Hanuman 108 Names is a stotra depicting the hundreds of names of Lord Hanuman or Anjaneya. Anjaneya is another name of Lord Hanuman. Anjaneya 108 Names is a very powerful and effective stotra to remove the black magic and evil forces.
Lord Hanuman is the incarnation of Lord Shiva.
Lord Hanuman is swift as mind, has a speed equal to the wind God, has complete control on his senses, the son of wind god, the one who is the chief of vanara army, is the messenger of Rama, is the repository of incomparable strength. Hanuman is the destroyer of forces of demons.
How To Chant The Hanuman 108 Names
- The sadhna should be started from Tuesday or any auspicious day.
- Take 108 red flowers with you and some water.
- After chanting each name of Lord Hanuman, offer one flower. After chanting 108 names, collect those flowers in a pot filled with water.
- You can sprinkle this water in the affected premises or you can give this water to the person. Throw the flowers in a river nearby the next day.
- Repeat the sadhna 4-5 times only on Tuesdays for better results.
- It is better to do this sadhna in a nearby Lord Hanuman Temple.
यह बात सिद्ध हो चुकी है कि कलयुग में हनुमान आराधना ही एकमात्र ऐसी आराधना है जो सबसे शीघ्र फल देती है| हनुमान जी के नाम का जप करने से बड़े से बड़ा संकट दूर हो जाता है|
भक्तों की परेशानी चाहे कैसी भी हो शत्रु भय हो या रोग हो या फिर जीवन से जुड़ी कैसी भी दिक्कत हो हनुमान आराधना द्वारा हल किया जा सकता है|
जीवन की कोई भी कठिनाइयों या संकटों को दूर करने के लिए जीवन में किसी भी मनोकामना की पूर्ति के लिए इस हनुमान अष्टोत्तर शतनाम का प्रयोग किया जाता है|
हनुमान अष्टोत्तर शतनाम का प्रयोग प्रात: काल या रात्रि को किया जा सकता है|
स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर किसी एकांत स्थान में या हनुमान जी के मंदिर में जाकर आसन पर बैठे|
अपने सामने घी का दीपक जलाएं और सच्चे मन से एक बार इन हनुमान अष्टोत्तर शतनाम पाठ कीजिए या इसको श्रवण कीजिए|
यह बात सच जो व्यक्ति इन सो नामों का श्रवण या पठन करता है उसकी सभी मनोकामनाएं भगवान हनुमान शीघ्र ही पूर्ण कर देते हैं|
Hanuman 108 Names Text
श्री हनुमान अष्टोत्तर शतनामस्तोत्र
आञ्जनेयो महावीरो हनुमान्मारुतात्मजः ।
तत्वज्ञानप्रदः सीतादेवीमुद्राप्रदायकः ॥ १॥
अशोकवनिकाच्छेत्ता सर्वमायाविभञ्जनः ।
सर्वबन्धविमोक्ता च रक्षोविध्वंसकारकः ॥ २॥
परविद्यापरीहारः परशौर्यविनाशनः ।
परमन्त्रनिराकर्ता परयन्त्रप्रभेदनः ॥ ३॥
सर्वग्रहविनाशी च भीमसेनसहायकृत् ।
सर्वदुःखहरः सर्वलोकचारी मनोजवः ॥ ४॥
पारिजातद्रुमूलस्थः सर्वमन्त्रस्वरूपवान् ।
सर्वतन्त्रस्वरूपी च सर्वमन्त्रात्मकस्तथा ॥ ५॥
कपीश्वरो महाकायः सर्वरोगहरः प्रभुः ।
बलसिद्धिकरः सर्वविद्यासम्पत्प्रदायकः ॥ ६॥
कपिसेनानायकश्च भविष्यच्चतुराननः ।
कुमारब्रह्मचारी च रत्नकुण्डलदीप्तिमान् ॥ ७॥
सञ्चलद्वालसन्नद्धलम्बमानशिखोज्ज्वलः ।
गन्धर्वविद्यातत्त्वज्ञो महाबलपराक्रमः ॥ ८॥
कारागृहविमोक्ता च शृङ्खलाबन्धमोचकः ।
सागरोत्तारकः प्राज्ञो रामदूतः प्रतापवान् ॥ ९॥
वानरः केसरिसुतः सीताशोकनिवारनः ।
अञ्जनागर्भसम्भूतो बालार्कसदृशाननः ॥ १०॥
विभीषणप्रियकरो दशग्रीवकुलान्तकः ।
लक्ष्मणप्राणदाता च वज्रकायो महाद्युतिः ॥ ११॥
चिरञ्जीवी रामभक्तो दैत्यकार्यविघातकः ।
अक्षहन्ता काञ्चनाभः पञ्चवक्त्रो महातपाः ॥ १२॥
लङ्किणीभञ्जनः श्रीमान् सिंहिकाप्राणभञ्जनः ।
गन्धमादनशैलस्थो लङ्कापुरविदाहकः ॥ १३॥
सुग्रीवसचिवो भीमः शूरो दैत्यकुलान्तकः ।
सुरार्चितो महातेजो रामचूडामणिप्रदः ॥ १४॥
कामरूपी पिङ्गलाक्षो वार्धिमैनाकपूजितः ।
कबलीकृतमार्तण्डमण्डलो विजितेन्द्रियः ॥ १५॥
रामसुग्रीवसन्धाता महिरावणमर्दनः ।
स्फटिकाभो वागधीशो नवव्याकृतिपण्डितः ॥ १६॥
चतुर्बाहुर्दीनबन्धुर्महात्मा भक्तवत्सलः ।
सञ्जीवननगाहर्ता शुचिर्वाग्मी दृढव्रतः ॥ १७॥
कालनेमिप्रमथनो हरिमर्कटमर्कटः ।
दान्तः शान्तः प्रसन्नात्मा दशकण्ठमदापहृत् ॥ १८॥
योगी रामकथालोलः सीतान्वेषणपण्डितः ।
वज्रदंष्ट्रो वज्रनखो रुद्रवीर्यसमुद्भवः ॥ १९॥
इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्रविनिवारकः ।
पार्थध्वजाग्रसंवासी शरपञ्जरभेदकः ॥ २०॥
दशबाहुलोर्कपूज्यो जाम्बवत्प्रीति वर्धनः ।
सीतासमेत श्रीरामपादसेवाधुरन्धरः ॥ २१॥
इत्येवं श्रीहनुमतो नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥
यः पठेच्छृणुयान्नित्यं सर्वान्कामानवाप्नुयात् ॥ २२॥
॥ इति श्रीमदाञ्जनेयाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