Ekadashmukh Hanuman Kavacham | Meaning | महर्षि अगस्त्य

Ekadashmukh Hanuman Kavacham - Meaning - महर्षि अगस्त्य

📅 Sep 13th, 2021

By Vishesh Narayan

Summary The Ekadashmukh Hanuman Kavacham is told by Lord Brahma and is from Agastya Samhita. It is believed that one who practices this kavach every day, Lord Hanuman guards him against every difficulty and all of his competitors are slaughtered.


This Ekadashmukh Hanuman Kavacham provides superpower and control. Lord Hanuman is the incarnation of Lord Shiva.

Lord Hanuman is swift as a mind, has a speed equal to the wind God, and has complete control of his senses. He is the son of the wind god, the chief of the Vanara army, the messenger of Rama, and the repository of incomparable strength.

Hanuman destroys the forces of demons and frees himself from danger.

Lord Brahma narrated this Hanuman Kavacham and is from Agastya Samhita.

Practicing this Kavach daily is believed to lead to Lord Hanuman guarding against every difficulty and defeating all competitors.

Ekadashmukh Hanuman Kavacham Meaning Hindi

 एकादशमुखहनुमत्कवचम्


श्रीगणेशाय नमः ।
लोपामुद्रा उवाच ।
कुम्भोद्भव दयासिन्धो श्रुतं हनुमतः परम् ।
यन्त्रमन्त्रादिकं सर्वं त्वन्मुखोदीरितं मया ॥ १॥

दयां कुरु मयि प्राणनाथ वेदितुमुत्सहे ।
कवचं वायुपुत्रस्य एकादशमुखात्मनः ॥ २॥

इत्येवं वचनं श्रुत्वा प्रियायाः प्रश्रयान्वितम् ।
वक्तुं प्रचक्रमे तत्र लोपामुद्रां प्रति प्रभुः ॥ ३॥

shreeganeshaaya namah' .
lopaamudraa uvaacha .
kumbhodbhava dayaasindho shrutam hanumatah' param .
yantramantraadikam sarvam tvanmukhodeeritam mayaa .. 1..

dayaam kuru mayi praananaatha veditumutsahe .
kavacham vaayuputrasya ekaadashamukhaatmanah' .. 2..

ityevam vachanam shrutvaa priyaayaah' prashrayaanvitam .
vaktum prachakrame tatra lopaamudraam prati prabhuh' .. 3..

अगस्त्य पत्नी लोपामुद्रा ने महर्षि अगस्त्यजी से कहां- हे दयासागर! कुम्भ से उत्पन्न प्राणनाथ! आपने तो मुझे अपने मुख से ही श्रीहनुमान्जी का यन्त्र, मन्त्र, तन्त्र आदि सभी कुछ बताया। इसके अनन्तर वायुपुत्र एकादश मुख वाले हनुमान जी के कवच जानने की मेरी अपूर्व इच्छा है, जिसे दयापूर्वक आप बताने की कृपा करें। इस प्रकार अपनी प्रिय पत्नी के वचन सुनकर लोपामुद्रा से अगस्त्यमुनि जी ने इस प्रकार कहा ।। १-३।।

अगस्त्य उवाच ।
नमस्कृत्वा रामदूतां हनुमन्तं महामतिम् ।
ब्रह्मप्रोक्तं तु कवचं श‍ृणु सुन्दरि सादरम् ॥ ४॥

agastya uvaacha .
namaskri'tvaa raamadootaam hanumantam mahaamatim .
brahmaproktam tu kavacham shri'nu sundari saadaram .. 4..

अगस्त्य उवाच

हनुमान हे सुन्दरि ! सृष्टिविधायक ब्रह्मा द्वारा कथित एकादश मुख वाले जी के कवच का वर्णन मैं करता हूँ, | जिसे तुम श्रद्धा-भक्ति से सावधानीपूर्वक सुनो। इस प्रकार अतुलित बुद्धि वाले रामदूत हनुमान जी को प्रणाम कर, महर्षि अगस्त्यमुनि ने इस प्रकार कहा ।। ४।।

