Chandi Kavacham is an armor of protection for the seeker. Chandi is regarded as the most ferocious form of Adi Parashakti. Chandi is a Hindu Goddess and is the combined form of Mahakali, Lakshmi, & Saraswati. Chandi is the supreme goddess in Devi Mahatmya.
Devi Kavacham shloka summons Goddess Devi as the chant cites diverse names of the Devi bonded to different parts of the body. Every name has a distinct quality and energy. There is a close connection between these names and forms. Chanting Devi Kavacham is famous during Navaratri.
Shlokas (chant) have the potential to turn around negative, repulsive vibrations into more positive and attractive vibrations. This is the advantage of chanting a shloka. Those who recite Devi Kavacham regularly, with sincere devotion and correct pronunciation, claim to be protected from all ills.
It is also acknowledged that by vocalizing Devi Kavacham, one gets health miracles too. Experts suggest reciting Devi Kavacham every day, while keeping Devi Kavach Yantra or Durga Idol at the site of worship, to reap the benefits.
चंडी को आदि पराशक्ति का सबसे क्रूर रूप माना जाता है। चंडी एक हिंदू देवी हैं और महाकाली, लक्ष्मी और सरस्वती का संयुक्त रूप हैं। देवी महात्म्य में चंडी सर्वोच्च देवी हैं।
Chandika's form is said to be extremely ferocious and inaccessible because of her anger. She cannot tolerate evil acts. Chandika does not like evildoers and becomes terribly angry at seeing them. She slays evildoers without mercy. In Devi Mahatmya, her anger is depicted.
चंडिका रूप उनके क्रोध के कारण अत्यंत क्रूर और दुर्गम कहा जाता है। वह बुरे कामों को बर्दाश्त नहीं कर सकती। चंडिका को दुष्ट कर्ता पसंद नहीं हैं और उन्हें देखकर बहुत गुस्सा आता है। वह दया के बिना बुराई करने वालों को मार डालता है। उनका क्रोध देवी महात्म्य में व्यक्त होता है।
Chandi is the destructive power of time. And all things are subject to decay and death in the course of time. Chandi is present everywhere and at all times. She is a destructive aspect of Adi Parashakti, the goddess of time. Pray to her for fearlessness in the face of death.
चंडी समय की विनाशकारी शक्ति है। और सभी चीजें समय के साथ क्षय और मृत्यु के अधीन हैं, चंडी हर जगह और हर समय मौजूद है। वह समय की देवी आदि पराशक्ति का विनाशकारी पहलू है। मृत्यु के सामने निर्भयता के लिए उससे प्रार्थना करें।
In the Varaha Purana, it is mentioned that the Chandi Kavach is the request made by Sage Markandeya to Lord Brahma, asking him to reveal the secret of Chandi. The Kavach reveals the incredible names of Chandi. Reciting this Chandi Kavach is a way to receive the blessings of Chandi, the Goddess of victory & war.
चंडी कवच ऋषि मार्कण्डेय द्वारा भगवान ब्रह्मा से चंडी के रहस्य को प्रकट करने का अनुरोध है और वराह पुराण में इसका उल्लेख है। कवच में चंडी के अद्भुत नामों का पता चलता है। इस चंडी कवच को विजय और युद्ध की देवी चंडी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पाठ किया जाता है।
माँ दुर्गा का कवच अदभुत कल्याणकारी है। दुर्गा कवच मार्कंडेय पुराण से ली गई विशेष श्लोकों का एक संग्रह है और दुर्गा सप्तशी का हिस्सा है। नवरात्र के दौरान दुर्गा कवच का जाप देवी दुर्गा के भक्तों द्वारा शुभ माना जाता है। साधक अपने समक्ष देवी कवच यन्त्र व दुर्गा मूर्ति को रखे तो उत्तम रहता है |
Chandi Kavacham Hindi Meaning
चण्डीकवचम् ॥
श्रीगणेशाय नमः ।
अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः , अनुष्टुप् छन्दः ,
चामुण्डा देवता , अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम् ,
दिग्बन्धदेवतास्तत्वम् , श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।
ॐ नमश्चण्डिकायै ।
ॐमार्कण्डेय उवाच ।
ॐयद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १॥
ॐ चण्डिका देवीको नमस्कार है ।
मार्कण्डेयजीने कहा - पितामह ! जो इस संसारमें परम गोपनीय तथा मनुष्योंकी सब प्रकारसे रक्षा करनेवाला है और जो अबतक आपने दूसरे किसीके सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइये ॥ १ ॥
ब्रह्मोवाच ।
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् ।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने ॥ २॥
