेन गोलोके मह्यं वृन्दावने वने ।
रासेश्वरेण विभुना रासे वै रासमण्डले ॥ ६४॥
uktam kri'shnena goloke mahyam vri'ndaavane vane .
raaseshvarena vibhunaa raase vai raasamand'ale
अतीव गोपनीयं च कल्पवृक्षसमं परम् ।
अश्रुताद्भुतमन्त्राणां समूहैश्च समन्वितम् ॥ ६५॥
ateeva gopaneeyam cha kalpavri'kshasamam param .
ashrutaadbhutamantraanaam samoohaishcha samanvitam
यद्धृत्वा पठनाद्ब्रह्मन्बुद्धिमांश्च बृहस्पतिः ।
यद्धृत्वा भगवाञ्छुक्रः सर्वदैत्येषु पूजितः ॥ ६६॥
yaddhri'tvaa pat'hanaadbrahmanbuddhimaamshcha bri'haspatih' .
yaddhri'tvaa bhagavaanchhukrah' sarvadaityeshu poojitah'
पठनाद्धारणाद्वाग्मी कवीन्द्रो वाल्मिको मुनिः ।
स्वायंभुवो मनुश्चैव यद्धृत्वा सार्वपूजितः ॥ ६७॥
pat'hanaaddhaaranaadvaagmee kaveendro vaalmiko munih' .
svaayambhuvo manushchaiva yaddhri'tvaa saarvapoojitah'
कणादो गौतमः कण्वः पाणिनिः शाकटायनः ।
ग्रन्थं चकार यद्धृत्वा दक्षः कात्यायनः स्वयम् ॥ ६८॥
kanaado gautamah' kanvah' paaninih' shaakat'aayanah' .
grantham chakaara yaddhri'tvaa dakshah' kaatyaayanah' svayam
धृत्वा वेदविभागं च पुराणान्यखिलानि च ।
चकार लीलामात्रेण कृष्णद्वैपायनः स्वयम् ॥ ६९॥
dhri'tvaa vedavibhaagam cha puraanaanyakhilaani cha .
chakaara leelaamaatrena kri'shnadvaipaayanah' svayam
शातातपश्च संवर्तो वसिष्ठश्च पराशरः ।
यद्धृत्वा पठनाद्ग्रन्थं याज्ञवल्क्यश्चकार सः ॥ ७०॥
shaataatapashcha samvarto vasisht'hashcha paraasharah' .
yaddhri'tvaa pat'hanaadgrantham yaajnyavalkyashchakaara sah'
ऋष्यशृङ्गो भरद्वाजश्चाऽऽस्तीको देवलस्तथा ।
जैगीषव्योऽथ जाबालिर्यत्द्धृत्वा सर्वपूजितः ॥ ७१॥
ri'shyashri'ngo bharadvaajashchaa''steeko devalastathaa
jaigeeshavyo'tha jaabaaliryatddhri'tvaa sarvapoojitah'
कवचस्यास्य विप्रेन्द्र ऋषिरेष प्रजापतिः ।
स्वयं बॄहस्पतिश्छन्दो देवो रासेश्वरः प्रभुः ॥ ७२॥
kavachasyaasya viprendra ri'shiresha prajaapatih' .
svayam bree'haspatishchhando devo raaseshvarah' prabhuh'
सर्वतत्त्वपरिज्ञाने सर्वार्थेऽपि च साधने ।
कवितासु च सर्वासु विनियोगः प्रकीर्तितः ॥ ७३॥
sarvatattvaparijnyaane sarvaarthe'pi cha saadhane .
kavitaasu cha sarvaasu viniyogah' prakeertitah'
ओं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा शिरो मे पातु सर्वतः ।
श्रीं वाग्देवतायै स्वाहा भालं मे सर्वदाऽवतु ॥ ७४॥
om hreem sarasvatyai svaahaa shiro me paatu sarvatah' .
shreem vaagdevataayai svaahaa bhaalam me sarvadaa'vatu
ॐ श्रीं ह्रीं सरस्वती के लिए स्वाहा, मेरे शिर की चारों ओर से रक्षा करे। ॐ श्रीं वाणी देवी के लिए स्वाहा मेरे ललाट की हमेशा रक्षा करें ।
ओं सरस्वत्यै स्वाहेति श्रोत्रं पातु निरन्तरम् ।
ओं श्रीं ह्रीं भार्त्यै स्वाहा नेत्रयुग्मं सदाऽवतु ॥ ७५॥
om sarasvatyai svaaheti shrotram paatu nirantaram .