सनन्दनाय सुमहच्चतुराननभाषितम् ।
कवचं कामदं दिव्यं रक्षःकुलनिबर्हणम् ॥ ५॥

सर्वसम्पत्प्रदं पुण्यं मर्त्यानां मधुरस्वरे ।
ॐ अस्य श्रीकवचस्यैकादशवक्त्रस्य धीमतः ॥ ६॥

हनुमत्स्तुतिमन्त्रस्य सनन्दन ऋषिः स्मृतः ।
प्रसन्नात्मा हनूमांश्च देवता परिकीर्तिता ॥ ७॥

छन्दोऽनुष्टुप् समाख्यातं बीजं वायुसुतस्तथा ।
मुख्यः प्राणः शक्तिरिति विनियोगः प्रकीर्तितः ॥ ८॥

सर्वकामार्थसिद्ध्यर्थं जप एवमुदीरयेत् ।
ॐ स्फ्रें-बीजं शक्तिधृक् पातु शिरो मे पवनात्मजः ॥ ९॥

sanandanaaya sumahachchaturaananabhaashitam .
kavacham kaamadam divyam rakshah'kulanibarhanam .. 5..

sarvasampatpradam punyam martyaanaam madhurasvare .
om asya shreekavachasyaikaadashavaktrasya dheematah' .. 6..

hanumatstutimantrasya sanandana ri'shih' smri'tah' .
prasannaatmaa hanoomaamshcha devataa parikeertitaa .. 7..

chhando'nusht'up samaakhyaatam beejam vaayusutastathaa .
mukhyah' praanah' shaktiriti viniyogah' prakeertitah' .. 8..

sarvakaamaarthasiddhyartham japa evamudeerayet .
om sphrem-beejam shaktidhri'k paatu shiro me pavanaatmajah' .. 9..

हे प्रिय! चतुर्मुख ब्रह्मा ने समस्त अभीष्टप्रद एवं सम्पूर्ण राक्षसों को नष्ट करने वाले तथा अणिमादि आट सिद्धियों को देने वाले, एकादश मुख वाले श्री हनुमान जी | के पुण्यकारी कवच का वर्णन भगवद्-पार्षद सनन्दनादिक से मधुर स्वर में इस प्रकार किया। हे सनन्द्नादि महर्षिगण। इन एकादशमुख वाले हनुमत्कवच मन्त्र के सनन्दन ऋषि प्रसन्न चित्त वाले हनुमान देवता, अनुष्टुप् छन्द, बीज एवं मुख्य प्राण शक्ति रूप से हैं, इस प्रकार कहा साधक को चाहिए कि वह दाहिने हाथ में जल लेकर 'ॐ अस्य श्रीकवचस्य, एकादशवक्त्रस्य' इत्यादि देशकाल का निरूपण करते हुए ‘सर्वकामार्थ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः तक कहकर भूमि पर जल छोड़ दें।।५-८।।

क्रौं-बीजात्मा नयनयोः पातु मां वानरेश्वरः ।
क्षं-बीजरूपः कर्णौ मे सीताशोकविनाशनः ॥ १०॥

ग्लौं-बीजवाच्यो नासां मे लक्ष्मणप्राणदायकः ।
वं-बीजार्थश्च कण्ठं मे पातु चाक्षयकारकः ॥ ११॥

kraum-beejaatmaa nayanayoh' paatu maam vaanareshvarah' .
ksham-beejaroopah' karnau me seetaashokavinaashanah' .. 10..

glaum-beejavaachyo naasaam me lakshmanapraanadaayakah' .
vam-beejaarthashcha kant'ham me paatu chaakshayakaarakah' .. 11..

न्यास-तत्पश्चात् 'स्फ्रें बीजशक्तिधृक् पातु' से आरम्भ कर, 'इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः' तक पढ़कर करादि तथा हृदयादि षडङ्गन्यास करें।।१०-११।।

ऐं-बीजवाच्यो हृदयं पातु मे कपिनायकः ।
वं-बीजकीर्तितः पातु बाहू मे चाञ्जनीसुतः ॥ १२॥

ह्रां-बीजो राक्षसेन्द्रस्य दर्पहा पातु चोदरम् ।
ह्रसौं-बीजमयो मध्यं पातु लङ्काविदाहकः ॥ १३॥