ब्रह्माजी बोले – ब्रह्मन् ! ऐसा साधन तो एक देवीका कवच ही है, जो गोपनीयसे भी परम गोपनीय, पवित्र तथा सम्पूर्ण प्राणियोंका उपकार करनेवाला है । महामुने ! उसे श्रवण करो ॥ २ ॥
प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥ ३॥
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रिश्च महागौरीति चाष्टमम् ॥ ४॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ॥ ५॥
देवीकी नौ मूर्तियाँ हैं, जिन्हें 'नवदुर्गा' कहते हैं । उनके पृथक्-पृथक् नाम बतलाये जाते हैं।दूसरी मूर्तिका नाम ब्रह्मचारिणी है। तीसरा स्वरूप चन्द्रघण्टा के नामसे प्रसिद्ध है। चौथी मूर्तिको कूष्माण्डा कहते हैं। पाँचवीं दुर्गाका नाम स्कन्दमाता" है देवीके छठे रूपको कात्यायनी कहते हैं। सातवाँ कालरात्रि और आठवाँ स्वरूप महागौरी के नामसे प्रसिद्ध है। नवीं दुर्गाका नाम सिद्धिदात्री है। ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान्के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं ॥ ३ - ५॥
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे ।
विषमे दुर्गे चैव भयार्ताः शरणं गताः ॥ ६॥
न तेषां जायते किञ्चिदशुभं रणसङ्कटे ।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं नहि ॥ ७॥
जो मनुष्य अग्निमें जल रहा हो, रणभूमिमें शत्रुओंसे घिर गया हो, विषम संकटमें फँस गया हो तथा इस प्रकार भयसे आतुर होकर जो भगवती दुर्गाकी शरणमें प्राप्त हुए हों, उनका कभी कोई अमङ्गल नहीं होता। युद्धके समय संकटमें पड़नेपर भी उनके ऊपर कोई विपत्ति नहीं दिखायी देती। उन्हें शोक, दुःख और भयकी प्राप्ति नहीं होती ॥ ६-७ ॥
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां सिद्धिः प्रजायते ।
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना ॥ ८॥
ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना ।
माहेश्वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना ॥ ९॥
माहेश्वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना ।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया ॥ १०॥
श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना ।
ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता ॥ ११॥
जिन्होंने भक्तिपूर्वक देवीका स्मरण किया है, उनका निश्चय ही अभ्युदय होता है। देवेश्वरि ! जो तुम्हारा चिन्तन करते हैं, उनकी तुम निःसंदेह रक्षा करती हो ॥ ८॥ चामुण्डा देवी प्रेतपर आरूढ़ होती हैं । वाराही भैंसेपर सवारी करती हैं । ऐन्द्रीका वाहन ऐरावत हाथी है । वैष्णवीदेवी गरुडपर ही आसन जमाती हैं ।॥ ९ ॥ माहेश्वरी वृषभपर आरूढ़ होती हैं। कौमारीका वाहन मयूर है। भगवान् विष्णुकी प्रियतमा लक्ष्मीदेवी कमलके आसनपर विराजमान हैं और हाथोंमें कमल धारण किये हुए हैं ॥१०॥ वृषभपर आरूढ़ ईश्वरी देवीने श्वेत रूप धारण कर रखा है। ब्राह्मी देवी हंसपर बैठी हुई हैं और सब प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित हैं ।॥ ११ ॥
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः ।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिता ॥ १२॥
इस प्रकार ये सभी माताएँ सब प्रकारकी योगशक्तियोंसे सम्पन्न हैं। इनके सिवा और भी बहुत-सी देवियाँ हैं, जो अनेक प्रकारके आभूषणोंकी शोभासे युक्त तथा नाना प्रकारके • रत्नोंसे सुशोभित हैं ।॥ १२ ॥
दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः ।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम् ॥ १३॥
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च ।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम् ॥ १४॥
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च ।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै ॥ १५॥
ये सम्पूर्ण देवियाँ क्रोधमें भरी हुई हैं और भक्तोंकी रक्षाके लिये रथपर बैठी दिखायी देती हैं। ये शङ्ख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मुसल, खेटक और तोमर, परशु तथा पाश, कुन्त और त्रिशूल एवं उत्तम शार्ङ्गधनुष आदि अस्त्र-शस्त्र अपने हाथोंमें धारण करती हैं ।
दैत्योंके शरीरका नाश करना, भक्तोंको अभयदान देना और देवताओंका कल्याण करना – यही उनके शस्त्र-धारणका उद्देश्य है ॥१३-१५॥
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे ।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनी ॥ १६॥
[कवच आरम्भ करनेके पहले इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिये - ] महान् रौद्ररूप, अत्यन्त घोर पराक्रम, महान् बल और महान् उत्साहवाली देवि ! तुम महान् भयका नाश करनेवाली हो, तुम्हें नमस्कार है ||१६||
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि ।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेयामग्निदेवता ॥ १७॥
