Durga Devi Apradh Kshamapan Stotram is a stotra in which the sadhak begs forgiveness from the mother for all his good and bad karmas. The stotra is from Durga Saptashati.
There is no such divine stotra of Goddess Durga like Durga Devi Apradh Kshamapan Stotram. This stotra aligns a sadhak with Goddess Durga's divine and unfailing grace.
One should always practice this Durga stotra after worshipping the Goddess Durga. The sadhak who practices this stotra feels a difference in the quality of their lives.
यहमाँ दुर्गा का एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, यदि आपसे माँ दुर्गा की पूजा में कोई त्रुटी हो गयी है, आपको लगे कि किसी ने आपके उपर तंत्र प्रयोग कर दिया है, जिसके कारण आपकी शक्ति काम नहीं कर रही है या नष्ट हो गयी है, तो आप रात्रि के समय, 9 बजे से 11 बजे के बीच लाल के ऊनऊनी आसन पर बैठकर, पूर्व दिशा की और मुख करके, देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् के 1,3, या 5 पाठ अवश्य ही करें, उसके बाद आप माँ दुर्गा की आरती करें।
इस तरह पाठ करने से माँ प्रसन्न होती है, और आपकी गलती को क्षमा करके माँ आपकों आशिर्वाद प्रदान करती है।
Durga Devi Apradh Kshamapan Stotram
देव्पराधक्षमापनस्तोत्रम्
न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा:।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्॥1॥
Na mantraṁ nō yantraṁ tadapi ca na jānē stutimahō
na cāhvānaṁ dhyānaṁ tadapi ca na jānē stutikathā:.
Na jānē mudrāstē tadapi ca na jānē vilapanaṁ
paraṁ jānē mātastvadanusaraṇaṁ klēśaharaṇam.
माँ ! मैं न मन्त्र जानता हूँ, न यंत्र; अहो! मुझे स्तुति का भी ज्ञान नहीं है. न आवाहन का पता है, न ध्यान का. स्तोत्र और कथा की भी जानकारी नहीं है. न तो तुम्हारी मुद्राएँ जानता हूँ और न मुझे व्याकुल होकर विलाप करना हि आता है; परन्तु एक जानता हूँ, केवल तुम्हारा अनुसरण करना- तुम्हारे पीछे चलना, जो कि सब क्लेशों को समस्त दुःख विपत्तियों को हर लेने वाला है.
Oh! I don’t know the Mantra, the Yantra, or the Eulogies. I don’t even know how to invoke You, how to meditate on You, and even the speech behind Your eulogies. I don’t know the postures [in which to say eulogies], and I don’t know how to wail. [But] O Mother! I know that following You absolves the biggest distresses.||1||
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति॥2॥
vidheragyaanen dravinavirahenaalasataya
vidheyaashakyatvaattav charanayorya chyutirabhoot.
tadetat kshantavyan janani sakaloddhaarini shive
kuputro jaayet kv chidapi kumaata na bhavati.
सब का उद्धार करने वाली कल्यान्मायी माता ! में पूजा की विधि नहीं जानता, मेरे ओआस धन का भी अभाव है, में स्वभा से भी आलसी हूँ तथा मुझसे ठीक-ठीक पूजा का सम्पादन भी नहीं हो सकता; इन सब कारणों से तुम्हारे चरणों की सेवा में जो त्रुटि हो गयी है, उसे क्षमा करना; क्योंकि कुपुत्र का होना संभव है, किन्तु कहीं भी कुमाता नहीं होती.
The offerings — due to the lack of knowledge of methodology, by the lack of resources, by indolence, or due to the lack of strength for submission — fell [by me] on Your dual feet, forgive all those mistakes, O Mother! O Shiva, Who absolves everyone! Because a son can become bad or ignorant about his duties as an offspring, but the Mother always remains a Mother.||2||
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:
परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुत:।
मदीयोऽयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति॥3॥
Pr̥thivyāṁ putrāstē janani bahava: Santi saralā:
Paraṁ tēṣāṁ madhyē viralataralōhaṁ tava suta:.
Madīyō̕yaṁ tyāga: Samucitamidaṁ nō tava śivē
kuputrō jāyēta kva cidapi kumātā na bhavati.3
माँ ! इस पृथ्वी पर तुम्हारे सीधे साधे पुत्र तो बहुत से हैं, किन्तु उन सब में मैं ही अत्यंत चपल तुम्हारा बालक हूँ मेरे जैसा चंचल कोई विरला हि होगा. शिवे मेरा जो यह त्याग हुआ है, यह तुम्हारे लिए कदापि उचित नहीं है; क्योकि संसार में कुपुत्र का होना संभव है, किन्तु कहीं भी कुमाता नहीं होती.