ह्रीं-बीजधरः पातु गुह्यं देवेन्द्रवन्दितः ।
रं-बीजात्मा सदा पातु चोरू वार्धिलंघनः ॥ १४॥

सुग्रीवसचिवः पातु जानुनी मे मनोजवः ।

aim-beejavaachyo hri'dayam paatu me kapinaayakah' .
vam-beejakeertitah' paatu baahoo me chaanjaneesutah' .. 12..

hraam-beejo raakshasendrasya darpahaa paatu chodaram .
hrasaum-beejamayo madhyam paatu lankaavidaahakah' .. 13..

hreem-beejadharah' paatu guhyam devendravanditah' .
ram-beejaatmaa sadaa paatu choroo vaardhilanghanah' .. 14..

sugreevasachivah' paatu jaanunee me manojavah' .

कवच- ‘वं' बीजयुक्त अंजनीसुत मेरे दोनों भुजाओं की, 'ह्रा' बीज युक्त रावण के अभिमान को नष्ट करने वाले दर्पहा पेट की, 'सौं' बीज सहित लंका- विदाहक नाभि की, 'ही' बीज वाले देवेन्द्रवन्दित गुप्तांग की, 'र' बीजात्मक वार्धिलंघन दोनों घुटनों की, सुग्रीवमन्त्री मनोजव मेरे जानु की रक्षा करें ।। १२-१४।।

आपादमस्तकं पातु रामदूतो महाबलः ।

पूर्वे वानरवक्त्रो मामाग्नेय्यां क्षत्रियान्तकृत् ॥ १६॥

दक्षिणे नारसिंहस्तु नैऋर्त्यां गणनायकः ।
वारुण्यां दिशि मामव्यात्खगवक्त्रो हरीश्वरः ॥ १७॥

वायव्यां भैरवमुखः कौबेर्यां पातु मां सदा ।
क्रोडास्यः पातु मां नित्यमैशान्यां रुद्ररूपधृक् ॥ १८॥

aapaadamastakam paatu raamadooto mahaabalah' .
poorve vaanaravaktro maamaagneyyaam kshatriyaantakri't .. 16..

dakshine naarasimhastu nairi'rtyaam gananaayakah' .
vaarunyaam dishi maamavyaatkhagavaktro hareeshvarah' .. 17..

aayavyaam bhairavamukhah' kauberyaam paatu maam sadaa .
krod'aasyah' paatu maam nityamaishaanyaam rudraroopadhri'k .. 18..

 

इसी प्रकार महाबली रामदूत पैर से लेकर मस्तक पर्यन्त मेरे सभी अंगों की रक्षा करें तथा वानरमुख वाले पूर्व दिशा में, परशुराम आकृति वाले आग्नेय में, नारसिंह वक्त्रवाले दक्षिण में, गणेश मुखवाले नैर्ऋत्य में एवं गरुड मुखवाले कपीश्वर पश्चिम में, भैरव मुखवाले वायव्य में, वाराह मुखवाले उत्तर में तथा रुद्रमुख वाले ईशान दिशा में मेरी निरन्तर रक्षा करें।।१६-१८।।


रामास्यः पातु सर्वत्र सौम्यरूपो महाभुजः ॥ १९॥

इत्येवं रामदूतस्य कवचं यः पठेत्सदा ।
एकादशमुखस्यैतद्गोप्यं वै कीर्तितं मया ॥ २०॥

रक्षोघ्नं कामदं सौम्यं सर्वसम्पद्विधायकम् ।
पुत्रदं धनदं चोग्रशत्रुसंघविमर्दनम् ॥ २१॥

स्वर्गापवर्गदं दिव्यं चिन्तितार्थप्रदं शुभम् ।
एतत्कवचमज्ञात्वा मन्त्रसिद्धिर्न जायते ॥ २२॥

raamaasyah' paatu sarvatra saumyaroopo mahaabhujah' .. 19

ityevam raamadootasya kavacham yah' pat'hetsadaa .
ekaadashamukhasyaitadgopyam vai keertitam mayaa .. 20..

rakshoghnam kaamadam saumyam sarvasampadvidhaayakam .
putradam dhanadam chograshatrusanghavimardanam .. 21..

svargaapavargadam divyam chintitaarthapradam shubham .
etatkavachamajnyaatvaa mantrasiddhirna jaayate .. 22..