दक्षिणेऽवतु वाराही नैरृत्यां खड्गधारिणी ।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद्वायव्यां मृगवाहिनी ॥ १८॥
तुम्हारी ओर देखना भी कठिन है । शत्रुओंका भय बढ़ानेवाली जगदम्बिके ! मेरी रक्षा करो । पूर्व दिशामें ऐन्द्री (इन्द्रशक्ति) मेरी रक्षा करे । अग्निकोणमें अग्निशक्ति, दक्षिण दिशामें वाराही तथा नैर्ऋत्यकोणमें खड्गधारिणी मेरी रक्षा करे । पश्चिम दिशामें वारुणी और वायव्यकोणमें मृगपर सवारी करनेवाली देवी मेरी रक्षा करे ।।१७-१८।
उदीच्यां रक्ष कौबेरि ईशान्यां शूलधारिणी ।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी मे रक्षेदधस्ताद्वैष्णवी तथा ॥ १९॥
उत्तरदिशामें कौमारी और ईशान कोणमें शूलधारिणी देवी रक्षा करे। ब्रह्माणि ! तुम ऊपरकी ओरसे मेरी रक्षा करो और वैष्णवीदेवी नीचेकी ओरसे मेरी रक्षा करे ॥ १९॥
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना ।
जया मे अग्रतः स्थातु विजया स्थातु पृष्ठतः ॥ २०॥इसी प्रकार शवको अपना वाहन बनानेवाली चामुण्डादेवी दसों दिशाओंमें मेरी रक्षा करे । जया आगेसे और विजया पीछेकी ओरसे मेरी रक्षा करे ||२०||
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता ।
शिखां मे द्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता ॥ २१॥
वामभागमें अजिता और दक्षिणभागमें अपराजिता रक्षा करे। उद्योतिनी शिखाकी रक्षा करे। उमा मेरे मस्तकपर विराजमान होकर रक्षा करे ॥२१॥
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद्यशस्विनी ।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके ॥ २२॥
ललाटमें मालाधरी रक्षा करे और यशस्विनीदेवी मेरी भौंहोंका संरक्षण करे। भौहोंके मध्यभागमें त्रिनेत्रा और नथुनोंकी यमघण्टादेवी रक्षा करे ||२२||
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी ।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शाङ्करी ॥ २३॥
दोनों नेत्रोंके मध्यभागमें शङ्खिनी और कानों में द्वारवासिनी रक्षा करे । कालिका देवी कपोलोंकी तथा भगवती शांकरी कानोंके मूलभागकी रक्षा करे ||२३||
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका ।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती ॥ २४॥
नासिकामें सुगन्धा और ऊपरके ओठमें चर्चिकादेवी रक्षा करे। नीचेके ओठमें अमृतकला तथा जिह्वामें सरस्वती देवी रक्षा करे ||२४||
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठमध्ये तु चण्डिका ।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥ २५॥
कौमारी दाँतोंकी और चण्डिका कण्ठप्रदेशकी रक्षा करे। चित्रघण्टा गलेकी घाँटीकी और महामाया तालुमें रहकर रक्षा करे ॥ २५ ॥
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद्वाचं मे सर्वमङ्गला ।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी ॥ २६॥
कामाक्षी ठोढ़ीकी और सर्वमङ्गला मेरी वाणीकी रक्षा करे। भद्रकाली ग्रीवामें और धनुर्धरी पृष्ठवंश (मेरुदण्ड) में रहकर रक्षा करे ॥ २६ ॥
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी ।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी ॥ २७॥
कण्ठके बाहरी भागमें नीलग्रीवा और कण्ठकी नलीमें नलकूबरी रक्षा करे। दोनों कंधोंमें खड्गिनी और मेरी दोनों भुजाओंकी वज्रधारिणी रक्षा करें ॥ २७ ॥
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीस्तथा ।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत् कुक्षौ रक्षेन्नलेश्वरी ॥ २८॥
दोनों हाथोंमें दण्डिनी और अंगुलियोंमें अम्बिका रक्षा करे। शूलेश्वरी नखोंकी रक्षा करे। कुलेश्वरी कुक्षि (पेट) में रहकर रक्षा करे ॥ २८ ॥
स्तनौ रक्षेन्महालक्ष्मीर्मनःशोकविनाशिनी ।
हृदये ललितादेवी उदरे शूलधारिणी ॥ २९॥
महादेवी दोनों स्तनोंकी और शोकविनाशिनी देवी मनकी रक्षा करे। ललिता देवी हृदयमें और शूलधारिणी उदरमें रहकर रक्षा करे ॥ २९ ॥
नाभौ च कामिनी रक्षेद्गुह्यं गुह्येश्वरी तथा ।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ॥ ३०॥
नाभिमें कामिनी और गुह्यभागकी गुह्येश्वरी रक्षा करे। पूतना और कामिका लिङ्गकी और महिषवाहिनी गुदाकी रक्षा करे ॥ ३० ॥
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी ।
जङ्घे महाबला प्रोक्ता सर्वकामप्रदायिनी ॥ ३१॥
भगवती कटिभागमें और विन्ध्यवासिनी घुटनोंकी रक्षा करे। सम्पूर्ण कामनाओंको देनेवाली महाबला देवी दोनों पिण्डलियोंकी रक्षा करे ॥ ३१ ॥
गुल्फयोर्नारसिंही च पादौ चामिततेजसी ।
पादाङ्गुलीः श्रीर्मे रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी ॥ ३२॥
नारसिंही दोनों घुट्ठियोंकी और तैजसी देवी दोनों चरणोंके पृष्ठभागकी रक्षा करे। श्रीदेवी पैरोंकी अंगुलियोंमें और तलवासिनी पैरोंकें तलुओंमें रहकर रक्षा करें ॥ ३२ ॥