om shreem hreem bhaartyai svaahaa netrayugmam sadaa'vatu
ॐ सरस्वती के लिए स्वाहा कान में निरन्तर रक्षा करें। ॐ ह्रीं श्रीं भगवती सरस्वती के लिए स्वाहा दोनों नेत्रों की रक्षा सदा करें।
ओं ह्रीं वाग्वादिन्यै स्वाहा नासां मे सर्वतोऽवतु ।
ह्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा श्रोत्रं सदाऽवतु ॥ ७६॥
om hreem vaagvaadinyai svaahaa naasaam me sarvato'vatu .
hreem vidyaadhisht'haatri'devyai svaahaa shrotram sadaa'vatu
ॐ ऐं ह्रीं वाग्वादिनी के लिए स्वाहा मेरे नाक को हमेशा रक्षा करें। ॐ ह्रीं विद्या अधिष्ठात्री देवी के लिए स्वाहा है वह मेरे ओष्ठों की रक्षा करें।
ओं श्रीं ह्रीं ब्राह्म्यै स्वाहेति दन्तपङ्क्तीः सदाऽवतु ।
ऐमित्येकाक्षरो मन्त्रो मम कण्ठं सदाऽवतु ॥ ७७॥
om shreem hreem braahmyai svaaheti dantapankteeh' sadaa'vatu .
aimityekaaksharo mantro mama kant'ham sadaa'vatu
ॐ श्रीं ह्रीं ब्राह्मी के लिए स्वाहा वे मेरी दाँत की पंक्ति में सदा रक्षा करें ॐ ऐं ऐसा कर अक्षर का मन्त्र मेरे कण्ठ की हमेशा रक्षा करें ।
ओं श्रीं ह्रीं पातु मे ग्रीवां स्कन्धं मे श्रीं सदाऽवतु ।
श्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा वक्षः सदाऽवतु ॥ ७८॥
om shreem hreem paatu me greevaam skandham me shreem sadaa'vatu .
shreem vidyaadhisht'haatri'devyai svaahaa vakshah' sadaa'vatu
ॐ श्रीं ह्रीं मेरे गले की रक्षा करें मेरे दोनों स्कन्धों की रक्ष करें। ॐ ह्रीं विद्या की अधिष्ठात्री देवी के लिए स्वाहा के वक्षस्थल की रक्षा हमेशा करें।
ओं ह्रीं विद्यास्वरूपायै स्वाहा मे पातु नाभिकाम् ।
ओं ह्रीं क्लीं वाण्यै स्वाहेति मम प्र्ष्ठं सदाऽवतु ॥ ७९॥
om hreem vidyaasvaroopaayai svaahaa me paatu naabhikaam .
om hreem kleem vaanyai svaaheti mama prsht'ham sadaa'vatu
ॐ ह्रीं विद्या अधिस्वरूपा के लिए स्वाहा वे मेरी नाभि की रक्षा करें। ॐ क्लीं वाणी के लिए स्वाहा वे मेरे दोनों हाथों की रक्षा सदा करें।
ओं सर्ववर्णात्मिकायै पादयुग्मं सदाऽवतु ।
ओं वागधिष्ठातृदेव्यै सर्वाङ्गं मे सदाऽवतु ॥ ८०॥
om sarvavarnaatmikaayai paadayugmam sadaa'vatu .
om vaagadhisht'haatri'devyai sarvaangam me sadaa'vatu
ॐ सभी वर्णात्मिका स्वरूपिणी देवी के लिए स्वाहा दोनों चरणों की सदा रक्षा करें। ॐ वाणी की अधिष्ठात्री देवी के लिए। स्वाहा सदा चारों ओर से रक्षा करें।
ओं सर्वकण्ठवासिन्यै स्वाहा प्रच्यां सदाऽवतु ।
ओं ह्रीं जिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहाऽग्निदिशि रक्षतु ॥ ८१॥
om sarvakant'havaasinyai svaahaa prachyaam sadaa'vatu .
om hreem jihvaagravaasinyai svaahaa'gnidishi rakshatu
ॐ सभी के कण्ठ में वास करने वाली के लिए स्वाहा पूर्व दिशा की रक्षा करें। ॐ सभी के जिह्वा के आगे रहने वाली के लिए स्वाहा आग्नेय दिशा की रक्षा करें।
ओं ऐं श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा ।
सततं मन्त्रराजोऽयं दक्षिणे मां सदाऽवतु ॥ ८२॥
om aim shreem hreem sarasvatyai budhajananyai svaahaa .
satatam mantraraajo'yam dakshine maam sadaa'vatu
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वती बुध जननी के लिए स्वाहा। ॐ निरन्तर यह मन्त्रों का राजा मेरे दक्षिण की ओर रक्षा करें।
ओं ह्रीं श्रीं त्र्यक्षरो मन्त्रो नैरॄत्यां मे सदाऽवतु ।
कविजिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहा मां वारुणेऽवतु ॥ ८३॥
om hreem shreem tryaksharo mantro nairree'tyaam me sadaa'vatu .