विशाल बाहुवाले, शान्त - स्वरूप, मर्यादा - पुरुषोत्तम भगवान् राम मेरी निरन्तर रक्षा करें। इस प्रकार मैंने आपसे राक्षसों को नष्ट करने वाले, सर्वाभीष्टप्रद, सौम्य, सर्वसम्पत्ति-प्रदायक, पुत्र एवं धनप्रद तथा समस्त शत्रु और उनकी सम्पत्तिविनाशक, चिन्तित मनोरथ पूर्णकारक. स्वर्ग-मोक्षप्रद, एकादश-मुख वाले हनुमान् जी के इस दिव्य कवच का वर्णन किया। इस कवच को बिना किय किसी भी अवस्था में मन्त्र सिद्धि नहीं होती ।।१९-२२ ।।

चत्वारिंशत्सहस्राणि पठेच्छुद्धात्मको नरः ।
एकवारं पठेन्नित्यं कवचं सिद्धिदं पुमान् ॥ २३॥

द्विवारं वा त्रिवारं वा पठन्नायुष्यमाप्नुयात् ।
क्रमादेकादशादेवमावर्तनजपात्सुधीः ॥ २४॥

वर्षान्ते दर्शनं साक्षाल्लभते नात्र संशयः ।
यं यं चिन्तयते चार्थं तं तं प्राप्नोति पूरुषः ॥ २५॥

ब्रह्मोदीरितमेतद्धि तवाग्रे कथितं महत् ॥ २६॥

chatvaarimshatsahasraani pat'hechchhuddhaatmako narah' .
ekavaaram pat'hennityam kavacham siddhidam pumaan .. 23..

dvivaaram vaa trivaaram vaa pat'hannaayushyamaapnuyaat .
kramaadekaadashaadevamaavartanajapaatsudheeh' .. 24..

varshaante darshanam saakshaallabhate naatra samshayah' .
yam yam chintayate chaartham tam tam praapnoti poorushah' .. 25..

brahmodeeritametaddhi tavaagre kathitam mahat .. 26..

मनुष्य को चाहिए कि वह अत्यन्त श्रद्धा-भक्तिपूर्वक चालीस हजार इस कवच का पाठ करे तथा सदैव एक बार पाठ करने से यह कवच सिद्ध होता है। इस प्रकार दो या तीन बार नित्य पाठ करने से अपमृत्यु (अकाल मृत्यु) का नाश एवं आयुष्य वृद्धिकारक होता है। जो साधक नित्य इस कवच का ग्यारह बार पाठ करता है, उसे निश्चित ही वर्ष भर के भीतर नि:संदेह हनुमान् जी का साक्षात्कार दर्शन प्राप्त होता है और वह जिन-जिन कामनाओं की इच्छा करता है वे सभी अवश्य ही उसके पूर्ण होते हैं। हे प्रिये! ब्रह्मा ने सनन्दनादि ऋषियों से जिस प्रकार इस कवच का निरूपण किया था, उसे मैंने तुम्हारे समक्ष सम्पूर्णरूप से कहा।।२३-२६ ।।

इत्येवमुक्त्वा वचनं महर्षिस्तूष्णीं बभूवेन्दुमुखीं निरीक्ष्य ।
संहृष्टचित्तापि तदा तदीयपादौ ननामातिमुदा स्वभर्तुः ॥ २७॥

इस प्रकार महर्षि अगस्त्यजी ने इस कवच का चन्द्रमुखी लोपामुद्रा के समक्ष वर्णन कर मौन हो गये । तत्पश्चात् अत्यन्त प्रसन्न चित्तवाली उस लोपामुद्रा ने अपने परमाराध्य पति अगस्त्यजी के चरणों में अत्यन्त श्रद्धा-भक्ति युक्त हो प्रणाम किया।।२७।।

ityevamuktvaa vachanam maharshistooshneem babhoovendumukheem nireekshya .
samhri'sht'achittaapi tadaa tadeeyapaadau nanaamaatimudaa svabhartuh' .. 27..

॥ इत्यगस्त्यसारसंहितायामेकादशमुखहनुमत्कवचं सम्पूर्णम् ॥

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