7 Best Uses of Kali Kavach is an article that explains how a seeker can use the Kali Kavach in an effective way. Kali is the fearful and ferocious form of the mother goddess.
Kali is represented with perhaps the fiercest features amongst all the world’s deities. She has four arms, with a sword in one hand and the head of a demon in another. The other two hands bless her worshippers.
Kali is the Goddess of time and change. This Kali Kavach is from Brahma Vaivarta Purana and was told by Lord Shiva to Lord Vishnu and is a very effective and powerful Kavach or Armour for protection.
Continuous practice of this Kali Kavach builds a magnetic energy pattern near the worshipper which repels the negative energies and helps attract positive and good vibrations only.
Worshippers should worship the Goddess Kali before chanting this Kali Kavach. A brief puja in the mind is also enough. Then the Kali Kavach should be recited with full faith and devotion.
One must chant this Kavach 108 times on any solar or lunar eclipse to increase the effectiveness and magnetism of its powers. Here are the best 7 uses of Kali Kavach that can lead to a fulfilling life.
7 Best Uses of Kali Kavach
- Complete Protection – Repeat this Kali Kavch once in the morning.
- Remove fear – Recite twice the Kali Kavach to remove the fear in life.
- Perfect Health – Recount thrice or 3 times to remove the disease and for getting perfect health.
- Remove sudden accidents – Recite the Kali Kavach 4 times in the morning and one time before going outside the home or office.
- Remove Black Magic – Replicate the Kali Kavach 5 times and energies the water and sprinkle this water in the home to remove the black magic.
- Remove Malefic effects of planets or nine Graha – Recount the Kali Kavach 6 times to get the positive results from the nine Grahas or planets.
- Fulfill A wish – Replicate this Kali Kavach 7 times a day and watch your wishes being fulfilled in a very short period of time.
Kali Kavach Text
काली कवचं
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा मे पातु मस्तकम् ।
क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रीं इति लोचने ।
ॐ ह्रीं त्रिलोचने स्वाहा नासिकां मे सदाऽवतु ।
क्लीं कालिके रक्ष रक्ष स्वाहा दंष्ट्रं सदाऽवतु ।
क्लीं भद्रकालिके स्वाहा पातु मे अधरयुग्मकम् ।
ॐ ह्रीं ह्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा कण्ठं सदाऽवतु ।
ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा कर्णयुग्मकं सदाऽवतु ।
ॐ क्रीं क्रीं क्लीं काल्यै स्वाहा दंतं पातु माम् सदा मम् ।
ॐ क्रीं भद्रकाल्यै स्वाहा मम वक्षः सदाऽवतु ।
ॐ क्रीं कालिकायै स्वाहा मम नाभिं सदाऽवतु ।
ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पृष्ठं सदाऽवतु ।
रक्तबीजविनाशिन्यै स्वाहा हस्तौ सदाऽवतु ।
ॐ ह्रीं क्लीं मुण्डमालिन्यै स्वाहा पादौ सदाऽवतु ।
ॐ ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा सर्वांगं मे सदाऽवतु ।
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Another Version of Kali Kavach
ॐ अस्त्र श्री काली कवचस्य भैरव ऋषिर्गायत्री छंदः, श्री काली देवता सद्य: शत्रु हननार्थे पाठे विनियोगः ।
॥ काली ध्यानम् ॥
ध्यात्वा कालीं महामाया त्रिनेत्रां बहुरूपिणीम्,
चतुर्भुजां लोलजिह्वां पूर्ण चन्द्र निभाननाम्। १ ।
जिनके तीन नेत्र हैं, जिनके अनगिनत रूप हैं, जिनकी चार भुजाएँ हैं, लाल जीभ हैं तथा जो पूर्ण चंद्र के समान कांतिमान हैं। मैं ऐसा ध्यान करता हूं।
