Tripur Sundari Devi Suktam is a Stotra that is very secretive and authentic, but it is Guru-Gamya. That is, it becomes beneficial only after receiving it from the Guru. If this hymn is repeated continuously for three years, then surely the seeker gets a vision of Bhagwati Tripura Sundari.
A seeker who recites this Stotra regularly becomes the master of all siddhis, the one who dominates everywhere and commands the world. Wealth and all luxury become his slaves. Mother Saraswati resides on his tongue.
A seeker having all the above cravings should sit at the feet of Shri Guru and acquire this Stotra from his Guru. Those seekers who are not initiated into Shri Vidya should first get initiation of Shri Vidya from their Gurudev.
भगवती महात्रिपुर सुन्दरी का यह स्तोत्र अत्यन्त ही गोपनीय एवं प्रमाणित है, लेकिन यह गुरू-गम्य है। अर्थात् गुरू- मुख से प्राप्त करने के उपरान्त ही यह फलदायी होता है। यदि इस सूक्त का पाठ निरंतर तीन सालों तक किया जाये तो निश्चित रूप से साधक को भगवती त्रिपुर सुंदरी का साक्षात्कार होता है।
इस स्तोत्र का नित्य पाठ करने वाला साधक समस्त सिद्धियों का स्वामी, सर्वत्र विजय प्राप्त करने वाला एवं संसार को वश में करने वाला। हो जाता है। धन एवं सभी ऐश्वर्य उसके दास हो जाते हैं। उसकी जिह्वा पर साक्षात मां सरस्वती का निवास हो जाता है।
उपरोक्त समस्त इच्छाएं रखने वाले साधक को चाहिए कि वह श्री गुरू-चरणों में बैठकर इस स्तोत्र को प्रयत्नपूर्वक प्राप्त करे । जो साधक श्री विद्या में दीक्षित नही हैं वो सर्वप्रथम श्री विद्या की दीक्षा अपने गुरूदेव से प्राप्त करें ।
Tripur Sundari Devi Suktam Text
विनियोग-
ॐ अस्य श्री परमदेवता सूक्त माला मन्त्रस्य मार्कण्डेय सुमेधादि- ऋषयः, गायत्र्यादि नानाविधानीच्छन्दांसि, त्रिशक्ति-रूपिणी चण्डिका देवता, ऐं बींज सौः शक्तिः, क्लीं कीलकं चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । इसके उपरान्त ध्यान करें।
ध्यान
ॐ योगाढ्यामरकाय निर्गत महत्तेजः समुत्पत्तिनी । भास्वत्पूर्ण शशांक चारू वदना नीलोल्लसद् भ्रूलता ।। गौरोत्तुंग-कुचद्वया तदुपरि स्फूर्जप्रभामण्डला बन्धूकारूणकाय- कान्तिरवताच्छ्री चण्डिका सर्वतः ।।
भगवती महात्रिपुर सुन्दरी पाठ I
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं हस्ख्फ्रें इसौं ह्सौः जय जय महालक्ष्मि जगदाधारबीजे सुरासुर त्रिभुवन निधाने दयांकुरे सर्वदेवतेजो रूपिणि महामहा महिमे महा महा रूपिणि महामहामाये महामायास्वरूपिणि विरिंच संस्तुते विधिवरदे चिदानन्दे (विद्यानन्दे) विष्णुदेहावृते महामोह मोहिनि मधुकैटभ जिंघासिनि नित्यवरदान तत्परे महासुधाब्धिवासिनि महामहत्तेजोधारिणि सर्वाधारे सर्वकारणकारणे आदित्यरूपे इन्द्रादिनिखिलनिर्जरसेविते सामगानगायिनि पूर्णोदय कारिणि विजये जयन्ति अपराजिते सर्वसुन्दरि सक्तांशुके सूर्यकोटिसंकाशे