नखान्दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी ।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा ॥ ३३॥
अपनी दाढ़ोंके कारण भयंकर दिखायी देनेवाली दंष्ट्राकराली देवी नखोंकी और ऊर्ध्वकेशिनी देवी केशोंकी रक्षा करे । रोमावलियोंके छिद्रोंमें कौबेरी और त्वचाकी वागीश्वरी देवी रक्षा करे ॥ ३३ ॥
रक्तमज्जावमांसान्यस्थिमेदांसी पार्वती ।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी ॥ ३४॥
पार्वती देवी रक्त, मज्जा, वसा, मांस, हड्डी और मेदकी रक्षा करे । आँतोंको कालरात्रि और पित्तकी मुकुटेश्वरी रक्षा करे ॥ ३४ ॥
पद्मावती पद्मकोशे कफे चुडामणिस्तथा ।
ज्वालामुखी नखज्वाला अभेद्या सर्वसन्धिषु ॥ ३५॥
मूलाधार आदि कमल-कोशोंमें पद्मावती देवी और कफमें चूडामणि देवी स्थित होकर रक्षा करे। नखके तेजकी ज्वालामुखी रक्षा करे। जिसका किसी भी अस्त्रसे भेदन नहीं हो सकता, वह अभेद्या देवी शरीरकी समस्त संधियोंमें रहकर रक्षा करे ।। ३५ ।।
शुक्रं ब्रह्माणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा ।
अहङ्कारं मनो बुद्धिं रक्ष मे धर्मचारिणि ॥ ३६॥
ब्रह्माणि ! आप मेरे वीर्यकी रक्षा करें। छत्रेश्वरी छायाकी तथा धर्मधारिणी देवी मेरे अहंकार, मन और बुद्धिकी रक्षा करे ॥ ३६
प्राणापानौ तथा व्यानं समानोदानमेव च ।
वज्रहस्ता च मे रेक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना ॥ ३७॥
करनेवाली वज्रहस्ता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान वायुकी रक्षा करे। कल्याणसे शोभित होनेवाली भगवती कल्याणशोभना मेरे प्राणकी रक्षा करे ॥ ३७ ॥
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी ।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा ॥ ३८॥
रस, रूप, गन्ध, शब्द और स्पर्श -इन विषयोंका अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करे तथा सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुणकी रक्षा सदा नारायणी देवी करे ॥ ३८ ॥
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी ।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी ॥ ३९॥
वाराही आयुकी रक्षा करे । वैष्णवी धर्मकी रक्षा करे तथा चक्रिणी (चक्र धारण करनेवाली) देवी यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन तथा विद्याकी रक्षा करे ॥ ३९ ॥
गोत्रमिन्द्राणी मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके ।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी ॥ ४०॥
इन्द्राणि ! आप मेरे गोत्रकी रक्षा करें। चण्डिके ! तुम मेरे पशुओंकी रक्षा करो। महालक्ष्मी पुत्रोंकी रक्षा करे और भैरवी पत्नीकी रक्षा करे ॥ ४० ॥
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा ।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता ॥ ४१॥
मेरे पथकी सुपथा तथा मार्गकी क्षेमकरी रक्षा करे। राजाके दरबारमें महालक्ष्मी रक्षा करे तथा सब ओर व्याप्त रहनेवाली विजया देवी सम्पूर्ण भयोंसे मेरी रक्षा करे ॥ ४१ ॥
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु ।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी ॥ ४२॥
देवि ! जो स्थान कवचमें नहीं कहा गया है, अतएव रक्षासे रहित है, वह सब तुम्हारे द्वारा सुरक्षित हो; क्योंकि तुम विजयशालिनी और पापनाशिनी हो ॥ ४२ ॥
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः ।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्राधिगच्छति ॥ ४३॥
तत्र तत्रार्थ लाभश्च विजयः सार्वकामिकः ।
यं यं कामयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान् ॥ ४४॥
यदि अपने शरीरका भला चाहे तो मुनष्य बिना कवचके कहीं एक पग भी न जाय – कवचका पाठ करके ही यात्रा करे । कवचके द्वारा सब ओरसे सुरक्षित मनुष्य जहाँ-जहाँ भी जाता है, वहाँ-वहाँ उसे धन-लाभ होता है तथा सम्पूर्ण कामनाओंकी सिद्धि करनेवाली विजयकी प्राप्ति होती है। वह जिस-जिस अभीष्ट वस्तुका चिन्तन करता है, उस-उसको निश्चय ही प्राप्त कर लेता है । वह पुरुष इस पृथ्वीपर तुलनारहित महान् ऐश्वर्यका भागी होता है ॥ ४३-४४ ॥
निर्भयो जायते मर्त्यः सङ्ग्रामेष्व पराजितः ।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान् ॥ ४५॥
कवचसे सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है । युद्धमें उसकी पराजय नहीं होती तथा वह तीनों लोकोंमें पूजनीय होता है ॥ ४५ ॥
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः ॥ ४६॥
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोकेष्व पराजितः ।
जीवेद्वर्षशतं साग्रमपमृत्यु विवर्जितः ॥ ४७॥
