Asht Lakshmi Mala Mantra is a very effective mantra to obtain the divine blessings of Goddess Mahalakshmi. Ashtalakshmi or Asht Lakshmi is a group of eight Hindu Goddesses, the manifestations of Lakshmi, the Hindu Goddess of wealth, who preside over eight sources of wealth.
“Wealth” in the context of Ashta-Lakshmi means prosperity, good health, knowledge, strength, progeny, and power.
The eight forms of Lakshmi are Maha Lakshmi, Dhana Lakshmi, Aishwarya Lakshmi, Saubhagya Lakshmi, Santana Lakshmi, Rajya Lakshmi, Vijay Lakshmi, Vidya Lakshmi.
How To Perform The Asht Lakshmi Mala Mantra
- The seeker has to chant the mantra at an auspicious time.
- The sadhana can be started on any Friday, any Panchmi tithi, or any full moon night.
- Sit facing south after taking a bath.
- Worship the Guru and Mahalakshmi with incense, flowers, and sweets.
- Place the energized Asht Lakshmi Yantra in front.
- The best time to begin the sadhana is from 6 pm to 8 pm of the day.
- Make a resolution to fulfill the particular wishes.
- Chant the mantra 108 times with the help of energized Kamalghatta Mala.
- Do this sadhana for continous 21 days.
Asht Lakshmi Mala Mantra Viniyoga
asya shreeasht'alakshmeemaalaamantrasya - bhri'gu ri'shih' - anusht'up chhandah' - mahaalakshmeerdevataa - shreem beejam - hreem shaktih' - aim keelakam - shreeasht'alakshmeeprasaadasiddhyarthe jape viniyogah'
Asht Lakshmi Mala Mantra
om namo bhagavatyai lokavasheekaramohinyai, om eem aim ksheem, shree aadilakshmee, santaanalakshmee, gajalakshmee, dhanalakshmee, dhaanyalakshmee, vijayalakshmee,
veeralakshmee, aishvaryalakshmee, asht'alakshmee ityaadayah' mama hri'daye dri'd'hatayaa sthitaa sarvalokavasheekaraaya, sarvaraajavasheekaraaya, sarvajanavasheekaraaya sarvakaaryasiddhide, kuru kuru, sarvaarisht'am jahi jahi, sarvasaubhaagyam kuru kuru, om namo bhagavatyai shreemahaalaakshmyai hreem phat' svaahaa ..
अष्टलक्ष्मी मालामंत्र
विनियोगः-अस्य श्री अष्टलक्ष्मी माला मन्त्रस्य भृगुऋषि: अनुस्टुप छंद: महालक्ष्मी देवताः श्री बीजं ह्रीं शक्ति ऐं कीलकं श्री अष्टलक्ष्मी प्रसाद प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।।
*ॐ नमो भगवत्यै लोक वशीकर मोहिंन्यै ॐ ईं ऐं क्षीं श्री आदिलक्ष्मी संतानलक्ष्मी गजलक्ष्मी धनलक्ष्मी धान्यलक्ष्मी विजयलक्ष्मी वीरलक्ष्मी ऐश्वर्यलक्ष्मी अष्टलक्ष्मी इत्यादय: मम हृदये दृढ़तयां स्थिता सर्वलोक वशीकराय सर्वराज्य वशीकराय सर्वजन वशीकराय सर्वकार्यं सिद्धिदे कुरु कुरु सर्वारिष्टं जहि जहि सर्व सौभाग्यं कुरु कुरु ॐ नमो भगवत्यै श्री महालक्ष्मयै ह्रीं फट् स्वाहा।*
अष्टलक्ष्मी मालामंत्र विधि विधान
माला मंन्त्र एक माला (108बार) ही करने होते हैं शुक्रवार/पंचमी/पूर्णिमा को घी के दीपक जलाकर उसमें थोड़ा गुलाब इत्र डालकर कमलगट्टे की माला से,या कमल गट्टे की माला पहनकर् सफेद या लालआसन पर पश्चिम दिशा की तरफ मुख करके शाम 6 से 8 में संकल्प करके,गुरुदेव गणपति को प्रणाम करें। लक्ष्मी नारायण या गुरुदेव के यंत्र या चित्र का पंचोपचार पूजन गंध अक्षत गुलाब पुष्प धूप दीप एवं नैवैद्य(खीर,या दूध की मिठाई ) चढ़ा कर साधना करें। ज्यादा समस्या में 21 दिन लगातार साधना करें।साधना की सफलता के लिए गुरु मंत्र की एक माला पहले और साधना के बाद जरुर करें।
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र
इस स्तोत्र का पाठ नित्य या हर शुक्रवार को, घी का दीपक लगाकर गुलाब या कमल के पुष्प एवं दूध की खीर या मिठाई अर्पित की जाए तो व्यक्ति को जीवन में सुख तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही धन संबंधी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विष्णुवक्षः स्थलारूढे भक्तमोक्ष प्रदायिनी।।
शङ्ख चक्र गदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलम शुभ मङ्गलम।।
आद्य लक्ष्मी – पद्म पुराण में कथा है कि पार्वती के पूछने पर शिव जी बताते हैं कि देवी आद्य लक्ष्मी और विष्णु भगवान दोनों ही सर्वत्र व्याप्त हैं. देवी लक्ष्मी ही सबकी आदिभूता, त्रिगुणमयी और परमेश्वरी हैं. जो भक्त देवी आद्य लक्ष्मी की पूजा करता है उनके लिए संसार में कुछ भी अप्राप्य नहीं हैं. देवी आद्य लक्ष्मी का निवास सूर्य के मध्य में है. इस दृष्टि से देवी कुष्मांडा ही आद्य लक्ष्मी हैं |
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि, चन्द्र सहोदरि हेममये,
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनि, मंजुल भाषिणी वेदनुते।