चन्द्रकोटिसुशीतले अग्निकोटि दहनशीले यमकोटिकरे वायुकोटिवहनसुशीले ओंकारनाद चिद्रूपे निगमागममार्गदायिनि महिषासुरनिर्दलनि धूम्रलोचनवधपरायणे चण्डमुण्डादि शिरश्छेदिनि रक्तबीजादि रूधिरशोषिणि रक्तपानप्रिये महायोगिनि भूतबेताल भैरवादितुष्टि विधायिनि शुम्भनिशुम्भशिरश्छेदिनि निखिलासुरदलखादिनि त्रिदशराज्यदायिनि सर्वस्त्रीरत्नरूपिणि दिव्यदेहे निर्गुणे सदसद्रूपधारिणि स्कन्दवरदे भक्तत्राणतत्परे वरवरदे सहस्रारे दशशताक्षरे अयुताक्षरे सप्तकोटि चामुण्डारूपिणि नवकोटिकात्यायनिरूपिणि अनेकशक्त्या लक्ष्यालक्ष्य स्वरूपे इन्द्राणि ब्रह्माणि रूद्राणि कौमारि वैष्णवि वाराहि शिवदूति ईशानि भीमे भ्रममरि नारसिंहि त्रयस्त्रिंशत्कोटि दैवते अनन्तकोटि ब्रह्माण्डनायिके चतुरशीतिलक्षमुनिजनसंस्तुते सप्तकोटि मन्त्रस्वरूपे महाकालरात्रिप्रकाशे कलाकाष्ठादिरूपिणि चतुर्दशभुवनाविर्भावकारिणि गरूडगामिनि कौंकार-कार ह्रौंकार-कार ह्रींकार-श्रींकार-क्षौंकार- जुंकार-सौंकार-ऐंकार-क्लींकार-हूक्लींकार हूक्लांकार-हौंकार-नानाबीज-मन्त्रराज-विराजित सकलसुन्दरीगणसेवितचरणारविन्दे
श्री-महारात्रि-त्रिपुरसुन्दरी-कामेशदयिते करुणारसकल्लोलिनि कल्पवृक्षाधः स्थिते चिन्तामणिद्वीपावस्थित-मणिमन्दिरनिवासे चापिनि खड्गिनि चक्रिणि गदिनि शंखिनि पद्मिनि निखिल भैरवाराधिते समस्तयोगिनिचकपरिवृते कालि कंकालि तारे तोतुले सुतारे ज्वालामुखि छिन्नमस्तके भुवनेश्वरि त्रिपुरे त्रिलोक जननि विष्णुवक्षः स्थलालंकारिणि अजिते अमिते अपराजिते अनौपमचरिते गर्भवासादि दुःखापहारिणि मुक्तिक्षेत्राधिष्ठायिनि शिवे शान्ति कुमारि देवि देवीसूक्तसंस्तुते महाकालि महालक्ष्मि महासरस्वति त्रयी विग्रहे प्रसीद प्रसीद सर्वमनोरथान् पूरय पूरय सर्वारिष्ट-विघ्नांश्छेदय छेदय सर्वग्रहपीडाज्वरोग्रभयः विध्वंसय विध्वंसय सद्यस्त्रिभुवन जीवजात वशमानय वशमानय मोक्षमार्गं दर्शय दर्शय ज्ञानमार्गं प्रकाशय प्रकाशय अज्ञानतमो निरस्य निरसय धनधान्याभिवृद्धिं कुरू I कुरू सर्वकल्याणानि कल्पय कल्पय मां रक्ष रक्ष मम वज्रशरीरं साधय साधय ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वाहा नमस्ते नमस्ते नमस्ते स्वाहा।
श्री विद्या ललिता त्रिपुर सुन्दरी धन, ऐश्वर्य, भोग एवं मोक्ष की अधिष्ठाता देवी हैं। अन्य विद्याओं की उपासना में या तो भोग मिलता है या फिर मोक्ष, लेकिन श्री विद्या का उपासक जीवन पर्यन्त सारे ऐश्वर्य भोगते हुए अन्त में मोक्ष को प्राप्त करता है।
उपासना तंत्र शास्त्रों में अति रहस्यमय एवं गुप्त रूप से प्रकट की गयी है। पूर्व जन्म के विशेष संस्कारों के बलवान होने पर ही इस विद्या की दीक्षा का योग बनता है। ऐसे बहुत ही कम लोग होते हैं जिन्हे इस जीवन में यह उपासना करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
मुख्य रूप से इनके तीन स्वरूपों की पूजा होती है। प्रथम आठ वर्षीया स्वरूप बाला त्रिपुरसुन्दरी, द्वितीय सोलह वर्षीया स्वरूप षोडशी, तृतीय युवा अवस्था स्वरूप ललिता त्रिपुरसुन्दरी। श्री विद्या साधना में कम दीक्षा का विधान है एवं सर्वप्रथम बाला सुन्दरी के मंत्र की दीक्षा साधको को दी जाती है।