Mahakali Brass Idol | Energized Murti

Mahakali Brass Idol - Energized Murti

📅 May 26th, 2022

By Vishesh Narayan

Summary Mahakali Brass Idol is a sacred home of Goddess Mahakali energized with Murti Sanskar and repetition of Mantras. Kali is the Goddess of time and change. Kali is Adi Mahavidya, the primary Mahavidya. She is the first and the foremost among the Mahavidyas.


Mahakali Brass Idol is a sacred home of Goddess Mahakali energized with Murti Sanskar and repetition of Mantras. The Mahakali Idol represents ‘Sakshat Mahakali’. The Mahakali Idol can be placed in the temple of your house or a sacred place.

Kali shines with the brilliance of a million black fires of dissolution and her body is bathed in the sacred ash. Kali is revered as Bhavtirine i.e the savior of the universe.

Kali is the Goddess of time and change. Kali is Adi Mahavidya, the primary Mahavidya. She is the first and the foremost among the Mahavidyas.

Even before the Mahavidya cult came into being, she was a major goddess with a large following of devotees immersed in her mythologies, hymns, and songs.

She is not only the first but the most important of the Mahavidyas. It is said, the Mahavidya tradition is centered on Kali and her attributes. Kali is the epitome of the Mahavidyas.

Kali is a Black goddess, Shamshana Kali, Mahakali, Nitya Kali, Shyama Kali, Bhadra Kali, Ugra Chandi, Siddeshwari, and Kalratri.

दस महाविद्याओंमें काली प्रथम हैं। महाभागवतके अनुसार महाकाली ही मुख्य हैं और उन्हींके उग्र और सौम्य दो रूपोंमें अनेक रूप धारण करनेवाली दस महाविद्याएँ हैं। विद्यापति भगवान् शिवकी शक्तियाँ ये महाविद्याएँ अनन्त सिद्धियाँ प्रदान करनेमें समर्थ हैं। दार्शनिक दृष्टिसे भी कालतत्त्वकी प्रधानता सर्वोपरि है।

इसलिये महाकाली या काली ही समस्त विद्याओंकी आदि हैं अर्थात् उनकी विद्यामय विभूतियाँ ही महाविद्याएँ हैं। ऐसा लगता है कि महाकालकी प्रियतमा काली ही अपने दक्षिण और वाम रूपोंमें दस महाविद्याओंके नामसे विख्यात हुई।

बृहन्नीलतन्त्रमें कहा गया है कि रक्त और कृष्णभेदसे काली ही दो रूपोंमें अधिष्ठित हैं। कृष्णाका नाम 'दक्षिणा' और रक्तवर्णाका नाम 'सुन्दरी' है

कालिकापुराणमें कथा आती है कि एक बार हिमालयपर अवस्थित मतंग मुनिके आश्रममें जाकर देवताओंने महामायाकी स्तुति की। स्तुतिसे प्रसन्न होकर मतंग-वनिताके रूपमें भगवतीने देवताओंको दर्शन दिया और पूछा कि तुमलोग किसकी स्तुति कर रहे हो।

उसी समय देवीके शरीरसे काले पहाड़के समान वर्णवाली एक और दिव्य नारीका प्राकट्य हुआ। उस महातेजस्विनीने स्वयं ही देवताओंकी ओरसे उत्तर दिया कि 'ये लोग मेरा ही स्तवन कर रहे हैं।' वे काजलके समान कृष्णा थीं, इसीलिये उनका नाम 'काली' पड़ा।

दुर्गासप्तशतीके अनुसार एक बार शुम्भ-निशुम्भके अत्याचारसे व्यथित होकर देवताओंने हिमालयपर जाकर देवीसूक्तसे देवीकी स्तुति की, तब गौरीकी देहसे कौशिकीका प्राकट्य हुआ। कौशिकीके अलग होते ही अम्बा पार्वतीका स्वरूप कृष्ण हो गया, जो 'काली' नामसे विख्यात हुई।

कालीको नीलरूपा होनेके कारण तारा भी कहते हैं। नारद-पाञ्चरात्रके अनुसार एक बार कालीके मनमें आया कि वे पुनः गौरी हो जायँ। यह सोचकर वे अन्तर्धान हो गयीं। शिवजीने नारदजीसे उनका पता पूछा। नारदजीने उनसे सुमेरुके उत्तरमें देवीके प्रत्यक्ष उपस्थित होनेकी बात कही।

शिवजीकी प्रेरणासे नारदजी वहाँ गये। उन्होंने देवीसे शिवजीके साथ विवाहका प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो गयीं और उनकी देहसे एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट हुआ और उससे छायाविग्रह त्रिपुरभैरवीका प्राकट्य हुआ।

कालीकी उपासनामें सम्प्रदायगत भेद है। प्रायः दो रूपोंमें इनकी उपासनाका प्रचलन है। भव-बन्धन-मोचनमें कालीकी उपासना सर्वोत्कृष्ट कही जाती है। शक्ति-साधनाके दो पीठों में कालीकी उपासना श्याम-पीठपर करनेयोग्य है।

भक्तिमार्गमें तो किसी भी रूपमें उन महामायाकी उपासना फलप्रदा है, पर सिद्धिके लिये उनकी उपासना वीरभावसे की जाती है। साधनाके द्वारा जब अहंता, ममता और भेद-बुद्धिका नाश होकर साधकमें पूर्ण शिशुत्वका उदय हो जाता है, तब कालीका श्रीविग्रह साधकके समक्ष प्रकट जाता है। उस समय भगवती कालीकी छबि अवर्णनीय होती है।

कज्जलके पहाड़के समान, दिग्वसना, मुक्तकुन्तला, शवपर आरूढ़, मुण्डमालाधारिणी भगवती कालीका प्रत्यक्ष दर्शन साधकको कृतार्थ कर देता है। तान्त्रिक-मार्गमें यद्यपि कालीकी उपासना दीक्षागम्य है, तथापि अनन्य शरणागतिके द्वारा उनकी कृपा किसीको भी प्राप्त हो सकती है।

मूर्ति, मन्त्र अथवा गुरुद्वारा उपदिष्ट किसी भी आधारपर भक्तिभावसे, मन्त्र जप, पूजा, होम और पुरश्चरण करनेसे भगवती काली प्रसन्न हो जाती हैं। उनकी प्रसन्नतासे साधकको सहज ही सम्पूर्ण अभीष्टोंकी प्राप्ति हो जाती है।

Specifications:

Weight 300 gms
Size: 7.5*4*10 cms

Material: Brass
Energized with Murti Sanskar and 11000 shiv Mantra

(Images may differ because of the stock variations)


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