Remove Incurable Diseases Mantra | Dhanvantari Mantra

Remove Incurable Diseases Mantra - Dhanvantari Mantra

📅 Sep 13th, 2021

By Vishesh Narayan

Summary Remove Incurable Diseases Mantra is a Dhanvantari Stotram. Dhanvantri is Lord Vishnu's incarnation and the God of Ayurveda and health. This Dhanvantari stotram helps in improving vitality and energy levels.


Remove Incurable Diseases Mantra is a Dhanvantari Stotram. Dhanvantri is Lord Vishnu's incarnation and the God of Ayurveda and health.

It is a common practice in Hinduism for worshipers to pray to Dhanvantari, seeking his blessings for sound health for themselves or others, especially on Dhanteras.

People worship the Dhanvantri for obtaining the knowledge of Ayurveda, the life force, and perfect health.

The stotra belongs to the deity Dhanvantari. Dhanvantari is the Hindu god of medicine and an avatar of Lord Vishnu. He has been the king of Varanasi.

According to the Puranas, he is the god of Ayurveda. He, during the Samudra Manthan, arose from the Ocean of Milk with the nectar of immortality.

This Dhanvantari stotram helps in improving vitality and energy levels. Chanting Dhanvantari stotram removes the fears and all kinds of phobias. The chanting of Dhanvantari stotram has the power to cure incurable diseases.

When the diseases are lingering for years, this Dhanvantri mantra can help attain the natural remedy within a brief time of commencing the Dhanvantari stotram chanting regime.

धन्वंतरि भगवान विष्णु के अवतार हैं और आयुर्वेद एवं स्वास्थ्य के देवता हैं। हिंदू धर्म में पूजा करने वालों के लिए धन्वंतरि से प्रार्थना करना आम बात है, अपने लिए और दूसरों के लिए विशेष रूप से धनतेरस पर स्वास्थ्य के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं।

आयुर्वेद, जीवन शक्ति और उत्तम स्वास्थ्य का ज्ञान प्राप्त करने के लिए धन्वंतरि की पूजा की जाती है।

यह धन्वंतरि स्तोत्रम जीवन शक्ति और ऊर्जा के स्तर को सुधारने में मदद करता है। धन्वंतरि स्तोत्रम का जाप करने से भय और सभी प्रकार के उन्माद दूर होते हैं।

धन्वंतरि स्तोत्र के जाप से असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं। इस का निरंतर पाठ करने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है या उसके उपचार का मार्ग शीघ्र ही प्रशस्त हो जाता है |

How To Chant the Remove Incurable Diseases Mantra

  • Take a bath after doing Yoga and Pranayama for 30 minutes.
  • Worship the Guru.
  • Take some milk and chant this Dhanvantari mantra 108 times.
  • Give this milk as a Prasad to everyone in the home or to the patient.
  • Do it for 11 days and all the incurable diseases will fade away.
  • Consume only Satvik food while doing this Sadhana.
  • 30 मिनट तक योग और प्राणायाम करने के बाद स्नान करें।
  • गुरु की पूजा करें।
  • कुछ दूध लें और इस धन्वंतरि स्तोत्र का 108 बार जाप करें।
  • इस दूध को घर में या रोगी को प्रसाद के रूप में दें।
  • इसे 11 दिनों तक करें और सभी असाध्य रोग दूर हो जाएंगे।
  • इस साधना को करते समय सात्विक भोजन का ही सेवन करें।

Dhanvantari Mantra

ॐ शङ्खं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमम्भोजनेत्रम ।
कालाम्भोदोज्ज्वलाङ्गं कटितटविलसच्चारूपीताम्बराढ्यम
वन्दे धन्वन्तरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम ॥ १॥

Om Sha~Nkham Chakram Jalaukam Dadhadamr^Itaghatam Charudorbhishchaturmih
Sukshmasvachchatihr^Idyamshuka Parivilasanmaulimambhojanetrama |
Kalambhodojjvala~Ngam Katitatavilasachcharupitambaradhyama

Dhanvantari Mantra Meaning

I bow down to Lord Dhanvantri, the Lord with four hands carrying a conch, discuss a leech and a pot of immortal nectar. In his heart shines a pleasing and brilliant blaze of light.

The light is also seen shining around his head and beautiful lotus eyes. His divine play destroys all diseases like a blazing forest fire. May the Lord dispel the darkness of ignorance and light the lamp of wisdom in my heart.

Click Here For The Audio of Dhanvantari Mantra

 

The seeker can also recite the Dhanvantari Kripa Ashtakam to get the divine blessings of Lord Dhanvantari.

Shri Dhanvantari Kripa Ashtakam Meaning

श्रीधन्वन्तरिकृपाष्टकम् 

समुद्रमन्थनारम्भे सुधाकलशहस्तकम् ।
जातं धन्वन्तरिं देवं भगवन्तं सदा भजे ॥ १॥

samudramanthanaarambhe sudhaakalashahastakam .
jaatam' dhanvantarim' devam' bhagavantam' sadaa bhaje .. 1..