नीलोत्पलदलश्यामां शत्रुसंघ विदारिणीम्।
नरमुण्डं तथा खड़गं कमलं वरदं तथा । २ ।
वो नील कमल के सदृश श्यामावर्णा हैं। शत्रु के समूह का नाश करने वाली हैं। इन्होंने खड़ग, कमल, नरमुण्ड तथा वरदान देने के निमित्त हस्त मुद्रा धारण की हुई है।
विभ्राणां रक्तवसनां घोरदंस्ट्रा स्वरूपिणीम् ।
अट्टाहासनिरतां सर्वदा च दिगम्बराम् । ३ ।
लाल वस्त्र धारण किए, भयंकर दाँतों वाली जो कि बड़े जो से अट्टाहास करती हैं एवं जो सदा नग्न रहती हैं।
शवासनस्थितां देवी मुण्डमाला विभूिषिताम् ।
इति ध्यात्वा महादेवीं ततस्तु कवचं पठेत् । ४ ।
वो शव को आसन बना कर बैठती है तथा जो मुण्डों की माल धारण करती हैं।
(इस प्रकार से ध्यान करके महादेवी का कवच पढ़ना चाहिए।) (रावण के द्वारा पूछे जाने पर यह कवच शिवजी ने रावण को बताया था।)
॥ शिव उवाच: ॥
ॐ कालिका घोर रूपाढ्या सर्वकाम प्रदा शुभा,
सर्वं देव स्तुता देवी शत्रुनाशं करोतु मे। १ ।
हे घोर रूप को धारण करने वाली, सर्व कामनाओं को देने वाली, सदा शुभ करने वाली एवं समस्त देवों के द्वारा स्तुति किए जाने वाली कालिका देवी मेरे शत्रुओं का नाश करो।
ह्रीं ह्रीं स्वरूपिणी चैव ह्रीं ह्रीं सं हं गिनी तथा,
ह्रीं ह्रीं क्ष क्षौं स्वरूपा सा सर्वदा शत्रु नाशिनी । २ ।
ह्रीं ह्रीं स्वरूप वाली, ह्रीं ह्रीं सं हं बीज रूपा तथा ह्रीं ह्रीं क्षै क्षौं स्वरूप वाली माता सर्वदा ही शत्रुओं का नाश करती रहें।
श्रीं ह्रीं ऐं रूपिणीं देवी भव बन्ध विमोचिनी,
यथा शुम्भो हतो दैत्यो निशुम्भश्च महासुरः । ३ ।
श्री अर्थात लक्ष्मी, ह्रीं अर्थात शक्ति, ऐं अर्थात सरस्वती रूपिणी | देवी जो भव बन्धनों से स्वतन्त्र कर देती हैं। आपने जिस भाँति से शुम्भ निशुम्भ का वध किया था।
बैरिनाशाय वन्दे ताँ कालिकाँ शंकर प्रियाम् ।
ब्राह्मी शैवी वैष्णवी च वाराही. नारसिंहिका । ४ ।
गायत्री रूपी, पार्वती रूपी, लक्ष्मी रूपी, वाराही व नारसिंही आदिक अनेक रूप धारण करने वाली शिवजी को प्रिय लगने वाली कालिके ! मैं आपको नमस्कार करता हूं। आप मेरे शत्रुओं का नाश कीजिये ।.
कौमारी श्रीश्चचामुण्डा खाद्ययन्तु मम द्विषान्।
सुरेश्वरी घोररूपा चण्ड मुण्ड विनाशिनी । ५ ।
कुमारी, लक्ष्मी (कमला), चामुण्डा मुझसे द्वेष करने वाल का भक्षण करो। इन्द्राणी, घोर रूपा चण्ड मुण्ड का विनाश करने वाली।
मुण्डमाला वृतांगी च सर्वतः पातु माँ सदा,
ह्रीं ह्रीं कालिके घोरदंष्ट्रे रुधिर प्रिये । ६ ।
ह्रीं ह्रीं अर्थात बारम्बार शक्ति प्रदान करने वाली, विकरा दांतों वाली, रुधिर पान से प्रसन्न होने वाली मुण्डमाला को पहन वाली कालिके माता सदा सर्वदा मेरी रक्षा करो।
॥ माला मन्त्र ॥
ॐ रुधिर पूर्ण वक्त्रे च रुधिरावितास्तिनी मम शत्रुन खा खाद्य, हिंसय हिंसय, मारय मारय, भिन्धि भिन्धि छिन्धि छिन्ि उच्चाटय उच्चाटय, द्रावय द्रावय, शोषय, शोषय यातुधानि चामुंडे ह्रीं ह्रीं वाँ वीं कालिकायै सर्व शत्रून समर्पयामि स्वाह ॐ जहि जहि, किटि किटि, किरि किरि, कटु कटु मर्दय मर्द मोहय मोहय, हर हर मम् रिपुन् ध्वंसय, भक्षय भक्षय, पोटय मातु धानिका चामुण्डायै सर्व जनान, राज पुरुषान, राज श्रियं देहि देहि, नूतनं नूतनं धान्य जक्षय जक्षय क्षां क्षीं क्षं क्षौं क्षः स्वाहा।
॥ फल श्रुति ॥
इत्येतत् कवचं दिव्यं कथितं तव रावणः, ये पठन्ति सदा भक्तया तेषाँ नश्यन्ति शत्रुवः । ७ ।
वैरिणः प्रलयं यान्ति व्याधिताशय भवन्ति हि, धनहीनः पुत्रहीनः शत्रुदस्तय सर्वदा । ८ ।
सहस्त्र पठनात् सिद्धिः कवचस्य भवेत्तदा, ततः कार्याणि सिद्धयंति नान्यथा मम् भाषितम् । ९ ।
हे रावण! मैंने इस दिव्य कवच को तुम्हारे समक्ष कहा है। जो भी इस कवच का पाठ भक्ति पूर्वक नित्य करेगा, उसके शत्रुओं का नाश होगा। उसके शत्रु रोग से पीड़ित होंगे तथा धन पुत्रादि सुखों से वह हीन हो जायेंगे। इसको एक हजार बार पढ़ने से सिद्धि हो जाती है। सिद्ध हो जाने पर मारणं प्रयोग में सफलता मिलती है।
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