Purav Janam Mantra is a potent mantra to accumulate insight into past birth life. A soul or Brahma is born again and again. The soul never perishes. It is eternal. The soul transforms its one form into another form as Rebirth.
Rebirth is a key concept uncovered in major Indian religions and discussed using various terms. The first textual references to the idea of reincarnation emerge in the Upanishads of the late Vedic period
Rebirth is the philosophical or godly concept that the non-physical essence of a living being begins a new life in a different physical form or body after biological death.
The cycle of rebirth termed 'Samsara' is beginningless and ongoing, and it is determined by the moral quality of a person's thoughts and karma (action). The effects of good moral actions lead to wholesome rebirths, and the effects of bad moral actions lead to unwholesome rebirths.
On a larger scale, karma determines where a person will be reborn and their status in their next life. Good karma can result in being born in one of the heavenly realms. Bad karma can cause rebirth as an animal, or torment in a hell realm. Buddhists try to cultivate good karma and avoid bad.
Clear information has been presented in the Shrimad Bhagavad Gita about the process of reincarnation. While delivering the knowledge of Karmayoga, where did Lord Krishna tell Arjuna, 'I had given this knowledge to the Sun at the beginning of the creation. I am giving it to you today.' Arjuna wondered and asked the question, 'You were born just a few years ago and the sun has been there for many years.
When did you give this (karma yoga) knowledge to the Sun at the beginning of creation?' Where did Krishna say, 'You and I have had many births, you have forgotten but I remember? The following is the complete dialogue of Krishna-Arjuna in the Gita:- I have described this inexhaustible yoga to the sun god. Vivasvān then addressed Manu, and Manu then addressed Ikṣvāku.
In Brahmand Upanishad, there is a practice to penetrate into the dimension of one's past life birth. The seeker fetches the proficiency to transcend this form and have an insight into all his past births. Only a skilled Guru can disclose this Mantrokt course to the disciple. Only a competent Guru can reveal this mantra sadhana to an able seeker.
Purav Janam Mantra from Brahmand Upanishad
Purvah: Vatanse Charitam Vadamayae Aatma: Shriyae Vae Vahitam Paresham
Devyam Vatama Daghtam Saritam Sahitam Gyanaev Tulya Bhavtam Bhav Purv Rupam.
पूर्व: वतंसे चरितं वदामयै आत्म: श्रियै वै वाहितां परेशं |
देव्यं वतां दघतां सरितं सहितं ज्ञानैव तुल्य भवतां भव पूर्व रूपं ||
Audio of Purav Janam Sadhana By Gurudev Narayan Dutt Shrimali
पुनर्जन्म की प्रक्रिया के विषय में श्रीमद्भगवद्गीता में स्पष्ट जानकारी दी गई है जो अत्यंत लोकप्रिय भी है। कर्मयोग का ज्ञान देते समय भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहाँ कि, 'सृष्टि के आरंभ में मैंने ये ज्ञान सूर्य को दिया था। आज तुम्हें दे रहा हूँ।'
अर्जुन ने आश्वर्यचकित होकर प्रश्न पूछा कि, 'आपका जन्म तो अभी कुछ साल पूर्व हुआ और सूर्य तो कई सालों से है। सृष्टि के आरंभ में आपने सूर्य को ये (कर्मयोग का) ज्ञान कब दिया?' कृष्ण ने कहाँ कि, 'तेरे और मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं, तुम भूल चुके हो किन्तु मुझे याद है। गीता में कृष्ण-अर्जुन का ये पूरा संवाद निम्नलिखित है:-
“ श्री भगवानुवाच
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्। विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ॥
भारतीय दर्शनशास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में ऋषियों ने स्वयं की खोज की और पाया कि स्वयं शरीर नहीं है परंतु शरीर के अंदर स्थित आत्मा-जो निराकार है-उनका मूल स्वरूप है।
आत्मा को जानने की इस प्रक्रिया को आत्मसाक्षात्कार के नाम से जाना जाता है। आत्मा के साक्षात्कार हेतु योग, ज्ञान, भक्ति आदि पद्धतियाँ प्रचलित हैं जिसका आविर्भाव प्राचीन काल में हुआ है।
ऋषियों ने स्वयं को जानकर अपने जन्मांतर के ज्ञान की भी प्राप्ति की और पाया कि उनके कई जन्म थे। स्वयं का मूल स्वरूप आत्मा जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती; ये पहले था, आज है और कल भी रहेगा।
शरीर के मृत्यु के बाद जीवात्मा पुनः जन्म धारण करता है और ये चक्र चलता ही रहता है। पुनर्जन्म का कारण सांसारिक पदार्थों में आसक्ति आदि है।
जब व्यक्ति साधना के बल पर सांसारिक दुविधाओं से मुक्त होकर स्वयं को जान लेता है तब जन्म की प्रक्रिया से भी मुक्ति पा लेता है। फिर भी अपनी स्वेच्छा से जन्म धारण कर सकता है।
मूल रूप से सभी को अपने पूर्व के जन्मों की विस्मृति हो जाती है। योग आदि क्रियाओं से आत्मा को जानकर ध्यान में पूर्व के जन्मों के ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।
ज्ञानी पुरुष दूसरों के जन्मांतर के विषय में भी बता सकते हैं अतः ऐसे सदगुरु से भी पूर्वजन्म के ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।
पुराण आदि में भी जन्म और पुनर्जन्मों का उल्लेख है जिससे अमुक व्यक्तियों के पूर्वजन्म के विषय में जानकारी मिलती है। कभी बाल्यकाल में किसी बालक को पूर्वजन्म का ज्ञान होने के प्रसंग भी सामने आए हैं।
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