देवीका यह कवच देवताओंके लिये भी दुर्लभ है । जो प्रतिदिन नियमपूर्वक तीनों संध्याओंके समय श्रद्धाके साथ इसका पाठ करता है, उसे दैवी कला प्राप्त होती है तथा वह तीनों लोकोंमें कहीं भी पराजित नहीं होता इतना ही नहीं, वह अपमृत्युसे रहित हो सौसे भी अधिक वर्षोंतक जीवित रहता है ॥ ४६-४७ ॥
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः ।
स्थावरं जङ्गमं वापि कृत्रिमं चापि यद्विषम् ॥ ४८॥
मकरी: चेचक और कोढ़ आदि उसकी सम्पूर्ण व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं। कनेर, भाँग, अफीम, धतूरे आदिका स्थावर विष, साँप और बिच्छू आदिके काटनेसे चढ़ा-हुआ जङ्गम विष तथा अहिफेन और तेलके संयोग आदिसे बननेवाला कृत्रिम विष—ये सभी प्रकारके विष दूर हो जाते हैं, उनका कोई असर नहीं होता || ४८ ||
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले ।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः ॥ ४९॥
सहजाः कुलजा मालाः शाकिनी डाकिनी तथा ।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः ॥ ५०॥
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः ।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ॥ ५१॥
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते ।
मानोन्नतिर्भवेद्राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम् ॥ ५२॥
इस पृथ्वीपर मारण-मोहन आदि जितने आभिचारिक प्रयोग होते हैं तथा इस प्रकारके जितने मन्त्र, यन्त्र होते हैं, वे सब इस कवचको हृदयमें धारण कर लेनेपर उस मनुष्यको देखते ही नष्ट हो जाते हैं । ये ही नहीं, पृथ्वीपर विचरनेवाले ग्रामदेवता, आकाशचारी देवविशेष, जलके सम्बन्धसे प्रकट होनेवाले गण, उपदेशमात्रसे सिद्ध होनेवाले निम्नकोटिके देवता, अपने जन्मके साथ प्रकट होनेवाले देवता, कुलदेवता, माला (कण्ठमाला आदि), डाकिनी, शाकिनी, अन्तरिक्षमें विचरनेवाली अत्यन्त बलवती भयानक डाकिनियाँ, ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, कूष्माण्ड और भैरव आदि अनिष्टकारक देवता भी हृदयमें कवच धारण किये रहनेपर उस मनुष्यको देखते ही भाग जाते हैं। कवचधारी पुरुषको राजासे सम्मान-वृद्धि प्राप्त होती है। यह कवच मनुष्यके तेजकी वृद्धि करनेवाला और उत्तम है ।। ४९-५२ ॥
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले ।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा ॥ ५३॥
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम् ।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां सन्ततिः पुत्रपौत्रकी ॥ ५४॥
कवचका पाठ करनेवाला पुरुष अपनी कीर्तिसे विभूषित भूतलपर अपने सुयशके साथ-साथ वृद्धिको प्राप्त होता है। जो पहले कवचका पाठ करके उसके बाद सप्तशती चण्डीका पाठ करता है, उसकी जबतक वन, पर्वत और काननोंसहित यह पृथ्वी टिकी रहती है, तबतक यहाँ पुत्र-पौत्र आदि संतानपरम्परा बनी रहती है ॥ ५३-५४ ॥
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम् ।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः ॥ ५५॥
फिर देहका अन्त होनेपर वह पुरुष भगवती महामायाके प्रसादसे उस नित्य परमपदको प्राप्त होता है, जो देवताओंके लिये भी दुर्लभ है ॥ ५५ ॥
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते ॥ ५६॥
वह सुन्दर दिव्य रूप धारण करता और कल्याणमय शिवके साथ आनन्दका भागी होता है ।। ५६ ।।
॥ इति श्रीवाराहपुराणे हरिहरब्रह्मविरचितं देव्याः कवचं सम्पूर्णम् ॥
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Chandi Kavacham English Meaning
Maarkandeya Uvaach:
Om Yadguhyam Parmam Loke Sarva Rakshaakaram Nrinaam
Yann Kasya Chidaakhyaatam Tanme Broohi Pitamah (1)
Thus spoke Markandeya:
O Lord Brahmadeva (Grandfather of all), please tell me that which is very secret and has not been told by anyone to anybody else and which Protects all human beings in this world.
Brahmovaach:
Asti Guhyatamam Vipra Sarva Bhootopkaarkam
Divyaastu Kavacham Punyam Tachhrinushva Mahaamune (2)
Thus spoke Brahma:
O great Brahmin, there is Devi Kavach (Armour of Goddess) which is most secret and useful to all beings. Please listen to that, O Great Sage. Durga is known by these names:
Prathamam Shailputri cha Dwitiyam Brahmacharini
Tritiyam Chandraghanteti Kushmaandeti Chaturthakam (3)
The first form is SHAILAPUTRI- Daughter of the King of Himalayas; Second is BRAHMACHARINI One Who observes the state of celibacy; Third is CHANDRAGANTA- One Who bears the moon around Her neck; Fourth is KOOSHMANDA- Whose Void contains the Universe.