kavijihvaagravaasinyai svaahaa maam vaarune'vatu
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं तीन अक्षर का मंत्र नैर्ऋत्य में सदा रक्षा करें ॐ ऐं ह्रीं जिह्वा के आगे बैठने वाली के लिए स्वाहा, वे पश्चिम सदा रक्षा करें।
ओं सदम्बकायै स्वाहा वायव्यै मां सदाऽवस्तु ।
ओं गद्यपद्यवासिन्यै स्वाहा मामुत्तरेऽवतु ॥ ८४॥
om sadambakaayai svaahaa vaayavyai maam sadaa'vastu .
om gadyapadyavaasinyai svaahaa maamuttare'vatu
ॐ सबकी अम्बिका के लिए स्वाहा मेरे वायव्य में सदा करें। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं गद्य पद्य में निवास करने वाली के लिए स्वाहा मुझको उत्तर की ओर से सदा रक्षा करें।
ओं सर्वशास्त्रवासिन्यै स्वाहैशान्यां सदाऽवतु ।
ओं ह्रीं सर्वपूजितायै स्वाहा चोर्ध्वं सदाऽवतु ॥ ८५॥
om sarvashaastravaasinyai svaahaishaanyaam sadaa'vatu .
om hreem sarvapoojitaayai svaahaa chordhvam sadaa'vatu
ॐ ऐं सम्पूर्ण शास्त्र बोलने वाली के लिए स्वाहा ईशान को तरफ हमेशा रक्षा करें। ॐ ह्रीं सभा के द्वारा पूजिता के लिए स्वान ऊपर की ओर से हमेशा रक्षा करें।
ओं ह्रीं पुस्तकवासिन्यै स्वाहाऽधो मां सदाऽवतु ।
ओं ग्रन्थबीजरूपायै स्वाहा मां सर्वतोऽवतु ॥ ८६॥
om hreem pustakavaasinyai svaahaa'dho maam sadaa'vatu .
om granthabeejaroopaayai svaahaa maam sarvato'vatu
ॐ ह्रीं पुस्तकवासिनी के लिए स्वाहा नीचे से मुझे हमेशा रक्षा करें। ॐ ग्रंथ (धर्मशास्त्र) के बीज स्वरूपा के लिए स्वाहा मुझे 'चारों ओर से रक्षा करें।
इति ते कथितं विप्र सर्वमन्त्रौघविग्रहम् ।
इदं विश्वजयं नाम कवचं ब्रह्मारूपकम् ॥ ८७॥
iti te kathitam vipra sarvamantraughavigraham .
idam vishvajayam naama kavacham brahmaaroopakam
हे शिष्य! सम्पूर्ण पाप नाश करने वाला यह ब्रह्ममन्त्र तुमको बताया। यह विश्व विजय नामक ब्रह्म का रूप है।
पुरा श्रुतं धर्मवक्त्रात्पर्वते गन्ध्मादने ।
तव स्नेहान्मयाऽऽख्यातं प्रवक्तव्यं न कस्यचित् ॥ ८८॥
puraa shrutam dharmavaktraatparvate gandhmaadane .
tava snehaanmayaa''khyaatam pravaktavyam na kasyachit
गुरुमभ्यर्च्य विधिवद्वस्त्रालंकारचन्दनैः ।
प्रणम्य दण्डवद्भूमौ कवचं धारयेत्सुधीः ॥ ८९॥
gurumabhyarchya vidhivadvastraalankaarachandanaih' .
pranamya dand'avadbhoomau kavacham dhaarayetsudheeh'
पञ्चलक्षजपेनैव सिद्धं तु कवचं भवेत् ।
यदि स्यात्सिद्धकवचो बृहस्पतिसमो भवेत् ॥ ९०॥
panchalakshajapenaiva siddham tu kavacham bhavet .
yadi syaatsiddhakavacho bri'haspatisamo bhavet
महावाग्मी कवीन्द्रश्च त्रैलोक्यविजयी भवेत् ।
शक्नोति सर्व्ं जेतुं स कवचस्य प्रभावतः ॥ ९१॥
mahaavaagmee kaveendrashcha trailokyavijayee bhavet .
shaknoti sarvm jetum sa kavachasya prabhaavatah
इदं ते काण्वशाखोक्तं कथितं कवचं मुने ।
स्तोत्रं पूजाविधानं च ध्यानं वै वन्दनं तथा ॥ ९२॥
idam te kaanvashaakhoktam kathitam kavacham mune .
stotram poojaavidhaanam cha dhyaanam vai vandanam tathaa
इति श्री ब्रह्मवैवर्ते महापुराणे प्रकृतिखण्डे नारदनारायणसंवादे
सरस्वतीकवचं नाम चतुर्थोऽध्यायः ॥ ४॥
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