O, Mother! There are many sons of yours on this earth and they are gentle. Amidst them, I am Your son, who is extremely libidinous. I have feelings of possession, and I have no compassion within me. But I am Yours, O Shiva! A son can become bad or ignorant about his duties as an offspring, but the Mother always remains a Mother.||3||
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति॥4॥
Jaganmātarmātastava caraṇasēvā na racitā
na vā dattaṁ dēvi draviṇamapi bhūyastava mayā.
Tathāpi tvaṁ snēhaṁ mayi nirupamaṁ yatprakuruṣē
kuputrō jāyēta kva cidapi kumātā na bhavati.
जगदम्ब ! माता, मैंने तुम्हारे चरणों की सेवा कभी नहीं की, देवि! तुम्हे अधिक धन भी समर्पित नहीं किया; तथापि मुझ जैसे अधम पर जो तुम अनुपम स्नेह करती हो, इसका कारण यही है कि संसार में कुपुत्र पैदा हो सकता है परन्तु कहीं भी कुमाता नहीं होती.
O, Mother! O Mother of the world! Your feet have not been engaged upon [by me] and, even more so, your feet have not been submitted with offerings by me. Even then, you shower immaculate benevolence on me. Because a son can become bad or ignorant about his duties as an offspring, but the Mother always remains a Mother.||4||
परित्यक्ता देवा विविधविधिसेवाकुलतया
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्॥5॥
parityakta deva vividhavidhisevaakulataya
maya panchaasheeteradhikamapaneete tu vayasi.
idaaneen chenmaatastav yadi krpa naapi bhavita
niraalambo lambodara janani kan yaami sharanam.
गणेश जी को जन्म देने वाली माता पार्वती! [ अन्य देवताओं की आराधना करते समय ] मुझे नाना प्रकार की सेवाओं में व्यग्र रहना पड़ता था, इसलिए पचासी वर्ष से अधिक अवस्था हो जाने पर आइने देवताओं को छोड़ दिया है, अब उनकी सेवा-पूजा मुझसे नहीं हो पाती; अतएव उनसे कुछ भी सहायता मिलने की आशा नहीं है. इस समय यदि तुम्हारी कृपा नहीं होगी तो मैं अवलम्बरहित होकर किसकी शरण मैं जाउंगा.
At an age of more than eighty-five years, by me, who lacks the prowess to perform various rituals, the Devas have been left alone. O Mother of Lambodar (Parvati)! Now, in this situation, if Your benevolence does not happen to me, then, I, the unsupported one, will take whose refuge?||5||
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरित चिरं कोटिकनकै:।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जन: को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ॥6॥
Śvapākō jalpākō bhavati madhupākōpamagirā
nirātaṅkō raṅkō viharita ciraṁ kōṭikanakai:.
Tavāparṇē karṇē viśati manuvarṇē phalamidaṁ
jana: Kō jānītē janani japanīyaṁ japavidhau.
माता अपर्णा ! तुम्हारे मन्त्र का एक अक्षर भी कान में पड़ जाय तो उसका फल यह होता है कि मुर्ख चांडाल भी मधुपाक के समान मधुर वाणी का उच्चारण करने वाला उत्तम वक्ता हो जाता है, दीन मनुष्य भी करोड़ों स्वर्णमुद्राओं से संपन्न हो चिरकाल तक निर्भय विहार करता रहता है. जब मन्त्र के एक अक्षर श्रवण का ऐसा फल है तो जो लोग विधि पूर्वक जप में लगे रहते हैं, उनके जप से प्राप्त होने वाला उत्तम फल कैसा होगा ? इसको कौन मनुष्य जान सकता है.
O Aparna! A dog-eater (Chandala) becomes a talkative person with honey-like sweet words coming out from the tongue, and a poor man roams fearlessly for a long time in golden riches when the chants of Your name fall [seat] inside the ear of anyone. O, Mother! Then, in that case, who can know the achievements due to continuous chants of Your name based on the appropriate rules||6||
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति:।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्॥7॥
Citābhasmālēpō garalamaśanaṁ dikpaṭadharō
jaṭādhārī kaṇṭhē bhujagapatihārī paśupati:.
Kapālī bhūtēśō bhajati jagadīśaikapadavīṁ
bhavāni tvatpāṇigrahaṇaparipāṭīphalamidam.
भवानी ! जो अपने अंगों में चिता की राख-भभूत लपेटे रहते हैं, विष ही जिनका भोजन है, जो दिगंबरधारी ( नग्न रहने वाले ) हैं, मस्तक पर जटा और कंठ में नागराज वासुकि को हार के रूप में धारण करते हैं तथा जिनके हाथ में कपाल ( भिक्षापात्र ) शोभा पाता है, ऐसे भूतनाथ पशुपति भी जो एकमात्र ‘जगदीश’ की पदवी धारण करते हैं, इसका क्या कारण है? यह महत्त्व उन्हें कैसे मिला ; यह केवल तुम्हारे पाणिग्रहण की परिपाटी का फल है; तुम्हारे साथ विवाह होने से हि उनका महत्त्व बाद गया.