Panchamam Skandmaateti Shashtham Kaatyayneeti cha
Saptamam Kaalraatriti Mahagauriti Chaastamam (4)
Fifth is SKANDAMATA- Who gave birth to Karttikeya; Sixth is KATYAYANI Who incarnated to help the Devas and was born in the hermitage of Sage Kathyayana; Seventh is KALARATRI- Who is even the Destroyer of Kali; Eighth is MAHA GAURI- One Who made great penance.
Navamam Sidhhidaatri cha Navdurgaah Prakeertitaah
Uttaanyetaani Naamaani Brahmanaiv Mahaatmana (5)
Ninth is SIDDHIDATRI- One Who grants Moksha. Those who remember You with great devotion indeed have prosperity. Undoubtedly, O Goddess of the Gods, You Protect those who remember You.
Agninaa Dahyamaanastu Shatru Madhye Gato Rane
Vishme Durgame Chaiv Bhayaartaah Sharanam Gataah (6)
Na Teshaam Jaayate Kinchidashubham Ransankate
Naapadam Tasya Pashyaami Shokdukh Bhayam Na hi (7)
Yaistu Bhaktya Smritaa Noonam Teshaam Vridhhih Prajaayate
Ye Twaam Smaranti Deveshi Rakshase Taann Sanshayah (8)
Those who are frightened, having been surrounded by the enemies on the battlefield, or are burning in fire, or being at an impassable place, would face no calamity, and would never have grief, sorrow, fear, or evil if they surrender to Durga.
Pretsansthaa tu Chamunda Vaarahi Mahishaasanaa
Aindri Gajsamaa Roodhaa Vaishnavi Garudaasana (9)
The Goddess Chamunda sits on a corpse, Varahi rides on a buffalo, Andri is mounted on an elephant and Vaishnavi is on a condor.
Maheshwari Vrishaa Roodhaa Kaumari Shikhi Vaahanaa
Lakshmi Padmaasana Devi Padmahastaa Haripriya (10)
Maheswari is riding on a bull, and the vehicle of Kumari is the peacock. Lakshmi, the Beloved of Shri Vishnu, is seated in a lotus and is also holding a lotus in Her Hand.
Shwetroop Dharaa devi Ishwari Vrishvaahanaa
Braahmi Hans Samaaroodhaa Sarvaabharan Bhooshita (11)
The Goddess Ishwari, of white complexion, is riding on a bull, and Brahmi, who is bedecked with all ornaments, is seated on a swan.
Ityetaa Maatarah Sarvaah Sarvayog Samanvitaah
Naanaa Bharan Shobhaadhhyaa Naanaa Ratno Pashobhitaa (12)
All the mothers are endowed with Yoga and are adorned with different ornaments and jewels.
Drishyante Rath Maaroodhaa Devyah Krodh Samaa Kulaah
Shankham Chakram Gadaam Shaktim Halam cha Muslaayudham (13)
Khetakam Tomram chaiv Parshum Paashamev cha
Kuntaayudham Trishulam cha Shaargam Maayudhmuttamam (14)
Daityaanaam Dehnaashaay Bhaktaanaam Bhayaay cha
Dhaarayantya Yudha Neetham Devaanaam cha Hitaay Vai (15)
All the Goddesses are seen mounted in chariots and very angry. They are wielding conch, discus, mace, plow, club, javelin, ax, noose, barbed dart, trident, spears, strung bow, and arrows made of horns. These Goddesses are wielding their weapons for destroying the bodies of demons, for the Protection of their devotees, and for the benefit of the Gods.
Namaste Astu Mahaaraudre Mahaaghor Paraakrame
Mahaabale Mahotsaahe Mahaabhay Vinaashini (16)
Salutations to you, O Goddess, of very dreadful appearance, of frightening valour, of tremendous strength and energy, the Destroyer of the worst fears.
Traahimaam Devi Dushprekshye Shatrunaam Bhayvardhini
Praachyaam Rakshatu Maamaindri Aagneyyaam agni Devta (17)
Dakshinevatu Vaaraaahi Nairityaam Khangdhaarini
Prateechyaam Vaaruni Rakshed Vaayavyaam Mrigvaahini (18)
O Devi, it is difficult to have even a glance at you. You increase the fears of your enemies. Please come to my rescue. May Goddess Aindri (Power of Indra) Protect me from the east. Agni Devata (Goddess of Fire) from the south-east, Varahi (Shakti of Vishnu as the boar) from the south, Khadgadharini ( holder of the sword) from the south-west, Varuni (The Shakti of Varuna, the rain God) from the west and Mrgavahini, (Whose vehicle is the deer) may Protect me from the north-west.
Udichaam Paatu Kaumaari Aishaanyaam Shooldhaarini
Oordhwam Brahmaani Me Rakshedhastaad Vaishnavi Tathaa (19)
The Goddess Kumari (The Shakti of Kumar, that is Karttikeya) Protect me from the north and Goddess Shooladharini from the north-east, Brahmani, (The Shakti of Brahma) from above and Vaishnavi (Shakti of Vishnu) from below, Protect me.