पंकजवासिनी देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणी शान्तियुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, आद्य लक्ष्मी परिपालय माम्।।
धान्यलक्ष्मी – ये संसार में धान्य यानि अन्न या अनाज के रूप में वास करती हैं. धान्य लक्ष्मी को मां अन्नपूर्णा का ही एक रूप माना जाता है. इनको प्रसन्न करने के लिए कभी भी अनाज या खाने का अनादर नहीं करना चाहिए |
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनी, वैदिक रूपिणि वेदमये,
क्षीर समुद्भव मंगल रूपणि, मन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते।
मंगलदायिनि अम्बुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धान्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।
धैर्य लक्ष्मी – मां लक्ष्मी का ये रूप भक्तों को धैर्य लक्ष्मी प्रदान करती है, जिससे ऐसी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, जो धैयपूर्वक आपके पास निवास करती है.
जयवरवर्षिणी वैष्णवी भार्गवि, मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये,
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते।
भवभयहारिणी पापविमोचिनी, साधु जनाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।
गजलक्ष्मी – गज लक्ष्मी हाथी के ऊपर कमल के आसन पर विराजमान हैं. मां गज लक्ष्मी को कृषि और उर्वरता की देवी के रूप में पूजा जाता है. इनकी आराधना से संतान की प्राप्ति होती है. राजा को समृद्धि प्रदान करने के कारण इन्हें राज लक्ष्मी भी कहा जाता है |
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये,
रथगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मण्डित लोकनुते।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणी पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, गजरूपेणलक्ष्मी परिपालय माम्।।
संतानलक्ष्मी – संतान लक्ष्मी को स्कंदमाता के रूप में भी जाना जाता है. इनके चार हाथ हैं तथा अपनी गोद में कुमार स्कंद को बालक रूप में लेकर बैठी हुई हैं. माना जाता है कि संतान लक्ष्मी भक्तों की रक्षा अपनी संतान के रूप में करती हैं |
अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणि, राग विवर्धिनि ज्ञानमये,
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि, सप्तस्वर भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर, मानव वन्दित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम्।।
विजयलक्ष्मी – माता लक्ष्मी के इस रूप को जय लक्ष्मी या विजय लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है. मां के इस रूप की साधना से भक्तों की जीवन के हर क्षेत्र में जय–विजय की प्राप्ति होती है. जय लक्ष्मी मां यश, कीर्ति तथा सम्मान प्रदान करती हैं |
जय कमलासिनि सद्गति दायिनि, ज्ञान विकासिनी ज्ञानमये,
अनुदिनमर्चित कुन्कुम धूसर, भूषित वसित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित, शंकरदेशिक मान्यपदे,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, विजयलक्ष्मी परिपालय माम्।।
विद्यालक्ष्मी – मां के अष्ट लक्ष्मी स्वरूप का आठवां रूप विद्या लक्ष्मी है. ये ज्ञान, कला तथा कौशल प्रदान करती हैं. इनका रूप ब्रह्मचारिणी देवी के जैसा है. इनकी साधना से शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है |
प्रणत सुरेश्वर भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये,
मणिमय भूषित कर्णविभूषण, शान्ति समावृत हास्यमुखे।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम्।।
धनलक्ष्मी – मां लक्ष्मी के स्वरूप को धन लक्ष्मी कहा जाता है. इनके एक हाथ में धन से भरा कलश है तथा दूसरे हाथ में कमल का फूल है. धन लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं तथा कर्ज से मुक्ति मिलती है. पुराणों के अनुसार, मां लक्ष्मी ने ये रूप भगवान विष्णु को कुबेर के कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिया था.
धिमिधिमि धिन्दिमि धिन्दिमि, दिन्धिमि दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये,
घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंम, शंख निनाद सुवाद्यनुते।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित, वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धनलक्ष्मी रूपेणा पालय माम्।।
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विष्णु वक्षरूस्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी।।
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयरू।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्।।
इस प्रकार अष्ट लक्ष्मी की पूजा एवं मंत्रजप, दान तथा सत्संग करने से जीवन में समस्त कष्ट अवश्य दूर होंगे |
।इति श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम सम्पूर्णम ।