Chakshumati Puja | चक्षुष्मती विद्या

Chakshumati Puja - चक्षुष्मती विद्या

📅 May 8th, 2024

By Vishesh Narayan

Summary Chakshumati Puja is simply arranged for better eyesight and to remove diseases of the eyes. Chakshu in Sanskrit means 'Eyes' whereas Upanishad means 'Study'. Chakshu Upanishad Mantra is simply the Mantra for eyes and eyesight.


Chakshumati Puja is simply organized for sounder eyesight and to terminate diseases of the eyes. Chakshu in Sanskrit means 'Eyes' whereas Upanishad represents 'Study'. Chakshu Upanishad Mantra is merely the Mantra for eyes and eyesight.

We attribute the power of sight to the presence of the Sun, and therefore, we prioritize the Sun for the advancement of eyesight.

It is assumed that one who recites this mantra can extract all the ailments of sight for all of his family. The mantra should be recounted, especially on Sundays.

Benefits of Chakshumati Puja

  • This ritual's main motive is to enhance eye vision significantly. 

  • The ritual can be engineered to be free from blindness of any sort. 

  • The Anushthan can be negotiated for health and to bring the divine blessings of Lord Surya.
  • The ritual can overpower the negativities and evils of the life of Sadhak.
  • Many people have monitored that after the Spell, they sensed a different energy in them, and their lives transformed dramatically.

The Chakshumati Puja consists of influential mantras which are secret, rare, and Siddh mantras. The higher vibrations of these Siddh mantras make a shield of magnetism around the sponsor of the spell and a shield of protection around his aura.

Duration: 3 Days or 11 Days

You will be given a specified number to call and attend the ritual by Guruji(30-40 minutes). You can attend the Anushthan directly by making a call to Guruji on the specified mobile number. If you are unable to call Guruji we will send you the recording of the ritual on the last day. (You can send your picture for this special puja.)

कृष्ण यजुर्वेदीय चाक्षुषोपनिषद में चक्षु रोगों को दूर करने की सामर्थ्य का वर्णन किया गया है। इन रोगों को दूर करने के लिए सूर्य देव से प्रार्थना की गयी है। प्रार्थना में कहा गया है कि सूर्यदेव अज्ञान-रूपी अंधकार के बन्धनों से मुक्त करके प्राणी जगत को दिव्य तेज प्रदान करें।

इसमें तीन मंत्र हैं। इस चक्षु विद्या के मंत्र-दृष्टा ऋषि अहिर्बुध्न्य हैं। इसे गायत्री छंद में लिखा गया है। नेत्रों की शुद्ध और निर्मल ज्योति के लिए यह उपासना कारगर है।

ऋषि उपासना करते हैं-‘हे चक्षु के देवता सूर्यदेव! आप हमारी आंखों में तेजोमय रूप से प्रतिष्ठित हो जायें। आप हमारे नेत्र रोगों को शीघ्र शांत करें। हमें अपने दिव्य स्वर्णमय प्रकाश का दर्शन कराया।

हे तेजस्वरूप भगवान सूर्यदेव! हम आपको नमन करते हैं। आप हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलें। आप हमें अज्ञान-रूपी अंधकार से ज्ञान-रूपी प्रकाश की ओर गमन कराएं। मृत्यु से अमृतत्व की ओर ले चलें।

आपके तेज़ की तुलना करने वाला कोई अन्य नहीं है। आप सच्चिदानन्द स्वरूप है। हम आपको बार-बार नमन करते हैं। विश्वरूप आपके सदृश भगवान विष्णु को नमन करते हैं।’

चाक्षुषोपनिषद विनियोग

ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुध्न्य ऋषिः, गायत्री छन्दः, सूर्यो देवता, ॐ बीजम् नमः शक्तिः, स्वाहा कीलकम्, चक्षुरोग निवृत्तये जपे विनियोगः