Evam Dashdisho Rakshechaamunda Shavvaahaa
Jaya me Chagratah Paatu Vijaya Paatu Prishthatah (20)
Ajitaa Vaamparshwe Tu Dakshine Chaaparaajita
Shikha Mudyotini Rakshedumaa Moordhni Vyavasthitaa (21)
Thus Goddess Chamunda, who sits on a corpse, protects me from all the ten directions. May Goddess Jaya Protect me from the front and Vijaya from the rear; Ajita from the left and Aparajita from the right. Goddess Dyotini may protect the topknot and Uma may sit on my head and protect it.
Maalaadhari Lalaate chabhruvou rakhshed Yashasvini
Trinetra cha Bhruvormadhye Yam Ghantaa cha Naasike (22)
Shankhini Chakshushor madhye Shrotrayor Dwaarwaasini
Kapolau Kaalika Rakshet Karn Mooletu Shaankari (23)
May I be Protected by Maladhari on the forehead, Yashswini on the eye-brows, Trinetra between the eyebrows, Yamaghanta on the nose, Shankini on both the eyes, Dwaravasini on the ears, may Kalika Protect my cheeks, and Shankari the roots of the ears.
Naasikaayaam Sugandhaa Cha Uttaroshthe cha Charchika
Adhare Chaamrit Kalaa Jihvayaam cha Saraswati( 24)
Dantaan Rakshatu Kaumaari Kanthdeshe Tu Chandika
Ghantikaam Chitraghantaa cha Mahaamaaya cha Taaluke (25)
Kaamaakshi chibukam Rakshed Vaacham me Sarvamangalaa
Greevaayaam Bhadrakaali cha Prishthvanshe Dhanurdhari (26)
Neelgreeva Bahih Kanthe Nalikaam Nalkoobari
Skandhyoh Khangini Rakshed Baahu Me Vajradhaarini (27)
May I be Protected by Sugandha-nose, Charchika-lip, Amrtakala-lower lip, Saraswati-tongue, Kaumari-teeth, Chandikathroat, Chitra-ghanta-soundbox, Mahamaya-crown of the head, Kamakshi-chin, Sarvamangala-speech, Bhadrakali-neck, Dhanurdhari-back. May Neelagreeva Protect the outer part of my throat and Nalakoobari-windpipe, may Khadgini Protect my shoulders and Vajra-dharini protect my arms.
Hastyo Dandini Rakshedambika Changuleeshu cha
Na Khaachhooleshwari Rakshet Kukshou Rakshetkuleshwari (28)
Stanau Rakshen Mahaadevi Manah Shok Vinaashini
Hridaye Lalita Devi Udare Shooldhaarini (29)
Nabhau cha Kaamini Rakshed Guhyam Guhyeshwari tathaa
Pootna Kaamika Medhhram Gude Mahishwaahini (30)
Katyaam Bhagwati rakshejjaanuni Vindhyavaasiniornar
Janghe Mahaabalaa Rakshet Sarvakaam Pradaayini (31)
May Devi Dandini Protect both my hands, Ambika-fingers, Shooleshwari my nails, and may Kuleshwari Protect my belly. May I be protected, by Mahadevi-breast, Shuladharini-abdomen, Lalita Devi-heart, Kamini-navel, Guhyeshwari-hidden parts, Pootana Kamika-reproductive organs, Mahishavasini-excretory organ.
May Goddess Bhagavati Protect my waist, Vindhyavasini-knees, and the wish-fulfilling Mahabala may protect my hips.
Gulfyornaarsinghi cha Paadprishthhe tu Taijasee
Paadaanguleeshu shree Rakshet Paadaadhastal Vaasini (32)
May Narashini protects my ankles. May Taijasi Protect my feet, may Shri Protect my toes. May Talavasini Protect the soles of my feet.
Nakhaan Danshtraakaraali cha Keshaansh chaivordhva Keshini
Romkoopeshu Kauberi Tvacham Vaageeshwari Tathaa (33)
May Danshtrakarali Protect my nails, Urdhvakeshini-hair, Kauberi-pores, Vagishwari-skin
Rakt majaa Vasaa maansaanyasthi Medaamsi Paarvati
Antraani Kaalraatrish cha Pittam cha Mukteshwari (34)
Padmaavati Padmakoshe Kafe Choodamnistathaa
Jwaalaamukhi Nakhjwaalaam Bhedyaa Sarvasandhishu (35)
May Goddess Parvati Protect blood, the marrow of the bones, fat, and bone; Goddess Kalaratri-intestines. Mukuteshwari-bile and liver.
May Padmavati Protect the Chakras, Choodamani-phlegm (or lungs), Jwalamukhi luster of the nails, and Abhedya-all the joints.
Shukram Brahmaani me Rakshechhaayaam Chhatreshvareem Tathaa
Ahankaaram Manobudhhim Rakshenme Dharmshaarini (36)
Brahmani-semen, Chhatreshwari the shadow of my body, Dharmadharini-ego, superego, and intellect (buddhi).
Praanaapaanau tathaa Vyaanmudaanam cha Samaankam
Vajrahastaa cha me Rakshetpraanam Kalyaanshobhana (37)
Vajrahasta-pran, apan, vyan, udan, saman (five vital breaths), Kalyanashobhana-pranas (life force).