Kapali, Who has ashes from the burnt corpses on the body, Who has the directions as clothes (cloth-less), Who has thick trees-locks, Who has a garland of the king of snake in the neck, Who is known as Pashupati, and Who is the ruler of ghosts, attains the position of poison-destroyer and Lord of the world. O Bhavani! This is just a result of the addition of You as His consort.||7||
न मोक्षस्याकाड्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुन:।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपत:॥8॥
Na mōkṣasyākāḍkṣā bhavavibhavavāñchāpi ca na mē
na vijñānāpēkṣā śaśimukhi sukhēcchāpi na puna:.
Atastvāṁ sanyācē janani jananaṁ yātu mama vai
mr̥ḍānī rudrāṇī śiva śiva bhavānīti japata:.
मुख में चन्द्रमा की शोभा धारण करने वाली माँ ! मुहे मोक्ष की इच्छा नहीं है, संसार के वैभव की अभिलाषा नहीं हैं; न विज्ञान की अपेक्षा है; न सुख की आकांक्षा; अतः तुमसे मेरी यही याचना है कि मेरा जन्म ‘मृडाणी, रुद्राणी, शिव, शिव, भवानी’ इन नामों का जप करते हुए बीते.
I don’t have the desire to attain Moksha, nor do I have the desire to attain luxuries and resplendence in the world. I don’t have expectations of science, and O the Moon-faced Goddess! I don’t even desire luxuries and comfort. O, Mother! Thus, I beg You, that whenever I am born, give me the chanting of these names — Mridani, Rudrani, Shiv, Bhavani.||8||
नाराधितासि विधिना विविधोपचारै:
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभि:।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव॥9॥
Nārādhitāsi vidhinā vividhōpacārai:
Kiṁ rukṣacintanaparairna kr̥taṁ vacōbhi:.
Śyāmē tvamēva yadi kiñcana mayyanāthē
dhatsē kr̥pāmucitamamba paraṁ tavaiva.
माँ श्यामा ! नाना प्रकार की पूजन सामग्रियों से कभी विधिपूर्वक तुम्हारी आराधना मुझसे न हो सकी. सदा कठोर भाव का चिंतन करने वाली मेरी वाणी ने कौन सा अपराध नहीं किया है ! फिर भी तुम स्वयं ही प्रयत्न करके मुह अनाथ पर जो कुछ भी कृपा दृष्टि करती हो, माँ ! यह तुम्हारे हि योग्य है. तुम्हारे जैसी दयामयी माता ही मेरे जैसे कुपुत्र को भी आश्रय दे सकती है.
O Shyama! You are not revered by me, using methods or various prescriptions. I didn’t do anything beyond the rough thinking and speech. But even then, if You keep me, the destitute and orphan, in benevolence, then it suits You; since You indeed are beyond everything, O Mother!||9||
आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथा:
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति॥10॥
aapatsu magn: smaranam tvadeeyan
karomi durge karunaarnaveshi.
naitachchhathatvan mam bhaavayetha:
kshudhaatrshaarta jananeen smaranti.
माता दुर्गे ! करुनासिंधु महेश्वरी ! मैं विपत्तियों में फंसकर आज जो तुम्हारा स्मरण करता हूँ, इसे मेरी शठता न मान लेना; क्योंकि भूख प्यास से पीड़ित बालक माता का ही स्मरण करते हैं.
O Durga, who is the abode of the ocean of mercy! When I remember you in troublesome situations, don’t think it is stupidity. It is because when a child is hungry, the child only remembers the Mother.||10||
जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।
अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम्॥11॥
Jagadamba vicitramatra kiṁ paripūrṇā karuṇāsti cēnmayi.
Aparādhaparamparāparaṁ na hi mātā samupēkṣatē sutam.
जगदम्ब ! मुह पर जो तुम्हारी पूर्ण कृपा बनी हुई है, इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है, पुत्र अपराध पर अपराध क्यों न करता जा रहा हो, फिर भी माता उसकी उपेक्षा नहीं करती.
O Mother of the world! You are full of benevolence for me; [but] what is the surprise in this? [Because] Even when a son is full of faults, the Mother does not ignore or disown the child.||11||
मत्सम: पातकी नास्ति पापन्घी त्वत्समा न हि।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथा योग्यं तथा कुरु॥12॥
matsam: paatakee naasti paapanghee tvatsama na hi.
evan gyaatva mahaadevi yatha yogyan tatha kuru.
महादेवि ! मेरे समान कोई पातकी नहीं है और तुम्हारे समान दूसरी कोई पापहारिणी नहीं है; ऐसा जानकार जो उचित जान पड़े, वह करो.
O Mahadevi! There is no fallen one like me, and there is indeed no absolver of sins like You. Knowing this, You do what You think is appropriate.||12||