चक्षुष्मती विद्या

ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेज स्थिरो भव।
मां पाहि पाहि।
त्वरितम् चक्षुरोगान् शमय शमय।
ममाजातरूपं तेजो दर्शय दर्शय।
यथा अहमंधोनस्यां तथा कल्पय कल्पय ।
कल्याण कुरु कुरु
यानि मम् पूर्वजन्मो पार्जितानि चक्षुः प्रतिरोधक दुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय।
ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय।
ॐ नमः कल्याणकराय अमृताय। ॐ नमः सूर्याय।
ॐ नमो भगवते सूर्याय अक्षितेजसे नमः।
खेचराय नमः महते नमः। रजसे नमः। तमसे नमः ।
असतो मा सद गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मां अमृतं गमय।
उष्णो भगवान्छुचिरूपः। हंसो भगवान् शुचि प्रतिरूपः ।
ॐ विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं ज्योतिरूपं तपन्तम्।
सहस्त्र रश्मिः शतधा वर्तमानः पुरः प्रजानाम् उदयत्येष सूर्यः।।
ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय आदित्याया अक्षि तेजसे अहो वाहिनि वाहिनि स्वाहा।।
ॐ वयः सुपर्णा उपसेदुरिन्द्रं प्रियमेधा ऋषयो नाधमानाः।
अप ध्वान्तमूर्णुहि पूर्धि- चक्षुम् उग्ध्यस्मान्निधयेव बद्धान्।।
ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः। ॐ पुष्करेक्षणाय नमः। ॐ कमलेक्षणाय नमः। ॐ विश्वरूपाय नमः। ॐ श्रीमहाविष्णवे नमः।
ॐ सूर्यनारायणाय नमः।। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।
य इमां चाक्षुष्मतीं विद्यां ब्राह्मणो नित्यम् अधीयते न तस्य अक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अंधो भवति। न तस्य कुले अंधो भवति।
अष्टौ ब्राह्मणान् ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिः भवति।
विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं पुरुषं ज्योतिरूपमं तपतं सहस्त्र रश्मिः।
शतधावर्तमानः पुरः प्रजानाम् उदयत्येष सूर्यः। ॐ नमो भगवते आदित्याय।।
।।इति स्तोत्रम्।।

मंत्र का अर्थ:

हे सूर्यदेव! हे चक्षु के अभिमानी सूर्यदेव! आप आंखों में चक्षु के तेजरूप् से स्थिर हो जाएं, मेरी रक्षा करें, रक्षा करें। मेरी आँख के रोगों का शीघ्र नाश करें, शमन करें। मुझे अपना सुवर्ण जैसा तेज दिखला दें, दिखला दें। जिससे में अंधा न होऊँ, कृपया ऐसे उपाय करें। मेरा कल्याण करें, कल्याण करें। दर्शन शक्ति का अवरोध करने वाले मेरे पूर्वजन्म के जितने भी पाप हैं, सबको जड़ से समाप्त कर दें, उनका समूल नाश करें। ॐ नेत्रों के प्रकाश भगवान् सूर्यदेव को नमस्कार है।

ॐ आकाशविहारी को नमस्कार है. परम श्रेष्ठ स्वरूप को नमस्कार है. सब में क्रिया शक्ति उत्पन्न करने वाले रजो गुणरूप भगवान् सूर्य को नमस्कार है. अन्धकार को अपने भीतर लीन कर लेने वाले तमोगुण के आश्रयभूत भगवान् सूर्य को नमस्कार है. हे भगवान् ! आप मुझे असत् से सत् की ओर ले चलिए. मृत्यु से अमृत की ओर ले चलिए, ऊर्जा स्वरूप भगवान् आप शुचिरूप हैं. हंस स्वरूप भगवान् सूर्य आप शुचि तथा अप्रतिरूप हैं- आपके तेजोमय स्वरूप की कोई बराबरी नहीं कर सकता.

जो सच्चिदानन्द स्वरूप हैं, सम्पूर्ण विश्व जिनका रूप है, जो किरणों में सुशोभित एवं जातवेदा (भूत आदि तीनों कालों की बातें जानने वाला) हैं, जो ज्योति स्वरूप, हिरण्मय (स्वर्ण के समान कान्तिवान) पुरूष के रूप में तप रहे हैं, इस सम्पूर्ण विश्व के जो एकमात्र उत्पत्ति स्थान हैं, उस प्रचण्ड प्रतापवाले भगवान् सूर्य को हम नमस्कार करते हैं. वे सूर्यदेव समस्त प्रजाओं के समक्ष उदितले रहे हैं.

ष‌ड्विध ऐश्वर्यसम्पन्न भगवान् आदित्य को नमस्कार है. उनकी प्रभा दिन का भार वहन करने वाली है, हम उन भगवान् को उत्तम आहुति अर्पित करते हैं. जिन्हें मेधा अत्यन्त प्रिय है, वे ऋषिगण उत्तम पंखों वाले पक्षी के रूप में भगवान् सूर्य के पास गए और प्रार्थना करने लगे- 'भगवन्! इस अन्धकार को छिपा दीजिये, हमारे नेत्रों को प्रकाश से पूर्ण कीजिये तथा अपना दिव्य प्रकाश देकर मुक्त कीजिए.

जो इस चक्षुष्मतीविद्या का नित्य पाठ करता है, उसे नेत्र सम्बन्धी रोग नहीं होते. उसके कुल में कोई अंधा नहीं होता.
 


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