Rase Roope cha Gandhe cha Shabde Sparshe cha Yogini
Satwam Rajastamashchaiv Rakshe Narayani Sadaa (38)
May Yogini Protect the sense organs, that is, the faculties of tasting, seeing, smelling, hearing, and touching. May Narayani.
Ayu Rakshatu Vaaraahee Dharmam Rakshatu Vaishnavi
Yashah Keertim cha Lakshmim cha Dhanam Vidyaam cha Chakrini (39)
Varahi-the life, Vaishnavi-dharma, Lakshmi-success and fame, Chakrini-wealth and knowledge.
Gotramindraani me Rakshetpashoonme Raksha Chandike
Putraan Rakshen Mahalakshmeer Bhaaryaam Rakshatu Bhairavi (40)
Indrani-relatives, Chandika-cattle, Mahalakshmi-children, and Bhairavi-spouse
Panthaanam Supathaa Rakshenmaargam Kshemkari Tathaa
Raajdwaare Mahaalakshmir Vijaya Sarvatah Sthitaa (41)
Supatha may protect my journey and Kshemakari my way. Mahalakshmi may protect me in the king’s court and Vijaya everywhere.
Rakshaaheenam tu Yatasthaanam Varjitam Kavchen Tu
Tatsarvam Rakshmedevi Jayanti PaapNaashini (42)
O Goddess Jayanti, any place that has not been mentioned in the Kavach and has thus remained unprotected, may be protected by You.
Padmekam Na Gachhetu Yadee chhechhubh Maatmanah
Kavchenaavrito Nityam Yatra Yatraiv Gachhati (43)
Tatra Tatraarth Laabhashcha Vijayah Saarva Kaamikah
Yam Yam Chintyate Kamam Tam Tam Praapnoti Nishchitam
Parmaishwarya Matulam Prapsyate Bhootale Pumaan (44)
Nirbhayo Jaayate Martyah Sangraameshwa Parajitah
Trailokye Tu Bhavetpujyah Kavchenaavritah Pumaan (45)
One should invariably cover oneself with this Kavacha (by reading) wherever one goes and should not walk even a step without it if one desires auspiciousness. Then one is successful everywhere and all one’s desires are fulfilled and that person enjoys great prosperity on the earth.
The person who covers himself with Kavacha becomes fearless, is never defeated in the battle, and becomes worthy of being worshipped in the three worlds.
Idam tu Devyaah Kavcham Devaanaam api Durlabham
Yah Pathet Prahto Nityam Trisandhyam Shradhyaan vitah (46)
Devi Kalaa Bhavetasya Trailokye shwaparaajitah
Jeeved Varshshatam Saagram pamrityu vivarjitah (47)
Nashyanti Vyadhyan Sarve Lootavisfot Kaadayah
Sthaavaram Jangam Chaiv Kritrimam Chaapi Yadvisham (48)
One who reads with faith every day thrice (morning, afternoon, and evening), the ‘Kavacha’ of the Devi, which is inaccessible even to the Gods, receives the Divine arts, is undefeated in the three worlds, lives for a hundred years and is free from accidental death.
All diseases, like boils, scars, etc. are finished. Moveable (scorpions and snakes) and immoveable (other) poisons cannot affect him.
Abhichaarani Sarvaani Mantra Yantraani Bhootale
Bhoocharaah Khecharaash Chaiv Jaljaashchop Deshikaah (49)
Sehjaa Kuljaa Maalaa Daakini Shaakini Tathaa
Antariksh charaa ghoraa Daakinyashch Mahaabalaah (50)
Grah Bhoot Pishaachaashch Yaksh Gandharv Raakshasaa
Brahm Raakshas Vetaalaah Kooshmaandah Bhairvaadayah (51)
Nashyanti Darshanttasya Kavche Hridi Sansthite
Manonnatir Bhavedra Gyaste Jo Vridhhi Karam Param (52)
Yashasaa Vardhate So api Keerti Mandit Bhootale
Japet Saptashatim Chandeem Kritva tu Kavacham Pura (53)
All those, who cast magical spells by mantras or yantras, on others for evil purposes, all ghosts, goblins, malevolent beings moving on the earth and in the sky, all those who mesmerize others, all-female goblins, all yakshas, and Gandharvas are destroyed just by the sight of the person having Kavach in his heart.
That person receives more and more respect and prowess. On the earth, he rises in prosperity and fame by reading the Kavacha and Saptashati.
Yaavad Bhoomandalam Dhatte Sashail Vankaananam
Taavat Tishthati Medinyaam Santatih Putra Pautrikee (54)
Dehaante Paramam Sthaanam Yat surairapi Durlabham
Praapnoti Purusho Nityam Mahaamaya Prasaadatah (55)
Labhate Parmam Roopam Shiven Sah Modate ॥Om ॥ (56)
His progeny would live as long as the earth was rich with mountains and forests. By the Grace of Mahamaya, he would attain the highest place that is inaccessible even to the Gods and is eternally blissful in the company of Lord Shiva.
॥Iti Shree Devayaah Kavcham Sampoornam॥
Thus Shree Devayaah Kavcham ends.