समुद्र के मन्थन के प्रारम्भ में अमृत कलश को अपने
कर कमलों में लिए भगवद्रूप श्रीधन्वन्तरि प्रगट हुए उनका सदा सर्वदा भजन करते हैं ॥ १॥

शास्त्रेषु वर्णितं रूपं दिव्यौषधिकराम्बुजम् ।
नित्यशः प्रणमामीशं धन्वन्तरिं कृपाऽर्णवम् ॥ २॥

shaastreshu varnitam' roopam' divyaushadhikaraambujam .
nityashah' pranamaameesham' dhanvantarim' kri'paa'rnavam .. 2..

पुराणादि शास्त्रों में जिनके स्वरूप का परिवर्णन है, और परम दिव्य औषधियों को अपने हस्तारविन्द में धारण किये हुए कृपा के सागर श्रीधन्वन्तरिजी को प्रतिदिन प्रणाम करते हैं ॥ २॥

शङ्खचक्रकराम्भोजं मङ्गलदण्डधारिणम् ।
धन्वन्तरिं हृदा वन्दे प्रचुरगुणसागरम् ॥ ३॥

shankhachakrakaraambhojam' mangaladand'adhaarinam .
dhanvantarim' hri'daa vande prachuragunasaagaram .. 3..

शङ्ख-चक्र एवं मङ्गल-स्वरूप दण्ड को अपने कर कमलों में धारण किये हुए अनन्त गुण सागर श्रीधन्वन्तरिजी को मनसा-वाचा-कर्मणा अभिवन्दन करते हैं ॥ ३॥

इन्द्रादिसुरवृन्दैश्च गन्धर्वादिप्रपूजितम् ।
असीमकरुणासिन्धुं धन्वन्तरिं समाश्रये ॥ ४॥

indraadisuravri'ndaishcha gandharvaadiprapoojitam .
aseemakarunaasindhum' dhanvantarim' samaashraye .. 4..

इन्द्र-गन्धर्व इत्यादि देवगणों के द्वारा जिनकी अर्चना की जाती है, ऐसे अपार करुणा के सागर श्रीधन्वन्तरिजी का आश्रय लेते हैं ॥ ४॥

वन्दारुवृन्दगेयञ्च ध्येयं सद्भिः सुधीवरैः ।
एवं धन्वन्तरिं वन्दे चारुदर्शनरूपिणम् ॥ ५॥

vandaaruvri'ndageyancha dhyeyam' sadbhih' sudheevaraih' .
evam' dhanvantarim' vande chaarudarshanaroopinam .. 5..

बन्दीजनों के द्वारा जिनका गान किया जाता हैं एवं सन्त-महात्माओं विद्वज्जनों द्वारा जिनका ध्यान किया जाता है ऐसे दिव्य दर्शनीय जिनका स्वरूप हैं उन श्रीधन्वन्तरि का अभिवन्दन करते हैं ॥ ५॥

सर्वदा सर्वसम्पूज्यं निगमागमवर्णितम् ।
आनन्दसमधिष्ठानं धन्वन्तरिं भजे प्रियम् ॥ ६॥

sarvadaa sarvasampoojyam' nigamaagamavarnitam .
aanandasamadhisht'haanam' dhanvantarim' bhaje priyam .. 6..

वेद-पुराणादि शास्त्रों में जिनका वर्णन किया गया है ऐसे सभी द्वारा सर्वप्रकार से जिनकी अर्चना की जाती है आनन्द के एकमात्र जिनका स्वरूप वर्णित है, ऐसे परम श्रेष्ठ श्रीधन्वन्तरिजी का भजन करते हैं ॥ ६॥

ज्ञान-विज्ञानकेन्द्रञ्च जगच्चारुहितास्पदम् ।
औषधिदानसद्धेतुं नौमि धन्वन्तरिं मुदा ॥ ७॥

jnyaana-vijnyaanakendrancha jagachchaaruhitaaspadam .
aushadhidaanasaddhetum' naumi dhanvantarim' mudaa .. 7..

ज्ञान-विज्ञान के परम ज्ञाता जगत् कल्याण के लिए सर्वदा तत्पर तथा विभिन्न प्रकार की दिव्य ओषधियों को प्रदान करने वाले श्रीधन्वन्तरिजी का प्रसन्नता पूर्वक अभिनमन करते हैं ॥ ७॥

श्रेयस्करं दयासिन्धुं दीनबन्धुं नमाम्यहम् ।
धन्वन्तरिं महाभागं महामङ्गलरूपकम् ॥ ८॥

shreyaskaram' dayaasindhum' deenabandhum' namaamyaham .
dhanvantarim' mahaabhaagam' mahaamangalaroopakam .. 8..

सबका कल्याण चाहने वाले दया के अपार सागर जो दीनबन्धु हैं, ऐसे महामङ्गल रूप महाभाग श्रीधन्वन्तरिजी का हम नमन करते हैं ॥ ८॥

आरोग्यदानदातारं धन्वन्तरिकृपाष्टकम् ।
राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मितम् ॥ ९॥

aarogyadaanadaataaram' dhanvantarikri'paasht'akam .
raadhaasarveshvaraadyena sharanaantena nirmitam .. 9..

रोगादिकों का निवारण करने वाला यह श्रीधन्वन्तरि कृपाष्टकम जिसकी रचना उन्हीं के कृपाजन्य यहाँ प्रस्तुत है ॥ ९॥

इति श्रीधन्वन्तरि कृपाष्टकं सम्पूर्णम् ।


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